मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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देवी प्रार्थना
वर दय हरू कष्ट हमर मैया
बड़ देर सं आश लगेने छी
अवलंब अहीं छी व्यथित मनके
विश्वासक दीप जरेने छी
वर दय हरू.....
BHARTI DAS
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मरीचिका
रेवती कहती है- ” दूर हट मरजाणा! सर पै न मंडासो मार।”
अवदत् अनीता
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माया
निर्विकल्प होकर ही
मिला जा सकता है उससे
जिसे अज्ञानी मिल सकते हैं
पर जानने का अभिमान रखने वाले नहीं
जो बचाए रखता है खुद को
अनीता
मन पाए विश्राम जहाँ
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भीगना ज़रूरी है
भीगना ज़रूरी है ।
मूसलाधार बारिश में ।
रिमझिम बरसती
बूँदों की आङ में
रो लेना भी ज़रूरी है ।
धुल जाते हैं
ह्रदय में उलझे द्वन्द,
छल और प्रपंच
जिनकी मार
दिखाई नहीं देती ।
नूपुरं
नमस्ते namaste
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आज भी उतना ही है रामलीला का आकर्षण !
शारदीय नवरात्र शुरू होते ही रामलीलाओं का दौर भी शुरू हो जाता है और जब रामलीला की बात आती है तो बचपन के वे दिन भी बहुत याद आते हैं जब रामलीला का नाम सनते ही मन झूमने लगता था। पढ़ाई के दबाव के बाद भी रामलीला देखने की कोई मनाही नहीं थी। रामलीला का अलग ही आकर्षण था। ऊपर से उस दौर के कलाकार जिस परिश्रम के साथ रामलीला का मंचन करते थे वो भी अद्भुत था। हमारे यहाँ रामलीला के जो कलाकार आते थे वे जल्द ही लोगों के साथ घुल-मिल जाते थे। रात 9 बजे से शुरू हो कर सवेरे 4 बजे खत्म होती थी। फिर कलाकार सोते और दिन में 12 बजे के बाद गाँव में घूमने निकल आते। जाहिर है उनके पीछे-पीछे बच्चों का झुंड भी चलता था जो आपस में खूब खुसर-पुसर करते कि देखो यह तो 'हनुमान' जी जा रहे हैं या यह रावण है। कलाकार भी बच्चों की शरारतों का खूब मजा लेते। वोकल बाबा --
मन के घेरे ( कहानी )
उनकी आँखेँ पहले मिचमिचाई और फिर मुँद-सी गईं। ऐसा सोचते या कहते हुए वह एक खास तरह के सुख से भर उठी थी, ऐसा सुख जिसका शब्दों में ठीक-ठीक अनुवाद शायद संभव नहीं था - ‘सोचा था तुम मर जाओगी तो उसकी दूसरी शादी करा देंगे।‘
उसे हैरत हुई कि कैसे कह पा रही हैं वह यह बात जबकि अभी-अभी, ठीक दस मिनट पहले डाक्टर ने आश्वासन के साथ ही चेतावनी भी दी थी कि अभी तो कोई बीमारी नहीं दिख रही, मगर प्रीकॉशन नहीं लिए गए, तो कुछ भी हो सकता है।
रूप-अरूप
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एक ग़ज़ल : हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर--
हर जगह झूठ ही झूठ की है ख़बर ,
पूछता कौन है अब कि सच है किधर?
इस क़लम को ख़ुदा इतनी तौफीक़ दे,
हक़ पे लड़ती रहे बेधड़क उम्र भर ।
आपका ब्लॉग आनन्द पाठक
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फ़िक्र.. लघुकथा
“फ़िक्र फ़िक्र फ़िक्र”
“कितनी फ़िक्र करते हैं पापा आप”
“इस फ़िक्र के चक्कर में आप खुद तो घनचक्कर होकर रह गए हैं, और हमें भी परेशान कर दे रहे हैं, पापा मैं अब बीस साल की हूँ, अगर कहीं जाऊँगी तो आपकी उँगली थोड़ी न पकडूँगी ।आप दिन भर मुझे फ़ोन ही करते रहते हैं, अरे मैं हॉस्टल में हूँ, बहुत सेक्योरिटी है यहाँ । फिर जैसे ही मैं फ़ोन न उठाऊँ, आप मेरी रूम्मेट को भी फ़ोन कर देते हैं, बताइए आपको भला इस तरह मेरे पीछे पड़ना चाहिए । अरे मैं कॉलेज आई हूँ पढ़ने, घूमने नहीं ।
गागर में सागर जिज्ञासा सिंह
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राजगिरा आटा लड्डू (Rajgira Atta Ladoo)
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल --
कविता के कई रूप
कविता के कितने रूप
तुम्हें कैसे गिनवाऊँ
कुछ होतीं अकविता
पढने में रुचिकर लगतीं |
कुछ होतीं छंद रूप में
पढने में बहुत रोचक लगतीं
आशा लता सक्सेना
Akanksha -asha.blog spot.com
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फेरी वाला
(हास्य-व्यंग्य)
प्रातः बिस्तर से उठा ही था कि फेरी वाले की आवाज़ आई। अस्पष्ट होने से उसकी पूरी हांक समझ में नहीं आई, केवल बाद के दो शब्द सुनाई दे रहे थे - ".......ले लो, .......ले लो।"
Gajendra Bhatt
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परख/जौहरी
महाराज विक्रम ने पेड़ से शव को उतार कंधे पर डाला और शव में छिपे बैताल ने कहना शुरू किया :-अध्यक्ष महोदय के द्वारा संस्था की एक सौ पाँचवीं वर्षगाँठ के महोत्सव में पूरे देश के विद्वानों को आमंत्रित किया गया।
विभिन्न प्रान्तों से एक सौ पाँच विद्वानों का आगमन हुआ। उनकी वेशभूषा अलग-अलग थी। चूँकि आगंतुक विद्वानों को अपने-अपने प्रान्त की पोशाक पहननी थी।
उनमें से कुछ विद्वानों पर अध्यक्ष की विशेष नजर पड़ी । वे सुरुचिपूर्ण नए वस्त्रों से सुसज्जित थे। अध्यक्ष उनके पहनावे से प्रभावित हुए और उन्हें अपने समीप मंच पर बैठाया ।
विभा रानी श्रीवास्तव
"सोच का सृजन"
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दरख्त
कविता वर्मा
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(आलेख) हम नहीं कहते ,ज़माना कहता है ...
स्वराज करुण
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बुकर प्राइज़ 2022 की शॉर्ट लिस्ट हुई रिलीज
13 पुस्तकों की लॉन्ग लिस्ट से इन छः पुस्तकों को चुना गया था। वर्ष 2022 की शॉर्ट में जिन पुस्तकों को शामिल किया गया है वह निम्न हैं:
एक बुक जर्नल
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पहले ये तो उतारिये सा !
या चट्ठा-भठ्ठा Tarun's Diary- "तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.."
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गीत "बाँटती है सुख, हमें शीतल पवन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आज के लिए बस इतना ही...!
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