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बुधवार, सितंबर 14, 2022

"आओ हिन्दी-दिवस मनायें" (चर्चा अंक 4551)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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गीत 

"आओ हिन्दी-दिवस मनायें" 

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हिन्दीभाषा को अपनायें।
आओ हिन्दी-दिवस मनायें।।
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हिन्दीवालों की हिन्दी ही-
क्यों इतनी कमजोर हो गयी?
भाषा डूबी अँधियारे में,
अँगरेजी की भोर हो गई।
एक वर्ष में पन्द्रह दिन ही-
हिन्दी की गाथा को गायें।
आओ हिन्दी-दिवस मनायें।१।
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गीतिका 

"हिन्दी है सबसे सरल" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी हिन्दी है सबसे सरल औ' सुगम,
सारे संसार में इसका सानी नहीं।

जो लिखा है उसी को पढ़ो मित्रवर,
बोलने में कहीं बेईमानी नहीं। 

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गूँगी गुड़िया : कर्तव्य पथ 

एक बार उसने कहा था -
पंद्रह लोग गए थे हम 
दस सफ़र में छूट गए
पाँचो के नाम दिल्ली में लिखें हैं 
तब वह टूटना चाहता था, नहीं टूटा 
घर पर रुकना चाहता था, नहीं रुका!

हम हर साल हिंदी दिवस मनाते हैं और अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं।पता नहीं यह कैसा चलन है कि अब किसी के प्रति अपने भाव अभिव्यक्त करने के लिए या अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए एक दिन सुनिश्चित कर लिया गया है।उस दिन जोर-शोर से कार्यक्रम होते हैं,सब अपनी भागीदारी निभाकर फिर सब भूल जाते हैं। चाहे पुत्री दिवस हो,मातृ-दिवस हो या पितृ-दिवस हो या और कोई सा भी दिवस।
ऐसा लगता है हमने दिखावा करना बखूबी सीख लिया है। 
हिंदी है पहचान हमारी।
सब भाषाओं से ये प्यारी।।
मधुर-मधुर यह मन को भाए।
भाव सुधा रस पान कराए।

मन के मोती अभिलाषा चौहान

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"सत्य ना असत्य" 

आज मैं आप सभी को एक कहानी सुनाती हूँ। आप भी अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से इसका "अर्थ" निकाल सकते हैं। 

एक बाबा जी थे। लोगों का मानना था कि -बहुत पहुँचे हुए संत है जो कहते हैं सत्य हो जाता है,खासतौर पर संतानहीन माँ-बाप को बच्चों के बारे में जो बताते हैं वो तो बिल्कुल सत्य होता है। बाबा जी भक्तों को उत्तर एक पर्ची पर लिख कर देते थे। अब,जब भी कोई दम्पति आकर पूछता कि-"बाबा जी,मुझे बताये कि-लड़का होगा या लड़की" तो बाबा जी एक पर्ची पर लिख देते "बेटा ना बेटी" लोग अपनी-अपनी बुद्धि के हिसाब से या यूँ कहे मनोकामना के हिसाब से अपना उत्तर स्वयं सोच लेते थे।  

मेरी नज़र से कामिनी सिन्हा

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पाहन सा दिल बना लिया जो 

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पल-पल कोई साथ हमारे 

सदा नज़र के आगे रखता, 

आँखें मूँदे हम रहते पर 

निशदिन वह जागा ही रहता !

मन पाए विश्राम जहाँ 

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कार्टून :- 41,000 वाली टी-शर्ट का शेषभाग 

Kajal Kumar's Cartoons  काजल कुमार के कार्टून 

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मेरा उद्देश्य 

लिए चौमुख दियना हाथ में

दिया ढका आँचल से

बचाया उसे हलकी बयार से

  चली साथ में रौशन हुआ समस्त मार्ग 

  आवश्यक नहीं कोई 

 अन्य रौशनी के स्रोत का  

दिग दिगंत चमका देदीप्तिमान हुआ

आगे जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ 

Akanksha -asha.blog spot.com 

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सीख दादा जी आप पार्क जाते वक्त हमेशा इस नाले के पास क्यूँ खड़े हो जाते हैं..? देखिए .. शिवी के दादा जी पार्क पहुँच गएशिवी के साथ और आप अभी तक यहीं खड़े हैं” तुम नहीं समझोगे बेटा ? अरे बताइए ना दादा जी ” कहा ना.. नहीं समझोगे ” उं..उं..फिर भी.. बताइए दादा जी..” रोहन पैर पटकने लगा । 

गागर में सागर जिज्ञासा सिंह

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एहसासों के फूल ( पुस्तक समीक्षा ) समीक्षक : अमृत लाल मदान समाज में फैली इन दुष्प्रवृतियों से दुःखी हो कर वह कृष्ण को उनका वायदा याद दिलाते हैं जो उन्होंने अधर्म  जाने पर नया अवतार ले कर आने को कहा था । यहां उनका संस्कृति प्रेम झलकता है ।  इस प्रकार कविता दर कविता सेतिया जी जीवन यात्रा की अच्छी बुरी अनुभूतियों की सशक्त अभिव्यक्ति करते चलते हैं । हां कहीं कहीं उनकी घिसी-पिटी उपमाएं अखरती भी हैं , यथा , फूल ही फूल खिले हों \ हों हर तरफ बहारें ही बहारें ।  फिर भी बहुत ताज़गी है उनकी कविताओं में शिल्प तथा सादी ज़बान में।  उनके लिए साधुवाद की कामना करता हूं ।  उपरोक्त पुस्तक समीक्षा आदरणीय मदान जी ने 11सितंबर 2022 आर के एस डी ( पी जी ) कॉलेज में विमोचन करते समय पढ़ कर सुनाई । मुझे याद नहीं उनसे कभी पहले आमने सामने मुलाक़ात हुई या कोई वार्तालाप हुई हो । शायद कोई बेहद संवेदशील साहित्य सृजक ही ऐसा कर सकता है केवल पुस्तक को पढ़ कर रचनाकार की मन की भावनाओं को समझ कर इतनी सही सार्थक समीक्षा करना । मुझे अपनी रचनाओं की इस से बढ़कर कोई कीमत नहीं मिल सकती है । अमृत लाल मदान जी का धन्यवाद शब्दों में नहीं किया जा सकता है ।

 

Expressions by Dr Lok Setia 

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ग़ज़ल आप से हाल-ए-दिल छुपा है क्या 

आप से हाल-ए-दिल छुपा है क्या

अर्ज़ करना कोई ख़ता है क्या ।

आप ही जब न हमसफ़र मेरे

फिर सफ़र में भला रखा है क्या 

गीत ग़ज़ल और माहिया आनन्द पाठक

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श्री साम्ब शिवार्पण मस्तु 

रजनी   का   क्रूर विकट   क्रंदन
प्रतिपद      प्राणों का अवमंंदन
निर्देशक    कर     बैठा    मंचन।

नयनों    से       बहती  अश्रुधार
ज्वाला      की  लपटें   आरपार
सति का शव, शिव ने लिया धार। 

Nayekavi जय गोविन्द शर्मा

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हां दिखने लगे हैं ऐब ! 

करते हो कितना #फरेब ,

बातों ही बातों में ,

दिखने लगे हैं #ऐब ,

हर एक #मुलाकातों में । 

मेरी अभिVयक्ति 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा। सभी रचनाएँ शानदार। हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात! सभी पाठकों व रचनाकारों को हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ! आज की चर्चा ज्ञानवर्धक है और रोचक भी, मन पाए विश्राम जहाँ को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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  4. हिंदी दिवस की शुभकामनायें, प्रणाम शास्‍त्री जी, सभी लिंक बहुत शानदार रहे

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  5. सभी ब्लॉगर साथियों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
    श्रमसाध्य अंक आदरणीय सर, मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏

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  6. अति सुन्दर प्रस्तुति। आप सबों को हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय मयंक सर ,
    नमस्ते,
    मेरी प्रविष्टि् "दिखने लगे हैं #ऐब" के लिंक की चर्चा इस अंक "आओ हिन्दी-दिवस मनायें" पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
    सभी संकलित रचनाएँ बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को हिन्दी दिवस की बधाइयाँ एवं शुभकामनायें ।
    सादर ।

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  8. बहुत सुंदर सराहनीय और पठनीय अंक। सभी रचनाकारों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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