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सोमवार, सितंबर 19, 2022

'क़लमकारों! यूँ बुरा न मानें आप तो बस बहाना हैं'(चर्चा अंक 4556)

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

शीर्षक व काव्यांश आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना 'इल्तिजा' से -

इल्तिजा इतनी ही है कि जरा-सा थम जाइए
ज़मानें भर का न सही पर अपना तो गम़ खाइए

                  अक्सर कुछ भी "लिखो फोबिया" के चक्कर में क़लम घसीटी का आलम ही जुदा हो जाता है। तब तो तड़प-तड़प कर क़लम के दिल से ऐसी ही इल्तिजा वाली आह निकलती है। पर हम तो ठहरे आला दर्जे का क़लमकसाई। अब क्या फर्क पड़ता है कि क़लम हमें घसीटती है या हम क़लम को। इसी घसीटाघसीटी में जुमला-बाज़ी तो हो गई। अब हमपर जिन्हें खुलकर फ़िकऱा-बाज़ी करनी है तो वे शौक़ से कर सकते हैं। तब तक हम इस्तक़बाल के लिए लफ़्ज़ तलाशते हैं। ताकि कुछ और जुमला-बाज़ी हो।                    

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

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उच्चारण: ग़ज़ल "माफ न करता कभी ज़माना- 

झूठी कायाझूठी छाया
माया में मत मन भरमाना
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सुख के सपने रिश्ते-नाते
बहुत कठिन है इन्हें निभाना
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लिखने से पहले जरा सोच भी लिजिए
निकले लफ़्ज़ों में जरा लोच भी दिजिए
यूँ बंदूक से निकली गोली की तरह फायर हैं
और कहते हैं कि आप नामचीन शायर हैं
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आईना दिखाने वाले 
कहाँ ग़ाएब हो गए?
शायद वे 
घृणा का गान सुनते-सुनते 
लहू का घूँट पीते-पीते 
जान की फ़िक्र में पड़ गए...
--
जैसे, पढ़ गया वो किताब सारी,
खोल कर आलमारी,
उकेर कर हर एक पन्ने किताब के,
रख गया, वो खोलकर!
--
 ये पहाड़ी औरतें 
भोर के उजास में
 लगा कर विश्वास की
 माथे पर बिंदिया,
 पहन कर नथनी
 नाक में अभिमान की, 
लपेट कर पल्लू 
कमर में जोश का,
--

अब कहाँ कोई है दूसरा 

जैसे कोई घर लौटा हो, 

कतरे-कतरे से वाक़िफ़ है 

जिसने अपना मन देखा हो !

--

RAAGDEVRAN: मिथ्या

मिथ्या थी वो अनजानी सी आधी अधूरी मेरी मुलाकातें l

कह के भी कह ना पायी जो अपने मौन जज्बातों की बातें ll

दस्तक देता रह गया इसकी भूली सरहद आवाजों को l

खोई हुई जैसे किसी मौन शून्य में पसरी आहटों को ll

--

मैं ...हिंदी 

सम्मान  दो ...
 बनाओ मुझे ताकत  अपनी 
          मैं तो आपके मन की भाषा हूँ  
            प्रेम  की भाषा हूँ  
              क्या दोगे अपना प्रेम  ?
लोग कहते हैं ,
हवेलियां मजबूत होती हैं ,
एक पीढ़ी उसको बनाती है 
तो 
दूसरी पीढ़ी उसको सजाती है ।
--
साहेब, 
आयातित चीतों को लाने में, 
करोड़ों बहाते हैं। 
जहाज सजाते हैं।
 दिखावा करवाते हैं।
--
हमारे यहां एक प्रथा कुछ वर्षों से काफी चलन में है, वह है विरोध ! सरकार द्वारा कुछ भी हो रहा हो या किया जाए तुरंत एक खास पूर्वाग्रही, कुंठित, विघ्नसंतोषी तबका उसके विरोध में चिल्ल-पों मचाना शुरू कर देता है ! उस काम के औचित्य पर, उसके प्रयोजन पर, उसके परिणाम पर सवाल उठाने आरंभ कर दिए जाते हैं ! भले ही वह काम देश के या लोगों के हित में ही क्यों ना हो ! अभी देश की ग्रासलैंड इकोलॉजी को सुधारने के लिए विलुप्त हो चुके चीतों के पुनर्स्थापन की योजना के तहत नामीबिया से आठ चीते, जिनमें पांच मादा तथा तीन नर हैं, लाए गए ! इस पर उनको लाने और जगह विशेष में बसाने पर भी ऐसे लोगों को राजनीती नजर आने लगी ! जबकि यह पर्यावरण के लिए बहुत आवश्यक था !
-- 
आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति'  

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
    @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात.....। कई विविधताओं को समेटे आज की यह प्रस्तुति, वाकई काबिले तारीफ़ है।।।। आदरणीया अनीता सैनी जी कोशिशों को, कोटिशः नमन। हार्दिक आभार।।।

    जवाब देंहटाएं
  3. विविधरंगी रचनाओं से सुसज्जित चर्चा मंच का आज का अंक सराहनीय है, आभार मुझे भी इस मंच पर आमन्त्रित करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  4. अनोखी और मनमोहक प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आभार। आप सबों के अनवरत और अथक प्रयास एवं परिश्रम को हार्दिक नमन। लफ़्ज़ कम पड़ रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. वैविध्य रचनाओं से सज्जित सार्थक अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  6. विविध रचनाओं का अद्भुत सामंजस्य

    जवाब देंहटाएं

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