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मंगलवार, सितंबर 13, 2022

"हिन्दी है सबसे सरल"(चर्चा अंक 4551)

सादर अभिवादन

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)


मेरे भारत की भाषाएँ फूलें-फलें,

हमको सन्तों की वाणी भुलानी नहीं।

"रूप" इसका सँवारें सकल विश्व में,
रुकने पाए हमारी रवानी नहीं।

हिन्दी भाषा के सम्मान में कहीं गई इन पंक्तियों के साथ शुरू करते हैं आज का सफर......--------गीतिका "हिन्दी है सबसे सरल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


व्याकरण में भरा पूर्ण विज्ञान है,
जोड़ औतोड़ की कुछ कहानी नहीं।

सन्धि नियमों में पूरी उतरती खरी,
मातृभाषा हमारी बिरानी नहीं।
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हिन्दी की विशेषता

 है हिन्दी हमारी मातृभाषा 

हमें है  प्यार उससे  

कारण नहीं समझ से बाहर 

लिपि है  बहुत  सरल उसकी  |

कितनी भाषाएँ मिलीं है उससे 

जैसे जल में शक्कर मिली हो |

उन शब्दों   को यदि  खोजा जाए 

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 मेडिकल व्यापारियों से सावधान रहें -सतीश सक्सेना


इंसान अपने जीवन भर मृत्यु के बारे में कभी कोई विचार नहीं करता , बस खतरनाक बीमारी से लड़ते समय ही उसकी याद आती है और साथ ही मृत्यु भय भी, जो स्थिति की गंभीरता को कई गुना बढ़ा देता है ! इसके न होने की अवस्था में बीमारियों को मानव की आंतरिक रक्षा शक्ति रोग पर कुछ समय में काबू पा लेती है , मगर अगर मरीज को जान जाने के खतरे की संभावना बता दी जाए तो मानसिक तनाव के कारण कुछ समय में ही, सामान्य बीमारी भी कई गुना खतरनाक हो जाती है ! अफ़सोस यह है कि इस भय को मेडिकल व्यवसाय में अधिक से अधिक धन कमाने के लिए, अच्छी तरह भुनाया जाता है !

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लघुकथा- सीनियर सिटीजन ग्रुप

अंकिता और अमर दोनों पति-पत्नी अच्छे पदों पर काम कर रहे थे। उनका बेटा हैदराबाद में जॉब कर रहा था। अमर के पिता का देहांत हो चुका था और माँ (शिल्पा) की उम्र 70 साल थी। वैसे तो वो सेहतमंद थी और अपने सभी काम खुद ही करती थी लेकिन अंकिता अक्सर इस बात से तनाव में रहती कि अभी तो सास तंदुरुस्त है मगर उम्र के साथ-साथ जब उनकी शारीरिक तकलिफे बढ़ेगी तो क्या होगा? उनकी देखभाल कौन करेगा? असल में अब अंकिता को लगने लगा था कि सास के रहते वो फ्री नहीं रह पाती है। इसलिए वो सास को वृद्धाश्रम भेजने के लिए अमर को मनाने लगी।
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दादी की पाती
कुछ साल पहले "हिंद युग्म" के "बाल उद्यान" भाग में "दीदी की पाती" नाम से एक सीरीज शुरू की थी । वह बहुत पसंद की गई। न केवल बच्चों ने उसको पसंद किया ,बड़े भी उस पाती का बहुत इंतजार करते थे। बच्चों के साथ रहना उनके लिए लिखना मुझे विशेष रूप से पसंद है। अब उनके लिए एक यू ट्यूब चैनल शुरू किया है । आप सब का सहयोग चाहिए ।  चूंकि अब दीदी भी दादी बन गई हैं तो इसका नाम भी बदल दिया। पर बातें कहानियां वही रोचक हैं। 😊 देखे सुने और लाइक सब्सक्राइब करें। -----------
नाक़ाम इश्क़ ...

काँटों की चुभन है नाक़ाम इश्क़
रहने नहीं देती जो चैन से
महसूस होता है रिस्ता दर्द, रह-रह के चुभती कील सरीखे
 
एक अन्तहीन दौड़ की दौड़ 
क्या प्रेम की प्राप्ति के लिए ? 
या भटकता है खुद की तलाश में इन्सान ?

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"मेरे ज्येष्ठ पुत्र का जन्मदिन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


मेरे आँगन के उपवन में,
मुरझाये सब सुमन खिल गये।
नीरस जीवन, सरस हो गया,
सब अनुपम उपहार मिल गये।
सूने मन के आँगन-उपवन,
वासन्ती उद्यान हो गये।
नितिन तुम्हारे कारण मेरे,

पूरे सब अरमान हो गये।।

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ज्येष्ठ पुत्र को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सर

आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे 
आपका दिन मंगलमय हो 
कामिनी सिन्हा 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
    आदरणीय शास्त्री जी के ज्येष्ठ पुत्र को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. मनोरंजक व ज्ञानवर्द्धक लिंक्स…शास्त्री जी को पुत्र के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
    — उषा किरण

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रणाम शास्‍त्री जी, आपके दिए हुए सभी लिंक एक से बढ़कर एक हैं...चर्चामंच का प्‍लेटफॉर्म पाठकों के लिए एक संजीवनी की तरह है...शानदार...आपकी मेहनत का लाभ हम सभी को मिल रहा है..धन्‍यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. कामिनी जी आपकी मेहनत रंग ला रही है, हम जैसे ब्‍लॉगर्स के लिए...इसके लिए आपका जितना आभार प्रगट करूं उतनी कम है।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. देर से आने के लिए माफ़ करिएगा कामिनी जी , आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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