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रविवार, सितंबर 18, 2022

"विश्वकर्मा भगवान का वंदन" (चर्चा अंक 4555)

सादर अभिवादन

रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भुमिका आदरणीय ब्रजेन्द्रनाथ जी की रचना से)


धर्म पथ पर बढ़ चलें हम, शुद्ध हो मेरे आचरण,

 सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन। 

हाथ जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन। 


"विश्वकर्मा"सृष्टि के प्रथम शिल्पकार के चरणों में सत सत नमन करते हुए चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

******

सृष्टि के शिल्पकार तो विश्वकर्मा जी है लेकिन हमारे नये भारत के सृजनकर्ता हमारे प्रिय प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी है। ये कहने में मुझे भी जरा सा भी संकोच नहीं है।

जो भी सिर्फ देश के लिए तटस्थ होकर सोचेगा उन्हें इस बात का एहसास जरुर होगा।

बाकी, कमियां निकालना तो हमारी मानसिकता हो ही गई है।

आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

परमात्मा उन्हें दिर्घायु करें 

 "दामोदर नरेन्द्र भाई मोदी" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

दागे नहीं खयाली गोले,
कूटनीति से काम लिया।
सत्य-अहिंसा के बल पर,
अपने भारत को एक किया।
भटके हुए युवा बिरुओं को,
देशभक्ति को सिखलाया।
भारत भाग्य विधाता बनकर,
पथ समाज को दिखलाया।।
******

विश्वकर्मा भगवान का वंदन (कविता )
ब्रह्माण्ड में तेरा ही राज, भक्तों की रखना तू लाज, भाव मैं अर्पित करूँ, झुके नहीं कभी सच का ताज। हम अभिमानी, मूर्ख, पूजा विधि से हैं अनजान. अपनी शरण में ले लो प्रभु, हम तेरी ही हैं संतान। बढ़ें चले प्रगति पथ पर, करके तेरा स्मरण. सृष्टि के प्रथम शिल्पी का करते हैं अभिनन्दन। हाथ जोड़ विश्वकर्मा भगवान का करते हैं हम वंदन।*****वृद्ध वय ढलता सूर्य

प्रोढ़ होता मन सुने अब

क्षीण से तन की कहानी 

सोच पर तन्द्रा चढ़ी है

गात पतझर सा सहानी

रीत लट बन श्वेत वर्णी

झर रही परिपक्वता से।

*****


६६५.दीवारें

जब तक मेरे घर में 

कोई दीवार नहीं थी, 

घर बड़ा-सा लगता था,

अब दीवारें बन गई हैं,

तो लगता है,

एक ही घर में 

कई घर बन गए हैं. 

*****

पाती ढाई आखर की

इस ढाई आखर में छिपे हैं,
          जाने कितने कोमल भाव।
तेरे मन में मोल न इसका,
          भूल गए तुम खाकर ताव।
व्याकुल मन ये तड़प रहा है,      
              डस रही है यह तन्हाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,

           समझ न पाते प्रीत पराई।
*****

मां का नहीं होना

सूरज के होते हुए भी 

पसरा होता है अंधेरा 

चांद के होते हुए 

नहीं होती शीतलता 

नर्म दूब जब लगे 

तपता अंगारो सा 

फिर लगता है क्या होता है 

मां का नहीं होना। 

*****

ग़ज़ल "प्यार का इज़हार करना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सोच में विस्तार करना चाहिए
ज़िन्दग़ी को प्यार करना चाहिए

हौसले से थाम कर पतवार को
सागरों को पार करना चाहिए

मुल्क की अस्मत बचाने के लिए

दुश्मनों पर वार करना चाहिए

*****

आज का सफर यहीं तक, अब आज्ञा दे

आपका दिन मंगलमय हो

कामिनी सिन्हा 

7 टिप्‍पणियां:

  1. विश्वकर्मा पूजा की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷
    प्रथम अभियंता के वंदन पंक्तियों से शुरू शानदार चर्चा।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया और आकर्षक अंक सुजाता।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
    बहन कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर चर्चा. मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया लिंक दिए हैं, आभार आपका

    जवाब देंहटाएं

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