मित्रों सादर अभिवादन।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
--
देखिए कुछ अद्यतन लिंकों की चर्चा।
--
दोहे
"श्री गणेश चतुर्थी और शिक्षा का परिवेश"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
बप्पा तुम्हे विदा कुछ दिनों के तुम मेहमान बनकर आये दुखों को पार लगाने आये ढोल नगाड़ों पर तुम नाचते आये पलक पांवड़ो पर बिछकर आये मेघ गर्जना के साथ बप्पा तुम्हे विदा
--
आज सुबह-सुबह रसोईघर में एक चूहा दिखा। काला, मोटा चूहा, सो सारी सुबह उसी को भगाने के उपायों को खोजते-खोजते बीती। इसी सिलसिले में फ़ेसबुक पर एक मज़ाक़िया पोस्ट भी लिख डाली। शाम के भ्रमण के समय मंद पवन बह रही थी और घास के सफ़ेद, गुलाबी फूल झूमते हुए बहुत अच्छे लग रहे थे। छोटा सा वीडियो बनाया।
एक जीवन एक कहानी अनीता
--
प्रकृति का सम्मान करें हम जीवन जिस स्रोत से आया है और जिसमें एक दिन समा जाएगा, जिससे सब कुछ हुआ है, जो पंच भूतों का स्वामी है, जो जगत का कारण है, उसे ही जानना है। यहाँ जो भी हो रहा है, उन सब कारणों का जो कारण है।
--
--
जब बांह थामी थी मेरी
वादा किया था साथ निभाने का
जन्म जन्मान्तर का साथ अधूरा क्यों छोड़ा?
आशा न थी मध्य मार्ग में बिछुड़ने की
उस वादे का क्या जो जन्म जन्मान्तर तक
साथ निभाने का किया था
जब किया वादा सात वचनों का
मुझे अधर में छोड़ा और विदा हुए
--
जीवन की भागदौड़ एक साथ कई काम करना भी एक मजबूरी ही है, दिमाग अभी 3 अलग अलग तरह से बंटकर काम कर रहा था, तभी फोन बजा और एक चौथा स्थान उसने बना लिया। सभी को अपने कार्य प्रायोरिटी पर चाहिये। ऐसे ही कल जब प्रेशर में कुछ डॉक्यूमेंट रिव्यू के लिये आये तो तुनककर इतने अच्छे से रिव्यू किये कि अब वापिस रिव्यू के लिये शायद ही मुझे डॉक्यूमेंट भेजेंगे। काम तो सभी को परफेक्ट चाहिये, पर दूसरे से, अगर कोई दूसरा उसमें ढ़ेर गलती निकाल दे तो मुँह छोटा कर लेते हैं। कल्पतरू
--
मंटो का लेख ‘हिंदी और उर्दू’
--
--
जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो जिस देश में शिक्षक का मन घायल हो , उसका तुम भविष्य अँधेरे में समझो शिक्षा तो है आधार जिन्दगी का , इससे ही हर व्यक्तित्व निखरता है गांधी टैगोर विवेकानंद जैसा मन पावन आदर्शों में ढलता है जब कौटिल्य की पीर न नन्द सुने , उस वक्त को दुःख के घेरे में समझो |
बांसुरी अनुभूति की आलोक सिन्हा
--
ग़ज़ल 262 : कोई दर्द अपना छुपा कर हँसा है
कोई दर्द अपना छुपा कर हँसा है
कि क्या ग़म उसे है किसे यह पता है
वो क़स्में, वो वादे हैं कहने की बातें
कहाँ कौन किसके लिए कब मरा है
गीत ग़ज़ल और माहिया --- आनन्द पाठक
--
एक उम्र दहलीज का फासला था मेरी इश्क गुस्ताखी में l
जब कभी आईना पूछता हौले से परदा कर लेता उससे ll
वो सफ़ेदी तलाशती फिरती मेरे रुखे बिखरे बालों में l
भूला दुनिया सुकून से मैं सो जाता उसकी बाहों में ll
--
पौने तीन मिनट चौराहे के समीप आते-आते वैभव ने सामने सिग्नल पर नज़र डाली मात्र पाँच सेकंड बचे थे उसे लाल होने में उसने बाइक की गति बढ़ा दी लेकिन जब वह स्टॉप लाइन से 50 मीटर दूर ही था सिग्नल लाल हो गया। वैभव ने गति कम करते हुए ब्रेक लगा दिए बाइक जोर से चीं की आवाज करते हुए रुक गई। एक खीज सी वैभव के दिमाग में उभरी फिर वह हेलमेट का ग्लास खोलकर आसपास देखने लगा। सुबह के 10:00 बजे थे चौराहा तीखी चमकीली धूप से सराबोर था।
--
21 व्हाट्सएप स्टेटस (whatsapp status in Hindi)
--
अपराध कथा लेखन के लिए प्रदान किए जाने वाले मैक्लवैनी प्राइज़ 2022 और ब्लडी स्कॉटलैंड क्राइम डेब्यू 2022 के फाइनलिस्टों की हुई घोषणा
--
आज के लिए बस इतना ही...।
--
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! गणपति बप्पा की विदाई के साथ ही पितृ पक्ष का आरंभ हो गया है. सभी को पितरों की कृपा मिलती रहे. विविधापूर्ण रचनाओं के सूत्र सुझाती सुंदर चर्चा ! मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस सुंदर अंक मेरी रचना को सखा करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंउत्तम रचनाओं के बीच स्थान देने के लिए धन्यवाद,शास्त्रीजी. अब तक जो पढ़ीं बहुत अच्छी लगीं. अभिनन्दन,
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा। मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं