सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "मीत बन जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
यदि कोई न मिला तो कारण ?
वह ही होगा,
कमी कहीं उसमें ही होगी ,
उसे ही खोजना पड़ेगा।
कुछ बोलता नहीं,
रोता ही रहता है
मेरे घर का नल,
वह कुछ कहता नहीं,
मैं कुछ समझता नहीं.
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मैंने सोचा गुड़ तो ठीक है लेकिन गोबर!
मैने कहा, बात कुछ हजम नहीं हुई,
वह बोला, अजवाइन फांक लो हजम हो जायेगी,
वह प्रेम को पचाने के नुस्खे बताता रहा,
*****
वह नहीं बोलता कभी
आँखें ही बोलती हैं उसकी
एक छोर भी न पकड़ा और
वर्षों से बुना
शिकायतों का स्वेटर एक पल में उधेड़ गया।
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कवि और कविता (मन हरण घनाक्षरी)
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए
आपका हार्दिकआभार आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बहुत सुंदर।उत्तम रचनाओं की प्रस्तुति सुजाता
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. आभार.
जवाब देंहटाएंसुप्रभात ! चर्चा मंच में सम्मिलित सभी रचनाकारों को बधाई, पठनीय रचनाओं से सुसज्जित सुंदर प्रस्तुति, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन। मन को भोगोता शीर्षक।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
बहुत सुंदर सराहनीय अंक।
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