शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय अंक में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "कैसे सरल स्वभाव करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
पंछी को परवाज चाहिए,
बेकारों को काज चाहिए,
नेता जी को राज चाहिए,
कल को सुधरा आज चाहिए,
उलझे ताने और बाने में, कैसे सरल स्वभाव भरूँ?
तन-मन के रिसते छालों के, कैसे अब मैं घाव भरूँ?
*****
अब मैं उड़ सकूंगा
दिनभर कई बार
फैलाता हूं अपनी हथेलियों को
बेहतर गुजरे दिन की दुआ
मांगने नहीं
धूल से सने पसीने को
पोंछने के लिए
और उसके लिए
जिसके बिना
अधूरा है
जीवन का चक्र
*****
इस रास्ते के बीचों-बीच
खङे होकर ऊपर देखो
तो ऐसा लगता है,
मानो दोनों वृक्षों ने
थाम लिया हो
एक-दूसरे को,
गले मिल रहे हों
दोस्त, हमख़याल ।
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अन्धेर नगरी!पीएमएलए को 2002 में वित्तीय हेराफेरी (मनीलाण्ड्रिंग) की रोकथाम के लिए बनाया गया था। फिर उसमें कई संशोधन हुए। वित्तीय हेराफेरी फिर एक अन्तरराष्ट्रीय समस्या बनती गई और भारत इसके खिलाफ कई प्रतिबद्धताओं से जुड़ता चला गया। अब अदालत ने फैसला यह दिया कि पीएमएलए की जिन धाराओं को अदालत में चुनौती दी गई है, वे सभी धाराएँ संविधानसम्मत हैं। इस मामले में दाँव पर क्या लगा हुआ है, इसे न देखते हुए, अदालत का सिर्फ यह देखना कि इस एक्ट के प्रावधान क्या हैं, पूरी तस्वीर की परिपूर्णता की अनदेखी करना है।*****मंटो का लेख ‘हिंदी और उर्दू’मुंशी-फिर वही जहालत... कोई समझेगा मैं आपको ज़हर पीने पर मजबूर कर रहा हूँ। अरे भाई लेमन और सोडे में फ़र्क़ ही क्या है... एक ही कारख़ाने में ये दोनों बोतलें तैयार हुईं। एक ही मशीन ने उनके अंदर पानी बंद किया... लेमन में से मिठास और ख़ुशबू निकाल दीजिए तो बाक़ी क्या रह जाता है?*****सार-सार को गहि रहै"अरे भई सार सार को बचाता हूँ तो वो सार मेरे पास रहता ही कहाँ है और थोथे को तो उड़ा ही देता हूँ इसीलिए तो वर्षों से अकेले टंगा हूँ यहाँ, इस खूँटी पर, एकदम तन्हा । अरे ! मुझसे तो ये डस्टबिन भला । हमेशा भरा भरा जो रहता है। मेरी तरह तन्हा भी क्या जीना ! किसे भाती है ऐसी तन्हाई ? है न । इसीलिए मेरे जैसा मत ही बनो तो ही अच्छा रहेगा"।*****प्रेम के सफर पर
प्रेम से ज्यादा प्रेम के किस्से कहे जाते हैं,
जैसे चाँद उतरता है आधी रात,
खण्डहर में घूमती आत्मा के पास ,
हम भी उतर आयेंगे जीवन की सतह पर
रोमांचक सफर से लौटना ही होता है
कहीँ न कहीँ ।।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की पंक्ति को चर्चा का शीर्षकबनाने के लिए बहुत
बहुत धन्यवाद,
आदरणीय चर्चाकारः रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुप्रभात! बेहतरीन रचनाओं के सूत्र देती चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार आपका
सादर
उम्दा लिंको के साथ लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविंद्र जी ।
बहुत बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति
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