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शनिवार, सितंबर 03, 2022

"कमल-कुमुद के भिन्न ढंग हैं" (चर्चा अंक-4541)

 मित्रों!

शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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"कुमुद का फोटोे फीचर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) 

बच्चों तुम धोखा मत खाना!
कमल नहीं इनको बतलाना!!
शाम ढली तो ये ऐसे थे।
दोनों बन्द कली जैसे थे।। 
कमल हमेशा दिन में खिलता।
कुमुद रात में हँसता मिलता।।

उच्चारण 

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रास्ते हैं, यह बहुत है 

​​मंज़िलें हों दूर कितनीं  

मंज़िलें हैं, यह बहुत है, 

चल पड़े हैं ग़म नहीं अब 

रास्ते हैं, यह बहुत है !

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नए माह में नया जोश हो 

नया महीना यानि नए वायदे करने का वक्त, नए संकल्प करने, नयी चुनौतियाँ लेने, नई ख़ुशियाँ पाने और लुटाने का वक्त है।सितम्बर का पहला सप्ताह पोषण को समर्पित है और पहला पखवाड़ा हिंदी को।

डायरी के पन्नों से अनीता 

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किसको दिल के घाव दिखाए  

नवगीत : ओंकार सिंह विवेक🌹

किसको दिल के घाव दिखाए,  
नदिया बेचारी।     

रात और दिन अपशिष्टों का,
बोझा ढोती है।
तनिक नहीं आभास किसी को,
कितना रोती है।
कृत्य मनुज के हैं अब इसकी,
सांसों पर भारी। 

मेरा सृजन 

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अपने 'कंफर्ट जोन' से बाहर निकलने का प्रयास करें 

बहुत से लोगों  की मूल प्रवृत्ति अपनी वर्तमान परिस्थितियों को अपने कंफर्ट जोन में बदल कर उसी में संतुष्ट रहने की होती है। हालांकि वे असंतुष्ट तो होते हैं लेकिन इतने प्रेरित नहीं होते कि कुछ अतिरिक्त प्रयास करें। जब कोई उन्हें उनके कंफर्ट जोन से बाहर आकर कुछ अतिरिक्त या अलग प्रयास करने को प्रेरित करता है तो वो व्यक्ति उन्हें फूटी आँख नहीं सुहाता। वहीं अगर कोई शख़्स अपने कंफर्ट जोन से बाहर आकर कुछ अतिरिक्त  प्रयास करता है तो निश्चित रूप से उस व्यक्ति की वर्तमान स्थिति में बदलाव आता है और वो बदलाव अक्सर सकारात्मक ही होता है। 

वोकल बाबा 

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चल उड़ जा रे पंछी! 

पुस्तक का नाम - चल उड़ जा रे पंछी

लेखक - डॉ० नरेन्द्र नाथ पाण्डेय  

यह भी अजब इत्तफाक  ही है कि  आज़ादी के इस अमृत महोत्सव वर्ष में हम जहाँ अपने गुमनाम स्वातंत्र्य  वीरों की अस्मिता तलाश रहे हैं, आदरणीय नरेंद्र नाथ पांडेय ने अपनी पुस्तक ‘चल उड़ जा रे पंछी’ में हमारे संगीत जगत के एक ‘अनसंग हीरो’ पर पड़ी समय की धूल को झाड़कर उसके दीप्त  व्यक्तित्व के अन्वेषण का महती यज्ञ संपन्न किया है। लेखक की यह कृति बहुत मायनों में विलक्षण है।

विश्वमोहन उवाच 

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शहर का मोहजाल 

दीपक का एक सहपाठी  नन्दू गांव से आठवीं पास करके अपने एक रिश्तेदार के साथ मुम्बई चला गया था। दो वर्ष के बाद जब वह गांव वापस आया तो उसे देखकर दीपक अचंभित रह गया। उसे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या सचमुच यह वही नंदू हैं, जो कभी उसके साथ फटेहाली में पढता और खेला-कूदा करता था। उसके रंग-ढंग और बदले मिजाज देखकर वह उससे बड़ा प्रभावित हुआ। उत्सुक होकर वह उसके पास जाकर बोला-“यार नन्दू तू तो एकदम से बदल गया है, मैं तो तुझे पहचान ही नहीं पाया?“ और फिर उसे गले लगाते हुए बोला-“क्या सूट-बूट पहने हैं तूने और देखो तो तू कितना मोटा-ताजा हो गया है रे। जरा ये तो बता कि यह सब कायापलट कैसे हो गई तेरी? 

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'मुट्ठी में सृष्टि' 

दृश्य एक

कैलिफोर्निया की रात्रि के आठ बज रहे थे तो ठीक उसी समय भारत की सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे। एक घर में वीडियो कॉल पर बातें चल रही थी..

"भैया की तबीयत अब कैसी है?" 

"सोच का सृजन" 

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टसन 

 वो गर्दिशों के साये जो

सफर-ए-जिंदगी ने पाये,

सिकवा करें भी तो अब

बेफिजूल करें काहे,

सिर्फ़ इतनी सी अपनी 

नाकामयाबी थी हाये, 

जवानी मे ही अपना 

जनाजा न उठा पाये.. 

'परचेत' पी.सी.गोदियाल परचेत

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(आलेख) ज़रा सोचिये ! क्या कभी सुधर पाएगा देश का बेतरतीब शहरी यातायात ? 

  (आलेख  - स्वराज्य करुण )

क्या भारतीय शहरों का बेतरतीब यातायात कभी सुधर पाएगा ? विकसित देशों की साफ़-सुथरी ,चौड़ी ,चमचमाती सड़कों और उनमें अनुशासित ढंग से आती -जाती गाड़ियों की तस्वीरें देखकर हमें ईर्ष्या होने लगती है कि ऐसा हमारी किस्मत में क्यों नहीं है ? लगता है कि आधुनिक युग की   मशीनी ज़िन्दगी ने भारत की सड़कों पर  मशीनों से चलने वाले दोपहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या में ऐसा इज़ाफ़ा किया है कि इन गाड़ियों की संख्या  देश की जनसंख्या से भी ज़्यादा हो गई है। 

मेरे दिल की बात 

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मन 

कभी कभी मन डूबा सा रहता है
कभी हिलोरे लेता 
किसी पल सहम जाता 
तो कभी कमल सा खिल जाता 
कभी खारा हो जाता समंदर सा
तो कभी नदी की मिठास सा 

मेरे मन का एक कोना आत्ममुग्धा

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लघुकथा मर्मज्ञ श्री अनिल मकारिया द्वारा लघुकथा संग्रह हाल-ए-वक्त पर एक टिप्पणी 

श्रीयुत अनिल मकारिया उन लघुकथाकारों में से हैं जो गहराई में जाकर अपनी स्वयं की रचना का आकलन करने में सक्षम हैं। भाषा और शिल्प पर उनकी बड़ी पकड़ है।

अतएव,जब वे एक पाठक और समीक्षक बन किसी रचना का आकलन करते हैं तो उस रचना के रचनाकार के मोजों से लेकर टोपी तक खुद के पैरों से लेकर सिर तक फिट कर लेते हैं और अपने बाकमाल अंदाज़ में बहुत अच्छी समिक्षीय टिप्पणी से रचनाओं को दर्शा देते हैं।

उपरोक्त बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं प्रतीत होगी,जब आप इस पोस्ट में उनके द्वारा की गई एक लघुकथा 'मुर्दों के सम्प्रदाय' की निम्न समीक्षा पढ़ेंगे।

- चन्द्रेश कुमार छतलानी

लघुकथा दुनिया (Laghukatha Duniya) 

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हमको राग-दरबारी नहीं आता ( तलवार की धार पर चलना - सच लिखना ) डॉ लोक सेतिया  सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि मुझे कभी भी राग-दरबारी नहीं भाया है किसी शासक किसी तथाकथित महानायक का गुणगान नहीं किया है । मुझे कुछ लोग आदरणीय लगते रहे हैं जिन्होंने अपना जीवन देश समाज को समर्पित किया और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया , लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी और लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे गिने चुने लोग मेरे लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहे हैं । चाटुकारिता करने वाले लोग जिनको मसीहा बताते हैं अक्सर वो अच्छे इंसान भी साबित नहीं होते हैं । मेरी किताबों में आपको कोई भगवान कोई मसीहा कोई देवी देवता नहीं मिलेगा , शायद उनकी मसीहाई पर सवालात की बात अवश्य दिखाई देगी ।

Expressions by Dr Lok Setia 

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साक्षात्कार: उपन्यास 'संचिता मर्डर केस' के लेखक विकास सी एस झा से एक बातचीत 

विकास सी एस झा हॉरर, रहस्य और रोमांच विधाओं में लिखते रहे हैं। हाल ही में उनका उपन्यास संचिता मर्डर केस सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है। यह उपन्यास अश्विन ग्रोवर शृंखला का दूसरा उपन्यास है। 

उनके इस नवप्रकाशित उपन्यास के ऊपर एक बुक जर्नल ने उनके साथ एक बातचीत की है। यह बातचीत उनके लेखन और नवप्रकाशित उपन्यास पर केंद्रित रही है। उम्मीद है आपको यह बातचीत पसंद आएगी।  

एक बुक जर्नल 

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कार्टून :-  सब बेच डालूंगा, कुछ नहीं छोड़ूंगा 

Kajal Kumar's Cartoons  काजल कुमार के कार्टून 

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आज के लिए बस इतना ही...!

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7 टिप्‍पणियां:

  1. विविधतापूर्ण रचनाओं से सजी आज की चर्चा के लिए आदरणीय डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' जी को कोटि-कोटि बधाईयाँ। आपका अथक परिश्रम सराहनीय है। मुझे भी चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार। सादर।

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  2. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

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  3. बहुत सुंदर और मनभावन अंक। आभार!!

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  4. बेहतरीन लिंक्स के साथ सुंदर प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। मुझे भी आपने जगह दी ,इसके लिए हृदय से आभार।

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  5. हमेशा की तरह उम्दा चर्चा। प्रणाम शास्त्री जी🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. वन्दन
    हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं

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