सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीया उषा किरण जी की कविता 'मायका' से -
अम्माँ का नेह धीरे से आँखों से छलकता
तो ताता का दुलार मुखर हो उठता
आ गई….आ गई बेटी…कह लाड़ भरा हाथ
सिर पर रख हँस पड़ते उछाह से
भूल जाते उम्र के दर्दों और थकान को…!
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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कवित्त "पूज्य पिताश्री को नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
तर्पण किया श्रद्धा और श्राद्ध से है आपका,
मेरे पूज्य पिता श्री आपको नमन है।
जीवन भर आपने जो प्यार और दुलार दिया,
मन की गहराइयों से आपको नमन है।
मायके जाने का प्रोग्राम बनते ही उन दिनों
बेचैनी से कलैंडर पर दिन गिनते
बदल जाती थी चाल- ढाल
चमकती आँखों में पसर जाता सुकून,मन में ठंडक…!
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कर्मयोगी आधुनिक युग के
कह सकते हैं जिन्हें तपस्वी,
न खाने की सुध न निद्रा का
निश्चित रहा समय है कोई !
नीले अंबर सा यह सागर,
लहरें कितनी चंचल है।
मदमाती ये चंद्र देखकर
उछलें कूदें हर पल हैं।
कहा उन्होंने चाँद तो ,
चांदनी बन मैं मुस्कराई
उनकी ज़िन्दगी में ....
होती है भाषा फूलों की भी
पर उसे समझने के लिए
तुम्हारा कपास सम मन होना जरुरी है
हे गंगा माई
हमर पुरखा के
तू समा लेलू
समा ल हमरो के
तोरे जौरे बहब।
तुम्हारी हथेलियों की हिना में मेरा नाम कुछ यूं खोया
मानो लखनऊ की भूल भुलैया में नीचे उतरना है कि ऊपर चढ़ना है समझ ना आया
मैं इमामबाड़े सा अपने आप को अकेला पाता रहा ,
रिद्धि सिद्धि सुख संपत्ति के तुम दाता
आज अंतिम दर्शन का दिन आया
विर्सजन करते मन अकुलाया
लेकिन जाओगे तभी तो आओगे
आने जाने के इस जीवन में
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! नेह और वात्सल्य में भीगी सुंदर रचनाओं का श्रमसाध्य संयोजन, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपका 🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रभावी लिंक्स
जवाब देंहटाएंHh
जवाब देंहटाएंचर्चा अंक 4550, सोमवार का प्रारम्भ अपनी ही कविता की चर्चा से देख कर मन प्रसन्न हो गया आपका आभार अनीता जी🙏
इसके अतिरिक्त शास्त्री जी की रचना-पूज्य पिताजी को …!
अनीता जी-रविवार की सुबह सुहानी
अभिलाषा-नीले अम्बर सा यह सागर
रंजु भाटिया-एक सच
सरिता सैल-तुम नहीं समझ सकते
डॉ. जेन्नी शबनम-हे गंगा माई
अपर्णा बाजपेयी- लखनऊ
आत्ममुग्धा- बप्पा तुम्हें विदाई
विविधतापूर्ण भावों से सज्जित सभी कविताएँ बेहद भावपूर्ण…सभी कवियों को एवं अनीता जी को विशेष बधाई …अनीता जी के परिश्रम का हमें लाभ मिलता है कि एक साथ इतनी सुन्दर रचनाओं को बिना परिश्रम ही पढ़ने का सुख मिल जाता है 😊🌹— उषा किरण
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना का लिंक लगाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अनीता सैनी जी।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपका
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