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सोमवार, सितंबर 05, 2022

'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-4543)

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

शीर्षक व काव्यांश आदरणीय डॉ रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक 'जी के दोहो से - 

शिक्षक दिन आ गया, बदलें हम परिवेश।
जीवन में धारण करें, गुरुओं के उपदेश।।
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शिष्यों अब अज्ञान को, करो नहीं स्वीकार्य।
माणिक-मोती ज्ञान के, तब देंगे आचार्य।।

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  
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सद्गुरु अपने देश में, सोये चादर तान।
नगर-गाँव में चल रहीं, शिक्षा की दूकान।।
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बाँट रहे अनपढ़ जहाँ, गली-गली में ज्ञान।
ज्ञान-सूर्य का गगन में, हुआ आज अवसान।।

झील के तल का अंधकार

 खींच रहा है नाव को अपनी ओर 

लेकिन वह भी..,

ज़िद्दी लड़की सी ,लहरों से लड़ती 

अपनी ही धुन में मगन

चली जा रही है.., 

इस किनारे से उस किनारे ।

--

शैल रचना: क्षणिकाएँ 

हृदय में लहरों का नर्तन
प्यास हलक तक बनी रही
कश्ती खाती रही हिचकोले
मौज़ों की माँझी से ठनी रही

--

यादें, जो भूलती नहीं 

जब कभी उग आते हैं  यादों में गुलाब, 
अंधेरी रातों में जुगनुओं की तरह चमकता है वक़्त, 
 आंखों  की कोरों पर उतर आती है ख़ामोशी ,
धड़कता है कुछ अनायास, 
जैसे टूट गया हो कोई तार 
वाद्य की साँझ के निकट। ।
वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।
दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।
रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।
दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।
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ज्ञान कुंभ का तीरथ पावन 
दोष मिटाता है सारे
संशय-बाधा दूर हटाए
तम के बादल भी हारे
संस्कार शिक्षा से शिष्य को
तत्पर सदा जगाने को।।
स्त्रियां अजीब हैं!
सब कुछ गा देती हैं ।
स्त्रियों ने गाया,
बिछोह बाबुल के घर का,
बाबुल से शिकवा,
पति से नखरा ,
सासुल और नन्दी का ताना 
नई नवेली जच्चा का दर्द 

हिंदी की दशा पर मुझे सुदामा याद आते हैं। लेकिन सुदामा को कम से कम कृष्ण मिल गए थे इसको कौन और कब कृष्ण मिलेंगेअरे! कोई तो रोक लो…..सोचते हुए हिंदी के दुख में मेरा दुःख एकमेव हो गया। हिंदी उपाहने पाँव लंगड़ाते हुए चलीतो आगे-आगे वह पीछे-पीछे उसकी खड़ाऊँ लिए मैं उसकी पथ यात्रा में चल पड़ी हूँकहीं मिलेगा सम्मान का सरोवर तो धोयेंगे हाथ-मुँह हम दोनों और बाँध लेंगे गौरव की पगड़ी। हिंदी की जय हो!!
विभा ने इधर-उधर देखा कमरे से बाहर झांका। सासू माँ बाहर के कमरे में रामनामी ओढ़े तखत पर बैठी माला जप रही थीं। कामवाली रसोई के पीछे आंगन में बर्तन धो रही थी। बड़ी बेटी स्कूल जा चुकी थी और छोटा बेटा यूनिफार्म पहनकर टीवी पर कार्टून देखते नाश्ता कर रहा था।

अश्विन ने जब से कहा हैकि अम्मा अब से आप नैना के साथउसी के कमरे में 

सोएँगी  तभी से कांति सोने से पहलेनैना को रोज़ एक कहानी सुनाती हैकभी

 पौराणिक तो कभी सामयिक 

आज तो वो नैना को सीता जी की 

अग्निपरीक्षा की कहानी सुना रही है.. 

"सुन नैना ! सीता माता को भी अपनी 

अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी  उनकी पवित्रता पर भी दोष लगा था  तुमने शायद अभी ये सुना नहीं ?

-- 

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति'  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपका अथक परिश्रम सराहनीय है @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
    मुझे भी चर्चा में शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मुझे सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शिक्षक दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ! सुंदर प्रस्तुति, बहुत बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छे लिंक पढ़ने को मिले धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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