शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "आदमी उदास है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रो रही हैं कोपलें, हँस रहे हैं जानवर,
मस्त हो रहे नगर, उजड़ रहे हैं गाँव-घर,
लुट गया लिबास है, छुट गया निवास है।
आदमी के देश में, आदमी उदास है।।
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६७६. कहाँ गया तुम्हारी आँखों का पानी?
पानी को देखकर कहना मुश्किल है
कि उस शाम इतने सारे लोग
सिर्फ़ पानी देखने वहाँ आए थे,
उनका कोई ग़लत इरादा नहीं था.
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दीवारों के निर्माण होते रहे हैं,
मगर द्वार उनमें भी खुलते रहेंगे।
कटीली हवावों ने फाड़े वसन को
पैरहन अपने पैबंद सिलते रहेंगे।
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*****गणेश वंदना (विजया घनाक्षरी )फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
लाजवाब पोस्ट, शानदार मेरा ब्लॉग भी पढ़िए, थोड़ा टेक्निकल नॉलेज है पर काम की है, आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंहो सके तो मेरा ब्लॉग भी शामिल कीजिए, मेरा पता है, learnwithfarruq.com/hindi
सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
सुन्दर चर्चा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक व प्रस्तुति, मेरी रचना को महत्व देने हेतु दिल की गहराइयों से आभार आदरणीय, सभी रचनाएं अपनी जगह उत्कृष्ट हैं नमन सह ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अंक
जवाब देंहटाएंसुजाता
उम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
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