सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "जीवन-चक्र"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जीवन जितना बीता
कोई कठिनाई तो नहीं आई
अबतक जिस का सहारा मिला
मैं क्यूँ न जान पाई |
*****
नारी हो तुम शक्ति पुंज कहलाती हो.......
अताताइयों को क्यों सिरमौर बनाती हो....
प्रेम की भाषा जो समझ सका न कभी....
उसके ऊपर क्यों व्यर्थ समय गवांती हो
मां की देहरी लांघना थी प्रथम भूल तुम्हारी
प्यार आह में बदला,क्यों नही आवाज उठाई थी
नारी दुर्गा काली है, क्या खूब निभाया तुमने....
पैतीस टुकड़ों में कट कर उस दानव के हाथ
जान गवाई.....
*****
हर कोई देखना चाहे है, ख़ुद का चेहरा बेदाग़,
ज़ेर ए नक़ाब आइने का राज़े इज़हार बाक़ी है,
*****
नहीं माँगे सदा देती
नेमतें अपनी लुटाती,
चेत कर इतना तो हो कि
फ़टे दामन ही सिला लें!
*****
*****
मेरी कलम से संग्रह समीक्षा युगांतर.......
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज के चर्चामंच में
जवाब देंहटाएंचुनिंदा हिंदी ब्लॉगों की लिंक्स
प्रस्तुत करने के लिए
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
विविधरंगी चर्चा प्रस्तुत करने हेतु आपका आभार .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए रविन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति रविंद्र जी,हमारी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूं।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सभी रचनाकारों को बधाई, अतिश्रम से प्रस्तुत की गयी आज की चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार रवींद्र जी!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार रवींद्र जी
जवाब देंहटाएंBahut sundar prastuti. Badhai.
जवाब देंहटाएं