सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व पद्यांश आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना 'मेरे शिव ! तेरी जटा में अब कैसे समाऊँ ?' से -
भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम
विह्वल व्यथा अधीर है, अब चपेट दो तुम
ये व्याधि ही परिधीर है, अब झपेट लो तुम
बस तेरी जटा में ही, बँध कर रहना है मुझे
अपने उस एक लट को भी, लपेट लो तुम
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: "खोज रहे हम सुख को धन में"
सज्जनता बेहोश हो गई,
दुर्जनता पसरी आँगन में।
कोयलिया खामोश हो गई,
मैना चहक रहीं उपवन में।।
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हाँ ! नहीं- नहीं, अब और बहा नहीं जाता है
हाँ ! विपदा में, अब और रहा नहीं जाता है
इस असह्य विरह को भी, सहा नहीं जाता है
तू बता, कि कैसे और क्या- क्या करूँ- कहूँ ?
वेग वेदना का, अब और महा नहीं जाता है
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यादों के सब पन्ने उड़कर
बिखरे जीवन सरिता तट पर,
सारी सखियाँ लौट गईं,
मैं एकाकी सूने पनघट पर !
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चाहतों के फ़ेहरिश्त में होते हैं, हज़ार प्रतिबिम्ब,
सुबह के उजाले में शून्य रहता है देह का पिटारा,
बिखरे पड़े हैं कांच के खिलौने, मोहपाश के आगे,
टूटने तक है आशनाई, फिर न तुम्हारा, न हमारा,
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ख़्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का।
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का।
सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना।
जिसके तले मस्ती में झूमता एक भोला बचपन ।
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कार्तिक,अगहन व पूस मास,
पंछी असंख्य उतरे प्रवास ।
हुलसित सुरभित यह ऋतु हेमंत
आगत शिशिर, स्वागत वसंत ।।
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देते हैं सबको यहाँ,प्राणवायु का दान,
फिर भी वृक्षों की मनुज,लेता है नित जान।
लेता है नित जान, गई मति उसकी मारी,
जो वृक्षों पर आज,चलाता पल-पल आरी।
कहते सत्य 'विवेक', वृक्ष हैं कब कुछ लेते,
वे तो छाया-वायु,,फूल-फल सबको देते।
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अ - अनार के दाने होते लाल
आ - आम रसीले मीठे कमाल
इ - इमली खट्टी होती है
ई - ईट की भट्ठी जलती है
उ - उल्लू दिन को सोता है
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रुदन करती आज वीणा
राग में विराग कैसा
सो गए क्यों सप्त सुर भी
गीत लगे भार जैसा।
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कहते हैं आपके अच्छे कर्म सदा आपके साथ चलते हैं। वो इंसान जिसने मन से एक पल को भी किसी का बुरा नहीं चाहा, ईश्वर उसके साथ ही रहता है। अब इस बात में कितना सच है, उसे संवेदनशील लोगों के अलावा कोई और नहीं समझ सकता।
इस दुनिया में अब भी ऐसे तमाम भावुक लोग मिल जाएंगे जो दूसरे के दुख को अपना समझते हैं। उनके दर्द को भीतर तक महसूस करते हैं। उनकी एक मुस्कान के पीछे सब कुछ लुटा देने को तत्पर रहते हैं। इनका स्नेह निस्वार्थ होता है पर किसी के निश्छल मन और ईमानदारी पर संदेह करने की रीत भी इसी दुनिया से निकली है। न हम उन्हें बदल सकते हैं, न वो हमें।
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
सुप्रभात! एक से बढ़कर एक रचनाओं के सूत्र, बाल दिवस पर शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबच्चों के प्यारे चाचा नेहरू को जन्म दिवस पर नमन।
जवाब देंहटाएंबाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय अनिता। बहुत अच्छा चर्चा अंक। आप सब चर्चाकारों की लगन एवं समर्पण को नमन है मेरा !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंआकर्षक एवं सार्थक सूत्रों का संकलन रोचक और पठनीय है। हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !
सुंदर सार्थक ब्लागस पढ़वाने के लिए हृदय से आभार प्रिय अनिता।
जवाब देंहटाएंसभी सामग्री पठनीय आकर्षक प्रेरक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को इस गुलदस्ते में सजाने के लिए हृदय से आभार आपका।
सादर सस्नेह
असंख्य आभार आदरणीया अनिता जी मुझे शामिल करने के लिए, ख़ुबसूरत सृजनों से अलंकृत चर्चा मंच मुग्ध करता है ।
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