सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
दोहे "करलो अच्छे काम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
धरती माँ है
माँ की तरह
धरती है अपनी कोख में संतति
हज़ारों सूक्ष्म जीव
कीट, मीन, तितलियाँ, पशु-पंछी
वन-जंगल और ‘मानव’ को भी
जो घायल कर रहा है उसे
कंक्रीट के जंगल उगाता
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हम बदल रहे हैं
रात भर ठंड में
कराहता रहा एक शख्स
दरवाजे पर उसके
दस्तक भी दी
और
कराह भी गूंजी।
नहीं टूटी नींद
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पिता,
तुमने जो ख़त लिखे थे,
मैंने कभी सहेज कर रखे ही नहीं,
सोचा, क्या रखना उन ख़तों को,
जो चले आते हैं हर तीसरे दिन.
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छाँव सपना बन चली अब
ठूँठ पत्थर बन खड़े हैं
प्रेम के सब तार टूटे
बुद्धि पर ताले जड़े हैं
कौन सुनता पीर मन की
बोल लगें जैसे गाली।
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धाराएँ प्रतिकूल हों, कैसे तेरा बस चले?
हिम्मत भरो अपार, नाविक चलो उस पार!
नाविक ले चल पार, नाविक ले चल पार!!
क्या तुमने कभी मुझे याद किया
भूले से प्यार का दिखावा किया
यदि हाँ तो कब किया कितना किया
किस के मार्ग दर्शन में किया |
क्या है एहमियत मेरी तुम्हारी निगाहों में
या थोपा गया रिश्ता है मेरा तुम्हारा आपस में
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एक बच्चा हमारे साथ खूब खेलता था। वो चतुर भी बहुत था। सुबह 5 बजे जब अम्मा और पिताजी(दादा-दादी) चाय पीते तो पता नहीं कहाँ से प्रकट हो जाता था। वो पलंग पर बैठे दादाजी की गोद में चढ़ता फिर कंधे पर और फिर सिर पर। सिर पर चढ़ते ही दादाजी उसे प्यार से उठाकर नीचे रख देते। पर वो बिलौटा मानता नहीं था। और तब तक यह क्रम जारी रखता जब तक दादाजी अम्मा से कहकर उसे चाय नहीं दिलवा देते।
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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे
आपका दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
उम्दा चर्चा।मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी।
बहुत शानदार...। आभार कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसुंदर, सराहनीय पठनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचनाओं के लिंक्स से युक्त चर्चा, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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