मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें
और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
दोहे "जीवन के हैं मर्म" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप।
नित्य नियम से कीजिए, इनका वन्दन-जाप।।
--
आदिकाल से चल रही, यही जगत में रीत।
वर्तमान ही बाद में, होता सदा अतीत।।
--
स्वागत है: शहर आपके कदमों की बस आहट से आबाद है
--
जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये,
और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......
मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को
यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........
तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना
दिया है जो प्यार का वचन सजन,
तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभाना ..
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** रंजू भाटिया
--
कभी ना बिछड़ने के लिए ..... मूँदते ही पलक खिल उठते हैं गुलाबी फूलों से सपने मदिर मधुर एहसास होने का तेरे उतर आता है वजूद में मेरे हो जाती हूँ मैं खुद चमन ही होती है जब महसूस तितलियों सी कोमल छुअन तेरी....
एहसास अंतर्मन के मुदिता--
सनातन धर्म में निहित विश्व कल्याण भाव और वसुधेव कुटुंबकम
हम जो कुछ भी मन के द्वारा जनकल्याण के विषय में सोचते हैं। वाणी के द्वारा उसकी अभिव्यक्ति करते हैं। कर्म के द्वारा क्रियान्वित करते हैं। इसके द्वारा शास्त्र का सिद्धांत ‘मनसा वाचा कर्मणा’ अवश्य ही चरितार्थ होता है। अगर हम वाणी के द्वारा दिखावे के तौर पर, समाज में स्वार्थ भाव के कर्म करते हैं। तो वह केवल नश्वर फल प्रदान करते हैं। जीव ‘मनसा वाचा कर्मणा’ के सारस्वत फल से वंचित रह जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि सनातन धर्म में ही जन कल्याण की भावना निहित है यद्यपि सभी अपने धर्मों को उच्च ठहराते हैं लेकिन कहीं न कहीं सनातन धर्म में ही कुटुंब इव वसुधा मानी जाती है । किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं माना जाता, किसी को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता । सभी को इस धरा पर बराबर सम्मान मिलता है ।
आलेख प्रस्तोता
डॉ अन्नपूर्णा बाजपेयी ‘आर्या’
--
--
सागर लहरें उर्मिला सिंह
--
शादी की सालगिरह पर 21 धन्यवाद संदेश (Thank You Message For Anniversary In Hindi)
आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल--
--
अब रही न कोई #श्रद्धा , अपने ही परिवार में अपने घर और द्वार में । अब रही न कोई श्रद्धा , संस्कृति और संस्कार में , धर्म और अपने त्यौहार में ।
--
ख़ाक में मिल कर फ़ना सब हो गए
बादशाह और पीर सारे रो रहे
आग पे पा ली विजय है आपने
हाथ से रोका प्रलय है आपने
फिर परास्त मौत से क्यूँ हो गए
उधेड़-बुन राहुल उपाध्याय
--
आज के लिए बस इतना ही...!
--
आभार आदरणीय|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मयंक सर,
जवाब देंहटाएंमेरी प्रविष्टि् " काश फिर से आ जाए श्रद्धा " की चर्चा आज रविवार 20 नवम्बर, 2022 को "चलता रहता चक्र" (चर्चा अंक-4616) पर शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सभी सम्मिलित रचनाएं बहुत उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं ।
सादर ।
Nice
जवाब देंहटाएं