सादर अभिवादन आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है (शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)आप सभी को गुरु पर्व की हार्दिक शुभकामनायें चलते हैं,आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...-----------------------------------दोहे "कार्तिक पूर्णिमा-मेला बहुत विशाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
झनकइया वन में लगा, मेला बहुत विशाल।
वियाबान के बीच में, बिकता सस्ता माल।।
नदी शारदा में किया, उत्सव का स्नान।
खिचड़ी खाकर प्रेम से, किया खूब जलपान।।
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सांसारिकता की किताब में
एक धुरी पर आकर
व्यक्ति की भागम-भाग का
रथ ठहर जाता है
एक पड़ाव पर..,
निवृत्ति की प्रवृत्ति को
परिभाषित करना
थोड़ी टेढ़ी खीर है
क्योंकि..,
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ब्रह्म बीज होती है विद्या
जो स्वयं को ही बोधित करती है
अंतस की सुंदर जमीन पर
ज्ञान तरू बनकर फलती है.
हर कोई शिक्षा पाता है
कौशल निपुण बन जाता है
सिर ऊंचा करता समाज में
उत्थान में होड़ लगाता है.
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''अरे, इसे तुमने क्यों छुआ? क्या तुम्हें इतना भी पता नहीं कि ये पायल के सतमाहे के पूजा की सामग्री है और ऐसी पूजा सामग्री को बांझ औरत के छुने से अपशकुन होता है? तुम ये तो नहीं सोच रही हो कि तुम्हें बच्चे नहीं हुए तो तुम्हारी ननद को भी नहीं होने चाहिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि ननद की खुशी तुमसे देखी नहीं जा रही?''
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कामना के इस भँवर में
देखता आदर्श झड़ते
कर्म का फल ना मिले तो
टूटते घर हैं उजड़ते
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आईने को कोसने से अक्स माज़ी में नहीं लौटते,
इस हसीं जिस्म का, स्थायी रख रखाव नहीं होता,
क़ुदरत का है अपना अलग ही, आइन ओ क़ानून,
ख़ालिस दिलों का लेकिन फ़रेबी दिखाव नहीं होता,---------------------------प्रदूषण बहुत है
वह
साठ बरस का व्यक्ति
हंसते हुए कह रहा था
कि
बाबूजी पुरवाई तो मर्दांना हवा है
उससे कोई दिक्कत नहीं
वह बीमार नहीं करेगी।
हां
पछुआ जो जनाना हवा है
उससे बचियेगा
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"तुलसी विवाह"आस्था की प्रकाष्ठा
तुलसी जी का नाम वृंदा था। वृंदा एक वैध थी और उनमें निष्काम सेवा भाव कूट-कूटकर भरा था। पंचतत्व का शरीर त्यागने के बाद जब उन्होंने एक पौधे का रूप धारण किया तब भी वो अपनी प्रवृत्ति नहीं बदली, इस रुप में भी वो अपनी औषधीय गुण से मानव कल्याण ही करती है।तुलसी के पौधे का एक-एक भाग ओषधियें गुणों से भरपूर है। "शालिग्राम" को जीवाश्म पथ्थर कहते हैं। "जीवाश्म" अर्थात "पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों" अर्थात किसी समय ये पथ्थर सचमुच जीवित होगा और शालिग्राम जी गंडकी नदी के अलावा और कहीं क्यों नहीं मिलते? एक पत्थर ही तो है कहीं भी मिल सकते थे।ये सारी बातें कही-न-कही ये सिद्ध करती है कि-कुछ तो सच्चाई थी इन कथाओं में।अब तर्क-कुतर्क करने वालों को तो कुछ कह नहीं सकते।--------------------------आज का सफर यही तक,आपका दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा
सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित चर्चामंच का मंगलवार का अंक !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद @कामिनी सिन्हा जी।
विविधताओं से परिपूर्ण अत्यंत सुंदर चर्चा सूत्र । आज की चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक।मेरे सृजन को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार 🙏🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीया कामिनी जी की कलम ने आज फिर जादुई रंग बिखेरा है। बहुत ही सुन्दर इस प्रस्तुति में मुझे भी शामिल करने के लिए आभार ।।।।
जवाब देंहटाएंसमस्त रचनाकारों को नमन।।।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामीनी दी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंइस संकलन में मेरी कविता भी शामिल है
बहुत बहुत धन्यवाद
आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार 🙏
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