सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
शीर्षक व पद्यांश आदरणीया अमृता तन्मय जी की रचना 'मुग्ध उन्नत चेतना भी' से -
उस तल पर कुछ और से भी और घट जाता है
तब तो वह अनकहा भी चुप कहाँ रह पाता है ?
सूक्ष्म अनुभूतियाँ किंचित ही स्वर पा जाती हैं
और विकलता उस अभिव्यक्ति से छा जाती है ।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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जनसेवा के नाम पर, मन में पसरा मैल।
निर्धन श्रमिक-किसान तो, कोल्हू के हैं बैल।।
छँटे हुए सब नगर के, बन बैठे धनवान।
पत्रकारिता में लगे, अज्ञानी-नादान।।
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नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है
शत- शत लहरियों के संग कोई खो रहा है
गगन में जैसे निर्बंध बहती वायु डोलती है
मुग्ध उन्नत चेतना भी न जाने क्या बोलती है ?
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एक ही चेहरे पे हैं छुपे हुए हज़ार चेहरों के परत,
गुप्त नखों की दुनिया होती है पंजों के अंतर्गत,
देह प्राण को बींधते हैं नुकीले सम्मोहन के कील,
फिर भी मिटती कभी नहीं कुछ पलों की हसरत,
गुप्त नखों की दुनिया होती है पंजों के अंतर्गत,
देह प्राण को बींधते हैं नुकीले सम्मोहन के कील,
फिर भी मिटती कभी नहीं कुछ पलों की हसरत,
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यश पथ (YashPath): नहीं जानता....आज का सफ़र यहीं तक
नहीं जानता
कि मेरा अंतर्मन
कब-क्या-कहाँ
कैसे
कहीं उड़ जाना चाहता है
इस लोक की परिधि में
उस लोक का
वास्तविक आभास कर
गहरे काले
अंतरिक्ष में हर तरफ
छिटके हुए
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तुम अच्छी हो
यह देखकर अच्छा लगा
तुम अच्छी लग भी रही थी
लेकिन थाउज़ेण्ड वॉट वाले
बल्ब सी नहीं, कुछ बुझ सी गई हो
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एहसास अंतर्मन के: कभी तो...!!!!!
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धुंधलके साए
धुंधला सा दिखता
उस में अक्स
और ,"एक आहट "
किसी नाम की भी
सुनाई देती रही
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सिर काट दो!''
"ममा आज हमारी मैम ने अलग-अलग विषयों पर कल कोई कहानी सुनाने का गृह कार्य दिया है. मुझे लालच का विषय दिया गया है, ममा प्लीज़ कोई कहानी सुना दो न!'' कविश ने निहोरा लिया.
"अरे ये काम तो दादी मां बड़े शौक से कर देंगी, उन्हें ढेरों कहानियां आती हैं.''
लालच पर कहानी! तो सुनो.
"दीनू बहुत ही दीन अवस्था में था. वह गुजारे के लिए हमेशा परेशान रहता था.
एक दिन उसकी चिंतित अवस्था देखते हुए एक साधु बाबा ने उसे एक थाली दी, जिससे रात को कोई एक चीज मांगकर ढक कर रखना था, सुबह मनचाही चीज मिल जाएगी. पर एक से अधिक चीजें मांग लीं तो सब कुछ गायब हो जाएगा और थाली भी.
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"गाड़ी को कब से साफ नहीं करवाया है आपने?" कैब में बैठते हुए सविता ने डांटने वाले लहजे से चालक से कहा।
"मैम,ओटीपी बताइए प्लीज़।" ड्राइवर ने उसे अनसुना करते हुए अपनी कही।
"1082,अब एसी भी चला दो, क्या जान ही लोगे?" साड़ी का पल्लू नाक पर रखते हुए सविता बोली।
"मेरी गाड़ी नॉन एसी है।" ड्राइवर ने रुखाई से कहा।
"ओहो! तुमने कितनी गंदी गाड़ी बुक की है केतन।" सविता ने झुँझलाते हुए बेटे का फोन खड़का दिया।
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सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित चर्चामंच का सोमवारीय अंक !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।
विभिन्न रंगों में निखरा हुआ चर्चा मंच मुग्ध करता हुआ, मुझे शामिल करने हेतु आभार आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी, बहुत शानदार लिंक्स पढ़वाने के लिए आपका आभार ...बहुत ही खूब रही सारीं रचनायें
जवाब देंहटाएंदेव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ। ये मंच सदा जगमगाता रहे यही कामना है। अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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