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सोमवार, नवंबर 21, 2022

'जीवन के हैं मर्म'(चर्चा अंक-4617)

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

शीर्षक व दोहे आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक 'के  'जीवन के हैं मर्म दोहों 'से 

मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप।

नित्य नियम से कीजिएइनका वन्दन-जाप।।

--

आदिकाल से चल रहीयही जगत में रीत।

वर्तमान ही बाद मेंहोता सदा अतीत।।

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

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उच्चारण: दोहे "जीवन के हैं मर्म"

मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप।
नित्य नियम से कीजिएइनका वन्दन-जाप।।
--
आदिकाल से चल रहीयही जगत में रीत।
वर्तमान ही बाद मेंहोता सदा अतीत।।
--
--
बागों में जब कोयल कुके.....
और सावन की घटा छा जाये.......
उलझे से मेरे बालों की गिरहा में.....
दिल तुम्हारा उलझ सा जाये .....
आ के अपनी उंगलियो से....
उस गिरह को सुलझा जाना
--

मेरे बालों में धीरे-धीरे 

टहल रही हैं कुछ उँगलियाँ,

अच्छी लगती हैं 

नर्म-नाज़ुक,जानी-पहचानी उँगलियाँ. 

मैं उनसे कहता हूँ,

--

चिड़िया: रिश्ते 

जितना बूझूँ, उतना उलझें
एक पहेली जैसे रिश्ते।
स्नेह दृष्टि की उष्मा पाकर,
पिघल - पिघलकर रिसते रिश्ते।
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कितनी बार चूल्हा जलाया 
कितनी रोज रोटियाँ बेली 
कितना आँसूं बहाया लिखूँ
उसका सारा हिसाब लिखूँ ? 
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कुछ बेरंग फूल भी हैं 
मेरे अहम और गैर महफ़ूज़ियत के
जो हो रहे हैं रँगीं 
पा कर हर लम्हा
दिलो ज़ेहन में तुझको 
बेमानी हैं सरहदें और दूरियां
--
 इस नश्वर संसार में
सिर्फ़ दुख नहीं जाता
सुख भी चला जाता है
यहाँ रहने कौन आया है
--
तप्त पठरिया की नदिया से 
इतराती, पर सधी हुई-सी
भरी खेप पनहारिन जैसी
उतर रही है साँझ गाँव में ।
--
जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,
वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .

कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,
वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .
--
राजू पढने मे बहुत होशियार था । लेकिन वो अपने पिता के जुआ खेलने की आदत से घर मे हो रही तमाम दिक्कतों से परेशान रहता था । एक दिन मास्टर साहब ने दीवाली पर निबंध लिखने के लिए कहा । उसने लिखा दीवाली हमारा एक प्रमुख त्यौहार है । इस दिन हम घर को दीये से सजाते है । लेकिन  कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते है । जुआ खेलना एक खराब बात है । जुआ  खेलने से घर बर्बाद होते है  । घर मे आर्थिक तंगी आ जाती है ----- । आगे पूरा जुआ पर निबंध था । 
-- 

आज का सफ़र यहीं तक 
@अनीता सैनी 'दीप्ति' 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चर्चा प्रस्तति।
    आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर अंक। एक निवेदन है सबसे, लक्ष्यभेदी पोस्ट को जरूर पढ़ें।
    मेरी रचना को लेने हेतु सप्रेम आभार प्रिय अनिता।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर विचारात्मक प्रस्तुति, देश की आयरन लेडी इंदिरा गांधी जी को लेकर लिखी गई मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद अनीता जी 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. पोस्ट को चर्चा मंच पर लेने हेतु हार्दिक आभार 🌷

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर अंक. मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं

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