आज कोई चर्चा न करने का मन बन गया। बीते सप्ताह, और उसके कुछ पहले कुछ ऐसी बातें हुईं कि मन रुक कर कुछ बात करने का हो गया।
कुछ मित्र चर्चा के अंदाज़ पर आपत्ति करते रहें हैं। कुछ इसमें लिए गए ब्लॉग्स के चयन पर शंका करते रहे हैं। कुछ को सिर्फ़ लिंक लेने से आपत्ति रही है। तो कुछ चर्चा में प्रयुक्त शब्दों के प्रति आपत्ति उठाते रहे हैं। कुछ को आपत्ति होती है कि उनके ब्लॉग को आपने उनसे पूछे बगैर क्यों शामिल किया, तो कुछ इस बात से ख़फ़ा हो जाते हैं कि उनकी पोस्ट को क्यों छोड़ दिया गया? कुछ कहते हैं कि आप मेल करके अपने लिंक का प्रचार मत करो, कुछ कहते हैं कि करो। कुछ मोडरेशन का सहारा लेते हैं, कुछ नहीं। कुछ कहते हैं कि आप कटोरे लेकर भीख मांगते क्यों हो, कुछ कहते हैं कि मांगो, मन करेगा तो दान देंगे, नहीं तो नहीं देंगे। कुछ कहते हैं कि मेरे ब्लॉग पर ऐसी नहीं वैसी टिप्पणी करो, कुछ कहते हैं कि जैसी मन करे वैसी करो।
मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिसका उत्तर मुझे नहीं मिल रहा। आप मदद करें तो एक बेहतर और प्रभावशाली चर्चा प्रस्तुत की जा सके।
(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
प्रश्न और भी हो सकते हैं। फिलहाल मुझे इतना ही सूझ रहा। अगर आप कोई और सुझा सकते हों तो बताइए।
मेरा एक सुझाव है, या यूं कहें कि प्रस्ताव है… कि
एक मेल कर आप अपने लिंक भेज दें।
चर्चाकार अपने च्वायस का एक सीमा में उन भेजे गए लिंक्स में से लिंक ले और उसकी चर्चा करे।
... तो मैं इस प्रस्ताव पर आज से ही अमल करता हूं। आप मेरे इस मेल पर अपने शनिवार को लगाए गए, या पिछले छह दिन की पोस्ट में से किसी एक को चुन कर अपने लिंक भेज दें।
हम उनमें से २० पोस्ट को चुनकर अपनी पसंद से क्रम देंगे।
और १ से ५ तक के क्रम की विस्तृत समीक्षा और बाक़ी की संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत करेंगे।
... तो अगर आपको मेरा यह प्रस्ताव मंज़ूर हो तो आगे से मेरे इस ई-मेल आई.डी. पर अपने लिंक भेज दिया करें।
मैं उसी में से चुनकर अपनी पसंद के क्रम में चर्चा प्रस्तुत करूंगा।
बस!
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
------------------
अब यह नाचीज ब्लॉग व्यवस्थापक डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
भी कुछ आपसे कहना चाहता है!
आदरणीय मनोज कुमार जी!
आपकी बात 100 प्रतिशत सही है!
--
मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है!
--
प्रत्येक चर्चाकार चर्चा अपने ढंग से करता है! हरेक की भाषा और शैली भिन्न होती है!
--
चर्चा में हम लोग किसी से प्रतिदान में कुछ लेते भी तो नहीं हैं, अपितु इस ब्लॉगिस्तान को कुछ देते ही हैं!
--
इस पर भी लोग अंगुलियाँ उठायें तो इसका तो कोई निदान किसी भी चर्चाकार के पास नही है!
--
ब्लॉगिस्तान में पोस्ट की औसत आयु 48 घण्टे होती है! मगर हम लोग तो पोस्ट की आयु में सदैव वृद्धि करने में प्रयत्नशील रहते हैं!
--
यह बात अलग है कि किसी की पोस्ट 2 घण्टे में ही दब जाती है और किसी की पोस्ट 20 दिन तक जीवित रहती है! मगर औसत तो 24 से 48 घण्टे ही पाया गया है!
--
निराश होने की कोई आवश्यकता नही है! हम लोग अपना काम कर रहे हैं! यदि इस समाज के हमारे कुछ लोग छिद्रांवेषण करने में लगे हैं तो हमे कोई आपत्ति नही है, वो अपना कार्य करते रहें। हम अपना कार्य कर रहे हैं!
सादर,
आपका अभिन्न सहयोगी-
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
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अब यह नाचीज ब्लॉग व्यवस्थापक डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
भी कुछ आपसे कहना चाहता है!
आदरणीय मनोज कुमार जी!
आपकी बात 100 प्रतिशत सही है!
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मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है!
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प्रत्येक चर्चाकार चर्चा अपने ढंग से करता है! हरेक की भाषा और शैली भिन्न होती है!
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चर्चा में हम लोग किसी से प्रतिदान में कुछ लेते भी तो नहीं हैं, अपितु इस ब्लॉगिस्तान को कुछ देते ही हैं!
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इस पर भी लोग अंगुलियाँ उठायें तो इसका तो कोई निदान किसी भी चर्चाकार के पास नही है!
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ब्लॉगिस्तान में पोस्ट की औसत आयु 48 घण्टे होती है! मगर हम लोग तो पोस्ट की आयु में सदैव वृद्धि करने में प्रयत्नशील रहते हैं!
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यह बात अलग है कि किसी की पोस्ट 2 घण्टे में ही दब जाती है और किसी की पोस्ट 20 दिन तक जीवित रहती है! मगर औसत तो 24 से 48 घण्टे ही पाया गया है!
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निराश होने की कोई आवश्यकता नही है! हम लोग अपना काम कर रहे हैं! यदि इस समाज के हमारे कुछ लोग छिद्रांवेषण करने में लगे हैं तो हमे कोई आपत्ति नही है, वो अपना कार्य करते रहें। हम अपना कार्य कर रहे हैं!
सादर,
आपका अभिन्न सहयोगी-
आपकी बात में दम तो है पर क्या आपको लगता है यह संभव हो पायेगा ? एक ब्लॉग चर्चाकार के नाते मैं आपकी भावनाओ को समझ सकता हूँ पर शायद यह कोई उपाए नहीं !
जवाब देंहटाएंइस तरह तो आपका मेल बॉक्स ब्लॉग वाणी या चिट्ठाजगत का दूसरा प्रतिरूप हो जाएगा ! हज़ारों की संख्या में मेल पहुंचेंगी तो आप कैसे उसमें से बीस पोस्ट छाटेंगे ! जिसकी रचना मेल से भेजने के बाद भी चुनी नहीं जायेगी उसका असंतोष पहले से कहीं अधिक बढ़ जाएगा ! अभी तो वह यही सोच कर मन को समझा लेता होगा कि उसके ब्लॉग पर चर्चाकार की दृष्टि कदाचित पड़ी ही नहीं होगी ! लेकिन जब मेल द्वारा भेजने पर भी वह चुनी नहीं जायेगी तो उस पर अस्वीकृति का या दोयम दर्जे की रचना होने का अदृश्य ठप्पा लग जाएगा जो रचनाकार को हीन भावना से ग्रस्त कर सकता है और परिणामस्वरूप वह और अधिक आक्रामक हो सकता है ! यह मेरी आशंका मात्र है किसी प्रकार का सुझाव नहीं ! निर्णय लेना आपके हाथ में है ! शुभकामनाओं के साथ !
जवाब देंहटाएंयदि किसी की रचना कहने पर डाली जाए तब रचना का सही आकलन नहीं हो सकता |हर लेखक को अपनी हर रचना प्यारी लगती है |पर जब कोई अन्य उसका चुनाव करता है तभी लगता है कि लेखन में कुछ दम है |लोगों को कोई अच्छा काम पसन्द नहीं आता और आलोचना की बीमारी होती है |अतः उन पर ध्यान दिया जाए जरूरी नहीं |आप अपना कार्य करते है पूरी निष्ठा से और संतोष का अनुभव करते हें यही सही है |
जवाब देंहटाएंआशा
जब वर्धा में कुछ लोग हमारी दुनियां की आचार संहिता पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, तो क्यों नहीं हम अपनी मर्यादाएं, सीमाएं, स्वच्छंदताएं, आदि की रूपरेखा ख़ुद तय करें?
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में इस मंच का योगदान सराहनीय है!
चर्चा मंच की अब तक की चर्चा शैली अत्यंत प्रभावशाली रही है. सुन्दर समायोजन इस मंच की विशेषता रही है. परिवर्तन होते रहें पर बिना किसी दबाव में.
जवाब देंहटाएंविरोध का स्वर हर कार्य के प्रतिगामी है. इन पर ध्यान देने से चर्चा मंच के स्वरूप और उद्देश्य में भटकाव सम्भव है.
निर्विकार बढते जाना ही श्रेयस्कर है.
किनकी बातों में पड गए आप भी .. आज अच्छे हिंदी एग्रीगेटर के न होने से चर्चाओं की भूमिका बढ गयी है .. कम समय देने पर ही 24 घंटों के कुछ महत्वपूर्ण लिंक हमें मिल जाते हैं .. हमें खुद ईमानदारी से काम करना चाहिए .. दूसरों के राय विचार लेने तक ठीक है .. पर साधना वैद्य जी से भी पूरी तरह सहमत .. आपने खुद के लिंक भेजने वाली जो बातें की .. वह व्यवहारिक नहीं लगती .. अच्छे पोस्टों के लिंक ईमेल में भेजने की सुविधा लेखकों को तो नहीं .. पाठकों को दी जा सकती है !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज कुमार जी!
जवाब देंहटाएंआपकी बात 100 प्रतिशत सही है!
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मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है!
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प्रत्येक चर्चाकार चर्चा अपने ढंग से करता है! हरेक की भाषा और शैली भिन्न होती है!
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चर्चा में हम लोग किसी से प्रतिदान में कुछ लेते भी तो नहीं हैं, अपितु इस ब्लॉगिस्तान को कुछ देते ही हैं!
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इस पर भी लोग अंगुलियाँ उठायें तो इसका तो कोई निदान किसी भी चर्चाकार के पास नही है!
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ब्लॉगिस्तान में पोस्ट की औसत आयु 48 घण्टे होती है! मगर हम लोग तो पोस्ट की आयु में सदैव वृद्धि करने में प्रयत्नशील रहहते हैं!
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निराश होने की कोई आवश्यकता नही है! हम लोग अपना काम कर रहे हैं! यदि इस समाज के हमारे कुछ लोग छिद्रांवेषण करने में लगे हैं तो हमे कोई आपत्ति नही है, वो अपना कार्य करते रहें। हम अपना कार्य कर रहे हैं!
भाई मेरा ख़्याल है कि चर्चा आपकी है आपकी मर्ज़ी से होनी चाहिये. किसी भी मुद्दे पर सभी की सहमति हो, यह तो कभी हो ही नहीं सकता...
जवाब देंहटाएंचर्चाकारों के लिए यह सुविधाजनक रहेगा कि उन तक लिंक पहुंचाई जाए ताकि वे पोस्ट ढूंढने की बजाए उसकी गुणवत्ता के विवेचन में ज्यादा वक्त दे सकें। अब तक की चर्चा इसलिए संतोषजनक नहीं कही जा सकती कि पोस्ट के चयन में गुटबाज़ी साफ झलकती है। चर्चाकार को उसी का पोस्ट दिखता है,जो चर्चाकार के ब्लॉग का टिप्पणीकार हो। एक उपाय यह हो सकता है कि ब्लॉग चर्चा आधारित मंचों पर केवल वही पोस्ट लिए जाएं,जो कम पढ़े गए किंतु गुणवत्तापूर्ण हैं क्योंकि ज्यादा पढ़े गए पोस्ट एग्रीगेटरों के प्लेटफार्म पर दिखते ही हैं।
जवाब देंहटाएंवो अंग्रेजी कहावत है न जनाब, की आप किसी किसी वक़्त सभी को खुश कर सकते है, किसी किसी को आप हर वक़्त खुश कर सकतीं है, पर हर किसी को हर वक़्त खुश नहीं कर सकते ...
जवाब देंहटाएंI remembered a quote,
जवाब देंहटाएं"I cannot give you a formula for success,but i can give you a formula for failure - TRY PLEASING EVERYONE!!!"
....i am an avid reader,and it was nice to come across charchmanch where we could get so many assimilated links everyday,
aaj jab aise sankatpurna sawalon se ghira hai manch to itna hi kahenge ki prabuddh charchakaaron ko apna kaam karte rahna chahiye.....apni hi shaili mein...!!!
sirf charcha mein shamil hone ko rachnayein likhi jayen to yah rachnadharmita hi nahi hai....
likhne wala to swantah sukhay hi likhta hai ....
ye charchkaaron par ungli uthana aur apni rachna shaamil karne ka dabaav to meri samajh se pare hai....
regards,
मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंआज आपने सभी चर्चाकार के मन में उठते भावों को व्यक्त कर दिया है ...हम चाहे कितना ही निष्पक्ष रूप से चर्चा कर लें पर सबके मन में यह बात जड़ जमा चुकी है कि चर्चा में गुटबाज़ी होती है ...कोई निदान नहीं है ...
साधना जी की बात से सहमत हूँ ...आप इस तरह कितने लिंक्स मेल में पायेंगे ..और कितनों की चर्चा करेंगे ? यह व्यावहारिक नहीं लगता ..और सही है कि रचनाकार को संतोष मिलने के बजाये असंतुष्टि का सामना करना पड़े ..
राधारमण जी कि बात से असहमति जताते हुए बता देना चाहती हूँ कि हम उन टिप्पणीकारों की चर्चा नहीं करते जो हमारे ब्लॉग पर आ कर टिप्पणी करते हैं .......लेकिन होता यह है कि जिनकी हम चर्चा करते हैं वो लोंग स्वयं ही आकर शायद यह देखते हैं कि कौन हैं भाई यह लोंग जो उनकी रचना की चर्चा चर्चा मंच पर करते हैं ..और फिर वो लोंग टिप्पणी भी कर जाते हैं ...
रही चर्चा मंच की उपयोगिता की बात तो शास्त्री जी की बात उपयुक्त लगती है ..लेकिन उपयोगिता तभी सार्थक है जब लोंग दिए हुए लिंक्स को पढ़ें ...बहुत कम पाठक लिंक्स तक पहुंचते हैं ...लेकिन फिर भी मैं उन पाठकों को ही मन में ध्यान कर चर्चा करती हूँ कि कम से कम उन तक अच्छे लिंक्स पहुंचाने का काम तो कर रहे हैं .
रचनाओं को चयन करने का हर एक का अपना नजरिया होता है ..इसी लिए जब चर्चाकार अलग अलग होते हैं तो चर्चा का रूप भी अलग अलग होता है ...यदि इतनी सीमाएं लगेंगी तो चर्चाकार क्यों अपना वक्त देंगे इस काम में ? जो लोंग चर्चा करते हैं या कर चुके हैं उनको मालूम ही होगा कि यह चर्चाएँ कितना वक्त लेती हैं...अब बाकी का मैं नहीं कह सकती हूँ पर मेरा तो बहुत वक्त लगता है ...पूरे सप्ताह भर हर ब्लॉग पर भटकना ....उनमें से कम से कम अपनी पसंद कि रचनाएँ चुनना ...मुझे नहीं लगता कि सरल काम है ...और उस समय यह याद नहीं रहता कि भाई यह मेरे ब्लॉग पर आया या नहीं ...मुझे पाठकों तक ऐसे लिंक्स पहुंचाने होते हैं जहाँ कम लोंग पहुंचते हैं और रचनाये स्तरीय होती हैं ...पर मैं स्थापित ब्लोगर्स को भी नज़रंदाज़ नहीं कर सकती ...हमेशा नहीं लेती हूँ किसी एक को ही ...पर फिर भी उनकी रचनाओं कि चर्चा भी ज़रूरी है ...भले ही उनको कितनी ही टिप्पणियाँ मिल चुकी हों ...अच्छी रचनाओं को चर्चामंच पर चर्चा के लिए नहीं लिया जायेगा तो मंच की गुणवत्ता तो स्वयं ही कम हो जायेगी ..
मैं अपनी चर्चा करने का नजरिया पाठकों के समक्ष रख रही हूँ ...यदि इसमें आप कुछ सुझाव देना चाहें तो स्वागत है ..
जवाब देंहटाएं४०% ...कम पढ़े जाने वाले ब्लोग्स
२०% स्थापित ब्लोग्स
१०% नए ब्लोग्स
१०% चर्चा मंच से जुड़े साथियों के ब्लोग्स
२०% जो रचनाएँ मुझे बहुत पसंद आई हों ..( इसमें नए और पुराने ब्लोग्स हो सकते हैं , चर्चित और कम चर्चित भी हो सकते हैं )
पाठक कहते ज़रूर हैं कि नए रचनाकारों से परिचित कराएँ ..पर सबसे मजेदार बात होती है कि जो कहते हैं उनको नए ब्लोग्स पर जाते देखा नहीं गया ...
आज आपने किसी चिट्ठा की चर्चा न कर चर्चा पर चर्चा करा दी है ..... मैं तो चर्चाकारों के साथ एक ही नाव पर सवार हूँ ...
इंतज़ार है पाठकों की प्रतिक्रियाओं का ...लेकिन आज यहाँ अपने मन की बात कहने के लिए आपने मंच उपलब्द्ध करा दिया ...
इसके लिए आभार .
मेरे ख्याल से चर्चाकार को सिर्फ़ अपना कर्म करना चाहिये वो भी निष्पक्षता से तभी चर्चा सफ़ल मानी जायेगी फिर चाहे कोई भी किसी भी शैली मे करे चर्चा………सबका अपना अपना अंदाज़ होता है और पाठक भी नये नये अन्दाज़ से रु-ब-रु होता है साथ ही देखिये हम सब चर्चाकार मिलकर ना जाने कितने नये ब्लोग्स को लेकर आये हैं और उन्हे एक पहचान दी है तो ये सब बिना किसी भेदभाव के ही तो किया है अगर हम सबके दिल मे ऐसी कोई बात होती तो सिर्फ़ कुछ खास चुने हुये लिंक्स ही हर बार मिलते ………………साथ ही एक बार मे आप सबको संतुष्ट नही कर सकते इसलिये नाराज़गी तो होगी ही मगर सभी को चर्चाकारो की सीमाओं को भी समझना चाहिये और अगर किसी को भी ऐसा लगता है कि चर्चा सार्थक नही हुयी तो खुले रूप मे आये और सिर्फ़ एक दिन खुद चर्चा करके देखे तो पता चले कि कितना वक्त लगता है और कितनी मेहनत होती है……………मगर मेरे ख्याल से सिर्फ़ कुछ लोगो को ही ऐतराज़ है बाकी सब समझते हैं कि हर बात की एक सीमा होती है इसलिये सभी को अपना अपना सहयोग करना चाहिये। बाकी मेल से लिंक प्राप्त करने का विचार तो बिल्कुल ना अपनाये जैसा कि साधना जी ने कहा उनसे सहमत हूं और शास्त्री जी ने भी बिल्कुल सही कहा है हम सबको सिर्फ़ अपना काम करना चाहिये …………हम सब किसी से कुछ ले नही रहे ………………जितनी कोशिश होती है अच्छे से अच्छा देने की कोशिश ही कर रहे हैं…।
जवाब देंहटाएं1 चर्चा की सर्थकता पर प्रश्न चिन्ह कभी नहीं लग सकता। 2,अलग अलग चर्चाकार हैं तो हर बार कुछ बदलाव अवश्य संभावी है।चर्चाकर की टिप्पणीयां भी हो तो अच्छा होगा।3,चर्चामंच अपनी उपयोगिता बरकरार रखे हुवे है,संतुष्टि एक बेहद पेचिदा शब्द है।4,इस बात की फ़िक्र करने की आपको ज़रूरत नहीं है।5,आपकी संतुष्टी ज़ियादा अहम है ।6,जैसा ले रहे हैं उसी तरीक़े से,अगर हो सके तो रचनाकर/रचनाकारा से पूछा जा सकता है जिन्हें आपत्ति हों उन्हें छोड़ दिया जाय हालाकि थोड़ा इमप्रेक्टिकल होगा।7,चर्चाकारों की व्यक्तिगत ठोस टिप्पणियां हो तो चार लिंकों पर चर्चा करना काफ़ी होगा।
जवाब देंहटाएंमनोज जी सबसे पहले तो आज आपका शुक्रिया जो आपने चर्चाकारों को भी अपनी बात कहने का अवसर दिया.
जवाब देंहटाएंअब मैं आपके प्रश्नों द्वारा ही अपनी बात कहने की कोशिश करती हूँ.
(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
- जी हाँ सार्थकता तो लगती है लेकिन जैसे कुमार राधारमण जी की टिपण्णी से लगता है ..ऐसे ही बहुत से लोग हैं जिनके मन में ये बात बैठ चुकी है कि हम पक्षपात करते हैं और अपने जानकारों की या उनकी पोस्ट लगाते हैं जो हमारी पोस्ट पर कमेन्ट देने आते हैं...इसका जवाब संगीता जी दे चुकी हैं..मैं दुहराना नहीं चाहूंगी...लेकिन ऐसी सोच चर्चाकारों की निष्ठां को शक के कटघरे में खड़ा करती है और मन को विचलित करती है...अर्थार्त मन ही नहीं करता की ऐसे दोषारोपण सुनने के बाद यहाँ चर्चा का कार्यभार संभाला जाये और इतना वक्त चर्चा के लिए लगाया जाये (संगीता जी बता चुकी हैं कि कितना वक़्त हमें लगाना पड़ता है एक चर्चा लगाने में).
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
- चर्चा में हम सभी हर तरह की पोस्ट उठाते हैं चाहे वो धर्म से सम्बंधित हों, राजनीति से हों, समाज से हों, इसमें कोई भेद भाव नहीं होता. संगीता जी के ऊपर काव्य मंच प्रस्तुत करने की जिम्मेवारी है लेकिन वो भी अपनी कविताओं में विविध रंग अपनाती हैं.
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
ये सवाल और सवाल नंबर पांच एक से हैं...सो जवाब वहीँ दे रही हूँ.
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
- चर्चा का स्वरुप निष्पक्ष रहना चाहिए और निष्पक्ष है .
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
- ये संतुष्टि तो शायद कभी नहीं हो पायेगी. सच कह रहे हैं ऍम.वर्मा जी कि विरोध का स्वर हर कार्य में प्रतिगामी है. और मजाल जी जो लिखते हैं कि हर किसी को हर वक़्त खुश नहीं किया जा सकता.
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
- हम तो अपने लिंक पहले ब्लोग्वानी से लिया करते थे, अब चिटठा जगत से या जिनकी रचनाये हमें अच्छी लगती हैं और उन्हें हम फोलो कर के अपने देश्बोर्ड पर ले आते हैं और इन्ही सब में से पोस्ट का चयन करते हैं.
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
चर्चाएँ प्रतिदिन होती हैं..तो कोशिश की जाती है की ताज़ी पोस्ट को उठाया जाये..गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए इस बात का भी ध्यान किया जाता है की चर्चा इतनी लंबी भी ना हो जाये की पाठक पढते पढते बोर हो जाये. इसलिए २० से ३० तक के लिंक लगाने का लक्ष्य रखा जाता है. बाकी की बात चर्चाकार के समय उपलब्धि पर भी आधारित होती है. जैसा की पिछली चर्चा में दीपक जी ने समयाभाव के कारन सिर्फ नए चिट्ठों के लिंक दिए. तो ऐसा भी कभी कभी हो जाता है.
मेरा एक सुझाव है, या यूं कहें कि प्रस्ताव है… कि
एक मेल कर आप अपने लिंक भेज दें।
चर्चाकार अपने च्वायस का एक सीमा में उन भेजे गए लिंक्स में से लिंक ले और उसकी चर्चा करे।
मनोज जी इस विषय में मैं साधना जी के साथ सहमत हूँ और आपके सुझाव से सहमत नहीं हूँ.
मैँ तो संगीता स्वरूप जी के विचारोँ से पूर्णताः सहमत हूँ तथा उनका Formula पसन्द आया। उन्होँने सधे हुए अंदाज मेँ नपे तुले शब्दोँ मेँ चर्चामंच की समस्या का समाधान कर दिया हैँ। और मेरे विचार से चर्चाकार स्वतन्त्र होना चाहिए अपना काम करने के लिए।
जवाब देंहटाएंमंच आपका है, चर्चा विभिन्न साथी कर रहे हैं और नवीनता लाने का प्रयास भी। पढने वालों को कुछ अनपढे लिंक भी मिल जाते हैं। अब सोचना क्या है? लगे रहो मुन्ना भाई :)
जवाब देंहटाएंमेरे कुछ प्रश्न हैं, जिसका उत्तर मुझे नहीं मिल रहा। आप मदद करें तो एक बेहतर और प्रभावशाली चर्चा प्रस्तुत की जा सके।
जवाब देंहटाएं(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
उत्तर - इस तरह का स्वयम भू प्रथम मंच शुकुल अपने आपको कहता है अऊर इस तरह के दुसरे मंचों ने उसकी चिठ्ठा चर्चा की धुंआ निकाल दी जिसकी पीडा शुकुल को अभी तक है, लिहाजा हम उम्मीद करेंगी कि इसका जवाब भी उसी से मांगा जाये।
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
उत्तर - स्वरूप शुकुल चर्चा जैसा तो कतई नाही होना चाहिये कि दूसरों की इज्जत खराब करो, उंहा पर सिवाय लोगों का अपमान के अलावा और क्या हुआ? हमरी समझ से आपका वर्तमान स्वरूप सही है।
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
उत्तर - हमरी चर्चा आपने कबःई नाही की अऊर ना ही हमें कबहुं नमस्ते की त हम कैसे संतुष्ट हुई सकत हैं?
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
उत्तर - आपका हमको नाही मालूम पर शुकुल चर्चा में यही सब होत है। उंहा ऊ सब आपने लोगन का ही चर्चा करत रहा इसीलिये उसका चर्चा का दिवाला निकल गया अगर आप भी ऐसन ही करेंगे त ऐसा ही होगा ई पक्का है।
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
उत्तर - ई तो चर्चा कार की मर्जी पर है कि उ हमरा लिंक देता है या नाही? जिसका लिंक नाही दोगे ऊ त नाराज होबे ही करेगा ना?
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
उत्तर - हमरी समझ से जहां आफ़बीट मसाला मिले ऊंहा से लेना चाहिये।
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
उत्तर - कम से कम इतने लिंक त अवश्य होने चाहिये जिसमे अपने अपने वालों के लिंक आजाये भले ही उन्होने पोस्ट ना लिखी हो। किसी भी बहाने उनका जिक्र हो जाये कि आज हमरे चमचवा की तबियत हराब है या आज बाहर गये हैं या आज जुकाम हुई गवा या आज उनके बिलारी कुता को छींक आगई इत्यादि इत्यादि...अधिकतम की कोई सीमा नाही है।
प्रश्न और भी हो सकते हैं। फिलहाल मुझे इतना ही सूझ रहा। अगर आप कोई और सुझा सकते हों तो बताइए।
उत्तर - इस सवाल का जवाब हम इंहा नाही दे सकत हैं, इसका लिये आपको हमरे नखलेऊ आकर हमसे मुलाकात करनी पडेगी।
तुम सबकी अम्माजी
मेरे कुछ प्रश्न हैं, जिसका उत्तर मुझे नहीं मिल रहा। आप मदद करें तो एक बेहतर और प्रभावशाली चर्चा प्रस्तुत की जा सके।
जवाब देंहटाएं(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
उत्तर - इस तरह का स्वयम भू प्रथम मंच शुकुल अपने आपको कहता है अऊर इस तरह के दुसरे मंचों ने उसकी चिठ्ठा चर्चा की धुंआ निकाल दी जिसकी पीडा शुकुल को अभी तक है, लिहाजा हम उम्मीद करेंगी कि इसका जवाब भी उसी से मांगा जाये।
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
उत्तर - स्वरूप शुकुल चर्चा जैसा तो कतई नाही होना चाहिये कि दूसरों की इज्जत खराब करो, उंहा पर सिवाय लोगों का अपमान के अलावा और क्या हुआ? हमरी समझ से आपका वर्तमान स्वरूप सही है।
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
उत्तर - हमरी चर्चा आपने कबःई नाही की अऊर ना ही हमें कबहुं नमस्ते की त हम कैसे संतुष्ट हुई सकत हैं?
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
उत्तर - आपका हमको नाही मालूम पर शुकुल चर्चा में यही सब होत है। उंहा ऊ सब आपने लोगन का ही चर्चा करत रहा इसीलिये उसका चर्चा का दिवाला निकल गया अगर आप भी ऐसन ही करेंगे त ऐसा ही होगा ई पक्का है।
जारी....
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
जवाब देंहटाएंउत्तर - ई तो चर्चा कार की मर्जी पर है कि उ हमरा लिंक देता है या नाही? जिसका लिंक नाही दोगे ऊ त नाराज होबे ही करेगा ना?
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
उत्तर - हमरी समझ से जहां आफ़बीट मसाला मिले ऊंहा से लेना चाहिये।
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
उत्तर - कम से कम इतने लिंक त अवश्य होने चाहिये जिसमे अपने अपने वालों के लिंक आजाये भले ही उन्होने पोस्ट ना लिखी हो। किसी भी बहाने उनका जिक्र हो जाये कि आज हमरे चमचवा की तबियत हराब है या आज बाहर गये हैं या आज जुकाम हुई गवा या आज उनके बिलारी कुता को छींक आगई इत्यादि इत्यादि...अधिकतम की कोई सीमा नाही है।
प्रश्न और भी हो सकते हैं। फिलहाल मुझे इतना ही सूझ रहा। अगर आप कोई और सुझा सकते हों तो बताइए।
उत्तर - इस सवाल का जवाब हम इंहा नाही दे सकत हैं, इसका लिये आपको हमरे नखलेऊ आकर हमसे मुलाकात करनी पडेगी।
हर किसी का अपना अपना निजी विचार कुछ भी हो सकता है .... मेरा तो मानना है जो आपको उचित लगे वो करते जाएँ ...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट पर अच्छा विमर्श हुआ है। मेरे ख़्याल से ऐसे जितने भी मंच होंगे सबके अपने-अपने पूर्वाग्रह और अपनी-अपनी पसंद ज़रुर होगी। फिर भी इससे बचा जा सके तो चर्चा में और निखार आ सकता है और नए लोग भी ज़्यादा मात्रा में जुड़ने लगेंगे। इस दृष्टि से मुझे यहां दीपक मशाल का प्रस्तुतिकरण बेहतर लगता है (हांलांकि उन्होंने कभी मेरी पोस्ट नहीं शामिल की फिर भी :)। चर्चाकारों की मेहनत तो काफ़ी बढ़ जाएगी फ़िर भी थोड़े-बहुत फेर-बदल के साथ संगीता स्वरुप जी का फॉर्मूला अपनाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
चर्चा नं.-302
--
ओह!
यह तो बहुत ही संगीन धारा है!
अभी तक जो प्रारूप है चर्चा मंच का, ब्लॉग जगत ने उसे स्वीकारा है, हाँ ऐसे मंचों में, छिट-पुट विरोध तो होते ही रहते हैं...और एक तरह से देखा जाए...विरोध भी लोकप्रियता की निशानी है....आप स्वयं प्रबुद्ध हैं और ये भी जानते ही हैं, कोई भी सबको ख़ुश नहीं रख सकता...
जवाब देंहटाएंआपलोगों का प्रयास सराहनीय है....हमलोग सब बहुत ख़ुश हैं..
मनोज जी, आज आपने वह सवाल पूछ लिया है जो मेरे मन में कई दिनों से उठ रहा था। मैंने बहुत तो नहीं हां दो-तीन बार चर्चामंच देखा है। मुझे लगता है कि चर्चामंच का स्वरूप आपको बदलना चाहिए। अभी जहां तक मैं समझ पाया हूं कि केवल किसी भी पोस्ट का एक परिचय मात्र होता है। वह पोस्ट चर्चामंच पर क्यों ली गई है और उसकी क्या विशेषताएं हैं इनकी चर्चा कम ही होती है। इसी से यह भ्रम पैदा होता है कि केवल अपनी पसंद की पोस्टों की चर्चा हो रही है। उससे पाठक को कुछ मिलता नहीं है। मुझे भी लगता है कि आप लोगों को इसके स्वरूप के बारे में कुछ सोचना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक और बात चर्चाकारों की संख्या भी बढ़ानी चाहिए। ताकि उन पर से बोझ कम हो और नई दृष्टि भी आए। हर हफ्ते की बजाय महीने मे एक या दो बार ही बारी आए तो बेहतर है।
मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था में है.. सो इस तरह के सवाल आरोप उठते रहेंगे.. जो लोग गंभीर साहित्य से परिचित हैं उन्होंने दो प्रतिष्टित पत्रिका(नाम नहीं लेना चाहंगा) के बीच दशको तक आरोप प्रत्यारोप देखा और पढ़ा है.. जब दुनिया ही खेमे में बटी है.. कोई खेमेबाजी से अलग कैसे रह सकता है.. यदि खेमे नहीं बने होते.. गाँव, शहर, देश नहीं बना होता. सो यह प्राकृतिक है.. इसमें गंभीर होने वाली कोई बात नहीं है.. आप आपके सवालों का जवाब अपनी संक्षिप्त ब्लॉग्गिंग अनुभव के आधार पर:
जवाब देंहटाएं(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
मुझे कुछ पाठक इसी तरह के मंच से मिले हैं.. सो कुछ ना कुछ लाभ तो ब्लोगेर को मिल ही रहा है ऐसे मंचो से.. ब्लॉगर को पाठक और पाठक को ब्लॉगर दे रहा है मंच. इसलिए सार्थकता है.
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
यह चर्चाकार पर छोड़ दीजिये. वैसे हिंदी में अभी भी बहुत गंभीर लेखन नहीं हो रहा है.. विविध विषयों, जैसे पर्यावरण, चिकित्सा, विज्ञान अदि पर कम ही लिखा जा रहा है.. सो चाहिए की साहित्य के इतर के विषयों के ब्लॉग को शामिल करें.. ताकि केवल लेखक/कवि ही ना पढ़ें इसे.
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
जहाँ तक मेरा निजी अनुभव है मुझे कोइ २०-२५ लिंक एक जगह मिल्जाते हैं और मैं संतुष्ट हो जाता हूँ.
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
चर्चाकार की अपनी सीमा है. यह कोई प्रोफेसनल चर्चा तो हैं नहीं जो कोई फुल टाइम देगा. ऐसे में चर्चाकार के पास भी समय और संसाधन की कमी है.. इसे नजर में रखना होगा. ऐसे में चर्चाकार जहाँ तक जिन ब्लोगों तक पहुँच पायेगा.. उन्ही ही शामिल कर पायेगा ना.. सो यह आरोप यदि है भी तो व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए बहुत गंभीर नहीं है.. क्योंकि मैं मानता हूँ की मैं किसी गुट में नहीं हूँ..मैं किसी को नहीं जानता... लेकिन मेरी पोस्ट शामिल की गई है.. कई मौके पर..
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
प्रशन ४ के उत्तर में इसका उत्तर भी है.. यदि किसी को लगता है तो उसे टिप्पणी कालम में उसी दिन कह देना चाहिए और नए लिनक्स भी दे देना चाहिए ताकि अगली बार उन्हें शामिल किया जा सके.. यह सकारात्मक योगदान होगा चर्चा और हिंदी ब्लॉग्गिंग दोनों के लिए..
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
अपने संसाधन से .. अग्रीगेटर से..
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
१०-१५ से अधिक पोस्ट नहीं पढी जाती.. सो मंच की रोचकता को देकते हुए.. संक्षिप्त रखना ठीक रहेगा.. क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से एअक पाठक अधिक से अधिक आधे घंटे में १०-१५ पेज से अधिक नहीं पढ़ सकता .. ऐसे में हमे पाठक का आधा घंटा से अधिक समय नहीं लेना चाहिए..
मनोज जी मंच सार्थक है.. इसे बनाये रखें .
मनोज जी हिंदी ब्लॉग्गिंग अभी भी अपने शैशावा अवस्था में है.. सो इस तरह के सवाल आरोप उठते रहेंगे.. जो लोग गंभीर साहित्य से परिचित हैं उन्होंने दो प्रतिष्टित पत्रिका(नाम नहीं लेना चाहंगा) के बीच दशको तक आरोप प्रत्यारोप देखा और पढ़ा है.. जब दुनिया ही खेमे में बटी है.. कोई खेमेबाजी से अलग कैसे रह सकता है.. यदि खेमे नहीं बने होते.. गाँव, शहर, देश नहीं बना होता. सो यह प्राकृतिक है.. इसमें गंभीर होने वाली कोई बात नहीं है.. आप आपके सवालों का जवाब अपनी संक्षिप्त ब्लॉग्गिंग अनुभव के आधार पर:
जवाब देंहटाएं(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
मुझे कुछ पाठक इसी तरह के मंच से मिले हैं.. सो कुछ ना कुछ लाभ तो ब्लोगेर को मिल ही रहा है ऐसे मंचो से.. ब्लॉगर को पाठक और पाठक को ब्लॉगर दे रहा है मंच. इसलिए सार्थकता है.
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
यह चर्चाकार पर छोड़ दीजिये. वैसे हिंदी में अभी भी बहुत गंभीर लेखन नहीं हो रहा है.. विविध विषयों, जैसे पर्यावरण, चिकित्सा, विज्ञान अदि पर कम ही लिखा जा रहा है.. सो चाहिए की साहित्य के इतर के विषयों के ब्लॉग को शामिल करें.. ताकि केवल लेखक/कवि ही ना पढ़ें इसे.
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
जहाँ तक मेरा निजी अनुभव है मुझे कोइ २०-२५ लिंक एक जगह मिल्जाते हैं और मैं संतुष्ट हो जाता हूँ.
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
चर्चाकार की अपनी सीमा है. यह कोई प्रोफेसनल चर्चा तो हैं नहीं जो कोई फुल टाइम देगा. ऐसे में चर्चाकार के पास भी समय और संसाधन की कमी है.. इसे नजर में रखना होगा. ऐसे में चर्चाकार जहाँ तक जिन ब्लोगों तक पहुँच पायेगा.. उन्ही ही शामिल कर पायेगा ना.. सो यह आरोप यदि है भी तो व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए बहुत गंभीर नहीं है.. क्योंकि मैं मानता हूँ की मैं किसी गुट में नहीं हूँ..मैं किसी को नहीं जानता... लेकिन मेरी पोस्ट शामिल की गई है.. कई मौके पर..
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
प्रशन ४ के उत्तर में इसका उत्तर भी है.. यदि किसी को लगता है तो उसे टिप्पणी कालम में उसी दिन कह देना चाहिए और नए लिनक्स भी दे देना चाहिए ताकि अगली बार उन्हें शामिल किया जा सके.. यह सकारात्मक योगदान होगा चर्चा और हिंदी ब्लॉग्गिंग दोनों के लिए..
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
अपने संसाधन से .. अग्रीगेटर से..
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
१०-१५ से अधिक पोस्ट नहीं पढी जाती.. सो मंच की रोचकता को देकते हुए.. संक्षिप्त रखना ठीक रहेगा.. क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टि से एअक पाठक अधिक से अधिक आधे घंटे में १०-१५ पेज से अधिक नहीं पढ़ सकता .. ऐसे में हमे पाठक का आधा घंटा से अधिक समय नहीं लेना चाहिए..
मनोज जी मंच सार्थक है.. इसे बनाये रखें .
आप्के प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता हूँ... वैसे एक उत्तर जो तत्काल सूझ रहा है,वह है
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना..
वो दो बेटे और बाप के घोड़े वाली कहानी याद ही होगी!!
इस मंच की सर्थकता तो है इतने लिंक यहां एकसाथ मिल जाते है जिन्हे हम पूरे दिन ढूढे तो भी आसानी से न मिलें. स्वरूप चर्चाकार ही तय करें. रही बात पक्षपातपूर्ण रवैया की तो अगर पोस्ट लगाने से खुश होने वाली बात है तो हर पोस्ट को स्थान देकर सबको खुश तो नहीं किया जा सकता . हर सभी की सोंच अलग अलग होती है कुछ ना कुछ तो लोग कहेंगें बस आप लो चर्चा जारी रखे रहे.
जवाब देंहटाएंआप सबों का आभार।
जवाब देंहटाएंयह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा था। सोचता था कब इसे सार्वजनिक करूं। आज आपलोगों ने मेरी आधी से अधिक अधिक दुविधा दूर कर दी।
एक तो मुझे ये बड़ा अटपटा लगता था कि लोग यह कहते थे आप मुझसे पूछे बगैर चर्चा में शामिल नहीं कर सकते। कहीं तो ये भी पढा था कि कॉपी राइट उल्लंघन का मामला बनता है, कोर्ट में घसीट दिया जाएगा।
तब तो मैं बहुत डर गया था। हालाकि वो चर्चा मेरी नहीं थी, पर कोर्ट कचहरी के नाम पर डर तो लगता ही है।
फिर और भी बातें थीं। उन पर कभी और विस्तार में चर्चा करेंगे।
इस मंच के और साथियो के बारे में मैं नहीं जानता, कुछ ने तो यहां आकर अपनी राय दे दी है।
पर मैं इस बात से एक बार फिर डर गया हूं कि अगर बगैर पूछे कोई चर्चा कर दी और किसी को नहीं भाई तो हम तो गये काम से। तो मेरा निर्णय तो यही बनता है कि
१. जो मित्र आज यहां आकर अपनी सहमति और इस मंच की सर्थकता, और हमारे चर्चा करने के स्वरूप में विश्वास जताया है उन्हें प्राथमिकता दूंगा (आखिर अब वो मेरे गुट के हो गए हैं)।
२.इसके अलावा अगर लोई मित्र मेरे ई-मेल आई.डी. (जो इस पोस्ट में लिखा है, रिडिफ़ वाला) पर लिंक भेजेंगे तो उनकी पोस्ट को भी लूंगा चर्चा में।
३. सब से पूछने तो जा नहीं पाऊंगा सब ब्लोग पर ... तो मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि बांक़ी जो नहीं आए कोई टिप्पणी देने, उनके बारे में यह मान कर चलूंगा कि वे हमसे खफ़ा हैं और नहीं चाहते कि उनकी पोस्ट की कोई चर्चा हो।
इसके अलावे मैं यह तो फिर भी मानता ही हूं कि कोई आचार संहिता तो बननी ही चाहिए। कहीं कोई सीमा रेखा तो होनी ही चाहिए।
मैंने अपने लिए खींच ली है। अब और हवन करके अपने हाथ नहीं जला पाऊंगा।
आप सबों का आभार।
जवाब देंहटाएंयह मुद्दा बहुत दिनों से साल रहा था। सोचता था कब इसे सार्वजनिक करूं। आज आपलोगों ने मेरी आधी से अधिक अधिक दुविधा दूर कर दी।
एक तो मुझे ये बड़ा अटपटा लगता था कि लोग यह कहते थे आप मुझसे पूछे बगैर चर्चा में शामिल नहीं कर सकते। कहीं तो ये भी पढा था कि कॉपी राइट उल्लंघन का मामला बनता है, कोर्ट में घसीट दिया जाएगा।
तब तो मैं बहुत डर गया था। हालाकि वो चर्चा मेरी नहीं थी, पर कोर्ट कचहरी के नाम पर डर तो लगता ही है।
फिर और भी बातें थीं। उन पर कभी और विस्तार में चर्चा करेंगे।
इस मंच के और साथियो के बारे में मैं नहीं जानता, कुछ ने तो यहां आकर अपनी राय दे दी है।
पर मैं इस बात से एक बार फिर डर गया हूं कि अगर बगैर पूछे कोई चर्चा कर दी और किसी को नहीं भाई तो हम तो गये काम से। तो मेरा निर्णय तो यही बनता है कि
१. जो मित्र आज यहां आकर अपनी सहमति और इस मंच की सर्थकता, और हमारे चर्चा करने के स्वरूप में विश्वास जताया है उन्हें प्राथमिकता दूंगा (आखिर अब वो मेरे गुट के हो गए हैं)।
२.इसके अलावा अगर कोई मित्र मेरे ई-मेल आई.डी. (जो इस पोस्ट में लिखा है, रिडिफ़ वाला) पर लिंक भेजेंगे तो उनकी पोस्ट को भी लूंगा चर्चा में।
३. सब से पूछने तो जा नहीं पाऊंगा सब ब्लोग पर ... तो मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि बांक़ी जो नहीं आए कोई टिप्पणी देने, उनके बारे में यह मान कर चलूंगा कि वे हमसे खफ़ा हैं और नहीं चाहते कि उनकी पोस्ट की कोई चर्चा हो।
इसके अलावे मैं यह तो फिर भी मानता ही हूं कि कोई आचार संहिता तो बननी ही चाहिए। कहीं कोई सीमा रेखा तो होनी ही चाहिए।
मैंने अपने लिए खींच ली है। अब और हवन करके अपने हाथ नहीं जला पाऊंगा।
आप तो बस लगे रहिये ।
जवाब देंहटाएंचलिए पंचों का निर्णय सर माथे....
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छे विचार आये हैं अब आप एक कार्य नीति बना सकते हैं !
जवाब देंहटाएंआप नि:शुल्क ,नि:स्वार्थ भाव से एक चर्चा कर रहे हैं । हम इसके लिये शुक्रगुजार हैं । आपत्ति करने वालों से निवेदन है कि वे भी एक चर्चा करें ,सार्थक चर्चा का स्वागत है ।रही बात चर्चा के स्वरूप और सम्मिलित किये जाने वाले लिंक की तो इसका सर्वाधिकार चर्चाकार के पास ही होना चाहिये ।
जवाब देंहटाएं(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं? ऐसे तो दर्जनों, सैकड़ों होने चाहिएँ. रहा सवाल असंतुष्टों का, तो रूपचंद शास्त्री जी का कहना -मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है - यहाँ एकदम फिट बैठता है.
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
आप नीला रंग रखेंगे तो लाल रंग प्रेमी दुखी होंगे. आप लाल रंग ओढ़ेंगे तो हरे रंग वाले जलेंगे. स्वरूप स्वयं तय करें जिसमें सुविधा हो. चर्चाकार को, पाठक को.
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
यहाँ पर रूपचंद शास्त्री जी का कहा फिर डालना चाहूंगा - मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है.
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
आप रामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो श्यामलाल को दुख पहुँचेगा और वो आपको रामलाल के गैंग का आदमी घोषित करेगा. इसके विपरीत यदि आप श्यामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो रामलाल के संगी साथी आपके पीठे लट्ठ लेकर पड़ेंगे कि यहाँ तो ढेर गुटबाजी हो रही है. इसलिए इन बातों पर ध्यान न दें.
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
चर्चाकार वही लिंक तो पेश करेगा जो वो खुद अपनी पसंद से पढ़ता आया है. किसी बाहरी दुनिया से तो लाएगा नहीं. यदि लिंक से कोई संतुष्ट नहीं होता है, तो वो किसी और चर्चामंच, ब्लॉग-चर्चा इत्यादि इत्यादि की ओर रूख करे अथवा स्वयं का चर्चा-मंच धूम धड़ाके से शुरू करे. मैंने पहले भी कहा है कि ऐसे सैकड़ों आयोजन होने चाहिएँ.
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
लिंक कहीं से भी ली जा सकती है और चर्चा में लिंक टिकाने में अथवा लिंक सहित चार-छः लाइनें संदर्भ में देने से किसी तरह के कॉपीराइट का कोई उल्लंघन नहीं होता. परंतु अकसर होता यही है कि जिन चिट्ठों को चिट्ठाकार ज्यादा पढ़ता है उसके लिंक रिपीट हो ही जाते हैं. लोगों को तब यहाँ गड़बड़ी नजर आती है. मगर ये बात भी तय है कि अंततः अच्छी पोस्टें निगाहें खींच ही लेती हैं.
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
1 लेंगे तो लोग बोलेंगे कि ये तो कम है. 100 लेंगे तो बोलेंगे कि ये तो बहुत है. 50 लेंगे तो आधे बोलेंगे कि थोड़ा कम रहता तो अच्छा होता. आधे बोलेंगे कि थोड़ा ज्यादा रहता तो अच्छा होता :)
(१) क्या आपको लगता है कि इस तरह के मंच की कोई सर्थकता है?
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं? ऐसे तो दर्जनों, सैकड़ों होने चाहिएँ. रहा सवाल असंतुष्टों का, तो रूपचंद शास्त्री जी का कहना -मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है - यहाँ एकदम फिट बैठता है.
(२) चर्चा का स्वरूप क्या हो?
आप नीला रंग रखेंगे तो लाल रंग प्रेमी दुखी होंगे. आप लाल रंग ओढ़ेंगे तो हरे रंग वाले जलेंगे. स्वरूप स्वयं तय करें जिसमें सुविधा हो. चर्चाकार को, पाठक को.
(३) क्या अब तक की चर्चा से आप संतुष्ट हैं?
यहाँ पर रूपचंद शास्त्री जी का कहा फिर डालना चाहूंगा - मैंने अपने 60 वर्ष के जीवन में यह अनुभव किया है कि जिसका कोई योगदान नहीं होता वह सदैव हिसाब माँगता पाया गया है.
(४) क्या आपको लगता है कि चर्चाकार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं?
आप रामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो श्यामलाल को दुख पहुँचेगा और वो आपको रामलाल के गैंग का आदमी घोषित करेगा. इसके विपरीत यदि आप श्यामलाल का ब्लॉग उठाएँगे तो रामलाल के संगी साथी आपके पीठे लट्ठ लेकर पड़ेंगे कि यहाँ तो ढेर गुटबाजी हो रही है. इसलिए इन बातों पर ध्यान न दें.
बाकी अगले कमेंट में जारी...
यहाँ बहुत कम ब्लॉग हैं जो किसी मोटिव के लिए बने हैं
जवाब देंहटाएंमोटिव साफ़ सुथरा है तो परेशानी क्या है
(५) क्या आप चर्चाकारों द्वारा चुने गए लिंक से संतुष्ट होते हैं?
जवाब देंहटाएंचर्चाकार वही लिंक तो पेश करेगा जो वो खुद अपनी पसंद से पढ़ता आया है. किसी बाहरी दुनिया से तो लाएगा नहीं. यदि लिंक से कोई संतुष्ट नहीं होता है, तो वो किसी और चर्चामंच, ब्लॉग-चर्चा इत्यादि इत्यादि की ओर रूख करे अथवा स्वयं का चर्चा-मंच धूम धड़ाके से शुरू करे. मैंने पहले भी कहा है कि ऐसे सैकड़ों आयोजन होने चाहिएँ.
(६) चर्चा के लिए चर्चाकारों को लिंक कहां से लेना चाहिए?
लिंक कहीं से भी ली जा सकती है और चर्चा में लिंक टिकाने में अथवा लिंक सहित चार-छः लाइनें संदर्भ में देने से किसी तरह के कॉपीराइट का कोई उल्लंघन नहीं होता. परंतु अकसर होता यही है कि जिन चिट्ठों को चिट्ठाकार ज्यादा पढ़ता है उसके लिंक रिपीट हो ही जाते हैं. लोगों को तब यहाँ गड़बड़ी नजर आती है. मगर ये बात भी तय है कि अंततः अच्छी पोस्टें निगाहें खींच ही लेती हैं.
(७) किसी एक दिन की चर्चा में अमूमन कितने लिंक या पोस्ट होने चाहिए।
1 लेंगे तो लोग बोलेंगे कि ये तो कम है. 100 लेंगे तो बोलेंगे कि ये तो बहुत है. 50 लेंगे तो आधे बोलेंगे कि थोड़ा कम रहता तो अच्छा होता. आधे बोलेंगे कि थोड़ा ज्यादा रहता तो अच्छा होता :)
जब भी कोई अच्छा कार्य करता है तब-तब विरोध भी होता ही है, मेरे विचार से सभी ब्लॉग चर्चा करने वालों को अपने हिसाब से चर्चा करने का पूरा हक है और सभी ब्लॉग वार्ताकार अच्छा काम कर रहें हैं.
जवाब देंहटाएंअजी जिन्हें कुछ गलत लगता है, उन्हें लगता रहने दीजिये..... आप तो बस लगे रहो....
मेरी ओर से ढेरों शुभकामनाएँ!
.
जवाब देंहटाएं" कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना .. "
मनोज जी,
" Always listen to your heart . "
.
चर्चा ही समिक्षा हो गई!!
जवाब देंहटाएंअसंतोष पर हुई यह चर्चा भी ब्लोग-जगत के लिये उपयोगी रहेगी।
मंथन से ही मक्खन सम्भव है।
मनोज जी ! आपकी भावनाये समझ सकते हैं हम जहाँ कोई मेहनत करता है तो व्यर्थ की आलोचना उसे आहत करती ही है .पर बात फिर भी वही कि "कुछ तो लोग कहेंगे "
जवाब देंहटाएंजहाँ तक आपके सुझाव की बात है व्यक्तिगत रूप से मुझे वो व्यावहारिक नहीं लगता ऐसे तो आपके पास अनगिनत लिंक्स आ जायेंगे .कितने लिंक्स ले पाएंगे आप और जिसका नहीं लिया वो अगली बार से भेजना बंद कर देगा :)इस तरह अच्छी पोस्ट भी रह जाएँगी ,इस बाबत संगीता जी के सुझावों से काफी हद तक सहमत हूँ मैं.
लेकिन मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि चर्चा हमेशा ही चर्चाकार की अपनी पसंद होनी चाहिए .जिस तरह हम अपने ब्लॉग पर अपने पसंद की सामग्री डालते हैं ,एक चर्चाकार को भी हक है कि वो अपने पसंद के ब्लोग्स या पोस्ट की चर्चा करे.इस मामले में किसी का भी कोई भी ऑब्जेक्शन मायने नहीं रखता.