अब ब्लागिंग मे रोजाना अलग अलग विधाओं पर इतना कुछ लिखा जाता है कि सामान्य रूप से सभी कुछ पढ पाना हमारे लिए तो क्या बल्कि किसी के लिए भी संभव नहीं है.हाँ, चर्चाकार होने के नाते,मेरा इस बात का प्रयत्न अवश्य रहता है कि कम से कम आलतू-फालतू की पोस्टस से अलग कोई अच्छी ढंग की पोस्ट तो न छूटने पाये.अतैव कौन सी पोस्ट पढूँ,कौन सी छोड दूँ,यही ऊहा-पोह मन में चलता रहता है.इस विषय में मैं किसी प्रकार का मोह नहीं पालता;न नये-पुराने ब्लागर का,न टिप्पणियों के जरिए किए जा रहे धुआँधार प्रचार का. हाँ, नव लेखन की विशिष्टता मेरे आकर्षण का विषय अवश्य रहती है. इसलिए चर्चा में अधिकतर नए चिट्ठाकारों की पोस्ट्स ही शामिल करने का प्रयास रहता है…इसी क्रम में आज की इस चर्चा में भी अपने द्वारा पढी गई चन्द पोस्टस के लिंक्स प्रस्तुत हैं…..आप लोग पढिए, आनन्द लीजिए…..बेशक मन करे तो टिप्पणी कीजिए और न मन करे तो भी कोई बात नहीं.. |
पैसे की निर्धनता इन्सान की वैचारिक निर्धनता का ही परिणाम है...प्राय: देखने में आता है कि अनेक व्यक्ति अपने जीवन का अधिकाँश भाग पैसा कमाने की समस्या का हल खोजने में ही लगा देते हैं और जीवन को बचाने के लिए जीवन का बहुत ही कम भाग खर्च कर पाते हैं.हम अपने घर को स्वर्ग बनाने में,अपने परिवार और इष्ट-मित्रों के साथ आनन्द मनाने में जीवन का बहुत ही कम भाग लगा पाते हैं.हारे-थके, चिन्ताओं से लदे हुए अपने परिवार में जाते हैं,जीवन से ऊबे हुए अपने मित्रों,नाते-रिश्तेदारों, सगे-सम्बन्धियों से बातें करतें हैं और फिर पुकारते हैं---आनन्द कहाँ हैं ? |
कहें खेत की सुनैं खलिहान कीब्लॉगिंग आरम्भ करने के बाद जिस एक नई भाषा से पाला पड़ा है वह उतनी सरल नहीं है। मतलब यह कि इस भाषा के दांत खाने के और हैं दिखाने के और। सही पकड़ा आपने, यह भाषा है टिप्पणियों की भाषा जिससे हमारा-आपका साबका रोज़ ही पड़ता है।कुछ उदाहरण और उनका मतलब:टिप्पणी: बहुत अच्छी/उम्दा/सुन्दर प्रस्तुति/अभिव्यक्ति मतलब: अबे ये क्या लिख मारा है, टिप्पणी करूं भी तो क्या करूं? |
क्या प्यार की भी मर्यादाएँ होती हैं ?अक्सर देखा है ,हर कोई प्यार पाना चाहता है ,लेकिन अगर कोई प्यार देना चाहे तो ? प्यार देकर भी तो प्यार महसूस किया जा सकता है लेकिन जब कोई निस्वार्थ भाव से,बिना किसी अपेक्षा के ,किसी को प्यार करना चाहता है तो वो उसे उसकी मर्यादाओं का बोध कराकर उसके आत्मविश्वास को ही तोड़ देता है। क्या प्रेम करने के लिए भी, मर्यादाओं का बंधन होता है ? |
राम नाम की लूट हैराम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। ये कोई कबीरदास का दोहा नहीं, बल्कि एक दुकान के ऊपर लगे एक बोर्ड की कुछ पंचलाइनें हैं। यहां पर राम का नाम खरीदने की होड़ मची है। लोग थैलों और अपनी कारों में राम का नाम भर-भर कर ले जा रहे हैं। सभी प्रसन्न हैं। दुकान के आगे मेला लगा हुआ है। लोग जयश्रीराम का नारा लगाकर एक दूसरे को धक्का मारने में लगे हैं। जब कुछ ग्राहकों से उनकी खरीददारी करने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कुछ इस तरह से जवाब दिया |
वर्धा के गलियारों से (कुछ झूठ कुछ सच )प्रयास किया गया था की सभी विचारधाराओं के प्रतिनिधि ब्लागरों को बुलाया जाय. विचारधारा के चर्चे यहाँ कभी कभार सुनाई भी दे रहे थे.मसलन एक ख़ास विचारधारा वाले ब्लॉगर दूसरी ख़ास विचारधारा वाले ब्लॉगर को कमरे में बंद करके टहलने चले गए.कहा तो यह भी जा रहा है की विचारधाराओं के टकराव की वजह से ही कुछ ब्लागरों ने आना टाल दिया क्योंकि उनको भनक लग गयी थी कि विरोधी विचारधारा वाले पहले ही पहुंचकर कब्जा जमा सकते हैं. |
नंगी पीठ परपहला शब्द पुरुषफिर चुनिंदा फूल और भीना-भीना प्यार गोदने की तरह चमड़ी में उतरे हैं शब्द कई नीले-नीले हरे कत्थई | न हम ही धैर्य खोएंगें, न तुम ही बाज आओगे !!अरे इन खोखलों को फूँककर कब तक बजाओगेकब तक इन नकाबों के तले खुद को छिपाओगे !! रचाया ढोंग शान्ती का, सर्वधर्म समभाव का, पांडित्य का बताओ,किसे यह मधु चखाओगे, जहर किसको पिलाओगे !! तुम्हारी रूचि लगन निष्ठा सतत गतिशील है, लेकिन हमारा धैर्य बडा जीवट, उसे कब तक आजमाओगे !! |
सादर वंदन हे सुमन ,तुम हो शिव,हो मंगल, तुम्हें मेरी सादर वंदन, जब तुम थे बाल सुमन, लोग बहुत प्यार देते थे, तुम्हें अनवरत देखा करते थे, जैसे जैसे वय बढ़ती गई, सौंदर्य बोध ने बहकाया, मदिरा का प्याला भी छलकाया | स्तब्ध कर देने का सुख... आईए ज़रा-सा बदलें, खुश होने के तरीके... जो भी दिखे सामने, उछाल दें उसकी टोपी और हंसें मुंह फाड़कर बदहवासी की हद तक... जिसे सदियों से जानने का भरम हो, सामने पाकर ऐंठ ले मुंह |
गलत संस्कृति या गलत परम्पराभारत की संस्कृति गलत है मै यह नहीं कहना चाह रहा लेकिन यह मै आपसे पूछना चाह रहा हूँ की कहीं आज के युवा को यह संस्कृति गलत तो नहीं लगने लगी है.मेरे नजरिये में शायद ऐसा ही कुछ है की आज का युवा वर्ग विश्व विख्यात भारत की संस्कृति से मुंह मोड़ कर पाश्चात्य संस्कृति की और रुख करने लगा है.
क्या आप चाहेंगी कि आप, आपकी महरी, महाराज, धोबी, सेवक, बॉस सब एक ही दुकान में टकराएँ?............................घुघूती बासूतीनहीं? तो क्या यह चाहेंगी कि केवल आप ही बढ़िया, उत्कृष्ट ब्रान्डेड सामान खरीदें? क्या सच में किसी सामान का अदली मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह सामान हमसे ऊँचे वर्ग के लोग उपयोग करते हैं या निचले वर्ग के ? या उसकी अनिवार्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे वर्ग के अधिकतर लोगों के पास वह वस्तु है? |
हां....गर्व से कहिए कि हम एक समाज हैं......!!कभी जब भी मैं अपने आस-पास के समाज पर नज़र दौडाता हूं....तो ऐसा लगता है कि यह समाज नहीं....बल्कि एक ऐसी दोष-पूर्ण व्यवस्था है,जिसमें लेशमात्र भी सामाजिकता नहीं.....उदाहरण हर एक पल हमारे सामने घटते ही रहते हैं....इस समाज में जीवन-यापन के लिए नितांत आवश्यक चीज़ है आजीविका का साधन होना....और दुर्भाग्यवश यही आजीविका का सिस्टम ही ऐसा बना दिया गया है कि इससे बचने का कोई रास्ता भी नज़र नहीं आता....अब ये सिस्टम क्या है,ज़रा इस पर भी गौर करें.. |
बाल साहित्य---रावण / दीनदयाल शर्मासालो-साल दशहरा आतापुतला झट बन जाए। बँधा हुआ रस्सी से रावण खड़ा-खड़ा मुस्काए। चाहे हो तो करे ख़ात्मा, राम कहाँ से आए। |
लघुकथा---पूत-कपूतसुबह जब वह आंगन में नल पर हाथ धो रहा था तो उसके पिता बड़बड़ाए—‘सारी दुनिया ही हरामखोर हो गई है.क्या जमाना आ गया है—लड़कियां सर्विस करें और भाई शर्म और बदनामी भरे काम करे....लड़कियों को छेड़ेंगे...प्रेम करेंगे.’ |
समझाईश---जब बच्चों को पढ़ाने बैठेंप्रत्येक माता-पिता की यह इच्छा व भावना होती है कि उनका बेटा पढ़-लिख कर एक ऐसा इनसान बने जो उनके नाम, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान की रक्षा करे क्योंकि हर बच्चा अपने मां-बाप की आशा-आकांक्षाओं का प्रतीक होता है। अनेक माता-पिता ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत धन, सम्मान, ऊंचा ओहदा और यश प्राप्त किया है। लेकिन इन सभी उपलब्धियों से आपके बच्चों को कोई लेना-देना नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि कितने ऐसे माता-पिता हैं जो अपने बच्चों को सफल बनाते हैं। |
कार्टून : रेफरी का लोचा है | Pawantoon-smile blog |
Technorati टैग्स: {टैग-समूह}चर्चा मंच
सुंदर चर्चा रही जी. कई नए लिंक मिले, उत्सुकता जगाते, जिन्हें मैं नहीं देख पाया था... धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा..ढेर लिंक.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
आंच-39 (समीक्षा) पर
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविता
क्या जग का उद्धार न होगा!, मनोज कुमार, “मनोज” पर!
sundar charcha!
जवाब देंहटाएंaabhar!
बहुत बढिया और सार्थक चर्चा लगाई है………॥काफ़ी लिंक्स पर हो आई हूँ……………आभार्।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा है भाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ..काफी अच्छे लिंक मिले....आभार
जवाब देंहटाएंआप रचना देखते हें| ब्लोगर नया है या पुराना इससे कोई फर्क नहीं पडता ,यह बहुत अच्छी बात है |नए ब्लोगर्स को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा के लिए बधाई मेरे ब्लॉग की पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार |
आशा
अच्छी रही आज की चर्चा
जवाब देंहटाएंपंडित जी, इस सीधी और सादी चर्चा से भी हमें कई उपयोगी लिंक्स मिल गये, आभार।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
बहुत बढ़िया लिंक्स दिये हैं पंडित जी धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंभाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग की पोस्ट लेने के लिए आभार। अन्य लिंक भी उपयोगी हैं। हम तक पहुंचाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंश्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!
इस विषय में मैं किसी प्रकार का मोह नहीं पालता;न नये-पुराने ब्लागर का,न टिप्पणियों के जरिए किए जा रहे धुआँधार प्रचार का.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!
saadgi aur nipunta se ki gayi charcha bahut achhi rahi.
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग को आपने चर्चा मंच पर 'गुरूवासरीय चर्चा'में शामिल किया.....
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद.
आशा करता हूँ की आगे भी इसी प्रकार से मेरा होंसला बढ़ाते रहेंगे.
आभार.