आइए मित्रों! संगीता जी मुम्बई गई हुई हैं। इसलिए साप्ताहिक काव्य मंच को कुछ अलग से अन्दाज में सजा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि यह काव्याञ्जलि आपको पसन्द आयेगी! |
संशय उमड़ रहा है , मन में प्रश्न घुमड़ रहा है, क्या सचमुच लौट आये वनवास से पुरुषोतम राम, करके रावण का काम तमाम ? क्या अब यह घोर कलयुग कही समा जाएगा ? ….. जियें कबतक भ्रम में ?----किरण नजर नही आती तम में……. | हवाओं में गाते परिंदों की ताने घुली है, इंसानी फ़ितरतों में- घुला.. इतना जहर क्यूँ है!… इंसानी फ़ितरतों में घुला इतना जहर क्यूँ है!-----हसरतें बढ़ गई हैं हद ज्यादा, खुशियों से महरूम ये लहर क्यूँ हैं… |
चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ दें सदा बचपन को हम,फिर से करें अठखेलियाँ(इस गज़ल के फूल मेरे हैं लेकिन खुशबू गुरुदेव पंकज सुबीर जी की है)इसीलिए तो महक के साथ चहक भी बरकरार है… | सप्तरंगी प्रेम पर है नीरजा द्विदेदी जी की यह कविता- प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी और कहीं वह बात नहीं थी . सुन प्रियतम पदचाप सिहरकर कर्णपटों में सन-सन होती थी स्वेद बिन्दु झलकते मुख पर तीव्र हृदय की धडकन होती थी…….. प्रथम प्रणय की उष्मा |
जब कुछ लिखने का मन नहीं होता तब खोलता हूँ नम आँखों से डायरी का वो पन्ना गुलाब का महकना..समीर जी हमने तो आज दिल की डायरी का कोई भी पन्ना खोली ही नही!आप तो आज बाजी मार कर ले गये! | उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़मत भाग जलधि का ज्वार देखभर ले इसको निज आलिंगन में, लहरों को लगा वक्ष से अपने, भर ले शीतलता जीवन में।… -- -- कमाल की अभिव्चक्ति को जन्म दिया है, आपने! -- बहुत-बहुत बधाई! |
आवश्यकता है : एक रावण की ~~आवश्यकता है :एक रावण की योग्यता : मायावी होना, जो अगले साल - दशहरा पर्व तक फिर से खड़ा हो जाये………… तभी तो भारत का महान नेता बनेगा प्यारे! | इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं,---- कब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं!----- हम वहीं तर जाते हैं.....------भय के कारण पन्नों पर कुछ शब्द उभर आते हैं…. |
पहाड़ बदलना चाहते हैं१पहाड़ों को सदा ही रहा है भ्रम … पाँचों शब्द-चित्र देख लिए.. सभी बेहद खूबसूरत हैं। मगर क्या पता कब कौन बदल जाये? | हुई सुबह सूरज निकला , हुआ रथ पर सवार , धीमी गति से आगे बढ़ा , दोपहर में कुछ स्फूर्ति आई , फिर अस्ताचल को चला , हुई सुबह सूरज निकला |
मन में इन्द्रधनुष…………….बाहर हंसती हवा का एक झौंका बगल में गुच्छा लिये फूलों का मुस्कुराता खड़ा था ……….. ---- ---- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! --- --- आज इसी गुलदस्ते की जरूरत है! | जुगुप्सा की प्यास-------------नमक के बिना स्वाद नहीं आता खाने में , और जिंदगी में भी नमक होना ही चाहिए……. बिल्कुल सही बात! मीठा खाने से शुगर का रोग हो जाता है! |
बिना तर्क के.... ख्वाबों की दुनिया बिना 'शोर' के.... ज़िन्दगी का सफ़र बिना 'पड़ाव' के.... एक नया सवेरा बिना 'कोहरे' के.. मेरा अपना घर बिना 'दीवारों' के.... -- ---- जी हाँ! ---- अधूरा सा ही तो लगता है | और अन्त में-
अग्नि परीक्षा
जब कहा जलो, साबित करो निर्दोष मन.... और निर्मल तन तब बता जानकी, तुझको कैसा लगा.....? ……. |
रात भर जाग जाग कर काम करने के बाद सुबह सुबह चर्चामंच पर नयी रचनाएँ पढकर खुशी होती है.
जवाब देंहटाएंदुनिया में ह्रदय की संवेदनशीलता को बचाए रखने के लिए चर्चामंच सार्थक प्रयास है.
नए और पुराने ब्लॉगों का अच्छा मिश्रण किया है |बधाई और आभार
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत से पोस्ट पर जाने में सहायता मिली , आभार ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा ..... सभी ब्लोग्स की अच्छी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंcharcha acchee rahee........
जवाब देंहटाएंbadhaee aur aabhar
अच्छे लिंक्स, अच्छी चर्चा, बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा ... बहुत से लिंक्स मिले .. आभार
मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद ...
अच्छी चर्चा...
जवाब देंहटाएंsundar charcha!
जवाब देंहटाएंregards,
thanks for including me too!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बेहद सुन्दर रही……………अच्छे लिंक्स लगाये हैं।
जवाब देंहटाएंshastri ji ,
जवाब देंहटाएंaaj ki charcha ke liye aabhaar ..bahut achchhe links diye hain..saaptaahik charcha manch par apani rachna ko dekhna sukhad laga..shukriya
सुन्दर और लाजबाब चर्चा के लिए आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसारे लिंक और चयन लाजवाब।
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को इस मंच पर स्थान देकर सम्मानित करने के लिए आभार!
अच्छी रही चर्चा.आभार.
जवाब देंहटाएंकाश! कि हम कवि होते :(
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया चर्चा देख कर...आभार!
जवाब देंहटाएंye charcha manch yu hi mahakta rahe.
जवाब देंहटाएंsunder links sajte rahe.
aapki mahanat ko pranaam.