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मंगलवार, अक्टूबर 05, 2010

काव्य – मंच – 19 …..( साप्ताहिक )..चर्चा मंच - 297 (संगीता स्वरुप)

नमस्कार , लीजिए फिर एक बार हाज़िर हूँ आपके समक्ष मंगलवार की साप्ताहिक चर्चा ले कर , अलग अलग रंगों के और विभिन्न सुगंधों के फूलों से भरा यह गुलदस्ता आपको लुभाएगा ऐसी उम्मीद करती हूँ …हर बार इस उम्मीद से आपको नए लोगों का परिचय देती हूँ कि शायद आपको पसंद आये …चर्चा के दो दिन बाद हर उस लिंक पर जा कर देखती भी हूँ कि कोई वहाँ पहुंचा या नहीं …कुछ पाठक पहुंचते भी हैं  …उन समस्त पाठकों का आभार ….. चर्चा की सार्थकता पाठकों के हाथ में है …यदि कुछ त्रुटि होती हो तो अवश्य अवगत कराएं …यहाँ प्रस्तुत  प्रविष्टियों तक पहुँचने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं …कुछ रचनाकारों के ब्लॉग ताले से सुरक्षित हैं …वहाँ से कोई चित्र नहीं ले पाते …अत: उनकी रचना पर अपनी बुद्धि से चित्र लगा दिए हैं …आशा है आपको पसंद आयेंगे ….  ….तो शुरू करते हैं आज की चर्चा एक खूबसूरत और सन्देश देती गज़ल से …
My Photo तिलक राज कपूर जी रास्ते  की धूल   पर अयोध्या फैसले के बाद लाये हैं गज़ल




सांप्रदायिक  सद्भाव….
कभी न हुक्‍म में उसके इदारत कीजिये साहब
सदाकत से सदा उसकी इताअत कीजिये साहब।
इदारत- संपादन, एडीटरी
इताअत- आज्ञा-पालन, फ़र्माबरदारी, सेवा, खिदमत
न उसकी राह चलने में इनाअत कीजिये साहब
उसी के नाम पर, लेकिन इनाबत कीजिये साहब
इनाअत- विलंब, देर ढील, सुस्‍ती
इनाबत- ईश्‍वर की ओर फि़रना, बुरे कामों से अलग हो जाना, तौबा करना
My Photo नीरज गोस्वामी जी अपनी गज़ल में विरोधाभासों की स्थिति को ले कर आये हैं …
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वो
जिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिए
हर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए
शजर : पेड़

रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला
एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए

गौहर : मोती
images (21)
आनंद पाठक जी हँसते रहो हंसाते रहो पर  लाये हैं गज़ल 
लहरों के साथ .....
लहरों के साथ वो भी बहने लगे लहर में
ऐसे ही लोग क़ाबिल समझे गए सफ़र में
क्या गाँव ,क्या शहर सब,अब हो गए बराबर
आदर्श की मिनारें तब्दील खण्डहर में
दीवार पे लिखे जो नारों-सा मिट गए हैं
जो कुछ वज़ूद था भी वह मिट गया शहर में
My Photo अखिल जी अपने ब्लॉग … "कुछ शब्द सजाये हैं मैंने एक एक कर.... पर लाये हैं बहुत खूबसूरत गज़ल …वैसे हमेशा ही गज़ल बहुत अच्छी कहते हैं …

दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख..


दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख,
हमको भी एक बार ज़रा मुस्कुरा के देख.

किसी का होके देख या अपना बना के देख,
रोते हुए की आँख से आंसू चुरा के देख.
चाँद समझ कर जिसे निहार रहा है,
चाँद की परछाई है पानी हिला के देख.
मेरा फोटो

चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार

शीशमहल हैं शीशे के वो पत्थर के हैं द्वार ,
कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार
राधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे-
चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार
मेरी नजर ..... सुधीर  महाजन अपने ब्लॉग आगाज़ से  अपने शहर की सांझ दिखा रहे हैं ..
मेरे सूबे की सांझ

मेरे सूबे की साँझ
स्वर परिंदे
उतरे आसमाँ से
गीत संजा
मुखर हुए /
सुर्ख हुए मुख
यूँ  गोरी के
चाँद जेसे
चस्पा हुए /
 My Photo
संतोष कुमार जी ने मचान से बहुत अच्छी बात कही है …
लालच के बंधन को तोड़ो
अपना  तो  बस  यही  नारा   है
जो  मिला  हमें  वही  प्यारा  है
जो  नहीं  मिला   उसको  छोड़ो
लालच   के   बंधन   को  तोड़ो
जितना हो भाग्य  में मिलता है
मेहनत  का फूल भी खिलता है
बिन हवा शाख कब  हिलता है 
कोशिस करना तुम मत छोड़ो
लालच  के   बंधन   को  तोड़ो
 श्याम कोरी “ उदय “ जी की खासियत है कि वो सच बोलते हैं ….लोगों को कडुवा लगता है तो क्या करें …इस बार बहुत सशक्त रचना ले कर आये हैं ….धारदार व्यंग है ..ज़रा आप भी आनंद लीजिए ..






बन्दर तो हूँ मैं, पर गांधी नहीं हूँ
सच तो ये है, ये गांधी का वतन है
सुनता नहीं कोई, पढ़ता नहीं कोई
गांधी की राहों पे चलता नहीं कोई
सत्य-अहिंसा का पाठ पढाता तो हूँ मैं
पर, सत्य-अहिंसा का पुजारी नहीं हूँ
बन्दर तो हूँ मैं, पर गांधी नहीं हूँ !
 My Photo
मृदुला प्रधान अपनी रचना में यादों के पिटारे को समेटे हुए हैं

माज़ी के समानों में...

माज़ी के समानों में,
हमको भी
रखे रहना,
सीपी की डिब्बियों में,
हमको भी
रखे रहना.
बचपन
की किताबों पर
छापी हुई तितली में


 ज्योत्स्मा पांडे जी की गज़ल पढ़ कर एक बहुत पुराना गाना याद आगया …






रहते थे कभी जिनके दिल में
हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम
आज गुनाहगारों की तरह …..

अंगार की तरह...

दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.
जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह..
रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए
फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह.....


My Photo डा० वेद प्रकाश शर्मा जी साहित्य सर्जक  ब्लॉग पर   टूटे सपने   की बात बताते हुए कह रहे हैं कि कांच की तरह टूटे सपनों की बात मान क्यों नहीं लेते ….सुन्दर भावों से सजी नज़्म पढ़िए …

टूटे हुए सपनों को
आखिर कब तक कोशिश करोगे
जोड़ने की
मान क्योंन्ही लेते कि
स्वप्न ही तो थे वे
जो टूट गये ,
टूट कर बिखर गये
कांच के टुकड़ों की भांति



चखी है तुमने
यादें
इनके स्‍वाद को
जाना है
कभी
मीठी याद
गुदगुदाती है मन को
फिर कभी कड़वी भी हो जाती है
कुछ खट्टी भी
 मेरा फोटोअराधना चतुर्वेदी लायी हैं रुसी कवि की एक अनुवादित रचना ..
रूसी कवि "येव्गेनी येव्तुशेंको" की एक कविता

हे भगवान !
कितने झुक गए हैं स्त्री के कंधे
मेरी उँगलियाँ धँस जाती हैं
शरीर में उसके भूखे, नंगे
और आँखें उस अनजाने लिंग की
चमक उठीं
वह स्त्री है अंततः
यह जानकर धमक उठीं
मेरा फोटो
मुकेश तिवारी जी  कवितायन पर कह रहे हैं कि मैं क्या नाम दूँ ?

धरा, आकाश और वायु

कभी,
सोचता हूँ कि
तुम्हें कुछ और नाम दूँ
शायद धरा
लेकिन तुम जितना सह लेती हो
अनकहे रिश्तों का दर्द /
रीते मन में सालती हो टीस /
तुम धरा तो नही हो सकती
My Photo
   निशांत दीक्षित जी वक्त की शाख से पर नज़्म कह रहे हैं ..
बंजर निगाहें....
ख़्वाबों की ज़मीन पर
उफ़क़ तक जैसे
सूखा सा पड़ा है
कोई आमद नहीं
बस छोटे-छोटे टीले हैं
जैसे कब्रें यादों की
उनपर बैठा एक अकेला
मेरा साया ...
moon2
   इमरान अंसारी साहेब सारी रात बैठ कर क्या करते रहे हैं जानिये उनकी नज़्म में

मैं घरोंदे बनाता रहा रात भर

गीत कहीं कोई गुनगुनाता रहा,
मैं घरोंदे बनाता रहा रात भर
फूलों की खुशबू  आती रही,
एक कसक दिल को तड़पाती रही
चाँदनी बदन को महकाकर
कभी यहाँ कभी वहाँ मुस्कुराती रही
और रूठी हुई  चाँदनी को

बियाँबा मनाता रहा  रात भर
My Photo कैलाश चन्द्र शर्मा जी ईश्वर की चिन्ता कर रहे हैं …उनका भगवान कह रहा है कि 
मैं अपना घर ढूँढ रहा हूँ...
मन्दिर में भी मैं ही हूँ,
मस्जिद में भी मैं ही हूँ।
क्यों लड़ते हो मेरी खातिर,
हर इन्सां में मैं ही हूँ।
क्या नाम बदलने से मेरा,
अस्तित्व बदल जाता है।
कहो राम,रहीम या जीसस,
रस्ता तो मुझी तक आता है।
मेरा फोटो आशीष जी घने अंधियारे से निकल बाहर आने के प्रयास में हैं और करना चाहते हैं …
प्रायश्चित
अंतर्मन की गहराई में, बीते कल की परछाई में,
खुद को खोजना चाहता हूँ, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ
इतने काले अंधियारे हैं के अँधियारा शरमा जाए!
फैला इतना घनघोर तमस के, उजियारा घबरा जाए!
पापों के घने उस जंगल में, खुद को भटका सा पाता हूँ!
कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ!
My Photo

स्वराज्य करुण  आज की दुनिया से घबरा कर कह रहे हैं कि

गर्भाशय ही प्यारा है !
भ्रूण ने जब अलसायी-सी
आँखें अपनी खोली ,
गर्भाशय की दीवारों पर
प्रश्नों के अनगिन पोस्टर देखे !
दुनिया भर में इंसानों से
इंसानों की  दूरी बढ़ती
पर्वत जैसे वर्तमान पर
नफ़रत की विष-बेल है चढ़ती !

                                              
 My Photo डा० जे० पी० तिवारी जी प्रज्ञान- विज्ञान पर एक गहन चिंतन लाये हैं ..वह जानना चाहते हैं कि  बूंद बड़ी है या समुद्र  …..आप भी मंथन कीजिये
बड़ा कौन बूँद या समुद्र ?
आखिर
बड़ा है कौन?
जल की एक बूँद
या गहरा समुद्र?
यह प्रश्न
मथ रहा है
सदियों से,
संवेदनशील
मनीषा को.
उसकी संवेदना
उसकी प्रज्ञा को.
My Photo
राहुल रंजन इस बार लाये हैं क्षणिकाएँ…बस यूँ ही
चलते – फिरते

१) शाम की लालिमा ओढ़े विशाल व्योम को देखा,
रात को जलते बुझते जुगनू से कुछ  सपने,
अब आसमान छोटा  और सपने बड़े लगते हैं मुझे!


अनीता सिंह जी ज़ख्मों के निशाँ ढूँढते हुए कह उठी हैं  एक प्यारी सी गज़ल 
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ
मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां
तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां
तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए
उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ
तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे
इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ
 rajeev shrivastava रचनाकार पर पढ़िए राजीव श्रीवास्तव  की  कविताएँ … उनकी तीनों कविताएँ आज की सामाजिक ज्वलंत विषयों से जुडी हुई हैं …अत्यंत संवेदनशीलता से लिखी गयी रचनाएँ आपको भी पसंद आएँगी ..

एक किसान की मौत

खाली बर्तन ,खाली डिब्बों
को देखआज, किसान रोता है,
कोई सूखी रोटी ख़ाता,
कोई खाली पेट सो जाता है!

बाल मजदूर

बर्तनों के ढ़ेर के बीच,
बैठा एक अबोध बालक,
हाथों में साबुन की टिकिया,
अपने नन्हे नन्हे हाथो को
बर्तनों पे ज़ोर से फेरता
और खूब तेज़ी से घूमता
जैसे उन बर्तनों में तलाश रहा हो

अनचाही बच्ची

झाड़ियों के झुरमुट मैं पड़ी एक बच्ची लाचार ,
एक गोद पाने का कर रही इंतज़ार !
जननी उसे अपना नहीं सकी,और दिया फेंक ,
अंबर भी रो रहा उसकी ऐसी हालत देख



पहली बार आपके समक्ष इस ब्लॉग को ले कर आई हूँ….उम्मीद है आपको पसंद आएगा

वो मुझमे तेरा हिस्सा सा ..

पर पढिये रवि शंकर की नयी नज़्म
उस रात तुम्हारे आने का
उस रात
तुम्हारे आने का
इमकान हुआ था जब मुझको ....
मैंने झट से उफक की छत पर
टांगा था एक चाँद नया ,
और बादल के एक फाहे से
फिर आसमान को साफ़ किया
My Photo
राजेश चड्ढा जी अपनी गज़ल में गरीब के दर्द को उभार कर कह रहे हैं ..
बेवक़्त चेहरा झुर्रियों से भरने लगी है

पेट के आईनें में शक़्ल कुचलती है कई दफ़ा
परछाई पर भी ज़ुल्म , करने लगी है गरीबी तूं ।
चांद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
अब रूख़ी-सूख़ी चांदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
मेरा फोटो
वंदना गुप्ता जी मुहब्बत करने वालों को कह रही हैं  कि  इतिहास की बात और है ..किताबी बात है..इस पर एक  शेर अर्ज़ किया है ------


उम्मीद प्यार से नाराज़ रहा करती है
टीस जिगर से उठ एक राज़ कहा करती है
भले ही किसी ने ताजमहल  बनवाए  हों
मगर हर एक दिल में मुमताज रहा करती है :):)
 
"आज नहीं बनाये जाते मोहब्बत के मकबरे.
इश्क हुआ होगा कभी 
राँझा को हीर से 
मजनू को लैला से
फरहाद को शीरीं से 
जिन्होंने इश्क को 
इबादत बनाया 
खुदा से भी पहले 
जुबान पर
महबूब का नाम आया
My Photo
मनीष तिवारी जी की एक गज़ल है ..
अपने ख़्वाबों को

अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे
आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे


जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है
दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे
My Photo दीप्ती शर्मा अपने वजूद की तलाश में एक खूबसूरत सी नज़्म कह रही हैं …

बताऊँ मैं कैसे तुझे

वो लम्हें हमें हैं अब याद आते 
न भूले हैं जानम न भूल पाते
बताऊँ मैं कैसे तुझे ?
वो लहरों की कसती
वो फूलों की वादी
सितारों की झिलमिल
कहाँ खो गयी
बताऊँ मैं कैसे तुझे ? 
My Photo
भागीरथ कनकनी जी की  रचना बहुत कोमल     स्पर्श   का एहसास करती हुई सी है ….

शिशु के बदन पर माँ
के हाथ का ममतामयी स्पर्श
प्रणय बेला में नववधू
के हाथ का रोमांच भरा स्पर्श.
पेड़ो पर झूलती लताओं
का आलिंगनपूर्ण स्पर्श
My Photo सरिता जी अपनत्त्व पर लायी हैं आशा की किरण ….हर दु:ख  के बाद सुख आता है …..
पेड़ और पतझड़
हर पतझड़
तेज हवा मेरा
चीर हरण करती है
और सामने वाले
पेड़ की टहनी
हवा मे झूम
खूब आनंद लेती है
face change

वंदना शुक्ला जी चिंतन करते हुए बता रही हैं कि हर इंसान ने कितने लगा रखे हैं .
चेहरे

कितने चेहरे हैं
आदमी के पास
वक़्त के इस दौर में?
शायद उसे खुद नहीं पता!
बस बदलता रहता है ,
चेहरे पे चेहरा
मुखौटों की शक्ल में!
मेरा फोटो सत्येन  श्रीवास्तव जी  भाव प्रबोधनपर मन के भावों को बहुत खूबसूरती से लिख रहे हैं और बता रहे हैं कि उनको नहीं आती है
नींद
नींद मुझे कब आती है?
नयनों से दूर है उसका वास,
किंचित नहीं स्वप्निल आभास,
बस एक अकेला मन मेरा,
एक स्मृति जिसमे भरमाती है।

नींद मुझे कब आती है?
 मेरा फोटोचर्चा के आखिरी पड़ाव की ओर कदम बढाते हुए मैं लायी हूँ डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी के दोहे ….हर दोहा सन्देश देता हुआ ….प्रस्तुत  है ….
"पाँच दोहे"
(1)
मेघ अभी तक गगन में, खेल रहे हैं खेल। 
वर्षा के सन्ताप को, लोग रहे हैं झेल।।

(2)
कितना ही आगे बढ़े, मौसम का विज्ञान। 
लेकिन बन सकता नही, वो जग का भगवान।।

बाकी आप उनके ब्लॉग पर पढ़ें
 चर्चा का समापन करते हुए मैं आपको मिलवा रही हूँ केशव कर्ण की परी से … इतनी सुन्दर और साहित्यिक रचनाएँ कम ही मिलती हैं देखने और पढने को … आप भी पढ़ें    मनोज ब्लॉग पर……….

आयी हो तुम कौन परी..
रवि की प्रथम-रश्मि से सुरभित,
  जैसे तरुण-अरुण जलजात !
     परम रम्य विधु-वदन मनोहर,
    और सुकोमल सुन्दर गात !!
     ब्रह्मानंद सरिस हो तुम,
प्रति अंग पियूष-पराग भरी !
कल्प-लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी !
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….आशा करती हूँ कि आपको चर्चा पसंद आई होगी …आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का स्वागत है ….फिर मिलते हैं …अगले मंगलवार को कुछ नयी रचनाओं के साथ ..तब तक के लिए आज्ञा दीजिए …नमस्कार ………… संगीता स्वरुप

61 टिप्‍पणियां:

  1. सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है।
    हमारे ब्लॉग की रचना को शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!

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  2. घने अंधियारे से निकल बाहर आने के प्रयास...... वो भी काला चश्मा पहन के!
    हा हा हा.....
    संगीता माँ,
    नमस्ते!
    बहुत अच्छे से गूंथा है आपने तमाम फूलों को एक गुलदस्ते में!
    मसखरे को शामिल किया, धन्यवाद!
    सभी पाठकों को मेरा सन्देश: ज़िंदगी को सीर्यसली नहीं सिंसिअर्ली लीजिये...... खुश रहिये!
    आशीष

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  3. हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
    अच्छे लिंक्स ...
    आभार ..!

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. दिल की गहराइयों से तैयार किया है चर्चा मंच पर आपने कविताओं का यह गुलदस्ता. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई और आभार . इसमें शामिल सभी रचनाकारों की रचनाओं में अभिव्यक्ति का अपना -अपना अंदाज़ है. सब की रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है . आज के मंच पर आपके माध्यम से आए रचनाकार साथियों को भी बधाई और शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  6. दिल की गहराइयों से तैयार किया है चर्चा मंच पर आपने कविताओं का यह गुलदस्ता. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई और आभार . इसमें शामिल सभी रचनाकारों की रचनाओं में अभिव्यक्ति का अपना -अपना अंदाज़ है. सब की रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है . आज के मंच पर आपके माध्यम से आए रचनाकार साथियों को भी बधाई और शुभकामनाएं .

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  7. उत्तम चर्चा मंच है, नीरज जी जैसों का लिंक भी कई बार छूट जाता है तो मैंन यहीं से उसे पाया है। आपको बधाई।

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  8. संगीता स्वरूप जी!
    आपने बहुत ही सुन्दर लिंकों के साथ
    चर्चामंच का यह साप्ताहिक काव्यमंच-19 सजाया है!
    --
    आभार!

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  9. हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
    अच्छे लिंक्स ...
    आभार ..!

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  10. या खुदा! फिर नयी नयी लिंक्स ! अभी तो पिछले वाले ब्लोग्स भी पूरे नहीं पढ़ पाए है !

    उपरी नज़र में तो ज्यादातर खासे अच्छे लग रहे है, कोशिश रहेगी की सबको पढ़ा जा सके ...

    बढ़िया संकलन... जारी रखिये ...

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  11. संगीता जी
    सादर नमस्कार
    आपकी यह चर्चा बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय है, निसंदेह आपने जिस ढंग से चर्चा की है तथा जिन पोस्टों का समावेश किया है काबिले-तारीफ़ है ... एक पल को तो मुझे ऎसा लगा कि मैं किसी मासिक पत्रिका के पेज पलटते जा रहा हूं, बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं !
    आभार
    श्याम कोरी 'उदय'

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  12. बहुत सुन्दर चर्चा संगीता जी, मजा आ गया पढ़कर ! पता नहीं क्यों कल से मेरे कंप्यूटर पर चिट्ठाजगत की साईट नहीं खुल रही, अत: अपने ब्लॉग के मार्फ़त आपकी इस चर्चा से बहुत कुछ मिल गया पढ़ने को ! बहुत बहुत आभार !

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  13. संगीता जी,

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, जो लिंक रह जाते हैं उन्‍हें पढ़ने का माध्‍यम आप हो जाती हैं,आभारी हूं जो आपने ''स्‍वाद यादों का '' को भी यह चर्चा मंच में शामिल किया, बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  14. बहुत शानदार चर्चा ...
    अच्छे लिंक्स ...आभार ..!

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  15. बहुत ही अच्छे लिनक्स मिले कई लिनक्स पर जाना अभी बाकि है ! बहुत ही सुंदर है आज की भी चर्चा !
    इतनी सुंदर रचनाओं से अवगत कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
    मेरी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद !

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  16. सुन्दर सजाई है चर्चा आपने , अच्छे लिंक मिले . आभार .

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  17. ....एक से बढ कर एक सुंदर कृति....मन प्रसन्न हो गया!...संकलन प्रशंसनीय है, बधाई!

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  18. बहुत दिन बाद आया मम्मा ..पर हर बार की तरह सरे लिंक्स नहीं खोल पाया कुछ पर ही जा पाया ..लेकिन जहां गया स्तरीय रचनाएँ पढ़ने को मिलीं ...

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  19. संगीता स्वरुप जी!
    आपको हार्दिक धन्यवाद!
    सदैव की भांति सुदर व स्तरीय रचनाओं का संकलन....
    आभार!

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  20. बेहद खूबसूरत और काफ़ी नये लिंक्स के साथ एक बेहतरीन चर्चा की है……………ज्यादातर लिंक्स पढ लिये हैं………………मेहनत साफ़ झलकती है……………आभार्।

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  21. चिठ्ठाजगत की अनुपस्थिति में आपकी चर्चा ने बेहतरीन काम किया है ..काफी सारी जगह जाना बाकी है.
    मेहनत से की गई चर्चा है .
    बहुत बहुत आभार .

    जवाब देंहटाएं
  22. अलग अलग रंग और खुशबू के फूलों से बनाया इतना सुन्दर गुलदस्ता आपके अथक परिश्रम को इंगित करता है..इतनी सुन्दर रचनाओं से एक साथ परिचित कराने के लिए बहुत बधाई...
    मेरी रचना मैं अपना घर ढूंढ रहा हूँ को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद .....आभार...

    जवाब देंहटाएं
  23. हमेशा की तरह शानदार ...मन प्रसन्न हो गया... मेरी रचना को शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।

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  24. हमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा

    मेरे ब्लॉग की रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने को आभार

    जवाब देंहटाएं
  25. अलग अलग रंग और खुशबू के फूलों से बनाया इतना सुन्दर गुलदस्ता आपके अथक परिश्रम को इंगित करता है..इतनी सुन्दर रचनाओं से एक साथ परिचित कराने के लिए बहुत बधाई...
    मेरी रचना मैं अपना घर ढूंढ रहा हूँ को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद .....आभार...

    जवाब देंहटाएं
  26. संगीता जी,

    एक सराहनीय प्रयास .........इसके पीछे आपने बहुत मेहनत की है........उसके लिए आपको सलाम .............मेरे ब्लॉग को चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं
  27. आपका ये प्रयास स्तुत्य है...काव्य प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं जहाँ हम सब को अपनी पसंद की रचनाओं की जानकारी एक ही जगह पर उपलब्ध हो जाती है...
    आपके इस प्रयास की जितनी सराहना की जाए कम है...

    नीरज

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  28. आज संभवतः सब पढ़ पाउँगा :)
    अभी तो ऐसा ही लगता है...

    जवाब देंहटाएं
  29. संगीता जी बहुत अच्छी चर्चा रही ... बहुत अच्छे लिंक्स.. बधाई स्वीकारें ..

    जवाब देंहटाएं
  30. संगीता जी,
    सादर नमस्कार!
    हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
    अच्छे लिंक्स ...सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है। हमारे ब्लॉग शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  31. संगीता स्वरूप जी, नमस्ते!

    बेहतरीन चर्चा, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  32. चिट्ठाजगत की अनुपस्थिति में सुन्दर चिट्ठों तक पहुँच नहीं पाया था. आपकी चर्चा ने एक साथ लिंक्स दे दिये... एक एक कर पहुँच रहा हूँ. मैं तो सदा ही आपकी मेहनत और सूक्ष्म दृष्टि का कायल रहा हूँ
    बहुत सुन्दर चर्चा.

    जवाब देंहटाएं
  33. सुंदर कलेवर और बेहतरीन संकलन...बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  34. sngeetaji itna bhar chdhya hai kase utrega
    hridy ko gahraiyon se aabhari hoon kripya swikar krlen
    jin mitron ne mere blog pr aakr mujh pr kripa kee hai un sbhi ke liye bhi main hridy se aabhari hoon
    aabhar shit
    dr.ved vyathit
    dr.vedvyathit@gmail.com

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  35. वाह ! इस बार की चर्चा में कुछ नए और कुछ पुराने ब्लॉगों का संगम है. हम तक ये लिंक पहुंचाने के लिए आभार !

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  36. sanjeeta ji
    aap ka prayash sharaniye hai.aap ki mehnat najar aati hai.ek manch par sab ko le kar aana tareefe kabil hai--dhanyawad

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  37. Sabse pahle to sangeeta di ko naman aur dhanyavad jinhone is nausikhiye ki kalam ko aapke samne rakha... Bahut hi achchhe links ka collection mila yahan.. Charchamanch se jude sabhi sudhi janon ko sadhuvad

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  38. शानदार लिंक्स मिले ख़ूबसूरत रचनाएं मिलीं. बधाई आभार.

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  39. आ० संगीता जी
    मेरी ग़ज़ल "लहरों के साथ वो भी...." का इस मंच पर चर्चा हेतु धन्यवाद
    आप के पाठकों एवं अन्य चर्चाकारों को उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और इस आशा से कि भविष्य में भी आप लोगों का प्यार यूँ ही मिलता रहेगा
    सादर
    आनन्द.पाठक

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  40. अच्छे अच्छे लिंक्स तक हमें पहुचाने के लिए धन्यवाद...कुछ तक पहुँच चुकी हूँ...कुछ अभी बाकी हैं. हमेशा की तरह आपकी मेहनत दर्शाती उम्दा चर्चा.

    बधाई.

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  41. एक से बढ़ कर एक बढ़िया पोस्ट...सुंदर चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद संगीता जी

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  42. संगीता जी,

    चिट्ठाजगत की अनुपस्थिती के बावजूद भी इतने सारे और सभी खूबसूरत लिंक्स को ढूंढने में की गई आपकी मेहनत साफ झलकती है।

    मुझे चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया। आज ही प्रवास पर पुणे पहुँचा हूँ। यह लिंक्स तो अभी रात होटल पहुँचने के बाद देखूंगा।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  43. सादर अभिवादन!
    RACHNA KO CHARCHA MANCH ME STHAN DENE K LIYE SHUKRIYA !
    SUDHI PATHAKO K LIYE HAR MOOD KI RACHNAO KA SANKLAN UMDA HAI !
    शुभकामनाएं!

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  44. हमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा

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  45. सारे लिंक यहीं से देखे...धन्यवाद आपका.

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  46. बहुत शानदार चर्चा
    अच्छे लिंक्स ...

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  47. हमेशा की तरह शानदार चर्चा ... अच्छे लिंक्स ...

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  48. अध्भुत चर्चा-मंच है ये....यहां आकर अच्छा लगा...नियमित रहने का प्रयास रहेगा...मेरे ब्लॉग की रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने का शुक्रिया.

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  49. संगीता जी,
    मैंने पहली बार आपके इस मंच का रसास्वादन किया एवं मैं आपके इस प्रयास की हार्दिक सराहना करता हूँ. विशेष रूप इसलिए कि आप नए नए लोगों को ढून्ढ कर लाती हैं और उन्हें यहाँ स्थान देती है. आप ने मुझे चर्चा योग्य समझा, अतः आपका यथोचित धन्यवाद् . मैंने आपके दूसरी चर्चाएं भी देंखीं और वे भी सराहना के योग्य हैं.

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  50. संगीता जी,
    मैंने पहली बार आपके इस मंच का रसास्वादन किया एवं मैं आपके इस प्रयास की हार्दिक सराहना करता हूँ. विशेष रूप इसलिए कि आप नए नए लोगों को ढून्ढ कर लाती हैं और उन्हें यहाँ स्थान देती है. आप ने मुझे चर्चा योग्य समझा, अतः आपका यथोचित धन्यवाद् . मैंने आपके दूसरी चर्चाएं भी देंखीं और वे भी सराहना के योग्य हैं.

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  51. with many attractive links very good elaboration and discussion . congratulation Sangeeta swaroopJi..

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  52. मुझे अपने चर्चा मंच में शामिल करने लिए आप का धन्यवाद .....


    अंक बहुत अच्छा लगा। आप के इस अंकसे ढेर सारे लिंक मिले जिन्हें पढ़ने का सौभाग्य मिला धन्यवाद

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