नमस्कार , लीजिए फिर एक बार हाज़िर हूँ आपके समक्ष मंगलवार की साप्ताहिक चर्चा ले कर , अलग अलग रंगों के और विभिन्न सुगंधों के फूलों से भरा यह गुलदस्ता आपको लुभाएगा ऐसी उम्मीद करती हूँ …हर बार इस उम्मीद से आपको नए लोगों का परिचय देती हूँ कि शायद आपको पसंद आये …चर्चा के दो दिन बाद हर उस लिंक पर जा कर देखती भी हूँ कि कोई वहाँ पहुंचा या नहीं …कुछ पाठक पहुंचते भी हैं …उन समस्त पाठकों का आभार ….. चर्चा की सार्थकता पाठकों के हाथ में है …यदि कुछ त्रुटि होती हो तो अवश्य अवगत कराएं …यहाँ प्रस्तुत प्रविष्टियों तक पहुँचने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं …कुछ रचनाकारों के ब्लॉग ताले से सुरक्षित हैं …वहाँ से कोई चित्र नहीं ले पाते …अत: उनकी रचना पर अपनी बुद्धि से चित्र लगा दिए हैं …आशा है आपको पसंद आयेंगे …. ….तो शुरू करते हैं आज की चर्चा एक खूबसूरत और सन्देश देती गज़ल से … |
कभी न हुक्म में उसके इदारत कीजिये साहब सदाकत से सदा उसकी इताअत कीजिये साहब। इदारत- संपादन, एडीटरी इताअत- आज्ञा-पालन, फ़र्माबरदारी, सेवा, खिदमत न उसकी राह चलने में इनाअत कीजिये साहब उसी के नाम पर, लेकिन इनाबत कीजिये साहब इनाअत- विलंब, देर ढील, सुस्ती इनाबत- ईश्वर की ओर फि़रना, बुरे कामों से अलग हो जाना, तौबा करना |
गुल हमेशा चाहता हमसे रहा बदले में वोजिस शजर ने डालियों पर देखिए फल भर दिएहर बशर ने आते - जाते उसको बस पत्थर दिए शजर : पेड़ रब की नज़रों में सभी इक हैं तो उसने क्यों भला एक को पत्थर दिए और एक को गौहर दिए गौहर : मोती |
![]() आनंद पाठक जी हँसते रहो हंसाते रहो पर लाये हैं गज़ल लहरों के साथ .....लहरों के साथ वो भी बहने लगे लहर मेंऐसे ही लोग क़ाबिल समझे गए सफ़र में क्या गाँव ,क्या शहर सब,अब हो गए बराबर आदर्श की मिनारें तब्दील खण्डहर में दीवार पे लिखे जो नारों-सा मिट गए हैं जो कुछ वज़ूद था भी वह मिट गया शहर में | ![]() दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख..दुनिया से थोड़ी देर को नज़रें चुरा के देख, हमको भी एक बार ज़रा मुस्कुरा के देख. किसी का होके देख या अपना बना के देख, रोते हुए की आँख से आंसू चुरा के देख. चाँद समझ कर जिसे निहार रहा है, चाँद की परछाई है पानी हिला के देख. |
![]() चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यारशीशमहल हैं शीशे के वो पत्थर के हैं द्वार , कैसे - कैसे लोग बसे हैं महानगर में यार राधा द्वारे राह निहारे, फिर भी मोहन प्यारे- चकला - चकला घूम रहे ढूंढ रहे हैं प्यार |
![]() मेरे सूबे की सांझ मेरे सूबे की साँझ स्वर परिंदे उतरे आसमाँ से गीत संजा मुखर हुए / सुर्ख हुए मुख यूँ गोरी के चाँद जेसे चस्पा हुए / | ![]() संतोष कुमार जी ने मचान से बहुत अच्छी बात कही है … लालच के बंधन को तोड़ोअपना तो बस यही नारा हैजो मिला हमें वही प्यारा है जो नहीं मिला उसको छोड़ो लालच के बंधन को तोड़ो जितना हो भाग्य में मिलता है मेहनत का फूल भी खिलता है बिन हवा शाख कब हिलता है कोशिस करना तुम मत छोड़ो लालच के बंधन को तोड़ो |
बन्दर तो हूँ मैं, पर गांधी नहीं हूँसच तो ये है, ये गांधी का वतन है सुनता नहीं कोई, पढ़ता नहीं कोई गांधी की राहों पे चलता नहीं कोई सत्य-अहिंसा का पाठ पढाता तो हूँ मैं पर, सत्य-अहिंसा का पुजारी नहीं हूँ बन्दर तो हूँ मैं, पर गांधी नहीं हूँ ! |
![]() मृदुला प्रधान अपनी रचना में यादों के पिटारे को समेटे हुए हैं माज़ी के समानों में...माज़ी के समानों में,हमको भी रखे रहना, सीपी की डिब्बियों में, हमको भी रखे रहना. बचपन की किताबों पर छापी हुई तितली में | ![]() रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनाहगारों की तरह ….. अंगार की तरह...दिल में रहा करते थे पहले प्यार की तरह.जेहन में पड़ गए हो अब दरार की तरह.. रिश्तों के फ़र्ज़ तुमसे निभाए नहीं गए फैलाए रहे हाथ इक हक़दार की तरह..... |
![]() टूटे हुए सपनों को आखिर कब तक कोशिश करोगे जोड़ने की मान क्योंन्ही लेते कि स्वप्न ही तो थे वे जो टूट गये , टूट कर बिखर गये कांच के टुकड़ों की भांति |
![]() चखी है तुमने यादें इनके स्वाद को जाना है कभी मीठी याद गुदगुदाती है मन को फिर कभी कड़वी भी हो जाती है कुछ खट्टी भी | ![]() रूसी कवि "येव्गेनी येव्तुशेंको" की एक कविता हे भगवान ! कितने झुक गए हैं स्त्री के कंधे मेरी उँगलियाँ धँस जाती हैं शरीर में उसके भूखे, नंगे और आँखें उस अनजाने लिंग की चमक उठीं वह स्त्री है अंततः यह जानकर धमक उठीं |
मुकेश तिवारी जी कवितायन पर कह रहे हैं कि मैं क्या नाम दूँ ? धरा, आकाश और वायुकभी, सोचता हूँ कि तुम्हें कुछ और नाम दूँ शायद धरा लेकिन तुम जितना सह लेती हो अनकहे रिश्तों का दर्द / रीते मन में सालती हो टीस / तुम धरा तो नही हो सकती |
निशांत दीक्षित जी वक्त की शाख से पर नज़्म कह रहे हैं .. बंजर निगाहें....ख़्वाबों की ज़मीन पर उफ़क़ तक जैसे सूखा सा पड़ा है कोई आमद नहीं बस छोटे-छोटे टीले हैं जैसे कब्रें यादों की उनपर बैठा एक अकेला मेरा साया ... | ![]() इमरान अंसारी साहेब सारी रात बैठ कर क्या करते रहे हैं जानिये उनकी नज़्म में मैं घरोंदे बनाता रहा रात भरगीत कहीं कोई गुनगुनाता रहा, मैं घरोंदे बनाता रहा रात भर फूलों की खुशबू आती रही, एक कसक दिल को तड़पाती रही चाँदनी बदन को महकाकर कभी यहाँ कभी वहाँ मुस्कुराती रही और रूठी हुई चाँदनी को बियाँबा मनाता रहा रात भर |
मैं अपना घर ढूँढ रहा हूँ...मन्दिर में भी मैं ही हूँ,मस्जिद में भी मैं ही हूँ। क्यों लड़ते हो मेरी खातिर, हर इन्सां में मैं ही हूँ। क्या नाम बदलने से मेरा, अस्तित्व बदल जाता है। कहो राम,रहीम या जीसस, रस्ता तो मुझी तक आता है। |
![]() प्रायश्चितअंतर्मन की गहराई में, बीते कल की परछाई में,खुद को खोजना चाहता हूँ, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ इतने काले अंधियारे हैं के अँधियारा शरमा जाए! फैला इतना घनघोर तमस के, उजियारा घबरा जाए! पापों के घने उस जंगल में, खुद को भटका सा पाता हूँ! कितना भी खोजना चाहूँ मैं, पर ढूंढ नहीं मैं पाता हूँ! | स्वराज्य करुण आज की दुनिया से घबरा कर कह रहे हैं कि गर्भाशय ही प्यारा है !भ्रूण ने जब अलसायी-सी आँखें अपनी खोली , गर्भाशय की दीवारों पर प्रश्नों के अनगिन पोस्टर देखे ! दुनिया भर में इंसानों से इंसानों की दूरी बढ़ती पर्वत जैसे वर्तमान पर नफ़रत की विष-बेल है चढ़ती ! |
![]() बड़ा कौन बूँद या समुद्र ?आखिरबड़ा है कौन? जल की एक बूँद या गहरा समुद्र? यह प्रश्न मथ रहा है सदियों से, संवेदनशील मनीषा को. उसकी संवेदना उसकी प्रज्ञा को. |
![]() राहुल रंजन इस बार लाये हैं क्षणिकाएँ…बस यूँ ही चलते – फिरते १) शाम की लालिमा ओढ़े विशाल व्योम को देखा, रात को जलते बुझते जुगनू से कुछ सपने, अब आसमान छोटा और सपने बड़े लगते हैं मुझे! | अनीता सिंह जी ज़ख्मों के निशाँ ढूँढते हुए कह उठी हैं एक प्यारी सी गज़ल उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ मेरे जख्मो के जो मिल जाते निशां तन्हा होती मै न जिंदगी होती वीरां तेज आंधियों ने जो बुझाये है दिए उन चरागों से क्यों उठता है धुआँ तुम गर तोड़ दोगे यूँ आईने मेरे इन टूटी तस्वीरों को मै देदुंगी जुबाँ |
![]() एक किसान की मौतखाली बर्तन ,खाली डिब्बोंको देखआज, किसान रोता है, कोई सूखी रोटी ख़ाता, कोई खाली पेट सो जाता है! बाल मजदूरबर्तनों के ढ़ेर के बीच, बैठा एक अबोध बालक, हाथों में साबुन की टिकिया, अपने नन्हे नन्हे हाथो को बर्तनों पे ज़ोर से फेरता और खूब तेज़ी से घूमता जैसे उन बर्तनों में तलाश रहा हो अनचाही बच्चीझाड़ियों के झुरमुट मैं पड़ी एक बच्ची लाचार , एक गोद पाने का कर रही इंतज़ार ! जननी उसे अपना नहीं सकी,और दिया फेंक , अंबर भी रो रहा उसकी ऐसी हालत देख |
![]() पहली बार आपके समक्ष इस ब्लॉग को ले कर आई हूँ….उम्मीद है आपको पसंद आएगा वो मुझमे तेरा हिस्सा सा ..पर पढिये रवि शंकर की नयी नज़्म उस रात तुम्हारे आने काउस रात तुम्हारे आने का इमकान हुआ था जब मुझको .... मैंने झट से उफक की छत पर टांगा था एक चाँद नया , और बादल के एक फाहे से फिर आसमान को साफ़ किया | ![]() राजेश चड्ढा जी अपनी गज़ल में गरीब के दर्द को उभार कर कह रहे हैं .. बेवक़्त चेहरा झुर्रियों से भरने लगी हैपेट के आईनें में शक़्ल कुचलती है कई दफ़ा परछाई पर भी ज़ुल्म , करने लगी है गरीबी तूं । चांद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है अब रूख़ी-सूख़ी चांदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं । |
![]() वंदना गुप्ता जी मुहब्बत करने वालों को कह रही हैं कि इतिहास की बात और है ..किताबी बात है..इस पर एक शेर अर्ज़ किया है ------ उम्मीद प्यार से नाराज़ रहा करती है टीस जिगर से उठ एक राज़ कहा करती है भले ही किसी ने ताजमहल बनवाए हों मगर हर एक दिल में मुमताज रहा करती है :):) "आज नहीं बनाये जाते मोहब्बत के मकबरे.इश्क हुआ होगा कभी राँझा को हीर से मजनू को लैला से फरहाद को शीरीं से जिन्होंने इश्क को इबादत बनाया खुदा से भी पहले जुबान पर महबूब का नाम आया |
![]() मनीष तिवारी जी की एक गज़ल है .. अपने ख़्वाबों को अपने ख़्वाबों को जलाऊं तो जलाऊं कैसे आग जो दिल में सुलगती है बुझाऊं कैसे जख्म जो भी मिले मुझको, मेरे दिल में है दिल में गर तू ही नहीं, तो फिर दिखाऊं कैसे | ![]() बताऊँ मैं कैसे तुझेवो लम्हें हमें हैं अब याद आते न भूले हैं जानम न भूल पाते बताऊँ मैं कैसे तुझे ? वो लहरों की कसती वो फूलों की वादी सितारों की झिलमिल कहाँ खो गयी बताऊँ मैं कैसे तुझे ? |
भागीरथ कनकनी जी की रचना बहुत कोमल स्पर्श का एहसास करती हुई सी है …. शिशु के बदन पर माँ के हाथ का ममतामयी स्पर्श प्रणय बेला में नववधू के हाथ का रोमांच भरा स्पर्श. पेड़ो पर झूलती लताओं का आलिंगनपूर्ण स्पर्श |
पेड़ और पतझड़हर पतझड़तेज हवा मेरा चीर हरण करती है और सामने वाले पेड़ की टहनी हवा मे झूम खूब आनंद लेती है |
![]() वंदना शुक्ला जी चिंतन करते हुए बता रही हैं कि हर इंसान ने कितने लगा रखे हैं . चेहरे कितने चेहरे हैं आदमी के पास वक़्त के इस दौर में? शायद उसे खुद नहीं पता! बस बदलता रहता है , चेहरे पे चेहरा मुखौटों की शक्ल में! | ![]() नींदनींद मुझे कब आती है?नयनों से दूर है उसका वास, किंचित नहीं स्वप्निल आभास, बस एक अकेला मन मेरा, एक स्मृति जिसमे भरमाती है। नींद मुझे कब आती है? |
![]() "पाँच दोहे"(1)मेघ अभी तक गगन में, खेल रहे हैं खेल। वर्षा के सन्ताप को, लोग रहे हैं झेल।। (2) कितना ही आगे बढ़े, मौसम का विज्ञान। लेकिन बन सकता नही, वो जग का भगवान।। बाकी आप उनके ब्लॉग पर पढ़ें |
आयी हो तुम कौन परी..रवि की प्रथम-रश्मि से सुरभित,परम रम्य विधु-वदन मनोहर, और सुकोमल सुन्दर गात !! ब्रह्मानंद सरिस हो तुम, प्रति अंग पियूष-पराग भरी ! कल्प-लोक से उतर धरा पर, आयी हो तुम कौन परी ! |
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….आशा करती हूँ कि आपको चर्चा पसंद आई होगी …आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का स्वागत है ….फिर मिलते हैं …अगले मंगलवार को कुछ नयी रचनाओं के साथ ..तब तक के लिए आज्ञा दीजिए …नमस्कार ………… संगीता स्वरुप |
सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है।
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग की रचना को शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
योगदान!, सत्येन्द्र झा की लघुकथा, “मनोज” पर, पढिए!
घने अंधियारे से निकल बाहर आने के प्रयास...... वो भी काला चश्मा पहन के!
ReplyDeleteहा हा हा.....
संगीता माँ,
नमस्ते!
बहुत अच्छे से गूंथा है आपने तमाम फूलों को एक गुलदस्ते में!
मसखरे को शामिल किया, धन्यवाद!
सभी पाठकों को मेरा सन्देश: ज़िंदगी को सीर्यसली नहीं सिंसिअर्ली लीजिये...... खुश रहिये!
आशीष
हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स ...
आभार ..!
charcha badhiya hai!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से तैयार किया है चर्चा मंच पर आपने कविताओं का यह गुलदस्ता. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई और आभार . इसमें शामिल सभी रचनाकारों की रचनाओं में अभिव्यक्ति का अपना -अपना अंदाज़ है. सब की रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है . आज के मंच पर आपके माध्यम से आए रचनाकार साथियों को भी बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से तैयार किया है चर्चा मंच पर आपने कविताओं का यह गुलदस्ता. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई और आभार . इसमें शामिल सभी रचनाकारों की रचनाओं में अभिव्यक्ति का अपना -अपना अंदाज़ है. सब की रचनाएँ एक से बढ़ कर एक है . आज के मंच पर आपके माध्यम से आए रचनाकार साथियों को भी बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteek hi jagha itne guni lekhako ko padhkar achha laga
ReplyDeletekeep it up
उत्तम चर्चा मंच है, नीरज जी जैसों का लिंक भी कई बार छूट जाता है तो मैंन यहीं से उसे पाया है। आपको बधाई।
ReplyDeleteसंगीता स्वरूप जी!
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुन्दर लिंकों के साथ
चर्चामंच का यह साप्ताहिक काव्यमंच-19 सजाया है!
--
आभार!
हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स ...
आभार ..!
या खुदा! फिर नयी नयी लिंक्स ! अभी तो पिछले वाले ब्लोग्स भी पूरे नहीं पढ़ पाए है !
ReplyDeleteउपरी नज़र में तो ज्यादातर खासे अच्छे लग रहे है, कोशिश रहेगी की सबको पढ़ा जा सके ...
बढ़िया संकलन... जारी रखिये ...
Aabhar !
ReplyDeleteबहोत ही अच्छी चर्चा रही
ReplyDeleteआभार
bahut badhiyaa
ReplyDeleteसंगीता जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार
आपकी यह चर्चा बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय है, निसंदेह आपने जिस ढंग से चर्चा की है तथा जिन पोस्टों का समावेश किया है काबिले-तारीफ़ है ... एक पल को तो मुझे ऎसा लगा कि मैं किसी मासिक पत्रिका के पेज पलटते जा रहा हूं, बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं !
आभार
श्याम कोरी 'उदय'
बहुत सुन्दर चर्चा संगीता जी, मजा आ गया पढ़कर ! पता नहीं क्यों कल से मेरे कंप्यूटर पर चिट्ठाजगत की साईट नहीं खुल रही, अत: अपने ब्लॉग के मार्फ़त आपकी इस चर्चा से बहुत कुछ मिल गया पढ़ने को ! बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, जो लिंक रह जाते हैं उन्हें पढ़ने का माध्यम आप हो जाती हैं,आभारी हूं जो आपने ''स्वाद यादों का '' को भी यह चर्चा मंच में शामिल किया, बधाई के साथ शुभकामनायें ।
बहुत शानदार चर्चा ...
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स ...आभार ..!
बहुत ही अच्छे लिनक्स मिले कई लिनक्स पर जाना अभी बाकि है ! बहुत ही सुंदर है आज की भी चर्चा !
ReplyDeleteइतनी सुंदर रचनाओं से अवगत कराने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
मेरी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद !
सुन्दर सजाई है चर्चा आपने , अच्छे लिंक मिले . आभार .
ReplyDelete....एक से बढ कर एक सुंदर कृति....मन प्रसन्न हो गया!...संकलन प्रशंसनीय है, बधाई!
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आया मम्मा ..पर हर बार की तरह सरे लिंक्स नहीं खोल पाया कुछ पर ही जा पाया ..लेकिन जहां गया स्तरीय रचनाएँ पढ़ने को मिलीं ...
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी!
ReplyDeleteआपको हार्दिक धन्यवाद!
सदैव की भांति सुदर व स्तरीय रचनाओं का संकलन....
आभार!
बेहद खूबसूरत और काफ़ी नये लिंक्स के साथ एक बेहतरीन चर्चा की है……………ज्यादातर लिंक्स पढ लिये हैं………………मेहनत साफ़ झलकती है……………आभार्।
ReplyDeleteचिठ्ठाजगत की अनुपस्थिति में आपकी चर्चा ने बेहतरीन काम किया है ..काफी सारी जगह जाना बाकी है.
ReplyDeleteमेहनत से की गई चर्चा है .
बहुत बहुत आभार .
अलग अलग रंग और खुशबू के फूलों से बनाया इतना सुन्दर गुलदस्ता आपके अथक परिश्रम को इंगित करता है..इतनी सुन्दर रचनाओं से एक साथ परिचित कराने के लिए बहुत बधाई...
ReplyDeleteमेरी रचना मैं अपना घर ढूंढ रहा हूँ को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद .....आभार...
हमेशा की तरह शानदार ...मन प्रसन्न हो गया... मेरी रचना को शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने को आभार
अलग अलग रंग और खुशबू के फूलों से बनाया इतना सुन्दर गुलदस्ता आपके अथक परिश्रम को इंगित करता है..इतनी सुन्दर रचनाओं से एक साथ परिचित कराने के लिए बहुत बधाई...
ReplyDeleteमेरी रचना मैं अपना घर ढूंढ रहा हूँ को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद .....आभार...
संगीता जी,
ReplyDeleteएक सराहनीय प्रयास .........इसके पीछे आपने बहुत मेहनत की है........उसके लिए आपको सलाम .............मेरे ब्लॉग को चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया |
आपका ये प्रयास स्तुत्य है...काव्य प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं जहाँ हम सब को अपनी पसंद की रचनाओं की जानकारी एक ही जगह पर उपलब्ध हो जाती है...
ReplyDeleteआपके इस प्रयास की जितनी सराहना की जाए कम है...
नीरज
आज संभवतः सब पढ़ पाउँगा :)
ReplyDeleteअभी तो ऐसा ही लगता है...
संगीता जी बहुत अच्छी चर्चा रही ... बहुत अच्छे लिंक्स.. बधाई स्वीकारें ..
ReplyDeleteapka ashirvad hi hmara pathey hoga yaha bhi aye aur apne vichar de
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteसादर नमस्कार!
हमेशा की तरह बहुत शानदार चर्चा ...
अच्छे लिंक्स ...सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा। ढेर सारे ऐसे लिंक मिले जहां तक जाना नहीं हुआ था। अब जाऊंगा। इसमें आपकी मेहनत और चयन कौशल परिलक्षित है। हमारे ब्लॉग शामिल कर हमारा मनोबल बढाने के लिए आभार।
संगीता स्वरूप जी, नमस्ते!
ReplyDeleteबेहतरीन चर्चा, आभार!
चिट्ठाजगत की अनुपस्थिति में सुन्दर चिट्ठों तक पहुँच नहीं पाया था. आपकी चर्चा ने एक साथ लिंक्स दे दिये... एक एक कर पहुँच रहा हूँ. मैं तो सदा ही आपकी मेहनत और सूक्ष्म दृष्टि का कायल रहा हूँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा.
सुंदर कलेवर और बेहतरीन संकलन...बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeletesngeetaji itna bhar chdhya hai kase utrega
ReplyDeletehridy ko gahraiyon se aabhari hoon kripya swikar krlen
jin mitron ne mere blog pr aakr mujh pr kripa kee hai un sbhi ke liye bhi main hridy se aabhari hoon
aabhar shit
dr.ved vyathit
dr.vedvyathit@gmail.com
वाह ! इस बार की चर्चा में कुछ नए और कुछ पुराने ब्लॉगों का संगम है. हम तक ये लिंक पहुंचाने के लिए आभार !
ReplyDeletesanjeeta ji
ReplyDeleteaap ka prayash sharaniye hai.aap ki mehnat najar aati hai.ek manch par sab ko le kar aana tareefe kabil hai--dhanyawad
धन्यवाद. मुझे अपडेट रखने के लिए.
ReplyDeleteSabse pahle to sangeeta di ko naman aur dhanyavad jinhone is nausikhiye ki kalam ko aapke samne rakha... Bahut hi achchhe links ka collection mila yahan.. Charchamanch se jude sabhi sudhi janon ko sadhuvad
ReplyDeleteशानदार लिंक्स मिले ख़ूबसूरत रचनाएं मिलीं. बधाई आभार.
ReplyDeleteआ० संगीता जी
ReplyDeleteमेरी ग़ज़ल "लहरों के साथ वो भी...." का इस मंच पर चर्चा हेतु धन्यवाद
आप के पाठकों एवं अन्य चर्चाकारों को उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और इस आशा से कि भविष्य में भी आप लोगों का प्यार यूँ ही मिलता रहेगा
सादर
आनन्द.पाठक
अच्छे अच्छे लिंक्स तक हमें पहुचाने के लिए धन्यवाद...कुछ तक पहुँच चुकी हूँ...कुछ अभी बाकी हैं. हमेशा की तरह आपकी मेहनत दर्शाती उम्दा चर्चा.
ReplyDeleteबधाई.
एक से बढ़ कर एक बढ़िया पोस्ट...सुंदर चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteचिट्ठाजगत की अनुपस्थिती के बावजूद भी इतने सारे और सभी खूबसूरत लिंक्स को ढूंढने में की गई आपकी मेहनत साफ झलकती है।
मुझे चर्चा में शामिल करने का शुक्रिया। आज ही प्रवास पर पुणे पहुँचा हूँ। यह लिंक्स तो अभी रात होटल पहुँचने के बाद देखूंगा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सादर अभिवादन!
ReplyDeleteRACHNA KO CHARCHA MANCH ME STHAN DENE K LIYE SHUKRIYA !
SUDHI PATHAKO K LIYE HAR MOOD KI RACHNAO KA SANKLAN UMDA HAI !
शुभकामनाएं!
very very good charcha
ReplyDeleteatyant sunder sangrah.man khush ho gaya.mujhe lane ke liye dhanybad.
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा
ReplyDeleteसारे लिंक यहीं से देखे...धन्यवाद आपका.
ReplyDeleteबहुत शानदार चर्चा
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स ...
हमेशा की तरह शानदार चर्चा ... अच्छे लिंक्स ...
ReplyDeleteअध्भुत चर्चा-मंच है ये....यहां आकर अच्छा लगा...नियमित रहने का प्रयास रहेगा...मेरे ब्लॉग की रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने का शुक्रिया.
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteमैंने पहली बार आपके इस मंच का रसास्वादन किया एवं मैं आपके इस प्रयास की हार्दिक सराहना करता हूँ. विशेष रूप इसलिए कि आप नए नए लोगों को ढून्ढ कर लाती हैं और उन्हें यहाँ स्थान देती है. आप ने मुझे चर्चा योग्य समझा, अतः आपका यथोचित धन्यवाद् . मैंने आपके दूसरी चर्चाएं भी देंखीं और वे भी सराहना के योग्य हैं.
संगीता जी,
ReplyDeleteमैंने पहली बार आपके इस मंच का रसास्वादन किया एवं मैं आपके इस प्रयास की हार्दिक सराहना करता हूँ. विशेष रूप इसलिए कि आप नए नए लोगों को ढून्ढ कर लाती हैं और उन्हें यहाँ स्थान देती है. आप ने मुझे चर्चा योग्य समझा, अतः आपका यथोचित धन्यवाद् . मैंने आपके दूसरी चर्चाएं भी देंखीं और वे भी सराहना के योग्य हैं.
with many attractive links very good elaboration and discussion . congratulation Sangeeta swaroopJi..
ReplyDeleteमुझे अपने चर्चा मंच में शामिल करने लिए आप का धन्यवाद .....
ReplyDeleteअंक बहुत अच्छा लगा। आप के इस अंकसे ढेर सारे लिंक मिले जिन्हें पढ़ने का सौभाग्य मिला धन्यवाद