एक बूंद जो बिछड़े सागर से...!
सागर से जो बिछुड़ी तो कहाँ जायेगी
कहीं राहों में ही फ़ना हो जायेगी
सब वक्त वक्त की बात है
ना तब अपना था ना अब
एक आस था ,विश्वास था
अब ठूंठ रह गया हसरतों का
कब तक बनूँ अमर बेल
कभी तुम भी तो बनो
और उस दर्द को गुनो
वसीयत पढ़ ले इक बार
फिर ज़िन्दगी में कोई वसीयत नहीं करेगा
शायद इन्सान इन्सान बन जाएगा
ज़िन्दगी भी है , तू भी है और मैं भी
और कुछ तेरे मेरे ख्यालों के फूल
कभी झाँक कर देख तो सही
पृथ्वी के गर्भ में इक बार
आईना दिखा जाएँगी
तुझे तुझसे मिला जायेंगी
यही तो विडंबना है
स्त्री क्यूँ स्त्री है
शरीफ दिखने का पाखण्ड
कब तक करोगे
कब तक खुद को छलोगे
मेरे बिना तुम प्रभु / राइनर मारिया रिल्के
अधूरे थे और अधूरे रहोगे
जब तक ना एकाकार होगा
रिकॉर्ड मूल्य पर नीलाम हुआ ब्लू डायमंड
अपनी अपनी कीमत होती है
सब नसीबों की बात होती है
वीरान हैं आँगन
दिल के दरीचों का
कभी आना इस दरीचे में
दिल के दरीचों का
कभी आना इस दरीचे में
कोई अपना बैठा है
आस का दीप जलाये
दो नाव की सवारी है
सब पर पड़ी भारी है
चाहतों को पंखों की जरूरत नहीं
एक बार उड़ान भरने तो दो
क्या आप जानते हैं कि भारत की प्रथम फिल्म संगीत निर्देशिका कौन थी? - फिल्म प्रथमावली
जानना जरूरी हैमगर इच्छा भी जरूरी है
कब ? और कहाँ?
दिल तो आज भी
तुम्हारी चौखट पर
बेसुध पड़ा है
सब तेरी मोहब्बत के सिले हैं
कब तक गायेंगे
ये ना किसी को
समझ आयेंगे
युद्ध-पताका
मैं किधर जाऊँ
बेबस हूँ लाचार हूँ
हाथों की कठपुतली हूँ
"नाम उसका इन लबों से कह फ़ना क्यूँ हो गया.."
मंजिलें और भी हैं
ये तो सिर्फ पड़ाव हैं
दिल के बहलाव हैं
"करवा चौथ" जीवन बीमा योजना
चलिए दोस्तों अब दीजिये इजाज़त..........अगले सोमवार फिर मिलती हूँ..........तब तक अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराते रहिये और हौसले बढ़ाते रहिये .............ये ना किसी को
समझ आयेंगे
युद्ध-पताका
उठा कर तो देख
भाषा और अखबार-लघु हास्य व्यंग्य (bhasha aur akhabar-hindi short comic satire article)
अब कहाँ जाऊँमैं किधर जाऊँ
बेबस हूँ लाचार हूँ
हाथों की कठपुतली हूँ
"नाम उसका इन लबों से कह फ़ना क्यूँ हो गया.."
जो दिल का मेहमाँ बन गया
कहो ,वो कब फ़ना हो गया
एक गज़ल
कहो ,वो कब फ़ना हो गया
एक गज़ल
ग़ज़ल हूँ
पढ़िए
और
गुनिये
क्यूँकि
ग़ज़ल हूँ मैं
“… ..मंजिल पूरी!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)पढ़िए
और
गुनिये
क्यूँकि
ग़ज़ल हूँ मैं
मंजिलें और भी हैं
ये तो सिर्फ पड़ाव हैं
दिल के बहलाव हैं
"करवा चौथ" जीवन बीमा योजना
करवा लो प्यारे
बिना बीमा क्या जीना
बिना बीमा क्या जीना
पोस्ट के शीर्षकों के साथ आपके कमेंट
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रहे आज की चर्चा में!
सुंदर। आरंभ से टिप्पणी बॉक्स तक की इस यात्रा में कई जगह ठहरना पड़ा।
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से ओत प्रोत चर्चा बहुत अच्छी लगी |लिंक्स पर तो दोपहर में ही जाना हो पाएगा आपने उन पर जो लिखा है अधिक देर कम्पूटर पर बैठने का मन हो रहा है |बहुत सी लिंक्स देती अच्छी चर्चा के लिए बधाई |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
शास्त्री जी हर पोस्ट काबिले तारीफ़ है। दोपहर को पढ़ पायेंगे सभी अभी पढ़ने का लोभ संवरण नही कर पा रहे हैं मगर आप जानते हैं सुबह-सुबह ब्लॉग बाज़ी का मतलब घर में घमासान...:)
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ...इनमे से कई लिंक्स देख नहीं पायी थी ...
जवाब देंहटाएंआभार ..!
मुझे आपर ख़ुशी हो रही है ...मैं चर्चा -मंच के सभी गुनीजनो का अभिवादान करता हूँ ...यहाँ पर मेरी दुबारा एंट्री वंदना जी ने कराई है.....शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार,मेरी गरीब सी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिये।विशेष तौर पर वंदना जी को दिली शुक्रिया।इसी बहाने अन्य बहुत अच्छी रच्नाओं को पढ़्ने का अवसर मिला।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा --आभार !
जवाब देंहटाएंbahut hi acchi charcha rahi aapki vandana ji...
जवाब देंहटाएंaabhaar..
बहोत ही अच्छी चर्चा रही.........आभार
जवाब देंहटाएंवंदना जी का आभार जो उन्होंने मेरी रचना को अपनी चर्चा मे शामिल किया. इस प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं''शोकगीत''
जवाब देंहटाएंकब तक गायेंगे
ये ना किसी को
समझ आयेंगे
क्या नहीं समझ आया वंदना जी....ज़रा साफ-साफ कहिए...
हुत सी लिंक्स देती अच्छी चर्चा के लिए बधाई |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएं6.5/10
जवाब देंहटाएंसुव्यवस्थित सुन्दर चिटठा चर्चा
देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अच्छे लिंक्स एकत्र करने के लिए काफी मेहनत की गयी है. शीर्षक के साथ आपकी टिप्पणी भी चर्चा को आकर्षक बना रही है.
@निखिल जी,
जवाब देंहटाएंसच जैसा कुछ भी सुनने पर
बेचैन हो जाता है भीतर का आदमी....
जानता हूँ,
कि मेरी उपलब्धियों पर खुश दिखने वाला....
मेरे मुड़ते ही रच देगा नई साजिश...
मैं सब जानता हूँ कि,
आईने के उस तरफ़ का शख्स,
मेरा कभी नही हो सकता....
आपकी रचना के ये भाव बहुत ही गहरे हैं और इनकी गहराई तक उतरना हर किसी के बस की बात नही है ………………अपने अन्तर को जानते हुये भी अन्जान बन जाता है इंसान्…………बस इसीलिये वो कमेंट दिया था।
पृथ्वी के गर्भ से अनमोल रतन खोज लाई है आप. सुवयवस्थित चर्चा के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद वंदना जी यहाँ अपनी पोस्ट देख के अच्छा लगा सभी को आभार
जवाब देंहटाएंवंदना जी.. आपने पोस्ट में हरेक लिंक के नीचे जो छोटे छोटे शीर्षक बोल दिए है ..आपके खुद के निर्मित बहुत भा गए .. इससे आपकी रचनाशीलता दिखती है.. बहुत खूब... और मेरा परिचय -" डॉ नूतन गैरोला की चार कवितायेँ " इसमें शामिल की गयीं .. बहुत ख़ुशी हुवी.. धन्यवाद.. शाम को मैं सभी लिंक्स पे जाऊंगी.. शुभदिवस
जवाब देंहटाएंविविधता लिए हुए ये पोस्टें अच्छी हैं.
जवाब देंहटाएंकुँवर कुसुमेश
nawaazish,karam shukriya meharbaanee meri gazal ko is laayak samjhaa gayaa.
जवाब देंहटाएंsundar charcha!
जवाब देंहटाएंyour comments on the post included are so apt,vandana ji!
regards,
बढ़िया चर्चा ... आभार
जवाब देंहटाएंहम ब्लोगेर्स का काम आसान केर्देते हैं आप. ज्ञान की चाह मैं अधिक भटकना नहीं पड़ता.
जवाब देंहटाएंbahut sarthak charcha...saath hi diye huye comments har rachna ko padhne ke liye badhy karte hain ...sab padhungi ...par teen din baad :):)
जवाब देंहटाएंबढ़िया जुगलबंदी शीर्षकों के साथ..बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन प्रस्तुति, वनदना जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक लाजवाब लिंक दिए हैं आपने...सबको पढ़ा !!! और आपके प्रस्तुति का अंदाज भी खूब मन को भाया.
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर प्रस्तुति और परिश्रम के लिए बहुत बहुत आभार आपका !!!
'कच्चा घर' प्रकाशित करने के लिए सह्रदय धन्यवाद .... सभी रचनाएँ बहुत उम्दा हैं ... अच्छा आदान प्रदान रहा विचारों का .......
जवाब देंहटाएंCHARCHA-MANCH HI MUJH JAISE LOGON KO PROTSAHIT KARNE KA MADHYM RAH GAYA HAI ...SHASTRI JI CHARAN VANDAN..
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंइतने सारे बढ़िया लिंक्स देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर,
डोरोथी.
a basket of beauty...
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!