आ गयी है सोमवार की चर्चा ....................अब पसंद हो तो भी और ना हो तो भी झेल लीजियेगा नहीं तो एक आधी अपने मन की कह दीजियेगा ............अब हमें तो जो अच्छा लगा वो लगा दिया अब ये आप देखें कि आपको क्या भाता है ..............दाल ,चावल , चटनी, रोटी, सब्जी, या रायता ...........अचार भी साथ में है और पापड़ भी .............अपनी तरफ से तो हर चीज़ जायकेदार बनाई है .................देखते हैं आपको कौन सी डिश ज्यादा पसंद आती है और हाँ आखिर में स्वीट डिश भी है पान के साथ ..............अरे भई, मीठे पान के साथ और तम्बाकू वाले पान के साथ भी ..............आइये ना लुत्फ़ उठाइए बाद में अपनी मन की निकालिए .......................
सिलसिला गुलज़ार कैलेन्डर का। चौथा भाग: 'आठ दस की जब कभी गाड़ी गुज़रती है'
एक अदाकार हूं मैंजीनी पड़ती हैं मुझे कई जिंदगियां
एक हयाती में मुझे
मेरा किरदार बदल जाता है हर रोज़ सेट पर
मेरे हालात बदल जाते हैं
मेरा चेहरा भी बदल जाता है अफ़साना-ओ-मंज़र के मुताबिक़
मेरी आदत बदल जाती है।
और फिर दाग़ नहीं छूटते पहनी हुई पोशाकों के
ख़सता किरदारों का कुछ चूरा-सा रह जाता है तह में
इक आह सी निकलती है जब भई गुलज़ार जी को पढ़ते हैं ...............
सिंहासन उखड सकता है..............
हसरतो को मिल रहेघाव हजारो ,
दम्भी जमाना कर रहा
तिरस्कार प्यारे ।
मौज थी अपनी
धुन की पक्की ,
जीत पलको पर
बाढ़ सच्ची ।
हसरतो का क़त्ल
निरंतर,
उमड़ रहा परायापन का
समंदर ।
बिलकुल जी बचा के रखिये आखिर कुर्सी का सवाल है ...............
तुमको तो बस ना आने का कोई बहाना चाहिए
तुमको तो बस ना आने का कोई बहाना चाहिएकभी खुशनुमा सहर, कभी दिन सुहाना चाहिए
खुद हो क्या बेक़सूर जो उठाते हो तुम उँगलियाँ
तो यूँ नहीं इल्जाम किसी पर भी लगाना ...
क्या करें बिन बहानो के ज़िन्दगी नहीं गुजरती ............
खुद ही चुनें अपने लिए बाथ......................................
आज जीवन के समीकरण इतने बदल गए हैं कि वे कहां जाकर रुकेंगे कुछ पता नहीं । भागमभाग वाली जिंदगी में अपने घर पर ज्यादा समय नहीं दे पाते लेकिन जो भी समय देते हैं ...बिलकुल जी खुद चुनेगे ............आखिर बाथ का सवाल है
“आज फिर उदास मन : डॉ.चन्द्रशेखर जोशी” (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
"मैं बारिश के साथ रोया"जैसे कोई मीत खोया
छुपाने को निकले आँसू
मैं बारिश के साथ रोया
उफ़ ..........इतना दर्द कहाँ से लाये
डा श्याम गुप्त क गीत-----यदि तुम.....
गाते रहते मधुरिम पल छिन,तेरे ही गीतों का विहान ।
जाने कितने वे इन्द्रधनुष,
खिल उठते नभ में बन वितान ।
खिल उठती कलियां उपवन में,
यदि तुम आजाते जीवन में ।।
कुछ तो कँवल खिल जाते
पुनरागमन
वर्षों से दबा हुआ ,
एक जीवित ,
मृत व्यक्ति ,
उठ खड़ा हुआ,
वह आज ,
कर रहा था ,
वर्षों से अपनी ,
चेतना का विकास ।
परिपक्व हो उठा ,
नहीं जरुरत उसको ,
किसी के मार्गदर्शन की ,
करके प्रण वह ,
जीवित व्यक्ति हो
उठा है , पुनः जीवित ,
स्वागत है ..........आज के समय में सारी दुनिया में पुत्रेषणा की विडंबना दिखाई दे रही है ...
आज के समय में हर व्यक्ति यह चाहता है की उसका पुत्र ही उसका व्यवसाय संभाले और उसका पुत्र ही राजनीति की बागडोर संभाले . मैं ही नेता बनूँ या मेरा पुत्र ही आगे उसकी ...बस यही तो गलत है जानते सब हैं मगर फिर भी ................
प्रतिभा तो छिपाए नहीं छिप सकती
कुछ बातें ऐसी होती हैं कि दबाए नहीं दब पातीं। खून हो जाए और खूनी के बारे में सुन-गुन न लगे, खैर वाला पान खाएँ और होठ लाल ना हो, मन में खुशी हो और मुख पर प्रसन्नता ...समाजसूरज कब तक बादलों की ओट में छुपा रह सकता है .............
परिवर्तन
आज शाम थक हारकर सारी कठिनाइयों को पार कर. तैयार है बिस्तर,फिर तुझे खिचता गर्माहट से तत्पर,तेरी नींद को सींचता. पर न जाने वह सपने इतनी पराये क्य्युं हो गए जो ...यही तो संसार का नियम है .............
कुछ तोहफे खास होते हैं ..........
मेरा गम यूँ मेरे दिल के ही अंदर रहा फिर भी मैं तो बड़ा मस्त कलंदर रहा ये सोच के इश्क में हार जाया किये थे के कब जीतकर भी खुश सिकंदर रहा जाने क्या रंजिश बादलों ...
बाहर आ जाता तो छलक ना जाता .................
आज पता चला................?
चन्द लम्हों की साँसे...कुछ मूक आवाजें!चमन की वादियों में आंसू के मोती झरते हैं,
"वन्दे मातरम" से...
"वनडे मातरम" तक के
बारे में सोच
वे रोया करते हैं;
एक सूत्र में आबद्ध कर देते थे,
कहाँ गए वो धागे हैं!
सच मूक कर दिया...............
नवरात्र कविता उत्सव - तीसरा दिन - असमिया कवयित्री निर्मल प्रभा बोरदोलोई
शरद ऋतु में
तोहफा
तनहाईकी गली से गुजर कर देखा तो बहुत थे वीराने वीरानोके बीच सूखे पत्ते से थे उड़ाते हुए कुछ अफ़साने अफ़सानेके सफों पर उठाकर देखा तो तेरा और मेरा नाम लिखा था . कुछ ...कुछ तोहफे खास होते हैं ..........
मेरा गम यूँ मेरे दिल के ही अंदर रहा
मेरा गम यूँ मेरे दिल के ही अंदर रहा फिर भी मैं तो बड़ा मस्त कलंदर रहा ये सोच के इश्क में हार जाया किये थे के कब जीतकर भी खुश सिकंदर रहा जाने क्या रंजिश बादलों ...
बाहर आ जाता तो छलक ना जाता .................
मंजनुओं का अड्डा , ( मंदिर और कॉलेज ) ...>>> संजय कुमार
मंजनू , नाम सुनते ही किसी सड़क छाप आशिक का नाम हमारे ध्यान में आता है ! वह युवा (लड़का ) जो आपको सड़कों पर आवारागर्दी करते नजर आयेंगे , इन्ही में से ज्यादा संख्या ...आज पता चला................?
चन्द लम्हों की साँसे...कुछ मूक आवाजें!
"वन्दे मातरम" से...
"वनडे मातरम" तक के
बारे में सोच
वे रोया करते हैं;
एक सूत्र में आबद्ध कर देते थे,
कहाँ गए वो धागे हैं!
सच मूक कर दिया...............
शरद ऋतु में
खेतों से उठने वाली गंध
जैसे तैसे चलकर
जब पहुँचती है नथुनों तक
तो पा लेती हूँ मैं अपने पिता को।भाव सहजता गज़ब है ..............
तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ? Dr Nutan Gairola
*तू कौन ? - एक पागल की पीड़ा ?* चिंतन एक पागल के मन का *मन रे पागल मन कभी इस डाल से बंधता तो कभी दूर छिटकता तो कभी इस पात पे होता तो कभी उस शाख से फंसता * *कभी तुझे सड़कों पे देखा तो कभी मिट्टी से ...
इसी पीड़ा में तो सभी कुलबुलाते रहते हैं ...............
“आओ ज्ञान बढ़ाएँ, पहेली-51” (अमर भारती)
ये खुद ही सुलझाइए ..................
कहानी ऐसे बनी– 7 :: मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!
कहानी ऐसे बनी– 7 मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !! *हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सों...
दुनिया ऐसी ही है .........ऐसे ही चलती है
किसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!
तुमने ऐसा क्यों लिखा है...वैसा क्यों लिखा है ?? तुमने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ? उसने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ? इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ? इससे क्या मिलने वाला है ? ये कौन है ? वो कौन है ? ऐसे अनगिनत सव...
हो किसी के पास जवाब तो दीजिये .............
अहसान : एक लघुकथा
पठानकोट एक्सप्रेस का साधारण कम्पार्टमेंट । दरवाजे पर खड़े दो नौजवान। एक-दूसरे से अपरिचित। लेकिन एक, दूसरे की अपेक्षाकृत अधिक ताकतवर। ‘टिकट दिखाइए।’ एक आवाज गूंजी। दूसरे ही क्षण रामपुरी सामने था। यह पहले ...
अंदाज़ अपना अपना है ..........
कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला... तितली - मतवाला और मैं
“कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला............” “कबाड़ी, पेपोर, रद्दी वाला............” मैं बालकोनी से झांक कर उसे देखता हूँ – साइकिल पर वज़न लादे – वो खड़ा है – मलीन कपड़ों में. एक लोहे के डंडे को आलम्ब देकर ...
ये तो खुद ही जानना पड़ेगा .......
सुनो न जानाँ ....
सुनो न जानाँ ....
गीत ये मेरे
जब तेरे होठों को चखते थे .....
दिल की हर धड़कन से फिर
एक तान सुरीली आती थी ...
ये पुरवाई धीमी धीमी
मद्धम से साज बजाती थी ...
इतने प्यार से कोई पुकारेगा तो सुनना तो पड़ेगा ही ना ...........
.......मैं रक्त बीज रावण हूँ........'
वन्दे मातरम बंधुयों, आज काफी कोशिश करने के बाद भी नीद नही आ रही थी पत्नी और बच्चे शिखर जी (जैन तीर्थ ) गये हुए हैं, अकेला पन खाने को दौड़ रहा था, सोचा चलो रामलीला देख लेते हैं और चल दिए रामलीला देखने को म...
ये भी एक अंदाज़ है ...................धारदार व्यंग्य।
ख्याल-ए-यार
किस्सा,कहानियां, नज़राने... बहुत हो चुके अफसाने,आज हाल-ए-दिल आपको सुनाने का ख्याल आया हैं!
ए वक़्त, हो सके तो ज़रा सा तू थम जा,
उन पुरानी यादों का दिल में आज तूफ़ान आया हैं!
ये ख्याल ही तो तूफ़ान लाते हैं ...............
कचरा बाई : हौसले का एक नाम
महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। ...
अब तो मिलना ही पड़ेगा ...........
जो जिंदगी के अंधेरों में टिमटिमाती रही
घर की माली हालत ने महज़बी को अदाकारा बनाया तो जिंदगी ने एक बेहतरीन शायरा। खुदगर्ज़ और मतलबपरस्ती के कड़वे तजुरबों ने मीना कुमारी (महज़बी) के हुनर को शायरी की ..कुछ रोशनियाँ खुद जलकर ही बुलंद होती हैं ............
सोमाद्री
यह कैसी दुनिया
जहाँ प्यार छाते में छुपकर
जंग और दंगे खुले आम
इस तस्वीर ने
दिल की ट्राफी जीत ली है सोमाद्री
ये भी एक अदा है ..................
कुछ रिश्ते बिना कहे भी समझे और महसूस किये जाते हैं ...........
क्यूं बंद किया,
लक्ष्मण रेखा के घेरे मै ,
कारण तक नहीं समझाया ,
ओर वन को प्रस्थान किया ,
यह भी नहीं सोचा ,
मैं भी एक मनुष्य हूँ ,
अगर पार ना की होती
.................अपना घर
जवान बेटी को बाप ने कहा
ये भी एक अदा है ..................
रिश्ता
कुछ तो है तेरे मेरे दरम्यॉंजो हम कह नही पाते
और तुम समझ नहीं पाते।
एक अन्जाना सा रिश्ता
एक नाजुक सा बंधन
गर समझ जाते तुम तो
कुछ रिश्ते बिना कहे भी समझे और महसूस किये जाते हैं ...........
लक्ष्मण रेखा
क्यूं बंद किया,
लक्ष्मण रेखा के घेरे मै ,
कारण तक नहीं समझाया ,
ओर वन को प्रस्थान किया ,
यह भी नहीं सोचा ,
मैं भी एक मनुष्य हूँ ,
अगर पार ना की होती
तो रामायण कैसे बनी होती
राम को किसने पूजा होता
एक कोने में पड़ा रहता है
प्यार का चुम्बक
जैसे कोई सुसुप्त ज्वालामुखी ॥
जब जागता है
खीच लेता है
मिटटी के तन को
और उड़नेवाले मन को ॥
बिलकुल सही कहा ...........प्यार एक चुम्बक ही तो है
इन्हें भी जानिये ................
राम को किसने पूजा होता
प्यार एक चुम्बक है
हर दिल केएक कोने में पड़ा रहता है
प्यार का चुम्बक
जैसे कोई सुसुप्त ज्वालामुखी ॥
जब जागता है
खीच लेता है
मिटटी के तन को
और उड़नेवाले मन को ॥
बिलकुल सही कहा ...........प्यार एक चुम्बक ही तो है
१८५७ की बदनसीब शहजादियाँ
1857 के गदर को दबाने के बाद बौखलाए हुए अंग्रेजों ने दिल्ली का जो हाल किया उसे शब्दों में बयान करना बहुत मुश्किल है। जुल्म और बर्बरता की इंतिहा थी। लूट-खसोट, आगजनी, हत्याएं यानि हैवानियत का नंगा नाच शुरु हो गया था। एक दरिंदा जो भी कुकर्म कर सकता है वह वहां हो रहा था। लोग जान बचाने को शहर छोड़ कर जहां जरा सी बचने की गुंजाइश दिखती वहां भाग रहे थे।इन्हें भी जानिये ................
जवान बेटी को बाप ने कहा
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी. ए की करनी वही पढाई
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी
पर अब यहाँ से जाना होगा
जुदा होकर हमसे
नया घर बसाना होगा ,
अगर हो किसी के पास जवाब तो देने की हिम्मत करे........कौन सा है अपना घर ?
ऐ दाता !
काश ! ये ख्वाहिश हर दिल की होती .
कविता- क्षितिज से आगे…
बहुत आगे तक निकल आया हूँ
छूट गया है गाँव मेरा बहुत ही पीछे
सफ़र बड़ा लंबा सा हो गया है
.
कितने ही ठौर आए
और पीछे निकल गए
देर भी हो गई है बड़ी
लौटकर देखने की
जहान और भी है
रूह हो या कि
सब समाप्त हो,
कहीं ऐसा न हो
शरीर ख़त्म हो
रूह भी मिट जाए,
या फिर ऐसा हो
शरीर नष्ट हो
रूह रह जाए
महज़ वायु समान,
एहसास तो
मुकम्मल हो
पर रूह
बेअख्तियार हो !
अगर हो किसी के पास जवाब तो देने की हिम्मत करे........कौन सा है अपना घर ?
ऐ दाता !
ऐ दाता !
कभी इतना मत देना
जो दामन में न समाये,
इतना भी मत देना की
मेरी झोली
खाली रह जाये.
बस इतना-भर देना
कोई मायूस न जाये
मेरे घर से,
मैं तेरे दर से.
देना ही है तो देना
एक टुकड़ा जमीन
मेरे बाहर,मेरे भीतर ,काश ! ये ख्वाहिश हर दिल की होती .
कविता- क्षितिज से आगे…
छूट गया है गाँव मेरा बहुत ही पीछे
सफ़र बड़ा लंबा सा हो गया है
.
कितने ही ठौर आए
और पीछे निकल गए
देर भी हो गई है बड़ी
लौटकर देखने की
जहान और भी है
जीवन के बाद रूह का सफ़र...
क्या पता क्या होरूह हो या कि
सब समाप्त हो,
कहीं ऐसा न हो
शरीर ख़त्म हो
रूह भी मिट जाए,
या फिर ऐसा हो
शरीर नष्ट हो
रूह रह जाए
महज़ वायु समान,
एहसास तो
मुकम्मल हो
पर रूह
बेअख्तियार हो !
इतना आसान है क्या .........
अच्छा दोस्तों ...............उम्मीद है आज का चटपटा , जायकेदार भोजन आपको पसंद आया होगा .............वैसे तो सारे जायके डालने की कोशिश की है फिर भी कोई त्रुटि रह गयी हो तो ......................................अरे छोडिये ना ,इतना तो चलता रहता है अब हर जगह स्वादिष्ट खाना तो नही मिलता ना .............हमेशा बढ़िया भोजन खाने की आदत पड़ गयी है ना तो कभी कभी बेस्वादु भोजन भी कर लेना चाहिए वरना स्वादिष्ट भोजन का कैसे पता चलेगा .............चलो जी हो गयी बहुत दिल्लगी ..........अब अगले सोमवार फिर मिलूंगी तब तक के लिए ................बाय बाय ...........सायोनारा .
आदरणीया वंदना जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा और बहुत अच्छे लिंक्स ...आभार
वंदना जी
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने हेतु आभार
वन्दना जी!
जवाब देंहटाएंआज तो चर्चा मंच का गुलदस्ता
बहुत सुवासित पुष्पों से सँवारा है!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
पठनीय लिंक देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक से सुसज्जित चर्चा,आभार
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा ...!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स .. आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट चर्चा .... काफी अच्छे लिंक मिले..समयचक्र की पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए ...आभार
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने हेतु आभार
बहुत अच्छी चर्चा और बहुत अच्छे लिंक्स ...आभार
अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्तम रच्नाओं के लिंक्स हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना "क्षितिज से आगे" चर्चा मच में शामिल करने के लिए धन्यवाद्।
वन्दना जी ! बहुत आभार आपका मेरी रचना को चर्चामंच के पटल पर रखने के लिये। बहुत अच्छे ब्लॉग लिंक्स दिये हैं आपने… साधूवाद आपको।
जवाब देंहटाएंऔर इन पर चर्चा करते हुए आपकी चुटीली टिप्पणियाँ बहुत आनन्द दे गयीं।
आदरणीया वंदना जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा और बहुत अच्छे लिंक्स शानदार चर्चा .....आभार
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
चटपटे भोजन का स्वाद लेना था तो सब कुछ चखना था ...:)
जवाब देंहटाएंसारे लिंक्स देख लिए हैं
बहुत अच्छे लिंक्स लिए हैं ...थाली अच्छे व्यंजनों से परोसी है ...बाकी भोजन ग्रहण करने वालों के ऊपर है :):)
बहुत अच्छी चर्चा
sundar charcha....
जवाब देंहटाएंaapki baatein bahut acchi lagi!
charchamanch aap charchakaaron ke shram se nirantar phoole phale!
dher sari shubhkamnayen!!!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आभार. आपके द्वारा चुनी गई अन्य रचनाएँ भी अत्यंत सुंदर,भावपूर्ण एवं बेहद ज्ञानवर्द्धक हैं. इन रचनाओं के संसार से दो-चार कराने के लिए धन्यवाद.
वंदना जी , इस शे'र को ही मेरी टिप्पणी मान लें:
जवाब देंहटाएंक़ासिद की गुफ्तुगू से तसल्ली हो किस तरह
छुपती नहीं वो बात, जो तेरी ज़बां की है
वन्दना जी ,
जवाब देंहटाएंनमस्कार
चर्चामंच में मेरा ब्लॉग और मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत - बहुत आभार ।
चर्चामंच की डिशेज और साथ में उनकी रेसिपी भी बेहद उमदा लगी ।
बहुत सुंदर लिंक प्रस्तुतु किये हैं आपने.. मैं तो अपनी कविता को भी ढूंढ रहा था.. लेकिन फिर कभी.. चर्चा काफी व्यापक है और इन्द्रधनुष से विविध रंगों से भरा है...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना जी इस 'अहसान' के लिए।
जवाब देंहटाएंवंदना जी.. मैं आपका और इस मंच पर उपस्थित सभी गुणीजनों का आभारी हूँ..
जवाब देंहटाएंजो मेरी रचना आपने यहाँ सम्मलित की और महानुभावों ने उसे अपने शब्द सुमन से सज्जित किया..
यूँ ही हौसला और हिम्मत बढ़ाते रहें.. नए रचनाकारों की लेखनी में सुधार आता रहेगा..... पुनः आभार के साथ..KK
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वंदना जी ! धन्यवाद इस मंच को .. जहाँ एक ही जगह कई अच्छी अच्छी रचनाए पढने को मिल जाती है.. सच कहों में तो वंदना जी इस समय मुझे चिड़िया याद आ रही है जो बड़े जतन से दाना चुग चुग के एक जगह लाती है और बच्चो को खिलाती है... आपके कविता रुपी ये दाने जिनको आपने पाठको के लिए पसंद किया और यहाँ मंच पर संकलित किया, बहुत पसंद आये .. शुभकामना
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार |
इस दावत के लिए धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर च सार्थक चर्चा...
जवाब देंहटाएंआभार्!
शानदार चर्चा ...!
जवाब देंहटाएंवंदना जी ५६ की जगह ३६ व्यंजन मिले आपकी थाली में और हाफ सेंचुरी भी नहीं मारी वर्ना शानदार की जगह आपकी चर्चा की भी गुणवत्ता दिखाई देती कुछ लोगों को.
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत साफ़ झलक रही है...इस बात को एक चर्चाकार से ज्यादा कौन समझ सकता है.
शुक्रिया चुनिन्दा लिंक्स हम तक पहुचाने के लिए.
चर्चा के साथ साथ दिए गए कम्मेन्ट्स चर्चा को चटपटा बना गए हैं ...
जवाब देंहटाएंकिसी 'अमृता' किसी 'शिवानी' की पहली सीढ़ी हो सकती है....या फ़िर आखरी...!!
तुमने ऐसा क्यों लिखा है...वैसा क्यों लिखा है ?? तुमने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ? उसने ऐसी टिप्पणी क्यूँ दी ? इतना समय क्यूँ बिताती हो ब्लॉग पर ? इससे क्या मिलने वाला है ? ये कौन है ? वो कौन है ? ऐसे अनगिनत सव...
हो किसी के पास जवाब तो दीजिये .............
हाँ हम सारे सठिया गए हैं , और इश्क कर बैठे हैं अपनी ब्लॉग्गिंग से ....
वन्दना जी. ’जो तुम आजाते जीवन में -”-गीत को चर्चा में सम्मिलित करने के लिये धन्यवाद। ---वैसे तो आजकल एसे गीत, कम प्रचलन में हैं व कम लिखे/पढे व पसंद किये जाते हैं ।
जवाब देंहटाएं---अन्य चयन भी अच्छे व सार्थक हैं।
वंदना जी चर्चा मंच में पुनरागमन को शामिल करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंबुखार के चलते मैं आपको समय से शुक्रिया अदा ना कर सका जिसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।
saare vyanjan grahan krne k baad bohat acha laga.......
जवाब देंहटाएंmeri "parivartan" ko charchamanch par laane ka sa-hriday abhar.
parivartan to meri bas jeevan ke ab tak ke safar ki kahani hai,shayad meri hi nahi hum jaise bohto ki,
main to bas yeh chahta hoon ki is parivartan mein apni aatma ki kuntha ko hum samjhe aur usse pratadna se bachayein taaki bharat fir ek baar apni sanskriti se gaurvanvit ho.............