मै मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं रविवासरीय (२४.१०.२०१०) चर्चा के साथ। आज के मेरे चुने हुए पांच पोस्ट लेकर। आज की बात मैं उस्ताद जी की बात से शुरु करना चहता हूं। पहले उनको नमन तो कर लूं।
बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार।
मानुष से देवता किया करत न लागी बार।
ये गुरु तुल्य हैं। कम-से-कम मेरे लिए। इनका नाम पता ... मुझे मालूम नहीं। पेशा सरकारी और रहने वाले हैं .. जहां के भी हों। एक थैंकलेस जॉब को अंजाम दे रहे हैं। हमारी रचनाओं का मूल्यांकन!
उस्ताद तो आप हैं ही। कहीं मैंने लिखा था कि एक थैंकलेस जॉब कर रहे हैं।
पर इसका यह मतलब नहीं कि आपकी आवश्यकता नहीं या आपका महत्व नहीं। इसकी बहुत ज़रूरत थी, ब्लॉग जगत को। (ये मेरे विचार हैं। आप असहमत हो सकते हैं)। अपनी एक पोस्ट के उस्ताद क्यों उतारे अपनी नकाब ??? द्वारा ये अब तक किए गए अपने मूल्यांकन पर चहेते पठकों की प्रतिक्रिया पर विचार व्यक्त कर रहे हैं।
आपने ठीक कहा कि, बार्टर सिस्टम वाले इस जगत में, तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी वाली ही स्थिति है। सही मूल्यांकन करते ही, असहमति दिखाते ही, या फिर तटस्थ रहते ही, लोग मुंह ऐसे फेरते हैं कि मानों परिचय ही न हो। इस लिए मूल्यांकन की ज़रूरत तो है। एक निष्पक्ष मूल्यांकन की। और थैंकलेस इसलिए कि आप कितना भी तटस्थ रहें, लोग कहेंगे कि आप तो फलाने को फ़ेवर कर रहें हैं, फलाने को आउट! ‘अब ये महाशय भी (मैं) चर्चा में आपको इसलिए लिए है कि आपने इनके एक पोस्ट को ७.५ अंक दे दिए हैं। तो ये आपके कशीदे तो पढेंगे ही।’
अब उन्हें यह थोड़े ही पता कि इसी दिन के उनके दूसरे पोस्ट पर आपने 3/10 अंक दिया और कहा "सामान्य .. कहीं से भी पोस्ट प्रभावित नहीं करती. कविता का भाव भी घिसा-पिटा सा है."
उस्ताद जी, अभी ब्लॉग जगत भले आपके महत्व को न समझे, धीरे-धीरे समझेगा, फिर शायद आपको छ्द्म भेष में रहने की ज़रूरत भी न हो।
अपनी तरफ़ से तो यही कहूंगा कि आपने मेरी जिन रचनाओं का आपने मूल्यांकन किया है, उसमें, उस रचना के पीछे मेरे द्वरा किए गए प्रयास को उजागर कर दिया है। ... और मैं अपनी टिप्पणी बॉक्स के ऊपर लिखता भी हूं कि आपका मूल्यांकन मेरा मार्गदर्शन करेगा।
उस्ताद जी के ब्लॉग पर जाने के लिए यहां क्लिक करें। ये हमसे संवाद भी करते हैं और हमारे विचार भी आमंत्रित करते हैं। और इनके निमंत्रण में भी स्पष्टवादिता है। कहते हैं
“माडरेशन ऑन जरूर है लेकिन यकीन मानिए आपकी हर बात यहाँ दिखेगी. इसलिए जो भी मन में है कह डालिए. गालियाँ भी स्वीकार हैं किन्तु शर्त है कि जाहिलों वाला अंदाज न हो ... गालियों में कुछ नयापन हो ... थोड़ी साहित्यिक हों ... कलात्मक हों. तो आईये दिल की बात कहकर सहज हो जाईये. स्वागत है :”
अपनी ताज़ी पोस्ट के ज़रिए कहते हैं
“हर कोई उस्ताद की नकाब उतारने का खवाहिशमंद है. हर कोई कह रहा है कि मैं अपने असली परिचय के साथ सामने आ जाऊं. इतनी ज्यादा मेल आ चुकी हैं कि जीना हराम हो गया.”
मैं, इस पोस्ट पर आई एक टिप्पणी को अपनी बात मान कर कोट कर रहा हूं,
“यह निवेदन अवश्य करुँगी कि आप हिंदी ब्लागरों का ईमानदारी से मार्गदर्शन तथा कृतियों की समालोचना करें ताकि ब्लोगिंग के स्तर को और सुधारा जा सके.. सही है कि नाम के साथ इमानदार कमेन्ट दे पाना हर समय संभव नहीं हो पाता और इस चक्कर में कूड़े करकट भी अच्छे लेखकों द्वारा सराह दिए जाते हैं..... आपके सद्प्रयास के लिए आभार !!!!”
आइए अब एक नए ब्लॉगर से आपका परिचय कराएं – ये लिखते हैं
कोई सन्नाटा तो लाओ, ये शहर अब सो रहा है!
हादसों को मत जगाओ, ये शहर अब सो रहा है !
इतनी असरदार बातें कहने वाले इस इंसान का अपने बारे में कहना है
“मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें, जिन्हें मैं मुक्त कंठ से गाकर जी भर रो सकता था....... !”
इतने संवेदनशील प्राणी का नाम भी इनकी एक तरह से पहचान ही है -- ज्ञानचंद मर्मज्ञ! शब्दों की साधना करते हैं और अपने ब्लॉग का नाम रखा है --मर्मज्ञ: "शब्द साधक मंच"। बंगलुरू में रहते हैं। बहुत अच्छी, और दिशा, देश-समाज को, देती रचनाएं लिखते हैं। बहुत अच्छा गला है, और अपनी रचनाओं को जब मंच से गाते हैं तो श्रोता झूम उठते हैं। अब अगर पंक्तियों में ऐसे तल्ख़ी हो तो कौन न झूम उठे।
खौफ के बाज़ार में बेची गयी है हर ख़ुशी ,
ढूंढ़ लो इस ढेर में शायद पड़ी हो ज़िन्दगी ,
क्या पता पहचान जाओ,ये शहर अब सो रहा है!
ये तो बानगी भर है। आने दीजिए कुछ और पोस्ट। फिर देखिए इनके क़लम का कमाल। हमने तो इनको जब पहली बार सुना तब ही इनके मुरीद हो गए थे और “मनोज” ब्लॉग पर इन्हें कई बार आमंत्रित भी कर चुके अपनी रचनाएं पेश करने हेतु।
मौज़ूअ रात भर मैं कई सोचती रही
मै थक गयी ,समझ न सकी ,सोचती रही
कुछ बातें मन में आती हैं, आते रहती हैं, हम सोचते रहते हैं। इनके साथ भी ऐसा ही हुआ। कहती हैं,
“अब देखिये ना - २ october गया ,commonwealth games आये-गए ,नवरात्र गुज़र गयी ,दशहरा बीत गया लेकिन कुछ पोस्ट करने को दिल ही नहीं हुआ । पता नहीं क्यूँ ?”
जो भी हो, बात दरअसल ये है कि, इन्हें तो होता ही है, शायद आपको भी होता ही होगा कि
“यादों के,बचपन के, रिश्तों के,काम के ,महफ़िलों के,तन्हाईयों के,तकलीफों के ,मेहनतों के लेकिन जोश का ,प्रेरणा का ,दिलचस्पी का fuse उड़ जाता है , दिल सब से मुलाक़ात करना चाहता है तो रूह तन्हाई की मांग करने लगती है ,नज़र कई मौज़ुआत पे पड़ना चाहती है तो पलकें आँख पर पर्दा डाल देती हैं ; ज़िन्दगी सच्चाईयों से इश्क़ करना चाहती है तो सोचो - फिक्र ख़ुदकुशी कर लेते हैं और फिर मैं ही ग़ज़ल और शेरों का वरक़ के बीच रस्ते में ही क़त्ल कर देती हूँ --------- ये honor killing-सा मामला क्या है ? कल रात बस मै यही सोचती रही - सोचती रही - सोचती रही .......”
मतलब ये कि
बादल फ़लक पे आ तो रहा था नज़र मुझे
बरसेगा कब तलक ? मै यही सोचती रही ।
' हया ' पर लता 'हया' जी कह रही हैं, “सोचती रही” वैसे इसकी सोच बहुत ही संदेशप्रद और सोचने को विवश करने वाली है।
क्या लाज रख सकेंगे "हया" की वो मुस्तक़िल
उसके क़रीब जब भी गयी ,सोचती रही
“मेरा मानना है कि जहाँ इन्सान के सामने उसके विचारों के खोखलेपन का प्रश्न तनकर कुतुबमीनार की तरह खडा हो जाता है, वहाँ सोचने और नोचने की शक्ति अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है.”
अजी ये कथन न तो मेरा है और न ही हया जी रचना पर कोई टिप्पणी। अजी ये सोचने और …. की …. बीमारी पं.डी.के.शर्मा"वत्स" को लगी है। कहते हैं,
“किसी गधे को भी एक विशेष दृष्टिकोण से देखकर उसके सौन्दर्य की सराहना करने के बारे में सोचते रहने से आप एक दार्शनिक कहला सकते हैं.”
ये पंडित जी को आज हो क्या गया है? पंडिताई छोड़कर इन्हें कहीं सोचने की बीमारी तो नहीं लग गई? आप क्या सोचते हैं? क्या कहा कुछ नहीं! ये तो सरसर ना-इंसाफ़ी है… हां … भई ज़रा सोच कर देखिए। आप क्यूँ नहीं सोचते ?
क्या कहा बहुत सोचने से ….
कभी-कभी लगता है
फट जाएंगी नसें...
सिकुड़ जाएगा शरीर,
खून उतर आएगा आंखों में...
जी आपको लगता होगा अचानक ये हमें क्या हो गया? बात ऐसी है कि ये बात मेरी नहीं है। जिस ब्लॉग पर यह बात कही गई है उसके स्वामी का आपबीती सुनाने की आदत है और कहना है
“विचारों की रिटेल मार्केट में मेरी भी छोटी-सी दुकान है...यहां कुछ आउटडेटेड कविताओं का स्टॉक मिलता है जिन्हें ठोंगे में रखकर शेयर किया जा सकता है....और ज़िंदगी के कुछ होलसेल किस्से भी मिल जाएंगे....मीडिया के बड़े मॉल में नौकरी बजाता हूं...वहां से भी कुछ माल उड़ाकर अपनी दुकान चलाता रहूंगा, किसे पता चलेगा.....मेरी दुकान में आज, कल या परसों नकद बिल्कुल नहीं चलेगा, सब कुछ उधार लिया जा सकता है..."
बहुत कम लिखते हैं पर जो भी है वह उम्दा। आक्रोश भरे इनके स्वर और तेवर आज कुछ तल्ख़ हैं,
हमारी चमड़ी से अमेरिका पहनेगा जूते..
हमारी आंखों से दुनिया देखेगा चीन...
किसी प्रयोगशाला में पड़े होंगे अंग
वैज्ञानिक की जिज्ञासा बनकर...
ऐसी पोस्ट पर आने वालों की संख्यां कुछ कम ही होती है, यहां भी वही हाल है। उस्ताद जी, ज़रा एक फेरा लगा आइए… "लाशों के शहर में..." भी। १० से कम दिया तो … ! आप जो भी दें, मैं तो १० में १० देता हूं।
तो आज की मेरी ये चर्चा कैसी लगी?
क्या कहा आपने?
....नो!
.....नो!
ये अच्छी बात नहीं …
आपने पढा ही नहीं इस चर्चा को।
अच्छा!
क्या कहा?
आप ने कहा, हाज़िरी लगाने आ गये|
बज्म में हुजूर की, मुस्कुराने आ गये|
लग गई हाज़िरी। मुस्कुरा कर लगाए! यह ही तो जीवन का सार है। मिले-मिलाए। हंसे-मुस्कुराए! और क्या चाहिए। अब मैं भी चलता हूं। पर आप कहां चले?
यूं ही ठाले बैठे ही मत रहिए।
यूं ही ठाले बैठे ही मत रहिए।
क्या कहा?
"ठाले-बैठे नहीं, बैठे-ठाले होता है। "
"ठाले-बैठे नहीं, बैठे-ठाले होता है। "
होता होगा। पर Navin C. Chaturvedi के ब्लॉग का नाम यही है, और जाने से पहले यहां से होकर तो आइए। जाइएगा ना?
हां कहा है। मुकरिएगा मत। क्यों कि
हां कहा है। मुकरिएगा मत। क्यों कि
बोलना-निबाहना ये अलग दो इल्म हैं|
बात बस यही उन्हें हम सुझाने आ गये|
बस। आज इतना ही। फिर मिलते हैं, अगले सप्ताह!!
खाली तारीख पर कमेन्ट करना हो तो ठीक है आज २४.१०.२०१० ही है
जवाब देंहटाएंआशा
चर्चा की यह बानगी बहुत भाई ! उद्धृत रचनाओं को पढने की बहुत तीव्रता से इच्छा है लेकिन उससे पूर्व जितने दिलचस्प अंदाज़ में आपने रचनाकारों से परिचय करवाया है वह काबिले तारीफ़ है ! इतनी खूबसूरत चर्चा के लिये बधाई एवं आभार !
जवाब देंहटाएं@ आशा जी,
जवाब देंहटाएंसॉरी, पोस्ट लगाने में देरी हो गई और एडिट के चक्कर में कब पब्लिश योर पोस्ट वाला बटन दब गया पता ही नहीं चला। असुविधा के लिए खेद है।
अच्छी है चर्चा...... आभार
जवाब देंहटाएंएक अच्छे कथाकार ने "ब्लाग कथा" के सुख दुख का जो वर्णन किया है वो बहुत ही मनभावन है। बधाई।
जवाब देंहटाएंचर्चा को एक नया आयाम दिया है आपने………………बहुत सुन्दर चर्चा लगाई है……………आभार्।
जवाब देंहटाएंsundar charcha...nayepan ke saath!!!
जवाब देंहटाएंregards,
अच्छी, बहुत अच्छी चर्चा रही.
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंआप प्रेजेंटेशन में मेहनत करते हैं,इतना तो मैं कह सकता हूँ.
उस्ताद जी का काम निष्पक्ष होकर न० देना , वह काम वो बाखूबी कर रहे हैं,इसमें कोई शक नहीं.
अन्य का लेखन भी पढ़ा,ठीक लगा.
कुँवर कुसुमेश
मनोज जी आपके चर्चा का अंदाज अच्छा है.. उस्ताद जी से हम सबका परिचय है.. मेरी तो इच्छा है कि उस्ताद जी यूं ही छुपे रहें.. बहुत उम्दा काम कर रहे हैं...
जवाब देंहटाएंमेरा अनावश्यक जिक्र करके आपने इस सुन्दर चिटठा चर्चा को मूल्यांकन से बाहर कर दिया. बचने का अच्छा तरीका खोजा :)
जवाब देंहटाएंइतना अवश्य कहना है. उस्ताद सिर्फ एक विचार है.
मुझे बेहतर उस्ताद आपके भीतर से निकलने को बेताब है. लेकिन सामाजिकता/व्यवहारिकता आड़े आती हैं. जिस दिन एक अदद नकाब आपके पास भी होगा, आप उस्तादों के उस्ताद होंगे.
@ मनोज कुमार जी
जवाब देंहटाएंमुआफ़ किजियेगा मुझे तो संदेह होता है कि कहीं आप ही तो उस्ताद जी बन कर मूल्यांकन करते नही फ़िर रहे हैं?
इस तरह के अनामी और लोगों को निरर्थक रूप से नंबर दे कर हतोत्साहित करने वाले लोगों की आप चर्चा कर रहे हैं? आखिर आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं?
आप एक जिम्मेदार चर्चाकार होने के बावजूद ऐसा कर रहे हैं? जबकि इन जैसे लोगों को इग्नोर किया जाना चाहिये।
हंसी मजाक तक बात ठीक है पर इस तरह गंभीरता पूर्वक चर्चा में इन जैसे लोगों को स्थान देना मुझे रूचिकर नही लगा। शेशः जैसी आप लोगों की मर्जी।
चर्चा को पैदा करना अनूप शुक्ल का दिमाग था और उसे नया आयाम देना आप लोगों का काम है। मैं तो अभी बहुत दिनों बाद लौटा हूं और चर्चा के नाम पर यह तमाशा मुझे अरूचिकर लगा सो विरोध व्यक्त कर दिया।
निहायत ही गैर जिम्मेवाराना चर्चा लगी मुझे तो यह.
खेद सहित
इन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
जवाब देंहटाएंस्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?
असली उस्ताद...नकली उस्ताद...समझ नहीं आ रहा।
जवाब देंहटाएंये क्या मनोज जी, आज चर्चामंच में दो उस्तादों की टिप्पणी दिख रही है ?
जवाब देंहटाएंअजब confusion है.
कुँवर कुसुमेश
आप लोग परेशान न हों. इनका भी स्वागत करें. आलोचना का ओवरडोज खाया हुआ कोई व्यथित ब्लॉगर प्रतीत होता है. बहुत बदहवासी में ताजा-ताजा ब्लॉग बनाया है. ईश्वर इनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे
जवाब देंहटाएंउस्ताद जी जैसे पोस्ट विश्लेषक की ब्लॉग जगत को बहुत जरूरत थी.. आपने उनको चर्चा में शामिल कर मेरी मंशा पूरी कर दी. उनका नकाब में बना रहना ही बेहतर है क्योंकि यदि नाम के साथ सामने आये तो उनपर भी भाई-भतीजावाद हावी होता दिखने लगेगा.. लगभग ९५% या उससे भी ज्यादा उनका निष्पक्ष विश्लेषण मुझे तो सही ही लगता है. इसी बहाने ब्लॉगजगत को एक सही आलोचक तो मिला.. जिससे कि लोग अच्छा लिखने को प्रेरित होंगे और अपनी कमियाँ जान सकेंगे.. जो दूसरे उस्ताद आ गए हैं उनकी समझदारी पर तरस आता है.. ये किसने कह दिया कि एक अच्छे आलोचक को बहुत सारी किताबें, कविता-कहानी लिखने के बाद ही विश्लेषण की समझ आ सकती है. लोगों की पसंद का ख्याल रखते हुए कई लोगों ने चलताऊ पोस्ट लिखना शुरू कर दिया था अब वो पुनः गंभीर चिट्ठाकारी करने के बारे में सोच रहे होंगे.. चिट्ठाकारों से निवेदन है कि उस्ताद जी को गंभीरता से लें.. आपत्ति शायद उन्हीं लोगों को होगी जो आलोचना को सकारात्मक रूप में नहीं लेते उससे डरते हैं और लोगों की नज़र में शानदार-जानदार बने रहना चाहते हैं... मेरी बात का बुरा भी उन्हीं को लगना चाहिए जो ऐसी मंशा पाले हुए हैं. वैसे मुझे नहीं लगता कोई गंभीर लिक्खाड़ बुरा मानेगा.. नहीं क्या???? :)
जवाब देंहटाएंइन असली वाले पटियाला ब्रांड उस्ताद से सिर्फ एक मासूम सा सवाल : रमाकांत आचरेकर ने कितने शतक और अर्ध शतक मारे थे जो वो सचिन तेंदुलकर जैसे महान क्रिकेटर के गुरु हैं ?
जवाब देंहटाएंईमानदारी से की गया एक बेहतरीन चर्चा!
जवाब देंहटाएंमनोज जी, सच में बेहद उम्दा रही आपकी ये चर्चा...हमारी पोस्ट को छोड दिया जाए तो आपने चर्चा के लिए बहुत ही बढिया पोस्टस का चुनाव किया...सभी एक से बढ्कर एक.
जवाब देंहटाएंआभार्!
ओर ये क्या देख रहे हैं यहाँ---एक ओर उस्ताद जी, वो भी असली वाले, बिल्कुल शुद्ध वनस्पति घी के माफिक :)
वाह उस्ताद वाह!
जवाब देंहटाएंयह भी मस्त तरीका रहा चर्चा का.
जवाब देंहटाएं@ पंडित वत्स जी
जवाब देंहटाएंपंडित जी आपको क्यों छोड़ दिया जाए।
जो सच है उससे मुंह क्यों मोड़ लिया जाय!
ब्लॉगजगत अब हो रहा है ख़ूब आबाद
मिलने लगें हैं उस्तादों (चर्चकार) को एक से बढकर एक उस्ताद(टिप्पणी कार)!!
सुन्दर चर्चा मनोज जी।
जवाब देंहटाएंmain Deepak ki baaton se poori tarah sahmat hun...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद ! आप सबका स्नेह ही मेरी शक्ति है! कृपया इसे यूँ ही बनाये रखें!
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ.
www.marmagya.blogspot.com
बहुत सुन्दर चर्चा की है आपने...
जवाब देंहटाएंमर्मज्ञ जी को पढ़ा मैंने और बहुत प्रभावित हुई...
मेरी दृष्टि में कोई यदि इमानदारी से निर्लिप्त होकर किसी पोस्ट की समालोचना करता है,तो अपना सम्मानजनक स्थान बनाने में उसे अधिक समय नहीं लगेगा और सहर्ष ही लोग उसे उस्ताद मान लेंगे,चाहे उस्ताद जी नाम धारण किया व्यक्ति कोई भी हो....