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बुधवार, अक्टूबर 20, 2010

"भौं भौं खों खों का गेम ..." (चर्चा मंच-313)

नमस्कार मित्रों!
आज बुधवार है और हर बुधवार को चर्चा मंच पर चर्चा करने की जिम्मेदारी मेरी है! इसलिए मैं लेकर आया हूँ कुछ ब्लॉग-पोस्टों के शीर्षकों को! शायद आप इसके लिए तैयार होंगें। आपके अन्तर्मन से मुझे सुनाई दे रहा है। हम जाँच के लिए तैयार हैं। पिता तुम्हें नमन  और आप जानना चाहेंगे कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के इस नए गेम के बारे में क्योंकि चोर के अर्जन सब कोई खाए, चोर अकेला फांसी जाए चाहे  किसी का जन्म दिन ही क्यों न हो। 
धार्मिक कट्टरपंथ सामान्यतः अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता | लेकिन यदि धर्मग्रंथों की अच्छी बातों का कट्टरता से पालन किया जाय तो जागो हिन्दू जागो - कट्टरपंथी बनो। .ब्लॉगिंग से दस दिन की फोर्स्ड लीव से..एल्लो जी, फिर आ गया मैं...। एक लम्बे अंतराल के बाद आप सब से मुखातिब हूँ. इस बीच कुछ समय के लिए जननी और जन्मभूमि की चरण-रज लेने हेतु भारतवर्ष गया. कुछ तो असर आहों में है। जो कुछ चाहो , वो मिल ही जाए , ऐसा कभी नही होता है । इसलिए जो कुछ मिले , उसे " चाह " लेना ही ठीक है । जो कुछ सीखो , सब आ जाए, ऐसा कभी नही होता है । इसलिए मेरे मन ....बोलो ठीक है न......
पिछले लेख से आगे...... एक कटु सत्य!...........................तकनीकी की जरूरत हो तो अपना डेस्कटॉप फीडरीडर डाउनलोड करेँ । जीवन की विचित्र ही है रीत! दुःख दर्द ही जैसे हों मानव के सच्चे मीत! सौहार्द प्रेम की अनोखी पहचान लिये, अधरों पे खिला मनामोहक एक गीत... जी हाँ यही तो है ......अनुपम यात्रा की शुरूआत ...का जीवन संगीत! शताब्दियों की दंतकथाएँ हर चट्टान हे चेहरे पर साक्षीत्व के हस्ताक्षर.चित्तौड़
हमसफर रहबर कई वीरान से रस्तें हैं, पर वो राहजन कहाँ हैरत में...क्या जाने मार डाले, ये दीवानापन ........तेरे बग़ैर, सुरूर, लुत्फ़-ओ-फ़न कहाँ ज़िक्र न हो तेरा, फिर वो सुख़न कहाँ मिलते हैं सफ़र में। इस वर्ष देशभर में दुर्गापूजा के साथ साथ कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स की भी धूम रही.....आज हर स्‍तर पर अधिकारों का दुरूपयोग हो रहा है ! अगर बनाकर रखोगे इसतरह दुश्मन की कातिल औलाद को, घर अपने घर-जवाई ! तो फिर कसाब तो, थूकेगा भी, हंसेगा भी, और नखरे भी दिखाएगा, पसर बैठ, ले-लेकर जम्हाई ....जनाब यही तो है...बिडंबना !
दो पंक्ति फेसबुक पर दी थी। काफी प्रतिक्रिया हुई। मित्रों ने उद्धरणों की मांग की। उनकी यह मांग स्वाभाविक है-प्रेमचंद और सांप्रदायिकता-- एक पुनर्विचार। लो जी शुरू हो गया है...भौं भौं खों खों का गेम .....!  अभी हाल में उत्तर प्रदेश ने पत्रकारों से सम्बंधित दो घटनाएं हुई हैं। एक में कानपुर से प्रकाशित हिंदुस्तान अखबार के प्रेस को पुलिस वालों द्वारा चारो तरफ से ...पुलिस थानों में क्या-क्या होता है, उसकी जानकारी प्रधानमंत्री से लेकर सबको होती है। आप कितने बड़े सनकी...... आई मीन ब्लॉगर हैं? - क्या ब्लॉगर होने के लिए ... सनकी होना ज़रूरी है? आप कितने बड़े सनकी...... आई मीन ब्लॉगर हैं? सिंदूरी रंगों की छटाओं के रेशम के तुकडे, जिन से मैंने बनाई है है चित्र की पार्श्वभूमी...कुछ रंगीन रूई के तुकडे, टांकें हैं....ताकि रहें आँखें मेरी ख़्वाबों भरी! रोटी खाने को कम है बची थालियाँ । अरे रोटियों के लिए थालीयों की क्या जरूरत किन्तु जज्बात दिल में अगर ...उतर आये तो...कुछ कहे विना तो रोनी सी बनी रहती है अपनी सूरत! ................ भावनायें... खो देने का भय जब प्रबल होता है तो सागर नाले की शक्ल में जीना चाहता है .!
भव्यता और प्रभाव, प्रदर्शन और उपलब्धि, पसीना और सोना...यही सब हैं राष्ट्रमंडल खेलों के मुख्य तत्व...आइए, हम आपको मिलवाते हैं - ज़िद से जीत तक के परिणामों से। …एक खामोश सफ़र कहानी नही कविता के साथ.युगों का प्रमाण क्या दोगे ? - दोस्तों!
आत्मा अजर अमर है अथवा आत्मा का विनाश होता है ? आत्मा का अस्तित्व शरीर के साथ होता है । जब पंचतत्वात्मक , नाशवान शरीर , मृत्यु के उपरान्त , मिटटी में मिल..आत्मा की उत्पत्ति तथा विनाश--आत्मा की संख्या कितनी है पृथ्वी पर ? -- Our Soul ! के बारे में क्या आपको पता है? यदि नहीं तो ZEAL पर पढ़ लीजिए ना!  समझो या ना समझो , मैं कुछ कहना चाहता हूं , तुम्हें मांगना चाहता हूं , हूं बहुत उलझन में , क्या करूं ,किससे कहूं ?  तुम नहीं जानतीं...है कितना आकर्षण !
यह एक चुराया हुआ शीर्षक है जिसे  एक सम्मानित टिप्पणीकार की एक टिप्पणी से मैंने उड़ाया है.दिनोदिन आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करना कठिन होता जा रहा है! वैसे सम्मानित टिप्पणीकार ज्यादातर एक ही चिट्ठे पर अपने विचार पुष्प बिखेरते पाए जाते हैं.............।
कड़े फैसले को तैयार सरकार
26-11 के पीछे आईएसआई
शिवसेना की तीसरी पीढ़ी
बदले-बदले लालू
रोज शाम आती थी, मगर ऐसी न थी.....
जब शाम के रंग में हो एल पी के मधुर धुनों की मिठास, 
तो क्यों न बने हर शाम खास!
जली तो जली पर सिकी भी खूब!
आज के लिए केवल इतना ही! 
सब आपका ही है, मेरा कुछ नही।।
प्रणाम!!

24 टिप्‍पणियां:

  1. दिनोदिन आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करना कठिन होता जा रहा है! :):)

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  2. शास्त्री जी,
    हर बार एक नया अन्दाज़्……………ये काबिलियत सिर्फ़ आपमे है……………आपके अन्दाज़ और कर्मनिष्ठा को नमन है।

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  3. एक सार्थक संकलन और गम्भीर चर्चा शास्त्री जी जिसमें आपने कई महत्वपूर्ण शीर्षकों को अपने रोचक अन्दाज में प्रस्तुत किया है।
    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. सार्थक चर्चा लगी !
    -ज्ञान चंद मर्मज्ञ

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  5. सार्थक चर्चा लगी !
    -ज्ञान चंद मर्मज्ञ
    www.marmagya.blogspot.com

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  6. इतने सारे लिंकों को एक सूत्र में अच्‍छी तरह पिरोया है .. आपका बहुत आभार !!

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  7. बहुत सुन्दरता से भिन्न शीर्षकों को चर्चा में एक सूत्र में आबद्ध किया है , इस उत्कृष्ट संयोजन हेतु ढ़ेर सारी बधाई!!!!

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  8. इस पोस्ट को (पोस्ट ही कहूंगा, चर्चा नहीं) पढने के बाद मन में यह ख़्याल आया कि अलग-अलग बिखरे लिंक को एक सूत्र में पिरोने का काम आपने बखूबी लिया है। अब ज़िम्मेदारी हम पर है कि यह सूत्र टूटने न पाए।
    आभार!

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  9. बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत चर्चा..आभार

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  10. शास्त्री जी विषय तो आप ने बहुत अच्छा चुना है|
    बहुत अच्छी चर्चा
    आप मेरे ब्लॉग पर भी पधारें http://deep2087.blogspot.com

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  11. ख़ूबसूरत अन्दाज़ में सार्थक चर्चा। शास्त्री जी को मुबारकबाद।

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  12. वाह आज तो अंदाज ही निराला है ..बढ़िया चर्चा.

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  13. बहुत ही बढ़िया और लाजवाब चर्चा रहा!

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  14. ह्म्म्म्म आज लिखूंगी--बढ़िया----

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  15. हर चर्चा कोई ना कोई नवीनता लिए होती है |
    अच्छी चर्चा और लिंक्स के लिए बधाई |मेरे ब्लॉग को शामिल किया है इसलिए आभारी हूं
    आशा

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  16. मेरी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद | चर्चा का यह अंदाज़ अनोखा और अच्छा लगा |

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