नमस्कार , फिर हाज़िर हूँ आपके समक्ष मंगलवार को चर्चा-मंच पर काव्य-धारा बहाने के लिए ..इस काव्य धारा में डूबिये - उतरिये और सराबोर हो जाइये ..आज कल हर जगह नवरात्रि -पर्व मनाया जा रहा है …और कोलकता में तो यह इतनी धूम धाम से मनाया जाता है कि वहाँ के विभिन्न पंडाल देख कर दांतों तले उंगली दबानी पड़ती है …हमारे ब्लॉग जगत में भी यह पर्व कुछ अनूठे तरीके से मनाया जा रहा है ….सबसे पहले आपको ले चलती हूँ उस ब्लॉग पर जहाँ इस त्योहार को एक नयी दिशा दी जा रही है …नौ दिन तक विभिन्न क्षेत्र की कवयित्रियों की कविताओं का अनुवाद आपके समक्ष रखा जा रहा है …..तो चलते हैं इस पर्व में शामिल होने शरद कोकास जी के ब्लॉग पर … |
अविनाश चन्द्र मेरी कलम से.....पर लाये हैं माँ को समर्पित एक ऐसी रचना जिसे आप सभी पढ़ना चाहेंगे गतिमान द्रव्य.तपती दोपहरी की,जलती रेत में. सूखते कंठ और, टूटते घुटने. जब किसी, रट्टू तोते की मानिंद. होते हैं, देने वाले जवाब. .****************** हर शिरा रोम में, परमपूज्य तुम, आदि से अंत तक, गतिमान हो जननी इस रचना पर प्रतुल जी की टिप्पणी के बाद कुछ नहीं रह जाता कहने को …. @ जननी के विविध रूप आपने हर कहीं देखे और हमें दिखाये : पसीने की ममतामयी बूँद में शिव-गंगा [मंदाकिनी]; दर्द से उमठी भृकुटियों में संतोष के दर्शन; आँसू में स्वाति नक्षत्र का वर्षण-सन्देश; और जननी-पुत्रों का पारस्परिक सहयोग. आदि से अंत तक उस परम शक्ति के दर्शन करना ......... अदभुत नेत्र हैं कवि तुम्हारे. इन नेत्रों को तो पूरा जीवन पूजा-अर्चन करके भी नहीं पाया जा सकता. मुझे तो अचंभित कर दिया ऐसे काव्य ने.( प्रतुल वशिष्ठ ) |
वंदना जी हर बात मान रही हैं पर फिर भी न जाने क्यों एक जिद सी भी है …नहीं मानते न आप? खुद ही पढ़िए - माना......माना चाहत की डोरबाँधी है तूने मुझसे मगर मैंने नहीं माना तेरी चाहत पूजती है मुझे माना मेरे जिक्र से बढ़ जाती हैं धडकनें माना पवित्र है तेरी चाहत | सप्तरंगी प्रेम पर पढ़िए अनामिका जी की एक प्रेम पगी रचना - करीब आने तो दो.अपनी बाहों के घेरे में, थोडा करीब आने तो दो. सीने से लगा लो मुझे, थोडा करार पाने तो दो. छुपा लो दामन में, छांव आंचल की तो दो . सुलगते मेरे एह्सासो को, हमदर्दी की ठंडक तो दो. |
स्वप्न मंजूषा जी भारत में निरंतर बढने वाली ऐसी बीमारी की बात कह रही हैं जो देश को खोखला करती जा रही है …ज़रूरी है कि इसे रोकने के सार्थक उपाय किये जाएँ … तपेदिक..भारत में प्रति मिनट, एक व्यक्ति की आत्मा मर जाती है, कई करोड़ इस बीमारी से पीड़ित हैं, हज़ारों मरीजों की जीवन शैली में ही, इस रोग के लक्षण हैं |
राजीव सिंह अपनी रचना में बता रहे हैं कि आज के ज़माने में कौन इंसान जी सकता है … पढ़िए उनका पागलपन शहर में अचानक सामने से आता आदमी कह उठता मुझे देखकर पागल है क्या…… ********************* जो जितना पहले मर जाता है वह उतना पहले दुनिया में जीने लायक बन जाता है मैं भी धीरे धीरे दुनिया में जीने लायक बनता जा रहा हूँ | उत्तमराव क्षीर सागर जिजीविषा को बनाए हुए प्रस्तुत कर रहे हैं … तीन टुकड़ेएक पंछीबार-बार बनाता है घोंसला लेकिन बार-बार आता है तूफ़ान बिखर जाता है तिनका-तिनका तहस-नहस हो जाता है अरमान फिर भी बचा रहता है हौसला बार-बार बनाता है घोंसला वह पंछी मैं हूँ |
मनोज जी अपनी भावनाओं के सैलाब में डूबते उतराते आज से छ: वर्ष पूर्व सुनामी की लहरों से अपनी भावनाओं का तारतम्य जोडते से प्रतीत हो रहे हैं …आज की उनकी कविता ने वो सारे दृश्य एक बार फिर आँखों के सामने ला खड़े किये हैं जिसकी त्रासदी सुनामी की लहरों ने दी थी … दुर्नामी लहरेंहुई पुलिन1 पर मौन, 1. पुलिन :: जल के हट जाने से निकली जमीन उदधि की प्रबल तरंगे सिर धुनकर। हतप्रभ है जग, अब वसुधा की विकल वेदना सुन-सुनकर। |
डोरोथी जी का ब्लॉग है अग्निपाखी यूँ ही बेवजह सुना रही हैं … पतझड़ राग१ मन किसी बिगड़ैल घोड़े सा बारंबार निषिद्ध मार्गों पर भाग जाना चाहता है सरपट बदहवास लगाम थामे सुनती हूं मैं दूर कहीं --- सूखे पत्ते का झड़ना जमी हुई बर्फ़ का चटकना और कर्कश कौओं का चिल्लाना !! | संपादक नाम से लिखते हैं दुनिया के रंग ब्लॉग पर …बहुत सकारात्मकता भरी सोच लाये हैं अपनी रचना में ….. रूकूँ किसलिए !जब चलने को मंजिल बाकी, रूकूं किसलिएपथ पर शूल बिछे हैं कोई बात नहीं, पतझर के पहरे में फूटे पात नहीं, आशा के चेहरे पर घूंघट डाल दिया, पर विश्वासी मन नें मानी मात नहीं ! जब उठने को गगन पडा है, झुकूँ किसलिए |
बी० एल० गौर जी की एक खूबसूरत छंदबद्ध रचना पढ़िए गिरते निर्झर का गीत लिखूं या लिखूं नगर की चहलपहल या सूर्योदय के स्वागत में मैं लिखूं भोर की कुछ हलचल जब बिखरा ईंगुर धरती पर आया मंदिर से शंखनाद कानों से आकर टकराया वह परम सत्य वह चिर निनाद इस मन की दशा न रहती थिर यह तो पारद सा है चंचल |
रेहाना चाँद के बारे में जानना है तो पढ़िए उनके ख़याल हक़ीक़त ख़याल की जुब जान लो ज़हमत ख़याल को ना दिया करो ख़याल तो फिर ख़याल हैं कोइ मलाल इनका ना किया करो ये उमर का इब्त्दाई लिबास हैं इन्हें उमर-भर ना सिया करो | अरुण खादिलकर जी मन की लहरें पर आज मन और समंदर की लहरों की तुलना कर रहे हैं .. लहरें समन्दर की, लहरें मन कीधीमी-धीमी मृदुल हवा से गतिमान समन्दर की लहरें हों या बवंडर से आघातित ऊँची ऊँची उछलती लहरें |
नीरज कुमार झा मेरा पक्ष पर समाज को सन्देश दे रहे हैं कि आने वाली पीढ़ी के लिए ज़मीन जायदाद छोडने से बेहतर है कि हम उनके लिए बेहतर समाज छोड़ें ….पढ़िए - क्यों नहीं ...कर्ज है हमारे ऊपर पुरानी पीढ़ियों का अधिकतर पीढ़ियों ने दी है बेहतर दुनियाँ आने वाली पीढ़ियों को गौर करें हम भी अपनी विरासतों पर |
रावेंद्र जी प्रेम भरी पाती लिख रहे हैं …गाँव से दूर रह रहे लोगों के भावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है .. लिखना, कैसी हो तुम?आशा है यह पत्र पहुँच जाएगातुम तक और तुम्हारे मन भाएगा, पढ़कर इसको ख़ुश होगी ना? लिखना - कैसी हो तुम? अच्छी तो हो ना? | गिरिजा कुलश्रेष्ठ एक गरीब के घर को शब्दों में साकार कर रही हैं …शिवम है कि मानता नहीं शिवsss म्.....। माँ पुकारती है । दिनभर बैठे--बैठे ,बीडी बनाते झाडू-पौंछा या चौका--बर्तन करते, थकी हुई माँ ..। हाथ से बहुत पीछे छूट गए सपनों की याद में , कहीं रुकी ह्ई माँ |
इस्मत जैदी जी का ब्लॉग एक वर्ष का हो गया ….और इसके जन्मदिन पर इस्मत जी लायी हैं एक खूबसूरत गज़ल और शुक्रिया के कुछ लफ्ज़ … आज इस ब्लॉग की सालगिरह के मौक़े पर एक ग़ज़ल हाज़िर ए ख़िदमत है इस एक साल के सफ़र में आप सब ने जो सहयोग और मान दिया है,उस के लिये मैं बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूं ......वो इक ज़िया ही नहींदरीचे ज़हनों के खुलने की इब्तिदा ही नहींजो उट्ठे हक़ की हिमायत में वो सदा ही नहीं ज़मीर शर्म से ख़ाली हैं ,दिल मुहब्बत से हम इरतेक़ा जिसे कहते हैं, इरतेक़ा ही नहीं |
सुमन सिन्हा जी की तलाश है कि कहाँ हूँ मैं ...कभी कभी इंसान खुद को ही भीड़ में तलाशता है … कहाँ हूँ मैं ! सब कहते हैं आप बहुत अच्छे है मैंने पूछा - क्यूँ - क्योंकि आप हमेशा हमारे लिए सोचते हैं किसी ने कहा आप कितने प्यारे हैं -- कैसे भला आप हमे इतना प्यार जो करते हैं ................. और मैं टुकड़े टुकड़े होता गया ! | दीपशिखा जी भ्रष्टाचार के विरुद्ध करवा रही हैं सब जगह शोर है , संदेह है . मन के अन्दर ही अन्दर कई तूफ़ान हैं , एक इस्तीफे के मांग है . |
कुंवर कुसुमेश जी समाज को सन्देश दे रहे हैं ….दूरदर्शन पर जो कुछ परोसा जा रहा है उससे क्षुब्ध हैं …आप भी जानिये उनके विचार विरासत को बचाना चाहते हो में विरासत को बचाना चाहते हो , कि अस्मत को लुटाना चाहते हो. तुम्हारी सोंच पे सब कुछ टिका है, कि आख़िर क्या कराना चाहते हो. |
रश्मि सविता बहुत सशक्त कविता लायी हैं … एक गव्हर है कि भरता नहीं एक गह्वर है ,जो भरता नहीं ; सिमटकर लम्हे मेरी मुट्ठी में है और रेत के माफिक फिसल रहे हैं सच है , वक़्त कभी ठहरता नहीं ; एक गह्वर है ,जो भरता नहीं ; | एकला संघ पर जसवीर जी कि रचना ज़िंदगी के रास्तों पर चलने के सही तरीके को बता रही है .. खबरदार ! बरखुरदारक्यूँ भटकते हो टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर ? सीधी राह पर चलो, ओवरब्रिज पर चढ़कर प्लेटफार्म पार करो रेल की पटरियों को क्रॉस करते हुए क्यूँ डालते हो अपनी जान जोखिम में ? |
स्वप्निल कुमार “ आतिश “ न जाने आज कल कहाँ आतिशबाजी कर रहे हैं ….पर इस बार लाये हैं बेहद खूबसूरत नज़्म - वो छाँव बनकर छुप गयीआओ बुनें कोई सहरपहने जिसे सारा शहर वो छाँव बनकर छुप गयी जब धूप ने डाली नज़र तेरे बाद मैं हूँ देखता ये तितलियाँ या गुलमोहर |
विवेक मिश्र अनंत अपार असीम आकाश पर शब्दों की महिमा का वर्णन कर रहे हैं , शब्द भेदी बाण और शब्द बाण का अंतर आपको पता चलेगा उनकी रचना पढ़ कर .. अब व्यर्थ है करना अफ़सोस , संधान हो चुके शब्द-बाणों का । लक्ष्य पर वो निकल पड़े , नहीं उन पर अधिकार कमानों का । शब्द भेदी बाणों से , होता है घायल केवल तन । जब शब्द ही बाण बन जाये , कैसे बच पाये मन .. | राणा प्रताप सिंह ब्रह्माण्ड पर एक तरही गज़ल लाये हैं .. फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मन्दिर क्यूँ हैसारी दुनिया में छिड़ी जंग ये आखिर क्यूँ हैअम्न के देश में छब्बीस नवम्बर क्यूँ है आज धरती पे हर इन्सान जुदा लगता है चेहरे मासूम मगर हाँथ में पत्थर क्यूँ है |
सांझ को जानिये उनकी गज़ल से …. जानांवो रिश्ता कैसे खो गया जानां हमारे दरमियाँ जो था जानां आप तो यूँ ही खफा हो बैठे हमने ऐसा भी क्या कहा जानां किस्मतें आपने बदल डाली अब लकीरों से क्या होगा जानां |
मोहिंदर कुमार जी दिल का दर्पण पर प्रेम को परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं .. संग हैं मेरे आज सजन ... प्रेम एक अनुभूति प्रेम एक प्रतिति प्रेम एक आहुति शांत कभी कभी प्रज्जवल्लित क्षण में एकान्तक क्षण में मिश्रित | हिमांशु डबराल जी बेबाक बोल पर देश के हालातों को बताते हुए हिंदुस्तानियों को जागने का सन्देश दे रहे हैं .. बदतर है...क्या मंदिर है, क्या मज्जिद है, दोनों एहसासों के घर है... आखें बंद रखो तो शब्, वरना हर वक्त सहर है. |
ओम् प्रकाश तिवारी जी एक गज़ल प्रस्तुत करते हुए यह बता रहे हैं कि क्या कीजिये और क्या न कीजिये …फिर भी कह रहे हैं कि अब आप अपनी कीजिएपंच अपनी कर गए अब आप अपनी कीजिए, लीजिए हिंदोस्तां और एक तिहाई दीजिए । पांच गांवों के लिए थे लड़ मरे इतिहास है, कुछ नया रचते हैं अब दोहराव तो ना कीजिए । |
राजीव सिंह जी की रचना पीपल उर्फ प्रेमी पेड़ों से मिलने वाली छाँव की बात करती है , ठांव की बात करती है .. दूर बैठा है पीपल का पेड़ तुम्हारे लिए कि तुम जब इस निर्जन सड़क पर निर्दयी धूप में जलते हुए उसके पास पहुंचो तो वो तुम्हे पिला सके छांव की दो घूँट सुख | नरेश चन्द्र नाशाद महफ़िल-ए-नाशाद पर एक बहुत रूमानी सी नज़्म लाये हैं तुम बिन सब अधूरा होगा फिर वो ही चाँद होगा वो ही सितारों का कारवां होगा फिर वो ही बहारें होगी वो ही फूलों का नजारा होगा सब कुछ होगा मगर फिर भी तुम बिन सब अधूरा होगा फिर वो ही गाँव और चौबारा होगा वो ही पनघट का नजारा होगा |
इस बार डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी लाये हैं नन्हे सुमन पर एक बाल गीत … ऐसे प्राणी के बारे में जो सबके लिए कितना बोझ ढोता है पर तब भी कोई उसे पसंद नहीं करता .. “भार उठाता, गधा कहाता”कितना सारा भार उठाता। लेकिन फिर भी गधा कहाता।। रोज लाद कर अपने ऊपर, कपड़ों के गट्ठर ले जाता। वजन लादने वाले को भी, तरस नही मुझ पर है आता।। |
स्पंदन पर शिखा वार्ष्णेय लायी हैं कुछ सीली सीली सी ज़िंदगी ….धूप में सुखाने की ख्वाहिश पर पड़ जाता है धूप पर भी पर्दा …आप पढ़ें पर्दा धूप पेना जाने कितने मौसम से होकर गुजरती है जिन्दगी झडती है पतझड़ सी भीगती है बारिश में हो जाती है गीली फिर कुछ किरणे चमकती हैं सूरज की तो हम सुखा लेते हैं जिन्दगी अपनी |
एम० वर्मा जी जज़्बात पर दिखा रहे हैं भीड़ का चेहरा …भीड़ में आदमी का विवेक काम नहीं करता बस भीड़ होती है . कदहीन मगर आदमकद भीड़अपना कोई चेहरानही होता है भीड़ का, भीड़ में मगर अनगिन चेहरे होते हैं. भीड़ में जब लोग बोलते हैं, तब समवेत स्वर संवाद से परे हो जाता है | दायरे..बचपन में कभी कभी टूटे पंख घर ले आती थी अब्बू को दिखाती थी.. अब्बू यूँ ही कह देते-...... "इसे तकिये के नीचे रख दो और सो जाओ सुबह तक भूल जाओ वो दस रुपये में बदल जाएगा |
समीर लाल जी बस्ती बस्ती घूम रहे हैं प्यार कि तलाश में …जो वो प्रेम पाती लिखते हैं लोंग उसे गीत और गज़ल कह देते हैं ….आप भी पढ़िए उनकी गीत बनाम पाती …. प्यार तुम्हारा इक दिन.प्यार तुम्हारा इक दिन हासिल हो शायदबस्ती बस्ती आस लिए फिरता हूँ मैं.... प्यार की पाती जितनी भी लिख डाली है यूँ नाम गज़ल दे लोग उसे पढ़ जाते हैं... अपने दिल के भाव जहाँ भी मैं कहता हूँ गीतों की शक्लों में क्यूँ वो ढ़ल जाते हैं.. |
आज की चर्चा का समापन करती हूँ …आशा है आपने इस धारा में डुबकी तो लगायी ही होगी … और मन को शीतलता भी मिली होगी …चर्चा की सार्थकता हमारे पाठकों के हाथ में है …आपका सहयोग हमारा मनोबल बढाता है …आप सभी का सहयोग मिलता रहा है और हम हमेशा आप सबसे इसकी अपेक्षा करते हैं …और हाँ लिंक पर जाने के लिए आप चित्रों पर क्लिक करके भी पहुँच सकते हैं …..नवरात्रि की शुभकामनायें ….फिर मिलते हैं …….इसी जोश के साथ …अगले मंगलवार को ….. नमस्कार |
बहुत बढ़िया चर्चा ,... अच्छे लिंक मिले...आभार
जवाब देंहटाएंरंग बिरंगी मनभावन चर्चा .. आभार !!
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्यमय चर्चा
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा सजाया गया चर्चा मंच विविधता लिए हुए है | मैं तो दोपहर में ही इसका आनंद ले पाउंगी |अभी सारी लिंक्स सतही तौर पर देखी हें |अच्छी लिंक्स के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह ढेर सारी कविताओं के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...
आभार ...!
जब ये कहते हैं कि बस एक है ऊपर वाला
जवाब देंहटाएंफिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है
5 अक्टूबर की पोस्ट का उपर्युक्त शेर लाजवाब है .रचनाकार को बधाई और आपको भी धन्यवाद जो इतनी अच्छी पोस्ट लगाई और दिखाई.
मेरी पोस्ट 12 अक्टूबर को लगाने के लिए भी धन्यवाद.
कुँवर कुसुमेश
आपकी चर्चा का रंग निराला है ..एकदम आकर्षक ..बहुत ही मनभावन ..शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अच्छे लिंक्स मनभावन !!धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबात अच्छी है, तो उसकी हर जगह चर्चा करो,
जवाब देंहटाएंहै बुरी तो दिल में रक्खो, फिर उसे अच्छा करो।
आप दोनों कर रहीं हैं। जो इज़्ज़त और हौसलाआफ़ज़ाई आपने की है इस नाचीज़ को इस महफ़िल में शामिल करके उसके लिए हम तहे दिल से आपका शुक्रगुज़ार हैं।
अपने मन में ही अचानक यूं सफल हो जाएंगे
क्या ख़बर थी कि आपसे मिलकर ग़ज़ल हो जाएंगे
badiya links.....
जवाब देंहटाएंaabhar
्स्भी लिन्क्स अच्छे है ……………।मज़ा आया
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,आदाब,
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल कर के आप ने जो सम्मान दिया है उस का बहुत बहुत शुक्रिया
इतने सारे लिंक्स एक दिन में मिल गए आराम से पढ़ती रहूंगी कई दिन तक
धन्यवाद
बहुत बढ़िया चर्चा ,...
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक मिले...
आभार...!
बढ़िया लिंक!
जवाब देंहटाएं--
सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा काव्य मंच!
--
यह चमत्कार तो सिर्फ संगीता स्वरूप ही कर सकती है!
--
बहुत-बहुत बधाई!
काव्यमयी चर्चा का स्वागत है...सप्तरंगी प्रेम ब्लॉग की चर्चा हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक मिले
शुक्रिया
संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका .... कविताओं का पवन तट आपने प्रदान कर दिया है और हमने सूर्य उदय के साथ उसमें डुबकियां लगाने शुरू कर दी हैं ... आभार आपका .... शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक काव्यमंच की चर्चा .. अत्यंत सार्थक और अनूठे अन्दाज की चर्चा से रूबरू करवाता है.
जवाब देंहटाएंसारयुक्त ।
जवाब देंहटाएंsundar charcha!
जवाब देंहटाएंmany nice links incorporated!
regards,
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति, संगीता स्वरूप जी को बहुत बहुत बधाई। आदरणीया इस्मत जैदी जी की ग़ज़ल मुझको इस चर्चा के कंटेन्ट में सबसे अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त यत्न व प्रयत्न से संकलित इस पोस्ट के लिये निश्चय ही आप बधाई के पात्र हैं. पठनीय लिन्क एक जगह मिलना बहुत कठिन कार्य है... इस प्रयत्न को जारी रखें..... आभार
जवाब देंहटाएंबहोत ही अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा……………ज्यादातर लिंक्स पर हो आयी हूँ और कुछ फ़ोलो भी कर लिये हैं……………आभार्।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा. काफी अच्छे लिँक मिले...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी नमस्ते ।
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । पहली बार इसमें शामिल होने का अवसर मिला है । आपके ई-संचालन की तारीफ करनी पड़ेगी । सभी रचनाओं का चयन काफी सटीक है । -- आभार
thanx sangeeta ji....
जवाब देंहटाएंcharcha munch par vakai me aana sikhad hai...aur naye links milne ki khushi toh hoti hi hai...
sachmuch " kuchh neh se pagta hua sa meetha lag raha hai"......
:)
संगीता जी नमस्ते ।
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । पहली बार इसमें शामिल होने का अवसर मिला है । आपके ई-संचालन की तारीफ करनी पड़ेगी । सभी रचनाओं का चयन काफी सटीक है । -- आभार
बहुत सुंदर काव्य मंच सजाया है. कोशिश करती हूँ प्रत्येक लिंक पर जाने की अगर आज नेट जी मेहरबान रहे तो, सुबह से तो आज ये नखरे दिखा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंविविधता पूर्ण और नए नए लिंक से मिलवाती आपकी चर्चा की मेहनत सराहनीय है.
बहुत-बहुत शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंआभार...!
बहुत से अच्छे लिंक्स दिख रहे हैं विविधता लिए हुए सभी जगह जाना बाकि है .कहाँ कहाँ से ढूंढ लती हैं आप इन्हें :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और विस्तृत चर्चा.
आभार.
har baar kee tarah shandar charcha ... har tarah kee kavitaayen ... :)
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha...achhe links..aabhar
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करके आपने जो सम्मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है उस के लिए मैं आपकी और इस मंच पर उपस्थित सभी गुणीजनों की बेहद आभारी हूँ.
इंद्र्धनुषी रंगों से सराबोर काव्य संसार के इतने सारे बढ़िया लिंक्स देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर,
डोरोथी.
thanx sangeeta mam asha krta hu apka ashirvad nirantar hme prapt hota rhega jo hmare liye prernaspad hoga
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंकुछ कहूँ?? इतना योग्य नहीं
प्रणाम करता चलूँ... :)
ओह! शायद खुद के लिंक को छोड़ सभी पर जाना शेष है...भारत जाने के तैयारी में महिना भर पहले से ही व्यस्तता हो जाती है.
जवाब देंहटाएंआभार सारे लिंक्स यहाँ देने का. सहूलियत होगी.
आपके साभार सभी लिंक्स पर हो आये.
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर मेरी कविता शामिल करने के लिये धन्यवाद. अच्छी रचानाएँ आपने सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाई है. बधाई. हम सभी एक बेहतर समाज के लिये ही काम कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर मेरी कविता शामिल करने के लिये धन्यवाद. अच्छी रचानाएँ आपने सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाई है. बधाई. हम सभी एक बेहतर समाज के लिये ही काम कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा --आभार !
जवाब देंहटाएंआप इकठ्ठा कर देते हो
जवाब देंहटाएंमंच लगाकर अपनेपन में
अहंकार को छोड़ परस्पर
मिल जाते सब कुछ ही क्षन में.
इस मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित कर आपने जो मेरा मान बढाया है, उसके लिए मैं आप सबका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ/
जवाब देंहटाएंआभार.. संगीता स्वरुप जी
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा सजाया गया चर्चा मंच विविधता लिए हुए है धन्यवाद.
मेरी कविता को साप्ताहिक काव्य चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास है...अच्छे लिंक्स...
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये....
संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद । पता नहीं कैसे इस पोस्ट पर आने से चूक गया । क्षमा चाहता हूँ । बेहद खूबसूरत कविताओं के लिंक्स से ओतप्रोत यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी । इनका प्रस्तुतिकरण भी बहुत बढ़िया है । पार्श्व में रंगों का चयन भी बेहद आकर्षक है । मेरी पोस्ट की चर्चा के लिये धन्यवाद जैसा शब्द बेमानी होगा ना ।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी ,यहाँ आकर कई अच्छी लिंक मिल गईँ ।धन्यवाद
जवाब देंहटाएं