आज शनिवार को एक अंतराल के बाद आप सबके लिए फिर से चर्चा लेकर हाज़िर हूँ. जैसी चर्चा आज मैं करना चाहता हूँ उसकी मांग एक लम्बे समय से कुछ पाठक करते आ रहे हैं, यानी एकल चर्चा.. किसी एक ही रचनाकार की विभिन्न पोस्टों की चर्चा एक जगह पर, उसकी खूबियों और खामियों का विश्लेषण.. लोगों को बताना कि उस चिट्ठे पर जाएँ तो जाएँ क्यों. काफी हद तक उनका भी कहना गलत नहीं कि चर्चा मंच में कभी कभार एकल चर्चा द्वारा सिर्फ एक चिट्ठाकार की विभिन्न पोस्टों की चर्चा हो जिससे कि लोगों को पता चल सके कि अपने लेखन के द्वारा कोई चिट्ठाकार कैसे हिन्दी चिट्ठाजगत को अपना योगदान दे रहा है. यहाँ पर आज मैं आज ऐसे चिट्ठाकार से आपका परिचय कराना चाहता हूँ जिसके लेखन में मुझे कुछ खूबी नज़र आयी(वैसे आपमें से कई उन्हें पहले से ही जानते होंगे)..
बेहतर होगा कि पहले उस शायरी, कविताई, नज़्मकारी के हुनरमंद के हुनर को पहले देख लिया जाए..प्रतिभा के दर्शन पहले कर लीजिये प्रतिभावान का नाम तो चलते-चलते आपको बता ही दिया जाएगा..
तो शुरुआत करते हैं उनकी त्रिवेणी से-
१-
आपकी आमद से राहें खुल गईं
बादलों से जैसे चमके रौशनी
ज़हन में कब से जमी थी मायूसी।
2.
आप से मिल के मेरा हाल ऐसा होता है
ज्यूँ समंदर में दिखे अक्स-ए-माह-ए-दोशीजा
दो-दो चेहरे लिए फिरती हूँ महीनों मैं भी।
3.
मेरे चेहरे पे शिकन पढ़ लेती हैं
आँखों में आई थकन पढ़ लेती हैं
बड़ी ही तेज़ तर्रार हैं, आँखें उसकी।
4.
बड़ी अना में कह गए थे वो जाते-जाते
अबकि उठे तो ना लौटेंगे तेरे दर पे सनम
लौट कर आए तो कहने लगे 'दिल भूल गए थे'।
बादलों से जैसे चमके रौशनी
ज़हन में कब से जमी थी मायूसी।
2.
आप से मिल के मेरा हाल ऐसा होता है
ज्यूँ समंदर में दिखे अक्स-ए-माह-ए-दोशीजा
दो-दो चेहरे लिए फिरती हूँ महीनों मैं भी।
3.
मेरे चेहरे पे शिकन पढ़ लेती हैं
आँखों में आई थकन पढ़ लेती हैं
बड़ी ही तेज़ तर्रार हैं, आँखें उसकी।
4.
बड़ी अना में कह गए थे वो जाते-जाते
अबकि उठे तो ना लौटेंगे तेरे दर पे सनम
लौट कर आए तो कहने लगे 'दिल भूल गए थे'।
5.
तेरी याद का एक लम्हा पिया
साँस आने लगी, जीना आसाँ हुआ
दमे की बीमारी है ज़िन्दगी गोया।
6.
तुम्हारी आँखों से गुज़रते हुए डर लगता है,
जगह-जगह है भरा पानी, और फिसलन है
ना जाने कब से मानसून ठहरा है यहाँ ।
तेरी याद का एक लम्हा पिया
साँस आने लगी, जीना आसाँ हुआ
दमे की बीमारी है ज़िन्दगी गोया।
6.
तुम्हारी आँखों से गुज़रते हुए डर लगता है,
जगह-जगह है भरा पानी, और फिसलन है
ना जाने कब से मानसून ठहरा है यहाँ ।
दर्द ए दिल की दवा दीजिये
अपनी सूरत दिखा दीजिये..
ज़िन्दगी थक के सोने लगी
अब तो सूरज बुझा दीजिये..
धडकनों में बहुत शोर है
लब से ऊँगली छुआ दीजिये..
नींद से तो खफा हम नहीं
ख्वाब लेकिन नया दीजिये.
ज़िन्दगी थक के सोने लगी
अब तो सूरज बुझा दीजिये..
धडकनों में बहुत शोर है
लब से ऊँगली छुआ दीजिये..
नींद से तो खफा हम नहीं
ख्वाब लेकिन नया दीजिये.
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अभी कविता में वो बात नहीं दिखाई देती जो उनकी और रचनाओं में है.. लेकिन कहते हैं ना कि 'ये लिखने की विद्या है बस लिखते-लिखते आती है.. सो वो भी आ जायेगी' पर भाव पक्ष तो मजबूत है ही-
बस में आते जाते
खुली खिडकी पे बैठे
धूल के उड़ते गुब्बारों को देखते
चिल्लाते लोग
दौड़ते भागते लोग
भीगे बिखरे लोगों को देखते हुए
कई बार सोचा
मैं तुम्हे भूल क्यूँ नहीं सकता ??..
कितना कुछ है दुनिया में
इन लोगो को ही देखो
ये लोग कितने व्यस्त हैं
व्यस्त तो मैं भी हूँ
पर तुम्हे याद करने में...
कभी कभी दिख ही जाती हो
तुम
बस की खिडकी से
झाँकती हुई
बोतल से
पानी पीती हुई..
भाग कर चढ़ता हूँ बस में
तो तुम नहीं होती
टिकट लेता हूँ
और अगले स्टॉप पे
उतर जाता हूँ
कि
मेरे पागलपन का
कोई साक्षी न हो..
टूटी फूटी
कविताएँ लिखता हूँ
और मोड कर गुल्लक में डाल देता हूँ
तुम्ही कहती थी
मेरी कविताएँ बहुत कीमती हैं
एक दिन
सबको बेच डालूंगा
और जहर खरीदूंगा
तुम्हारे
हर ख्याल
हर एहसास को
पिला दूँगा,
थोडा सा बच गया अगर
तो अपने बेचारे
भोले से
मासूम
मन को भी पिला दूँगा
जो तुम्हे भूल नहीं सकता...!!
आज के समय में प्रयोगधर्मी होना जरूरी हो गया है वर्ना आप साहित्य के पुराने ढर्रे पर चलते रहे तो ना ही नवीनता मिलेगी और ना ही लेखन में विविधतता आयेगी.. ऐसा ही एक प्रयोग देखिये-
मीठी हो तो गुड के जैसी, खट्टी नीम्बू जैसी
तुमसे मिलके जीने में एक Taste आ जाता है
बेसुवाद है जीवन मेरा, तुम अमचूर के जैसी
हंसती हो तो मोती बिखरे, चांदी वर्क चढ़े से
ज़ुल्फ़ से आती है खुशबू मोगरे फूलों जैसी