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सोमवार, जुलाई 18, 2011

हो सकता है विदाई का वक्त आ रहा हो ……चर्चा मंच

दोस्तों
आज से सावन के सोमवार शुरु हो रहे हैं भोले नाथ के……आप सब को
बधाइयाँ ………मै तो चाहती थी कि आप सबको भोलेनाथ के रंग मे
सराबोर कर दूँ और सबको लगे कि सावन के पहले सोमवार पर जैसे
भोलेनाथ के दर्शन कर लिये हों मगर ब्लोगजगत के हमारे ब्लोगर दोस्तों के पास शायद उस तरह का लिखने को कम है तभी सबको मेल करने के बावजूद भी सिर्फ़ गिन चुने लिंक्स ही मिल पाये……चलो जी जैसे भोलेनाथ की मर्ज़ी………आइये चर्चा मंच पर आप सबका स्वागत है




बाबो दौड़यो आवैगो पुकार तो करो............ 

 बिल्कुल सही कह रहे हैं


संत गंगादास 

 जानिये उनका चरित्र 



सीता का दर्द




भजन डाउनलोड करने की 2 बेहतरीन साईट
 अरे वाह ये तो बहुत बढिया बताया




"गुरु महिमा"..........(सद्गुरुओं का सान्निध्य)
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ

श्री राम, भक्त हनुमान और केले का पत्ता ... "ऐक्यवाद" और "द्वैतवाद" ...

 एक चिन्तन -------एक दिशा


महाकाल की प्रेम क्रीड़ा:-"सृष्टि और प्रलय"

ज़ानिये महाकाल का अन्दाज़


आया सावन झूम के

और बहुत कुछ कह गया


Yuva - MSN India | भोले भंडारी का प्रिय श्रावण मास

जानिये इसके भेद 




भय और भक्ति

शायद सच है

कब नदिया प्रीत निभाना जाने !! (आशु रचना )

वो तो सिर्फ़ बहना जाने


जन्मदिन कैसे मनायें ???(अजय की गठरी)

बहुत मुश्किल है


हाथ की लकीरें

क्या क्या कह गयीं

देखना है अब नज़ारा

क्या निकलेगा परिणाम

मुझे यकीन है ….

इसे बनाये रखें


सन्यासी विद्रोह और उसके सबक ( 1763-1800 )

सीखना जरूरी है


एक छोटी सी प्रेम कहानी जो इतिहास बन गई A love story between sea wave and mountain


ऐसी ही कहानियाँ इतिहास बनती हैं

दोस्तों आखिर मे एक पोस्ट और जिसे वेद व्यथित जी ने

मेरे मेल पर कहने पर लिखा है और सीधा मुझे ही भेज दिया है

वो काम मे बिज़ी थे इसलिये ब्लोग पर नही लगा सके

 उन्ही के शब्दो मे जैसा मेल आया है वैसा ही प्रस्तुत कर रही हूँ 


नेत्र तीसरा खुले और 
ये जग का कष्ट दूर हो 
सत्ता में बैठे भस्मासुर 
उन का दर्प चूर हो 
कहाँ समाधि में हो शिव शंकर 
नेत्र तीसरा खोलो 
भारत पर संकट है भारी
बम २ फिर बोलो 
वन्दना जी अभी कम्पुटर खोला तो आप कि कृपा पूर्ण मेल प्राप्त हुई है इसी पर यह रचना तुरंत पोस्ट कर दी है 
आप ने याद किया हार्दिक आभार 
डॉ.वेद व्यथित



चलिये जो मिला उससे काम चलाइये चाहती तो बहुत थी मगर लगता है चाहत से ही सब कुछ नही होता………इसलिये जो लिंक्स मिले मिलते जुलते वो लगा दिये बाकि उसके अलावा भी और रचनायें आपकी नज़र हैं………आगे मिलूँ ना मिलूँ कह नही सकतीहो सकता है विदाई का वक्त आ रहा हो ………या ये आखिरी चर्चा हो……देखते हैं

 

 




28 टिप्‍पणियां:

  1. बदल जाए अगर माली,
    चमन होता नहीं खाली,
    बहारें फिर भी आती हैं,
    बहारें फिर भी आयेंगी....
    --
    आज की चर्चा ने तो बहुत कुछ कह दिया!

    जवाब देंहटाएं
  2. वंदना जी,
    नमस्कार

    भक्ति भाव से पूरित लिंक्स मिले, अच्छा संकलन।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।
    आप से आग्रह है कि आप चर्चामंच में स्थायी रूप से बने रहें।

    जवाब देंहटाएं
  3. आज की चर्चा को पढ़ के दिल हुआ रंजूर है.
    लोग अच्छे हट रहे,ये भी कोई दस्तूर है ?
    शास्त्री जी, वंदना जी को न हटने दीजिये,
    वंदना जी का हमें हटना नहीं मंज़ूर है.
    ****************
    रंजूर=दुखी

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्‍छे लिंक्‍स के साथ बेहतरीन चर्चा ।

    जवाब देंहटाएं
  5. sabse pahle shukrgujaar hoon aapki apni charcha me meri love story ko sthan dene ke liye.aur behtreen link ke liye bhi.lekin jaate jaate apne aakhiri charcha kahkar man udaas kar diya.is charcha ke liye aapka aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  6. वंदना जी ,
    नमस्कार ..
    सावन के पहले सोमवार की भक्तिमय चर्चा ...!!बहुत बढ़िया लिंक्स...कृपया सफ़र जारी रखें ....!!

    जवाब देंहटाएं
  7. वंदना जी,
    नमस्कार

    भक्ति भाव से पूरित लिंक्स मिले, अच्छा संकलन।

    आप से आग्रह है कि आप चर्चामंच में स्थायी रूप से बने रहें।

    जवाब देंहटाएं
  8. नमस्कार वंदना जी ,
    मेरी पोस्ट को चर्चा मार्च में शामिल करने के लिये आप का बहुत-बहुत आभार....

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर भक्तिमय चर्चा...मेरी रचना को शामिल करने के लिये धन्यवाद..आप जैसे लोग अगर चर्चा मंच छोडने की सोचेंगे तो यह चर्चा मंच की बहुत बड़ी हानि होगी. पुनर्विचार करिये अपने निर्णय पर. आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. सत्ता में बैठे भस्मासुर
    उन का दर्प चूर हो
    कहाँ समाधि में हो शिव शंकर
    नेत्र तीसरा खोलो ..
    सुन्दर अति सुन्दर भक्तिमय आव्हान गीत....
    शुभ कामनाएं !!!

    जवाब देंहटाएं
  11. हो सकता है विदाई का वक्त आ रहा हो ||

    शीर्षक कुछ समझ नहीं आया बन्दना जी |
    क्या कोई संकेत दिख रहा है ??
    हो सकता है ----
    इस हो सकता है को कौन सुनिश्चित करता है ?
    कृपया हमें भी संकेत समझने का संकेत देकर उपकृत करें || सादर ||


    हाँ याद आया--
    शुक्रवार ८ जुलाई को आप ने निर्मल हास्य प्रस्तुत किया था |
    क्या यह संकेत तभी प्राप्त हो गया था |

    मुझे इसलिए याद है --
    क्योंकि मैंने भी टिप्पणी लिखी थी ||
    नया हूँ कृपया मार्ग-दर्शन करें ||

    ब्लॉगर ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

    आद. वंदना जी,
    चर्चाकार की व्यथा बयान करती निर्मल हास्य की कविता बहुत अच्छी लगी ,शायद इसलिए भी कि इसमें सच्चाई की खुशबू भी समाहित है !
    आभार !

    ८ जुलाई २०११ १०:०० पूर्वाह्न
    ब्लॉगर रविकर ने कहा…

    आपका हार्दिक अभिनन्दन ||

    आभार ||

    ८ जुलाई २०११ १०:२७ पूर्वाह्न
    हटाएं
    ब्लॉगर Dr Varsha Singh ने कहा…

    हर कोई तुझे सिर्फ
    चर्चाकार ही बुलाएगा
    और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
    पर व्यवस्थापक तो मौज उडाएगा
    सबसे बढ़िया जुगाड़ है ये
    सबको काम पर लगा देना
    और खुद नाम कमा लेना


    बहुत खूब...
    करारा कटाक्ष....

    ८ जुलाई २०११ १०:४६ पूर्वाह्न
    ब्लॉगर यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) ने कहा…

    आपकी एक पोस्ट की हलचल आज यहाँ भी है

    ८ जुलाई २०११ १०:४९ पूर्वाह्न
    ब्लॉगर संतोष कुमार ने कहा…

    vandana ji bilkul sahi kaha hai.

    Aabhaar !!

    ८ जुलाई २०११ ११:३२ पूर्वाह्न
    ब्लॉगर यादें ने कहा…

    मिठाई में लपेटी,कड़वी सच्चाई .
    वन्दना जी ,बधाई हो बधाई ||
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  12. वंदना जी आपकी चर्चा बेहतरीन होती है ... और आपसे चर्चामंच की पहचान भी है... आप जारी रहें ... बाकी अच्छे लिनक्स हैं... भगवन भोले पर लिखना कठिन था सो लिख ना सका... दूसरे सोमवार पर आपकी चर्चा हो और हम शामिल हो.. यही कामना करता हूं...

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत धन्यवाद जो आपने हमारा पोस्ट लिया।

    जवाब देंहटाएं
  14. वंदना जी बहुत अच्छी रही आज की चर्चा .आभार

    जवाब देंहटाएं
  15. @ ravikar ji, @kunwar kusumesh ji,@mahendra verma ji, @rajesh kumari ji,@ anupama tripathi ji,@ vidya ji , kailash ji,@arun chandra roy ji



    दोस्तों
    सबसे पहले तो मै सबको ये बताना चाहती हूँ कि आजकल मेरी व्यस्तता कुछ ज्यादा बढ गयी है जिस वजह से मै कोई काम सही ढंग से नही कर पा रही हूं जिस वजह से मैने ये निर्णय लिया है इसमे कोई ऐसी वैसी बात नही है क्योंकि मैने एक नयी श्रंखला शुरु की है एक प्रयास पर जिसके लिये मुझे काफ़ी वक्त चाहिये होता है उसे ऐसे ही तो नही लिखा जा सकता और इसका संकेत तो मै शास्त्री जी को काफ़ी वक्त से दे रही थी कि मै अब ज्यादा वक्त नही दे पाऊँगी ये सब कोई अचानक नही हुआ है और दूसरी बात अगले छह महीनो तक मेरा कथाओ मे जाना लगातार होना हैजिस वजह से भी मुझे बहुत मुश्किल होगी इसी कारण मैने ये निर्णय लिया है………जहाँ तक रविकर जी आप उस हास्य कविता की बात कर रहे हैं तो वो सिर्फ़ एक निर्मल हास्य ही है उसका इससे कोई लेना देना नही है क्योंकि शास्त्री जी तो खुद सक्रिय रहे हैं हमेशा तो उनके लिये क्यों कहा जायेगा…………हास्य को आप इस दृष्टि से देखकर सबके दिलो मे गलत संदेश दे रहे है जो गलत बात है………सब यही सोचेंगे कि मेरे और शास्त्री जी के बीच कोई अनबन हो गयी है जबकि हमारे बीच ऐसी कोई बात नही है सबकी अपनी मजबूरीयां होती हैं अगर शास्त्री जी चाहेंगे तो जब मै इन सबसे फ़्री हो जाऊँगी तो दोबारा भी सक्रिय होने का प्रयत्न करूँगी।
    ये जानकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई कि मुझे मेरे पाठक दोस्त कितना चाहते हैं उन सबकी मै तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  16. कोई बात नहीं है , ढूंढने वाले नए एड्रेस पर भी पहुंच जाएंगे चर्चा पढ़ने। ख़ुश्बू आएगी तो हवा बताएगी कि आप कहां हैं और किसकी चर्चा कर रही हैं ?
    शुभकामनाएं आपको !!!

    ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal

    जवाब देंहटाएं

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