नमस्कार , हाज़िर हूँ एक बार फिर मंगलवार को साप्ताहिक काव्य मंच ले कर ..अक्सर सोचती हूँ कि यह तो आपको पता ही है कि मंगलवार है और मुझे आना ही है इस मंच को ले कर फिर क्यों लिख देती हूँ कि फिर से हाज़िर हूँ …शायद इस लिए कि मन में कहीं यह तो नहीं खटकता कि आ गयी हूँ तो झेलिये … या फिर कहीं मन में यह भावना तो नहीं कि शायद आप मेरा इंतज़ार कर रहे हों …खैर अब आप इंतज़ार खत्म कीजिये या झेलिये ..बस मन में भावना कोमल रखियेगा … और भावना का सीधा रिश्ता मन से है तो आज की चर्चा भी प्रारम्भ करते हैं कोमल मन से … |
![]() सुख में मुस्काता-दुख में आहत होकर रोता है पत्थर के तन में भी कोमल-कोमल मन होता है मन के उपवन में सजती है अरमानों की डोली केशर की क्यारी में फिर क्यों काँटों को बोता है |
ओह ! पैसे में बड़ा वजन होता है रिश्ता कोई भी हो पर इसके विपरीत - प्यार में होता है सुकून घर नहीं फाइव स्टार होटल का एहसास लम्बी सी कार एक नहीं दो चार ... |
समय के देवता! थोड़ा रुको, मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं। तुम्हारे पुण्य-चरणों की महकती धूल में आस्था के बीज बोना चाहता हूं। |
रूह को जानना नहीं आसाँ तू मुझे आज़मायेगा कब तक ! रस्म-ए-दुनिया ,निभाएगा कब तक ! छीन कर ख़्वाब, मेरी पलकों से अपनी नींदें , सजाएगा कब तक ! |
जीवन में कितने दुख हैं , जीवन में कितने सुख हैं, जोड़ घटा कर देख ज़रा ,थोड़ा सा अंतर होगा . |
![]() मन पंख बिना जब रातों की परछाईं पर, पूनम का चाँद चमकता है, उजली किरणों के साये में, तारों का रूप दमकता है, |
जब भी कोई लीक ढूंढना. प्यार के प्रतीक ढूंढना. जि़न्दगी है लंबा सफ़र, साथ ठीक-ठीक ढूंढना. |
![]() मेरे पाँव खुद ब खुद- तेरे दरवाजे तक मुझे ले आते, आज कल मुझे मंदिर जाने की – आदत सी हो चली है। |
![]() तुम से ही चहकी मन चिड़िया कलरव था मन की डाली, जाने क्यूँ - कर काट ले गया, बरगद को पल का माली, |
![]() ऐसी गुज़री है कि हैरान हैं हम भी ,तुम भी आज फिर बे सर ओ सामान हैं हम भी ,तुम भी क्यों है इक जंग ज़माने में अना की ख़ातिर जबकि दो दिन के ही मेहमान हैं हम भी , तुम भी |
![]() पल-छिन जिनको देखा करती भांप लिया मन के तारों ने आँखों से मैंने देख लिया है तुम हो वही. |
![]() मैंने जाने गीत विरह के, मधुमासों की आस नहीं है. कदम कदम पर मिली विवशता , सांसो में विश्वास नहीं है. छल से छला गया है जीवन, आजीवन का था समझोता. लहरों ने पतवार छीन ली, नैय्या जाती खाती ग़ोता. |
![]() मैं क़ैद हूँ.... !! ज़मीन के नीचे तहखाने में.... जिसकी नींव लेकर ऊपर,एक उन्नत भवन बना दिया गया है, |
![]() कभी जो सरपट दौड़ा करते थे नज़रें झुकाए जा रहे हैं दिखा रहे हैं करतब तरह तरह के |
यूँ शबो-रोज़ आया करती है, याद उसकी रुलाया करती है। वो मुसाफ़िर हूँ मैं जिसे अक्सर; चाँदनी भी जलाया करती है।। |
दीया जलाना हम भूल गए .. व्यस्तताओं के बीच अपनों से मिलना भूल गए! जीवन चलता ही रहा बस जीना हम भूल गए! |
![]() राहों में बिछे काँटों की चुभन औ' पैरों से रिसते लहू से निकली घावों की पीड़ा, हौसलों की राह में रोड़े बन जाती है? |
![]() गर नहीं लड़ा मैं आज भयंकर तूफानों से कल छोटी फूंको से भी मैं गिर सकता हूँ ! है कद-काठी मेरी, आज भले छोटी ही सही पर जज्बातों के तपते तूफां लेकर चलता हूँ ! |
![]() वही रोना इक-इक बात पर तकिये से मुंह को ढांपकर सर रख के अपने हाथ पर खाली हवाओं को ताकना ! |
![]() क्यों इतना शोर मचाया है हमको ना इतना समझ ये आया है चवन्नी की विदाई का क्यूँ इतना शोर मचाया है ये तो दुनिया की रीत है आने वाला कभी तो जायेगा फिर ऐसा क्या माजरा हुआ जैसे किसी आशिक का जनाजा हुआ |
आशा है आपकी पसंद के कुछ परिचित और कुछ अपरिचित चेहरे प्रस्तुत कर पायी होऊँगी .आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा उर्जा प्रदान करती हैं … जाते जाते एक नज़र राजभाषा हिंदी ब्लॉग पर चंद अशआर पर भी डालना न भूलें …. संगीता स्वरुप |
बेहतरीन लिंक लिए काव्य चर्चा ..... बहुत बढ़िया संकलन संगीताजी , आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स.आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा , आभार
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार चर्चा
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार अग्नि में तपा हुआ सोना ही,
जवाब देंहटाएंकुंदन कहलाता है, उसी प्रकार आलोचना की
दावानल से निकलने बाद ही कविता, कविता
कहलाती है.एक अच्छा मंच. सुन्दर प्रयास . साधुवाद.
आनन्द विश्वास.
अहमदाबाद.
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआज पढ़ने के लिए लिंक मिल गये!
शानदार लिंक्स ..
जवाब देंहटाएंआभार!
जिस प्रकार अग्नि में तपा हुआ सोना ही, कुंदन कहलाता है,उसी प्रकार आलोचना की दावानल से निकलने बाद ही कविता, कविता
जवाब देंहटाएंकहलाती है.एक अच्छा मंच. सुन्दर प्रयास . साधुवाद.
आनन्द विश्वास.
अहमदाबाद.
सुन्दर चर्चा.......
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स मिले
सुँदर कविता पुष्पों से गुंथी काव्य चर्चा .कई नए और प्रभावशाली लिंक्स मिले .
जवाब देंहटाएंसुँदर कविता पुष्पों से गुंथी काव्य चर्चा .कई नए और प्रभावशाली लिंक्स मिले .
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह चुनिन्दा फूलों का गुलदस्ता -
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आभार !
सभी लिंक्स पर पहुँचने की कोशिश है.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को यहाँ स्थान देने के लिये तहे दिल से शुक्रिया.
सादर
दीदी ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाओं से साक्षात्कार करने के लिए आभार ..मेरी रचना को स्थान दिया मैं कृतज्ञ हूँ ...
बहुत सुन्दर और शानदार लिंक्स से सजी चर्चा।
जवाब देंहटाएंतमाम अनमोल मोतियों के बीच मेरी भी अमानत का एक मोती! संगीता जी आपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंmanmohak rachnaon ka ye silsila bas yun hi chalta rahe....dhanywad.
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा है। बधाई।
जवाब देंहटाएं------
तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
…ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
bahut sundar charcha.aabhar.
जवाब देंहटाएं@…शायद इस लिए कि मन में कहीं यह तो नहीं खटकता कि आ गयी हूँ तो झेलिये
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा झेलनी नहीं पढ़ती बल्कि सार्थक लगती है.आज भी बहुत से अच्छे और अलग से लिंक्स मिले.आभार है आपका.
सुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंसादर!
उम्दा कविताओं के लिंक्स दिए हैं।
जवाब देंहटाएंपढ़ता हूं।
bahut hi achhi charcha
जवाब देंहटाएंआपका आभार संगीता स्वरूप जी,
जवाब देंहटाएंइस मंच पर मेरा भी "भाव कलश' संजोने के लियें...
एक से एक सुंदर भाव से भरा आपका चर्चा मंच बहुत भाया... कई नये और ख़ूबसूरत लिंक्स मिले...धीरे धीरे सभी पर जाने की कोशिश...
आभार और बधाई...
शुभ कामनाएँ..
गीता पंडित.
आद. संगीता दी,
जवाब देंहटाएंइस काव्य यात्रा का हर पडाव अपने में अनुपम है.....
आनंद आ गया...
सादर...
इन उम्दा लिंक्स के लिए आभार...सभी पर टहल आये.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपका यह भ्रम दूर कर दिया जाय. आपकी प्रतीक्षा रहती है, मंगलवार के सुप्रभात में क्योकि आप लातिन हैं पूरे सप्ताह भर कि मर्मस्पर्शी कविताएं. और कविता कोई सब्द नहीं होते, सब्द संगः या शब्दजाल नहीं होते. यह तो संपर्शी मन के उदगार और संवेदी वाणी का प्रवाह होती है जो प्रवाहमयी होकर कभी किनारों को तोडती है, कभी जोडती है और कभी कल-कल निनाद करते हुए जीवन स्रोत में बहते हुए कितनी को उनकी समस्याओं का समाधान दिला जाती है है. यह अलग बात है कि उप्चार्कर्ता को इसका आभास हो, न हो?
जवाब देंहटाएंसुन्दर संचयन और मर्मस्पर्शी संग्रह के लिए बधाई और आभार.
संगीता बहुत बहुत धन्यवाद . अभी कुछ वजह से ब्लॉग पर अनियमित हूँ. इसलिए क्षमा चाहती हूँ कहीं भी नहीं पहुँच पा रही हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा..आभार
जवाब देंहटाएंbehtareen links mile aabhaar.
जवाब देंहटाएंcharcha manch me sammilit krne evam umda rachnao se parichit karane ke liye hirday se aabhari hun Sangeeta di..:)
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक व् सुन्दर लिंक्स से सजी चर्चा आभार .
जवाब देंहटाएंहांफ रही हूँ लेकिन सभी ब्लॉगस् की यात्रा आनंद दे गयी...
जवाब देंहटाएंआभार संगीता जी..