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शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

बलि का बकरा ढूंढ़ लो, जो कोई हो पास, सम्बन्धों में जब दिखे, अपने तनिक खटास -रविकर --- चर्चा-मंच 583

तीन नए तेरह हुए , साथ पुराने सात,
मिलजुलकर आनन्द लें, सावन की बरसात |

सावन की बरसात, बोलिए हर-हर बम बम-
करिए चर्चा पाठ, भीगिए भरदम झम-झम |

करें टिप्पणी नेक, सभी ब्लॉगों पर जाकर |
बाढ़ें नित ये नए, तीन - तेरह न होकर ||

आजकल के बच्चे...
बच्चे नहीं ये बाप हैं
हमारे गले की नाप हैं,
क्या हुआ जो बस्ता है भारी
दुनिया उठाने की है तैयारी
टीवी-इन्टरनेट छानते हैं
अंदर की बात भी सब जानते हैं...

(1) .


''गाँधी'' तुम ग़लतफ़हमी में हो!

''गाँधी'' तुम ग़लतफ़हमी में हो!

''गांधी'' तुम्हारा अहिंसा का पाठ
कृष्ण अगर मानते-तो
महाभारत ही न हो पाती
और धर्म पर अधर्म की
विजय हो जाती
''गांधी'' तुम्हारी अहिंसा की बात पर
राम-अगर चलते-तो
युद्ध रोककर
सीता-रावण को ही सौंपकर
तसल्ली कर लेते....
''गांधी'' तुम्हारी गलतफहमी है- कि
तुम्हारा अहिंसा का पाठ
दुनिया में पढा जा रहा है
गांधी सच तो ये है कि
तुम्हारा अहिंसा का प्रचार
सिर्फ वे लोग कर रहे हैं
जिन्हें खौफ है कि
भूखी-खूंख्वार भीड
बदले की गरज से
अपने हक के लिये कहीं एक दिन
उनकी देह पर आक्रमण न कर दे...
- अतुल कुशवाह
(2)
posted by चंदन कुमार मिश्र at भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी -
इच्छा तो कुछ और लिखने की थी लेकिन लिख कुछ और रहा हूँ। एक बेहद शर्मनाक खबर है। अपनी इस पोस्ट का शीर्षक मैं वहीं से लेकर इस्तेमाल कर रहा हूँ। *खबर यहाँ है *,

(3)

** विनिहत **

मंडियों में बिक रहे सामान हो गए हैं ,
अनमोल जिंदगी थी , बेदाम हो गए हैं --

जिंदगी और मौत का करने लगे हिसाब ,
मनुष्य तो बने नहीं भगवान हो गए हैं --
posted by kumar at kashish... 
ना जाने कब तक बेवस ज़िन्दगी तबाह होती रहेगी ? ना जाने कब अमन का सूरज अपनी धूप इस जमीं पर बिखेरेगा ? ना जाने कब लौटेगा वो शख्स जो गया था यह कहकर कि " बस अभी आया " ? रह रहकर बस यही खयाल आता है कि - ऐ खुदा त...

(5)

गुरूपूर्णिमा पर विशेष - अपना उद्धार स्वयं करें

अपने उद्धार और पतन में मनुष्य स्वयं कारण है , दूसरा कोई नहीं । परमात्मा ने मनुष्य शरीर दिया है तो अपना उद्धार करने के साधन भी पूरे दिये है । इसलिए अपने उद्धार के लिए दूसरे पर आश्रित होने की आवश्यकता नहीं है । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि - अपने द्वारा अपना उद्धार करें , अपना पतन न करें । क्योंकि आप ही अपने मित्र है और आप ही अपने शत्रु है ।

(6)

दीप्ति परमार का आलेख : दलितोद्धारक : भगवान स्वामिनारायण

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गवान स्वामिनारायण का अवतरण उत्तर प्रदेश में अयोध्या के पास छपैया गाँव में विक्रम संवत् 1837 में चैत्र शुक्ला नवमी (इ ़स ़1781ए 3 अप्रैल ) को हुआ। सिर्फ आठ साल की आयु में उन्होंने वेद, उपनिषद, भागवत, रामायण आदि शास्त्रों का अघ्ययन करके काशी में आयोजित पंडित परिषद् के प्रकांड पंडितों के साथ तत्त्वज्ञान की चर्चा करके सबको आश्चर्य चकित कर दिया था।

आदत सी हो गयी है

Neeraj Dwivedi
अब आदत सी हो गयी है, यूँ ही मुस्कुराने की,
यूँ ही लिखने की, लिखते चले जाने की,
सारी राहें बन्द कर दीं, उनके याद आने की,
यूँ ही जीने की, चलते चले जाने की ।

(7)

काहे खून तेरा प्यारे अब खौलता नहीं —??

तोड़ लिया कोई फूल तुम्हारा
खाली हो गयी क्यारी
उजड़ जा रहा चमन ये सारा
गुल गुलशन ये जान से प्यारी
खुश्बू तेरे मन जो बसती
मिटी जा रही सारी
पत्थर क्यों बन जाता मानव
देख देख के दृश्य ये सारे
खींच रहा जब -कोई साड़ी
cheer-haran_6412
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
(फोटो साभार गूगल देवता /नेट से लिया गया )
————————–
साँप हमारे घर में घुसते
अंधियारे क्यों भटक रहा
जिस बिल से ये चले आ रहे
दूध अभी भी चढ़ा रहा ?
तू माहिर है बच भी सकता
भोला तो अब भी भोला है
दोस्त बनाये घूम रहा
उनसे अब भी प्यार जो इतना
बिल के बाहर आग लगा
बिल में ही रह जाएँ !
काट न खाएं !
इन भोलों को !!
लाठी क्यों ना उठा रहा ??
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
————————
तोड़-तोड़ के पत्थर दिन भर
बहा पसीना लाता
धुएं में आँखें नीर बहाए
आधा पका – बनाता
बच्चों को ही पहले देने
पत्तल जभी सजाता
मंडराते कुछ गिद्ध -बाज है
छीन झपट ले जाते
कल के सपने देख देख के
चुप क्यों तू रह जाता
काहे खून तेरा प्यारे अब
खौलता नहीं —??
समोसा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है। इस लज़ीज़ त्रिभुजाकार व्यंजन को आटा या मैदा के साथ आलू के साथ बनाया जाता है और चटनी के साथ परोसा जाता है 
(9)

जय हिंद, वन्देमातरम...

सोनिया जिसकी मम्मी है, वो सरकार (कोंग्रेस) निकम्मी है.

आडवानी जिसका ताऊ है, वो विपक्ष (भाजपा) बिकाऊ है.

बाकि कुछ (सपा, बसपा) मस्त है, पक्ष बदलने में लिप्त है.
...
बचे खुचे नाकाबिल (लालू आदि) है, इन्हें कुछ नहीं हासिल है 

दिल ही

दिल ही दिल में प्यार किया, उसने कब इनकार किया |
बात जब इज़हार की आयी, झट उसने इनकार किया |
(10)

घमंडी शेर (काव्य-कथा)



शेर घमंडी एक जंगल में,
उसने एक दिन कुआ देखा.
झाँका जब अंदर को उसने,
अपना चेहरा पानी में देखा.
(11)

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।

''तेरहवीं''


''पापा''अब क्या करोगे ,दीदी की शादी को महीना भर ही रह गया है और ऐसे में दादाजी की मृत्यु, ये तो बहुत बड़ा खर्चा पड़ गया ,विजय ने परेशान होते हुए अपने पापा मनोज से कहा .मनोज बोला -''बेटा;क्यों परेशान होता है ,ये तो हमारे लिए बहुत आराम का समय है .वो कैसे पापा?
इसलिए न तो मैं पिताजी का वो ऐसे बेटा कीमैं तो तेरे चाचाओं से पहले ही कह दूंगा की मुझे तो अपनी बेटी की शादी की तैयारी करनी है इसलिए न तो मैं अंतिम संस्कार ही कर पाऊँगा और न ही इससे सम्बंधित कोई खर्चा ,वैसे भी हम वैश्य जातिऔर सभी जानते हैं की वैश्य जाति में शादी में के हैं और सभी जानते हैं की वैश्य जाति में शादी में कितना खर्चा होता है .पापा की बात सुन विजय के चेहरे पर भी चमक आ गयी ,तभी जैसे उसे कुछ याद आया और वह बोला ,''पर पापा चाचा तो बाबाजी के पैसे मांगेगे और कहेंगे कीहमें वे ही दे दो हम उनसे ही उनके अंतिम संस्कार का खर्चा निकाल लेंगे ,अरे बेटा तू तो बहुत आगे की सोच रहा है ,पिताजी के पास अब कोई पैसा था ही कहाँ ,वो तो सारा ही बाँट चुके थे और रहा जो उनके बक्से में कुछ पैसा रखा है उसे उठा और अपने कमरे में ले चल ,वो कह देंगे की उनके खाने और इलाज में खर्च हो गया .''
इस तरह जब मनोज का बेटा विजय संतुष्ट हो गया और वह वो बक्सा अपने कमरे में ले गया तब मनोज ने भाइयों को फोन पर पिताजी के मरने की सूचना दी और भाइयों के आने पर उन्हें अपना फैसला सुना दिया .आपस की बातों से ये निश्चय हुआ की पिता का अंतिम संस्कार दूसरे नंबर का बेटा करेगा और मनोज की बेटी की शादी की बात कहकर कम से कम

पैसे में तेरहवीं आदि कर दी जाएगी .
जैसे जैसे जो सोचा गया था सभी भाइयों ने मिलकर वह कर दिया और तेरहवीं के बाद जब मेहमान जाने लगे तो सभी के हाथ जोड़कर अपने बनाये हुए पिता के वाक्य सभी के सामने दोहरा दिए .मनोज ने कहा-''पिताजी ने ही कहा था की मेरे कारण पोती की शादी में कोई कमी न करना वर्ना मेरी आत्मा नरक में भटकती रहेगी .''मनोज के ये शब्द सभी मेहमानों के दिल में घर कर गए और सभी उसे सांत्वना दे अपने अपने घर चले गए .
शालिनी कौशिक

(12)

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )

ईश्वर ने हमें वह सब कुछ दिया है , जो सृष्टि के किसी प्राणी को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने के लिए आँख , सुनने के लिए कान , खाने के लिए मुंह ..आदि ! इसमे सबसे योग्य हमारा मष्तिक है , जो हमसे सब कुछ करवाने के लिए , मार्ग दर्शन देता है ! उचित अनुचित को इंगित भी करता है ,

(13)

दिल से लिखी गई रचना

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--- --- मनोज कुमार 

(14)

अमृतलाल नागर का हास्य-व्यंग्य : सीता-हनुमान-संवाद तमिल में हुआ था या अंग्रेज़ी में?

"सीताजी की वंश परम्परा और मातृभाषा के प्रश्न को हल करने के बाद अब अंग्रेजी को हनुमानजी की मूल मातृभाषा सिद्ध करना ही हमारा एकमात्र परम पावन कर्त्तव्य शेष रह जाता है। " ... इसी व्यंग्य से.

(15)

वो naxalite भी हो सकता था

आज सुबह मेरे एक सहयोगी एक लड़के को ले कर मेरे कमरे पे आ गए ......बोले नया लड़का है ....आजीवन सेवाव्रती बनने के लिए आया है ....आज दिन में इसका interview है ...तब तक आपके साथ रह लेगा ....उसे मेरे पास छोड़ के चले गए ............अब उसका interview था दिन में 2 बजे ....वहां तो बाद में देता ...पहले मैंने लेना शुरू कर दिया ...और फिर एक बार शुरू जो हुआ तो पूरे तीन घंटे चला ........और जो कहानी निकल के आयी वो आपके सामने हुबहू प्रस्तुत है .........कमल कान्त ...उम्र 18 वर्ष .....बारहवीं पास ........science से ..

(16)

आर.वी.सिंह का व्यंग्य - कृपया कष्ट करें!

हिन्दी में आवेदन लिखते समय अपनी पूरी समस्या या मुद्दा बयान करने के पश्चात् जब वांछित कार्रवाई के लिए अनुरोध करने की बात आती है तो हम अक्सर लिखते हैं- कृपया अमुक-अमुक कार्रवाई करने का कष्ट करें। गोया कार्रवाई का होना अपने आप में पर्याप्त नहीं है उसे भी करना होगा, यानी क्रिया के लिए भी क्रिया। इसमें व्याकरणिक विसंगति तो है ही, साथ ही, एक बहुत बड़ा समाज वैज्ञानिक संदर्भ और सिद्धान्त भी छिपा हुआ है।

(17)

याचक के भाव

'प्रतीक्षा' का हूँ मैं अभ्यस्त
दिवस बीता, दिनकर भी अस्त
पलक-प्रहरी थककर हैं चूर
आगमन हुआ नहीं मदमस्त.

(18)

सार तो यही है यार 'नार' बिन चले ना|

माना कि विकास, बीज - से ही होता है मगर
इस का प्रयोग किए- बिना, बीज फले ना

(19)

या ख़ुदा याँ पे कोई हमसफ़र नहीं होता

मैं तेरे चश्म के ज़ेरे- असर नहीं होता।
दिल में पेवस्त जो तीरे- नज़र नहीं होता॥
                       तेरे कूचे की सिफ़त संगज़ार की सी है,
आता अक्सर जो सफ़र पुरख़तर नहीं होता।


गत शुकवार की चर्चा में---
२- नए ब्लागरों की रचनाएँ--
एक अदद टिप्पणी को तरस गईं |
आपसब से क्षमा प्रार्थी हूँ ||
शायद उन रचनाकारों को कुछ
अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए ---
रचनाकारों से भी क्षमा --
और अंत में -बहुत बहुत आभार
मैं चर्चा मंच का व्यवस्थापक
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि
चर्चा मंच की पुरानी चर्चाकार से मेरा कोई विवाद नहीं है!
वे शीघ्र ही चर्चा मंच पर आयेंगी!

35 टिप्‍पणियां:

  1. ravi ji,
    aapki charcha to aaj samay se poorv hi hame mil gayee hai .bahut achchha laga jab dekha ki aapne meri laghu katha ko yahan sthan diya hai main aapki bahut aabhari hoon.aap ke dwara prastut charcha anokhi kahi jaye to koi atishyokti nahi hogi.aabhar

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की रंग-बिरंगी मनोहारी चर्चा में बहुत अच्छे लिंक मिले!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी बहुआयामी चर्चा बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्‍छे लिंक्‍सों से युक्‍त बहुत अच्‍छी चर्चा .. आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन संयोजन प्रस्तुति एवं चयन .बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  6. लिंक्स कैसे हैं ..अभी कुछ नहीं कह सकती ..लेकिन रंग बिरंगी चर्चा अच्छी है ...


    कृपया ध्यान दें

    गाँधी'' तुम ग़लतफ़हमी में हो! इस लिंक पर जा कर "
    सिनेमा के ये नए शिल्पकार मिला


    http://jhanjhat.blogspot.com/2011/07/blog-post_18.html#comments
    जरा घूम ले --
    एक अच्छी रचना आप
    के इन्तजार में है ---
    लिंक नहीं लगा है ..ब्लॉग तक नहीं पहुंचा जा सकता


    Neeraj Dwivedi
    अब आदत सी हो गयी है, यूँ ही मुस्कुराने की,
    यूँ ही लिखने की, लिखते चले जाने की,
    सारी राहें बन्द कर दीं, उनके याद आने की,
    यूँ ही जीने की, चलते चले जाने की

    इसका भी लिंक नहीं लगा है ।

    --
    (7)
    काहे खून तेरा प्यारे अब खौलता नहीं ---??
    लिंक नहीं लगा है


    समोसा दक्षिण एशिया का एक लोकप्रिय व्यंजन है। इस लज़ीज़ त्रिभुजाकार व्यंजन को आटा या मैदा के साथ आलू के साथ बनाया जाता है और चटनी के साथ परोसा जाता है ।http://samratbundelkhand.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

    लिंक नहीं लगा हुआ है

    चर्चा ...८, ९ १० , ११ , १२ यह लिंक्स भी नहीं खुल रहे ...


    चर्चाकार से निवेदन है कि चर्चा में लिंक्स लगाएं जिससे ब्लॉग्स तक पहुंचा जा सके ...
    .............

    जवाब देंहटाएं
  7. संगीता दी और अन्य पाठक गण ||

    कंप्यूटर पर कुछ सीखने का प्रयास चल रहा है ||
    अभी भी इसके साथ मुझे कुछ परेशानी रहती है ||
    अगली बार पूरी तरह से साफ़-सुथरी छवि प्रस्तुत करने का वायदा है |

    खेद व्यक्त करता हूँ |

    कोशिश कर रहा हूँ पर समस्या हल नहीं हो पा रही |

    आभार |

    परेशानी हुई इसके लिए पुन: खेद व्यक्त करता हूँ |

    कृपया उनको नजरंदाज कर दे ||

    धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  8. संगीता स्वरूप जी!
    लिंक लगा दिये हैं!
    --
    वैसे भी जिन पोस्टों पर लिंक नहीं थे उनके नीचे यू.आर.एल. तो लिखे ही थे!
    --
    आप चर्चा मंच की पुरानी चर्चाकार थीं, इसलिए आपको तो रविकर जी को लिंक लगाने की विधि बतानी चाहिए थी!
    --
    मैंने भी इसीलिए लिंक नहीं लगाए थे कि नया व्यक्ति अपने आप ही सीखे तो अच्छा है!

    जवाब देंहटाएं
  9. रविकर जी!
    आप निराश न हों, आपने चर्चा बहुत सही लगाई थी!
    जिन पोस्टों पर लिंक नहीं थे उनके नीचे तो आपने दे ही दिये थे!
    --
    कमियाँ निकालने वाला यदि जानकार है तो उसको इस विद्या को बाँटना भी तो उसका धर्म होना चाहिए!

    जवाब देंहटाएं
  10. शास्त्री जी ,

    URL भी नहीं क्लिक हो रहे थे ..और रही बताने की बात तो मैंने कभी किसी को कुछ भी बताने के लिए मना नहीं किया है ... रविकर जी से कभी मेरी बात नहीं हुई है ..यदि उन्होंने पूछा होता तो अवश्य बता देती ... आपने ऐसा कैसे सोच लिया की मैंने बताया नहीं होगा ... यहाँ भी इस लिए ही लिखा कि उनका मेल आई डी मेरे पास नहीं है ...

    यदि यहाँ ऐसी त्रुटियाँ बताना गलत है तो आगे से ध्यान रखूंगी ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. पुन:

    शास्त्री जी ,

    कमियां निकालना मेरी आदत में शामिल नहीं है ... आपकी यह सोच मेरे बारे में सर्वथा अनुपयुक्त है ...

    ऐसा अक्सर हो जाता है कि लिंक्स चर्चा को सेट करते हुए हट जाते हैं ...

    ऐसी कोई कमी निकालने के अंदाज़ में मैंने लुछ लिखा भी नहीं था ..बस सूचित किया था ..पर आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं कमी निकाल रही हूँ ..यह आप ही जाने खैर शुक्रिया ..आपकी प्रतिक्रिया का ..

    जवाब देंहटाएं
  12. rahikar ji
    aapakaa prayaas sarahaneey hai , achchhi baat hai k aap achchha karne k liy prayashrat hai , galtiyan to sabhi se hote hai ..
    aapne achchhi charchaa k ..
    thanx

    जवाब देंहटाएं
  13. रंग बिरंगी चर्चा... अच्छी है ...

    जवाब देंहटाएं
  14. सभी विधाओं की सुन्दर लिंक्स को सजाये बहुत सुन्दर चर्चा..

    जवाब देंहटाएं
  15. बेहद उम्दा .........मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  16. ये लो जी अब कोई त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाएगा तो आक्षेप लगेगा कि कमियां निकाली जा रही हैं ... यदि एक आम पाठक यह बताता तो शायद सही होता ..और यदि कोई पुराना चर्चाकार त्रुटि कि तरफ इंगित करेगा तो उस पर आक्षेप लगेगा ..यह तो कोई बात नहीं हुई दुःख होता है सार्वजनिक प्लेटफोर्म पर ऐसे अरुचिकर टिपण्णी पढ़कर . रविकर जी की चर्चा अच्छी है , अच्छे लिंक्स मिले.आभार .

    जवाब देंहटाएं
  17. रविकर जी ,

    आज यह बात सिद्ध हो गयी कि लेखक की कलम में बहुत ताकत होती है ...

    आपकी चर्चा का शीर्षक कुछ लोगों को काफी प्रेरित कर रहा है ...

    आज मुझे बिना बात बलि का बकरा बना दिया गया है ..

    वैसे तो चर्चा कैसे लगायी जाती है यह सिखाना व्यवस्थापक का ही काम होता है ... पर यदि कभी आपको कुछ जानना हो तो आप कभी भी मुझसे कुछ भी सीख सकते हैं .. मैं केवल हिंट नहीं दूंगी ..पूरी तरह से सिखाउंगी ...मुझे तो बस हिंट ही मिले थे ... मैंने तो सब हिट एंड ट्रायल से ही सीखा है ..

    चर्चा मंच पर चर्चा करना छोडने के बाद भी इस मंच को मैं अभी तक अपना ही समझती थी ...पर अब यहाँ परायेपन की गंध आने लगी है ..
    तो सभी चर्चाकारों से क्षमा माँगते हुए चर्चा मंच से मैं विदा लेती हूँ ... आभार

    जवाब देंहटाएं
  18. रविकर जी,
    मेरा वाला लिंक कल कुछ देर नहीं खुला होगा क्योंकि कुछ देर तक मैंने अपने ब्लॉग पर सिर्फ़ अपने पढ़ने का विकल्प सक्रिय कर दिया था। लेकिन कुछ मिनटों बाद फिर ठीक हो गया होगा। आज तो मुझे अनावश्यक किस्म का बहस दिख रहा है। कुछ लिंक देखे और कुछ और देख रहा हूँ। अच्छा लग रहा है। लेकिन यहाँ कुछ खास बात तो नहीं दिखी कि इस पर कुछ बातें हो गईं। शान्ति, ऐसी जगह तो शान्ति और शान्ति!

    जवाब देंहटाएं
  19. रविकर जी....बहुत ही अच्छी चर्चा की है आपने...आपका प्रयास सराहनीय है....पर आदरणीय शास्त्री जी के विचारों को जानकर बहुत क्षुब्ध हूँ मै......चर्चाकार जब है और जब चर्चा कर रहा है तो बहुत अच्छा है..पर अपने कैरियर के वास्ते यदि समय नहीं निकाल पा रहा है...और यहाँ से हट जाता है तो फिर उसके साथ पराये सा व्यवहार और दोषारोपन........और बार बार किसी भी बात को मुद्दा बनाना......मै जानता हूँ मैने पिछली बार भी एक कामेन्ट किया था और आज भी जब संगीता आंटी के साथ बुरा बर्ताव किया गया तो मुझे कामेन्ट करना पड़ रहा है......ये बात भी मुद्दा बन सकता है.....और प्रचारित किया जा सकता है.....पर मुझे इससे कोई भय या डर नहीँ है......."क्योंकि जिस पर साई का हाथ है उसका क्या कर सकता है कोई"....ये मेरी आखिरी कामेन्ट है इस मंच पर...ऐसे व्यवहार की उम्मीद सपने में भी नहीँ किया था मैने...खैर आपका व्यक्तित्व आपके पास...किसी बात पर किसी को डरा देना,,धमका देना.....अजी तानाशाही चल रही है क्या यहा.......।

    जवाब देंहटाएं
  20. किसी का साईँ राम है, किसी का परमात्मा है और किसी का खुदा है, मगर हम अपना मजहब किसी पर थोप नहीं सकते!
    --
    सत्यम जी हम आपको खूब जानते हैं कि आप कमेंट के कितने लोभी हो?
    --
    आपने तो फोन पर मुझसे साफ-साफ कहा था कि मैंनें चर्चा में मेहनत की है मगर दोहर तक 15 ही कमेंट आये हैं।
    --
    तब मैने आपसे पूछा था कि आप कमेंट केलिए चर्चा करते हो क्या?
    --
    इस पर आपने कहा था कि मैं चर्चा मंच छोड़ रहा हूँ! मैंने इततर दिया था कि यदि आप कमेंट के लिए ही चर्चा मंच से जुड़े हो तो आप चर्चा न करें!
    --
    चाहे संगीता स्वरूप बहन हों या आप हों!
    चर्चा मंच के न ही जनक हो और नही भगवान!
    --
    हम चर्चाकार स्वान्तः सुखाय चर्चा करते हैं। आपको सुख मिलता है तो आइए परेशानी होती है तो न आइए!
    --
    चर्चा मंच पर चर्चा तो रोज-रोज होंगी ही!

    जवाब देंहटाएं
  21. रविकर जी बधाई आप ने बहुत ही बेहतरीन लिंक चुने हैं. काफी मेहनत कि है और इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद्. रही बात लिंक के इधर या उधर होने कि तो पढने वाले ने पढ़ लिए और आक कि मेहनत सफल रही. खेद व्यक्त कर के हम सबको शर्मिंदा ना करें. आप सजाएं चाहे नहीं बस लिनक्स ही दे दें तो भी हम सबको आप का शुक्रिया अदा करना चाहिए. मुफ्त कि सेवा लेते हुए शुक्रिया कि जगह एतराज़ सही नहीं. किसी को यदि सच मैं सीखना हो तो उसको मेल करें ना कि टिप्पणी मैं कमियाँ निकाल के हतोत्साहित करें.
    रविकर जी यह शेर सुना है ना..
    तुन्दिये बाद ए मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
    ये तो चलती हैं तुझे ऊंचा उड़ाने के लिये
    शब्दार्थ ,बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़

    जवाब देंहटाएं
  22. वो तो सही है शास्त्री जी.....अपने किये गये मेहनत के कार्यों के लिए प्रोत्साहन की किसे जरुरत नहीं होती है..और ये तो बस अपनी संतुष्टि के लिये है....और मैने इस कारण से आपकी चर्चा नहीँ छोड़ी कि आज बहुत कम कामेन्ट आये...बल्कि मेरी व्यस्तता है....मेरा जाब है.....पर आपके व्यवहार से बहुत क्षुब्ध हूँ..उस दिन फोन पर भी और आज कामेन्ट में भी...वो तो सही है कि मै हूँ या ना हूँ आपका चर्चा तो चलेगा ही..पर क्या ऐसा होने पर आप अक्सर नये लोग लाइयेगा और पुरानों का महत्व भूलते जाइयेगा......बस आपसे कुछ कृतज्ञता की उम्मीद थी....आपने बस एक बार कहा और अपने इंजीनियरींग की पढ़ाई के साथ ही मै अपने टाइट सेड्यूल में भी आपकी चर्चा करता रहा.......क्या इसका कोई महत्व नहीँ.....और जब व्यस्तता आई....जाब का समय आया और चर्चा छोड़ दिया तो आपने तो रिश्तों में ही दरार सा जान लिया.....बढ़िया है.....मै आपको क्या कह सकता हूँ.....आप मेरे बहुत ही श्रेष्ठ है....पर बस आखिरी बार कहना चाहूँगा....और जिन्दगी के किसी मोड़ पर मिले तो याद रखियेगा...कि कोई भी इंसान छोटा नहीँ होता...और मेरे बारे में तो आपको कुछ खाश पता भी नहीं है..ना ही मेरे परिवार के विषय में.......और मुझे वैसा संस्कार मिला है जो कि आज के युवाओं में कम ही होगा....कृपया यदि आपके दिल में थोड़ी सी भी हमदर्दी हो मेरे प्रति तो इसका जवाब मत दीजियेगा.......मै आगे से अब कुछ नहीं कहूँगा....प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  23. यहाँ भी गरमा गर्मी और गुटबाजी के असार नज़र आ रहे हैं. किसी भी चर्चा मंच पे चर्चा करना या ना करना यह फैसला लेना ब्लॉगर का अधिकार है. इसमें किसी प्रकार की नाराज़गी का सवाल नहीं. हाँ चर्चा कार को यह अवश्य चाहिए कि अपने जाने का सही कारण बता के जाए. व्यस्त हूँ ब्लॉगर कह तो देता है लेकिन जब उसी ब्लॉगर को और जगहों पे समय देते देखा जाता है तो सवाल उठने शुरू हो जाते हैं. यदि सच मैं व्यस्त हैं तभी यह कारण दें ,बेवजह व्यस्तता का बहाना बना के चले जाना आपस के रिश्तों को खराब करता है.
    मेरी यह टिप्पणी किसी जाने वाले ब्लॉगर पे नहीं बल्कि एक आम बात कहे है. कृपया इसे अन्यथा ना लें.

    जवाब देंहटाएं
  24. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)


    बहुत-बहुत आभार है,
    गुरुजन बड़े महान |

    त्रुटियाँ सशोधित हुईं,
    बढ़ी मंच की शान ||

    जवाब देंहटाएं
  25. गड़बड़ लिंकों पर चली, चर्चा आरो-पार,
    पाठक गण माफ़ी मिले, बात बढ़ी बेकार |

    बात बढ़ी बेकार, नया हूँ भैया दीदी,
    करूँ लूंगा ये ठीक, छोडिये मत उम्मीदी |

    कहता चर्चाकर, हुई थोड़ी सी हड़-बड़,
    थोड़ी मेहनत कर, मिटा लूँगा यह गड़बड़ ||

    जवाब देंहटाएं
  26. रविकर जी,
    बड़ा अच्छा लगा यह कुंडलिया-छंद। लेकिन दूसरे सोरठे में करूँ लूंगा नहीं कर लूंगा और तीसरे दोहे में कहता चर्चाकार होगा चर्चाकर नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  27. दरअसल पोस्ट हो गया तब ध्यान आया ||
    कृपया "कर" और "चर्चाकार" संशोधित कर पढ़ें ||

    आभार ||

    हमेशा स्वागत है ||

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  28. चर्चा अच्छी लगी,
    मन को बहुत ही भाया
    चर्चा पर जो हो रही चर्चा
    रास तनिक न आया
    रह जाते जो मौन गुणी जन
    तो होता क्या हर्ज़
    इस पर अपनी आपत्ति
    करता हूं मैं दर्ज़

    जवाब देंहटाएं

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