नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर से हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।
-- --बीस-
जिजीविषाRaviratlami |
पिछले दिनों गृहनगर की यात्रा पर था तो जब एक बचपन के मित्र के घर जा रहा था तो वहाँ गली के एक कोने में यह देखा. एक छोटी सी दीवार के सहारे फलता फूलता बड़ा सा विशाल वृक्ष. यह पीपल समूह का वृक्ष है. |
--उन्नीस—
मनुज प्रकृति से शाकाहारीपं.डी.के.शर्मा"वत्स" |
मनुज प्रकृति से शाकाहारी |
--अट्ठारह—
कार्टून: मैं मुंबई जा रहा हूँ.Kirtish Bhatt, Cartoonist |
--सत्तरह—
चंचल चित ..ये मन मोरा .....!!अनुपमा त्रिपाठी... |
धानी चुनरिया ओढ़े .. |
--सोलह—
मन के आँसू [ताँका]डॉ. हरदीप संधु |
आँसू में होती सागर से गहरी संवेदनाएँ पावनता इनकी डूबकर ही जानूँ ! |
--पन्द्रह—
ईश्वर जो भी करता है मनुष्य के भले के लिए अच्छा ही करता है ...महेन्द्र मिश्र |
भगवान जो भी करता है आदमी के भले के लिए अच्छा ही करता है . आपने उस समय मुझे अपमानित कर अच्छा ही किया कम से कम उसके कारण मेरे प्राण तो बच गए . |
--चौदह—
क्या तुम मुझे छोड़ के जा रही हो "जोया"***venus****"ज़ोया" |
जोया" ! यही नाम है न तुम्हारा मानी के अन्वेषिका , खुद के मानी खोजते खोजते तुम से आ मिली थी हू ब हू मुझसी दिखती
|
--तेरह—
अब बोल कर ढूंढिए जानकारियाँनवीन प्रकाश |
गूगल वॉइस सर्च जो गूगल क्रोम में एड ऑन के जरिये उपलब्ध था अब गूगल ने इसे आधिकारिक रूप से सभी इन्टरनेट ब्राउजर के जरिये उपयोग करने के लिए जारी कर दिया है . |
--बारह—
इस ओम में बहुत प्रकाश हैरंजीत |
बिहार की जमीन गणित की विशिष्ट प्रतिभा के लिए हमेशा उर्वरा रही है। आज भी बिहार के गांव में पढ़ाई का दूसरा नाम है- गणित की दक्षता। ओमप्रकाश अभी पांचवीं कक्षा का छात्र है और देश की सबसे बड़ी दिमागी प्रतियोगिता- आइआइटी के स्तर के सवालों को बखूबी हल कर ले रहा है। विलक्षण प्रतिभा के स्वामी ओम प्रकाश इन दिनों पटना के कुम्हरार में रह कर आइआइटी की तैयारी कर रहा है। |
--ग्यारह—
खुशफहमियों के बीचनिर्मल गुप्त |
मैं और मेरा शहर आजकल खुशफ़हमियों के बीच जिंदा हैं|इस जीवन विरोधी समय में जिंदा रहने के लिए घनघोर आशावाद ज़रूरी है|वैसे यह कमोबेश जिंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों से आंखें फिरा लेने जैसा भी है|मैंने आशावाद को सायास ओढ़ रखा है क्योंकि कुछ लोगों की राय है कि इसे ओढ़ लेने के बाद मेरे चेहरे से अमूमन रचनाकारों के मुख मंडल पर चिपका रहने वाला मनहूसियत का स्थाई भाव छिप जाता है| |
--दस—
रविकर |
हर-हर बम-बम, बम-बम धम-धम | तड-पत हम-हम, हर पल नम-नम || अक्सर गम-गम, थम-थम, अब थम | शठ-शम शठ-शम, व्यर्थम - व्यर्थम || |
--नौ—
जयकृष्ण राय तुषार |
मौसम तो खुशगवार बहुत वादियों में है मेरा सफर तमाम मगर सर्दियों में है ये सोचकर परिंदे भी उड़ते चले गए रहते थे जिस दरख्त पे वो आंधियों में है |
--आठ—
प्रवीण पाण्डेय |
जिन स्थानों पर आपका समय बीतता है, उसकी स्मृतियाँ आपके मन में बस जाती हैं। कुछ घटनायें होती हैं, कुछ व्यक्ति होते हैं। सरकारी सेवा में होने के कारण हर तीन-चार वर्ष में स्थानान्तरण होता रहता है, धीरे धीरे स्मृतियों का एक कोष बनता जा रहा है, कुछ रोचकता से भरी हैं, कुछ जीवन को दिशा देने वाली हैं। स्मृतियाँ सम्पर्क-सूत्र होती हैं, उनकी प्रगाढ़ता तब और गहरा जाती है जब उस स्थान का कोई व्यक्ति आपके सम्मुख आकर खड़ा हो जाता है। |
--सात—
"दो रोटी" के खातिर अब तो "तिलक लगा" घर वाले भेजेंsurendrshuklabhramar5 |
चिथड़े पड़े "खून" बिखरा है "ह्रदय विदीर्ण" हुआ देखे ! आँखें नम हैं धरती भीगी "जिन्दा लाश" बने बैठे !! |
--छह—
देवेन्द्र पाण्डेय |
बांधना चाहता हूँ तुझे |
--पांच—
क्या हमारी मीडिया भटक गयी है ?ZEAL |
देश और समाज के हालात से अवगत कराने का कार्य मीडिया का है ! लेकिन क्या हमारी मीडिया इस कार्य को निष्ठा के साथ अंजाम दे रही है ? आम जनता की बहुत अपेक्षाएं जुडी होती हैं मीडिया के साथ , वो उसकी तरफ सहायता पाने की दृष्टि से देखती है. अपनी आवाज को ऊंचा करना चाहती है मीडिया की मदद से! और देश तथा परिवेश का पारदर्शिता से दिखाया गया आइना देखना चाहती है! |
--चार—
"गीत-...गद्दार आ गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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पाये नहीं जिन्होंने, घर में नरम-निवाले, |
--तीन—
कविता : अंगूठे का सहारामुकेश कुमार तिवारी |
आज भी जब विज्ञान नही समझ पाता है किसी बात को रुक जाता है किसी रूल ऑफ थम्ब पर लेते हुए सहारा अंगूठे का तर्कों को ठेंगा दिखाते हुए |
--दो—
"माँ"अमित श्रीवास्तव |
माँ ! एक ओस की बूंद, जिसमे चमक सूर्य सी, शीतलता अमृत सी, तरल सी फिर भी समग्र, |
--एक--
रंगमंच से : दब न जाये कहीं भारत-पाक की एक सम्मिलित आवाजअभिषेक मिश्र |
भारत-पाक संबंध इनके स्थापना काल से ही एक तलवार की धार पर चलने सरीखे हैं, जिन्हें इनकी राह से भटकाने में कई स्वार्थजन्य तत्व भी छुपे हुए हैं. कहते हैं मो. अली जिन्ना को भी आगे चलकर अपने इस निर्णय के औचित्य पर संदेह होने लगा था, मगर तबतक राजनीति की शतरंज के खिलाडी अपने खेल में काफी दूर निकल चुके थे. उस दौर की विभीषिका झेल चुकी एक पीढ़ी अपने स्तर पर इतिहास की इस भूल को सुधारने के प्रयास करती रही. |
आज बस इतना ही!
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिंग!!
अच्छी लिंक्स के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर, मेरे लिए बहुत से नए लिंक्स ||
जवाब देंहटाएंमनोज जी नमस्कार ..!!बढ़िया चर्चा है ...आभार ...मेरी कृति के चयन के लिए....
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंमेरी रचना भी
सुखद आश्चर्य ||
बहुत-बहुत आभार ||
बढ़िया चर्चा .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा संजोयी है ... आभारी हूँ आपने समयचक्र की पोस्ट को सम्मिलित किया ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुछ नए लिंक देने के लिए
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा ,आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सटीक चर्चा।
जवाब देंहटाएंक्रमानुसार सार्थक चर्चा .आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, सुन्दर लिंक्स... आभार
जवाब देंहटाएंसभी की रचनायें तो पढ़ूंगा ही। सर्वप्रथम सभी मित्रों के लिन्क देने के इस सुंदर तरीके के लिये आपको बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंपठनीय लिंक्स।
जवाब देंहटाएंसंतुलित चर्चा में आपका कोई जवाब नहीं है मनोज जी बहुत सुन्दर तरीके में प्रस्तुत करते हैं आप चर्चा .आभार
जवाब देंहटाएंअछे लिंक्स मिले.आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ,हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लिंक्स के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंअनुभवी हाथों से तैयार की गई,
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा!
आज की चर्चा में आपने कई बहुत बढ़िया उपयोगी लिंक दिए हैं ! आभार स्वीकारें
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना के चयन के लिए आभारी हूँ .
जवाब देंहटाएंनिर्मल गुप्त
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंaapka prayas spsttaya parilakshit ho raha hai,,safal bhi hua ,,hardik badhayiyi
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