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शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना: चर्चा मंच 1318


सकते में सत्ता सकल, हक्के बक्के लोग   
 बढ़े नित्य आयात ही, घटते शुभ-उद्योग 

 घटते शुभ उद्योग, रुपैया जिभ्या फिसले
करता क्या आयोग, योजना लटके मसले 

 ढीठ नीति नीतीश, मौत पर बेजा बकते 
लगी पैर में चोट, सिसकते चल नहिं सकते
----------रविकर



vyangya geet ham sarvottam SANJIV

divyanarmada.blogspot.in 
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम…
*

चमत्कार की कथा सुनाएँ,

पत्थर को भी शीश नवाएँ।

लाख कमा चोरी-रिश्वत से-

प्रभु को एक चढ़ा बच जाएँ।

पाप करें, ले नाम पुण्य का
तनिक नहीं होता पल भर गम
हम सर्वोत्तम, हम सर्वोत्तम… 


दुर्मर-दामिनि देह, दुधमुहाँ-दानव ताके-

रविकर-पुंज

छोरा छलता छागिका, छद्म-रूप छलछंद |
नाबालिग *नाभील रति, जुवेनियल पाबन्द |
जुवेनियल पाबन्द, महीने चन्द बिता के |
दुर्मर-दामिनि देह, दुधमुहाँ-दानव ताके-
दीदी दादी बोल, भूज छाती पर होरा |
पा कानूनी झोल, छलेगा पुन: छिछोरा ||
*स्त्रियों के कमर के नीचे का भाग

अज़ीज़ जौनपुरी : बहुत रुलाया है

Aziz Jaunpuri 


noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा) 

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Rinku Siwan 



जे हम तुम चोरी से, बंधे एक डोरी से, जईयो कहाँ ए हज़ूर …!

स्वप्न मञ्जूषा  

"भगवान एक है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 


Rewa tibrewal 
 Love
 Love


ॐ शान्ति आध्यात्मिक शब्दावली :समापन क़िस्त

Virendra Kumar Sharma 


Manu Tyagi  

शांति की भीख मांगने वाले हिन्दुओं

ZEAL 
 ZEAL


आलोकित कर-


udaya veer singh 


कार्टून कुछ बोलता है - इसने तो घास भी नहीं डाली !


पी.सी.गोदियाल "परचेत" 
 अंधड़ !  


ओबामा वह अहमियत, नहीं दे रहा आज |
नहीं तवज्जो मिले जब, हो रज्जो नाराज |
हो रज्जो नाराज,  सांसद चिट्ठी लिखते |
इन्हें काम ना काज, करोड़ों में पर बिकते |
ओबामा से अधिक, अहमियत दे ओसामा |
दिग्गी को अफ़सोस, मारता क्यूँ ओबामा ||



कुल कुलीन अब लीन हैं, करते बन्दरबाँट-


मैं नागनाथ, तू सांपनाथ, मौसम है दिखावा करने का
ताऊ रामपुरिया  


लाई जो फाँका किये, रहे मलाई चाट |
कुल कुलीन अब लीन हैं, करते बन्दरबाँट |


करते बन्दरबाँट, ठाठ से करें दलाली |
रखता स्विस में साँप, कमाई पूरी काली |


दिखता नाग प्रताप, आज ईश्वर की नाई |
पाए सत्ता आप, खाय भोजन मुगलाई ||



 अब्बा ओ बामा सुनो, डब्बा होता गोल |
रोजी रोटी पर बनी, खुलती रविकर पोल |


खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना |
समझो अपना रोल, धूर्त मोदी का रोना |


चूँ चूँ का अफ़सोस, भेज ना सका मुरब्बा  |
रहा आज ख़त भेज, रोक मोदी को अब्बा ||

 राँझना बनने से अच्छा"'भगत या आजाद""ही बन जाऊं....Rudraksh group mohali play with my emotions..
Admin Deep 

सचमुच उच्च विचार हैं , साधुवाद हे वीर |
सद्प्रयास करते रहें, बढ़िया है तकदीर  |
बढ़िया है तकदीर, हीर का तलबगार क्या ?
अर्पित करूँ शरीर, राष्ट्र से बड़ा प्यार क्या ?
रविकर का आशीष, इश्क क्या करना गुपचुप |
मरे राँझड़ा रोज, भगत सा बनना सचमुच ||

SACCHAI 
 AAWAZ  


सकते में है जिंदगी, दो सौ रहे कमाय |
कुल छह जन घर में बसे, लाल कार्ड छिन जाय | 

लाल कार्ड छिन जाय, खाय के मिड डे भोजन -
गुजर बसर कर रहे, कमे पर कल ही दो जन |

अब केवल हम चार, दाल रोटी नित छकते |
तब हम भला गरीब, बोल कैसे हो सकते ||
 पावरटी घट ही गई , बीस फीसदी शुद्ध |
मँहगाई पर ना घटी, पावरोटियाँ क्रुद्ध |

पावरोटियाँ क्रुद्ध, पाँवड़ा पलक बिछाओ |
नव अमीर बढ़ जाँय, गीत स्वागत के गाओ |

डर्टी पिक्चर देख, लगा सत्ता कापर-टी |
रोके पैदावार, घटा देती पावरटी ||

 


 ‘‘आदत है हैवानों की’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

गलती करना और पछताना, आदत है इन्सानों की।
गलती पर गलती करना तो, आदत है हैवानों की।।


दर्द पराया अपने दिल में, जिस आदम ने पाला है,
उसके जीने का तो बिल्कुल ही अन्दाज़ निराला है,
शम्मा पर जल कर मर जाना, चाहत है परवानों की।
गलती पर गलती करना तो, आदत है हैवानों की।।


काजल कुमार Kajal Kumar 

आगे देखिए.."मयंक का कोना"
(1)



निर्मम  दुनियाँ  से  सदा चाहा  था   वैराग्य
पत्थर सहराने लगा  हँसकर अपना भाग्य
हँस कर  अपना  भाग्य समुंदर की गहराई
नीरव बिल्कुल शांतअहा कितनी सुखदाई
दिन  में  है  आराम   ,रात  हर  इक  है पूनम
सागर कितना शांत , और दुनियाँ है निर्मम ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
(2)

 
आभूषण हैं वदन कारखिए मूछ सँवार,
बिना मूछ के मर्द कामुखड़ा है बेकार।
मुखड़ा है बेकारशिखण्डी जैसा लगता,
मूछों से नर के कानन में पौरुष जगता,
कह मंयक’ मूछों वाले ही थे खरदूषण ,
सत्य वचन है मूछमर्द का है आभूषण।
(3)


कहने को तो दे दिया, शिक्षा  का अधिकार। 

लेकिन दूषित हो रहा, बच्चों का आहार।

बच्चों का आहार, तरीका नहीं स्वदेशी। 
करते वाद-विवाद, सभी हैं इसमें दोषी।
कितने हैं बेहाल, यहीं पर अब रहने दो।
नैतिकता रह गयी, यहाँ केवल कहने को।।
(3)

savan ke jhoole
 पड़ गये झूले पुराने नीम के उस पेड़ पर
पास के तालाब से मेढक सुनाते सुर-सुरीला 

इन्द्र ने अपने धनुष का 
“रूप” सुन्दर सा दिखाया
सात रंगों से सजा है गगन में कितना सजीला
(4)
जमाना है तिजारत का, तिज़ारत ही तिज़ारत है
तिज़ारत में सियासत है, सियासत में तिज़ारत है
(5)
1
बन जाऊं मैं
शीतल पवन ,तो
तपन मिटे   
2
बन जाऊं में 
बहती जल धारा 
प्यास बुझाऊं 
3
दूर हो जाए 
जहाँन  से अँधेरा 
दीप जलाऊं ...
(6)

(7)
सिर्फ़ फूल हों तेरी राह में है मेरी बस दुआ.........रिकी मेहरा

जिन्हें याद करते हैं हम बस यूँ ही सदाउन्हें मेरी भी चाहत हो ज़रूरी तो नहीं
मेरी धरोहर पर yashoda agrawal 


18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपका आभार...रविकर जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. waah bahut sundar prastuti ravikar ji .sabhi links behad umda , mayank me sthan dene ke liye abhaar chacha ji .pure parivar ko suprabhat

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह, काव्यमयी चर्चा, कितने दिनों बाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात भाई
    आभार
    रविकर भाई का जवाब नहीं
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर काव्यमयी चर्चा भाई जी बहुत बहुत बधाई ,एक महीने के लिए कल बाहर जा रही हूँ आकर फिर चर्चामंच पर हाजिर होउंगी ,सभी दोस्तों को बाय बाय

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  6. काव्य के साथ रचना ..... मजा आया

    जवाब देंहटाएं
  7. sundar charcha.....ismay mujhe shamil kiya apne....bahut bahut shukriya

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही जादूई चर्चा, आभार.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर चर्चा, आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. कार्टूनों को भी सम्‍मि‍लि‍त करने के लि‍ए वि‍नम्र आभार

    जवाब देंहटाएं

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