लीजिये पेश है आज की चर्चा, कई और भी अच्छी पोस्ट्स पढने को मिली लेकिन वहां से कॉपी करना मुहाल हो गया मसलन 'दिलीप जी', 'रश्मि प्रभा जी; और भी कई… हम कॉपी ही नहीं कर पाए...फिर ये भी सोचा क्या पता कुछ गलती ही न हो जाये हमसे कॉपी करके...इसलिए पहले पूछ लेंगे ... तो फिर शुरू कीजिये ...ब्लॉग दौरा.. ..और का...हाँ नहीं तो...!! |
कैसे समझाये इन्हें......प्रियदर्शिनी तिवारी जी की प्रस्तुति... ![]() "बेटा ..तुम्हारे सर मै दर्द है ...तुम्हारे घर फोन कर दूं? ..घर जाओगे? "..नहीं .मुझे घर नहीं जाना ...मै यही सिक रूम मै लेटारहूगा ..घर जाऊंगा तो सब नाराज़ हो जायेगे राहुल बोला राहुल एक होनहार .,बुद्धिमान ,और भावुक बच्चा है ..सबको वह बहुत प्यार करता है ..उससे किसी का दुःख-दर्द नहींदेखा जाता ..वह किसी को भी नाराज़ नहीं करना चाहता ॥ |
साहित्य के ध्रुव उड़न तश्तरी...समीर जी का कहना है.. ![]() एक गांव में सरपंच जी ने बैठक बुलवाकर घोषणा की कि अब अगले माह तक हमारे गांव में बिजली आ जायेगी. पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. उत्सव का सा माहौल हो गया. हर गांववासी प्रसन्न होकर नाच रहा था. देखने में आया कि गांव के कुत्ते भी खुशी से झूम झूम कर नाच रहे थे. यह आश्चर्य का विषय था. लोगों ने कुत्तों से जानना चाहा कि भई, तुम लोग क्यूँ नाच रहे हो? कुत्तों ने बड़ी सहजता से जबाब दिया कि जब बिजली आयेगी तो इतने सारे खम्भे भी तो लगेंगे. |
अशेष आशा जोगलेकर जी की प्रस्तुति... ![]() पैसठवा साल खत्म हो गया मेरा । जिंदगी के इस मोड पर आकर लगता है अब कुछ पाना शेष नही है । किसी बात का अफसोस भी नही, उन बातों का भी नही जो कुछ साल पहले तक भीतर तक दुख पहुंचाती थीं कि हाय, मैने ऐसा क्यूं नही किया । पर अब प्रसन्न हूँ जो कुछ किया उसमें मेरी औऱ ईश्वर की, दोनों की, मर्जी थी । कुछ और करती तो जीवन कुछ और तरह का हो जाता । पर मुझे तो यही राह चुननी थी जो मैने चुनी । |
मासूम परिंदों की प्यासी पुकार सुनिए, एक बर्तन पानी का भरकर रखिये ---- अमित शर्मा ![]() इन दिनों भयंकर गर्मी पड़ रही है, और इस गर्मी में अगर सबसे ज्यादा शामत किसी की आ रही है तो वे है बेजुबान पक्षी. पेड़-पौधे, नदी-पर्वत की तरह पशु-पक्षी भी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं।बेजुबान पक्षियों की रक्षा हमारा कत्र्तव्य है, धर्म है। |
ठंडा ठंडा मटके का पानी गर्मी में प्यास बुझाए, तड़पत तपत तन-मन में फिर से प्राण बसाए!!ठंडा ठंडा मटके का पानी गर्मी में प्यास बुझाए, तड़पत तपत तन-मन में फिर से प्राण बसाए!! दिनेशराय द्विवेदी जी की प्रस्तुति... अखबार में खबर है, कोटा के जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय को एक वाटर कूलर भेंट किया गया। पढ़ते ही वाटर कूलर के पानी का स्वाद स्मरण हो आता है। पानी का सारा स्वाद गायब है। लगता है फ्रिज से बोतल निकाल कर दफत्तर की मेज पर रख दी गई है। बहुत ठंडी है लेकिन एक लीटर की बोतल पूरी खाली करने पर भी प्यास नहीं बुझती। मैं अंदर घर में जाता हूँ और मटके से एक गिलास पानी निकाल कर पीता हूँ। शरीर और मन दोनों की प्यास एक साथ बुझ जाती है। |
खामियाजा ! पी.सी. गोदियाल जी की प्रस्तुति... ![]() दो ही रोज तो गुजरे जुम्मे-जुम्मे मगर अब शायद ही याद हो तुम्हे, किसी बेतुकी सी बात पर भड़ककर उतर आये थे तुम दल-बल सडक पर, तुमने अपनी नाखुशी जताने को राह चलते राहगीर को सताने को , |
जब अपने ही ...... देवेश प्रताप जी की प्रस्तुति... ![]() क ही देश कि मिटटी में जन्में लोग जिसमें से कुछ उस मिट्टी कि सुरक्षा के लिए अपनी जान कि बाजी लगा देते है ..और कुछ अपने ही देश कि मिटटी को बेचना शुरू कर देते है । जैसा कि अभी एक महिला आई यफ यस अधिकारी को भारत कि गुप्त सूचनाओं को पाकिस्तान के आईएसआई तक पहुचाने का मामला सामने आया है । ये बड़े ही शर्म कि बात है ....उच्च पद पर नियुक्त अधिकारी अपने देश के साथ धोखा देने के बारें में सोच भी कैसे लेते है । क्या उनका ज़मीर ऐसा करते हुए ज़रा से भी नहीं धिकारता । क्या उनके जहन में एक बार भी ये बात नहीं आती कि इसी देश की सुरक्षा करते हुए बहादुर सैनिक शहीद हो जाते है । दुशमन के साथ जब कोई अपना मिल जाये तो दुशमन के लिए हर रस्ते आसान हो जाते हैं । इसी तर्ज पर एक कहानी सुनाता हूँ,जो एक मेरे मित्र ने हमें सुनाई थी । |
मेरी बिटिया साधना वैद्य जी की प्रस्तुति... ![]() प्यारी बिटिया मुझको तेरा ‘मम्मा-मम्मा’ भाता है, तेरी मीठी बातों से मेरा हर पल हर्षाता है ! दिन भर तेरी धमाचौकड़ी, दीदी से झगड़ा करना, बात-बात पर रोना धोना, बिना बात रूठे रहना, मेरा माथा बहुत घुमाते, गुस्सा मुझको आता है, लेकिन तेरा रोना सुन कर मन मेरा अकुलाता है ! फिर आकर तू गले लिपट सारा गुस्सा हर लेती है, अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा भर लेती है, गालों पर पप्पी देकर तू मुझे मनाने आती है, ‘सॉरी-सॉरी’ कह कर मुझको बातों से बहलाती है ! |
माँ, पत्नी और बेटी------एक कविता-------->>>>>ललित शर्मा माँ-पत्नी और बेटी पृथ्वी गोल घुमती है ठीक मेरे जीवन की तरह पृथ्वी की दो धुरियाँ हैं उत्तर और दक्षिण मेरी भी दो धुरियाँ हैं माँ और पत्नी मै इनके बीच में ही घूमता रहता हूँ माँ कहती है, आँगन में आकर बैठ खुली हवा में पत्नी कहती है अन्दर बैठो |
सावन में आग लग गई................ शेखर कुमावत ![]() जबसे जिन्दगी एक हसीन सफ़र बन गई | दिल को उसी दिन से नई तलब लग गई || जालिम जमाना कहता सावन बरस रहा | मगर हम कह रहे सावन में आग लग गई || |
एक और इंसान – कहानी अनुराग शर्मा…..An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीयकी प्रस्तुति...![]() खिल्लू दम्भार मर गया साहब!” अधबूढ़े का यह वाक्य अभी भी मेरे कानों में गूंज रहा है। वैसे तो मेरे काम में सारे दिन ही कठिन होते हैं मगर आज की बात न पूछो। आज का दिन कुछ ज़्यादा ही अजीब था। सारा दिन मैं अजीब-अजीब लोगों से दो-चार होता रहा। सुबह दफ्तर पहुँचते ही मैले कुचैले कपड़े वाला एक आदमी एक गठ्ठर में सूट के कपड़े लेकर बेचने आया। दाम तो कम ही लग रहे थे। मगर जब उसने बड़ी शान से उनके सस्ते दाम का कारण उनका चोरी का होना बताया तो मुझे अच्छा नहीं लगा। मैंने पुलिस बुलाने की बात की तो वह कुछ बड़बड़ाता हुआ तुरंत रफू चक्कर हो गया। |
मैं देर करता नहीं श्री संजय अनेजा जी की प्रस्तुति.. आज हम अपना पिछला जेंटलमैन प्रॉमिस पूरा कर रहे हैं जी, दस मिनट बनाम दो घंटे वाला। तो साहब, हुआ ये कि मैं अपनी बाईक उठाकर बाज़ार की ओर चल दिया। बाजार के रास्ते में एक तिराहा आता है, जिसका नाम मैंने बारामूडा ट्राईएंगल रखा है। पता है जी कि तिराहे और ट्राईएंगल में फ़र्क होता है, हमने भी अंग्रेजी पढ़ी है(हिंदी माध्यम से), पर ति, TRI से मतलब तीन का ही होता है, इसलिये हमारा रखा नाम बिल्कुल ठीक है। इत्ता बड़ा नाम इसलिये रखा है कि उस तिराहे से निकलते समय हमेशा कुछ न कुछ होने का चांस रहता है, हमारे साथ। |
सीधी बात है कहने दो ![]() इन्द्रनील भट्टाचार्जी की प्रस्तुति... दिल में मुहब्बत नहीं... सैल तकल्लुफ रहने दो.... |
पहली मुलाकात ...दिगम्बर नासवा जी की प्रस्तुति.. काम के सिलसिले में आने वाला सप्ताह ब्लॉग-जगत से दूर रहूँगा ...... जाते जाते ये कविता आपके सुपुर्द है ... सुनो क्या याद है तुम्हे पहली मुलाकात पलकें झुकाए दबी दबी हँसी छलकने को बेताब वो अल्हड़ लम्हे भीगा एहसास हाथों में हाथ लिए घंटों ठहरा वक़्त उनिंदी रातें कहने को अनगिनत बातें |
गुरु गोविन्द दोउ खड़े….फ़िरदौस ख़ान जी की प्रस्तुति.. ![]() हमने अपनी पिछले पोस्ट में हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत और पारंपरिक कलाओं में गुरु-शिष्य की परंपरा का ज़िक्र किया था... बात उन दिनों की है जब हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे... हर रोज़ सुबह फ़ज्र की नमाज़ के बाद रियाज़ शुरू होता था... सबसे पहले संगीत की देवी मां सरस्वती की वन्दना करनी होती थी... फिर... क़रीब दो घंटे तक सुरों की साधना... इस दौरान दिल को जो सुकून मिलता था... उसे शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है... इसके बाद कॉलेज जाना और कॉलेज से ऑफ़िस... ऑफ़िस के बाद फिर गुरु जी के पास जाना... संध्या, सरस्वती की वन्दना के साथ शुरू होती और फिर वही सुरों की साधना का सिलसिला जारी रहता... हमारे गुरु जी, संगीत के प्रति बहुत ही समर्पित थे... वो जितने संगीत के प्रति समर्पित थे उतना ही अपने शिष्यों के प्रति भी स्नेह रखते थे... उनकी पत्नी भी बहुत अच्छे स्वभाव की गृहिणी थीं... गुरु जी के बेटे और बेटी हम सब के साथ ही शिक्षा ग्रहण करते थे... कुल मिलाकर बहुत ही पारिवारिक माहौल था... |
ताऊ प्रकाशन का सद्-साहित्य पढ़िए.. इन पुस्तकों को पढकर हर एक ब्लागर सदगति को प्राप्त हो सकता है. ऐसे पुनीत और पावन कार्य में आजकल ताऊ लगा हुआ है. आज मैं कुछ ताऊ प्रकाशन साहित्य की पुस्तकों से आपको रूबरू करवाता हूं जो बहुत विद्वान ब्लाग साहित्यकारों द्वारा लिखी गई हैं. |
मुंबई ब्लॉगर्स मीट- बोलती तस्वीरें! भूल सुधार! माफी-माफी!बार-बार माफी!…..विभा रानी जी की प्रस्तुति.. ![]() |
और अन्त में देखिए……..सुजाता जी की प्रस्तुति.. सिनेमा देखने जाएंगे तो गँवारू ही कहलाएंगे, मूवी देखिए जनाब !! ![]() आप अपने घर को फ्लैट कहना पसन्द करते हैं या अपार्टमेंट ? फिल्म देखने जाएँ तो उसे सिनेमा देखना कहेंगे या मूवी ? भई तय रहा कि आप 'सिनेमा देखने जाएंगे ' तो गँवारू ही कहलाएंगे । मूवी देखिए जनाब !! ई मूवी अमेरिका वाला भाई लोग ने बनाया है न! गुलामी कोई देश केवल भौतिक रूप से नही करता। गुलाम देश की भाषा भी गुलामी के संकेत देने लगती है और धीरे धीरे दिमाग ही गुलाम हो जाते हैं।अंग्रेज़ की गुलामी के दौर मे उपनिवेश का आर्थिक शोषण-दोहन किया जाता था । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र शोषण के इस रूप को समझ रहे थे और कभी छिपे -खुले ज़ाहिर भी कर रहे थे ।'निज भाषा ' की उन्नति भी उनकी चिंता थी । उनकी ये मारक लाइने नही भूलतीं - अंग्रेज़ राज सुख साज सजै सब भारी |