नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं, चर्चा के साथ।
रसगुल्ला बजट तो आ गया। अब बारी है हमारी जेब पर चाकू-छूरी चलाने वाले बजट की। जाने क्यों हर बजट के पहले हम कई आशाएं, उम्मीदें पाल लेते
हैं। जो सरकार हमारे टैक्स पर चलती है वह अपना घर चलाएगी या हमारा पता नहीं! हां, हमें प्राण शर्मा की ग़ज़ल
पारा-पारा क्यों न लगे [ग़ज़ल] - प्राण शर्मा ज़रूर याद आती है।
पाल रहा है मन ही मन में जाने कितनी आशाएँ
भूखे - प्यासे सा हर कोई मारा - मारा क्यों न लगे
" प्राण " अँधेरी रात , घनेरे बादल , तूफां और बिजली
मन का दरपन पल ही पल में पारा-पारा क्यों न लगे
बजट हमारी जेब पर भले कैंची चला दे, पर कुछ खास लोगों का दिन-दोगुनी रात-चौगुनी भला होता ही रहता है और उनके धनों का अंबार स्विस बैंक में जमा होता ही रहता है। ऐसे हम भारत की प्राचीन परंपराओं गौर और सम्मन की चिंता कुछ कविओं को छोड़ किसके पास है। हम तो अपना गुस्सा पीकर निर्मला दीदी के
दोहे-- dohe पढें, इसी में हमारी भालाई है।
भारत की गरिमा बचा कर के सोच विचार।
भगत सिंह,आज़ाद का सपना कर साकार॥
गुस्सा अपना पी लिया शिकवा था बेकार।
बढ ना जाये फिर कहीं आपस मे तकरार॥
एक तरफ़ बेलगाम महंगाई और दूसरी तरफ़ बढते अपराध। क्या होगा इस देश का? सबसे ज़्यादा चिंता में डालती हैं आज के इस हालात में
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध । प्रतिभा जी बताती हैं महिलाओं पर होने वाले यौन अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश दो ऐसी जगहें हैं जहां महिलाएं खुद को सुरक्षित नहीं महसूस करती। खासकर किशोरियों और बच्चियों के साथ किया जाने वाला इस तरह का व्यवहार अत्यन्त शर्मनाक है। और उससे भी ज्यादा व्यथित कर देने वाला है इन घटनाओं के प्रति पुरुषों का रवैया।
इस तरह की घटनाओं की जो बाढ़ सी आ गई है, उसके न सिर्फ हमें कारण जानने होंगे बल्कि उसके निवारण भी ढूढ़ने होंगे। ताकि हमारी बच्चियां घर के बाहर ही नहीं घर के अंदर भी खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
मुझे लगता है हर सामाजिक बुराई की जड़ अशिक्षा है। इसलिए यह ज़रूरी है कि
विचार-114 :: “सबको शिक्षा” मिले।
आजकल नारे हम लगा रहें हैं “सबको शिक्षा”!
सर्व शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है।
आज शिक्षा व्यवस्था स्कूल से निकल कर बाजार में पहुंच गई है।
बाजार में ठगे जा रहे हैं छात्र ... ठगे जा रहे हैं अभिभावक!
संयुक्त राष्ट्र द्वारा ज़ारी “एजुकेशन फ़ॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट” में कहा गया है कि दुनिया में कुल अशिक्षित लोगों की संख्या 75.90 करोड़ है जिसमें सबसे ज़्यादा भारत में है।
जी हां, भारत दुनिया में सबसे अधिक अशिक्षित लोगों वाला देश है।
शिक्षा से स्वस्थ चिंतन जनम लेता है। स्वस्थ चिंतन मानवता का भला चाहता है। हम एक दूसरे के सुख दुख में एक-दूसरे के साथ होते हैं। प्रवीण पांडेय के विचार इसी से प्रेरित हैं। कहते हैं धरती को कैसा लगता होगा, जब कोई आँसू की बूँद उस पर गिरती होगी? निश्चय मानिये, यदि आप सुन सकते तो उसकी कराह आपको भी द्रवित कर देती। सच हर किसी को ज़रूरत होती ही है
एक कंधा, सुबकने के लिये। प्रवीण जी की तरह हम भी यह कहना चाहते हैं “भगवान जीवन में मुझे वह क्षण कभी न देना, जब आँसू ढुलकाने के लिये कोई कंधा न मिले और किसी रोते हुये को अपने कंधे में न छिपा सकूँ। आँसुओं को मान मिले, सुबकने के लिये एक कंधा मिले, धरती की कराह भला आप कैसे सुन सकेंगे?”
जब कंधा मिल जाए सुबकने के लिए तो दोस्ती की यह जोड़ी जमती है। जोड़ी जमे इसके लिए आपस की समझ सही होनी चाहिए। दोनों में अगर समझदारी सही हो तो समजिए कि वह है
अमर युगल पात्र – भाग - २ : कुरु वंश का प्रारंभ । ऐसे ही एक
अमर युगल पात्र – संवरण-तपती के बारे में बता रही हैं लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`। सूर्यदेव की पुत्री का नाम था
‘तपती’। वह भी सूर्य के समान ज्योति से परिपूर्ण थी। अपनी तपस्या के कारण वह तीनों लोकों में तपती के नाम से पहचानी जाती थी। तपती सावित्री की छोटी बहन थी। धरती पर , पुरुवंश में , राजा ऋक्ष के पुत्र ‘संवरण’ भगवान सूर्य के बड़े भक्त थे। वे बड़े ही बलवान थे। वे प्रतिदिन सूर्योदय के समय अर्ध्य, पाद्य, पुष्प, उपहार, सुगंध से , बड़े पवित्र मन से, सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। नियम, उपवास तथा तपस्या से सूर्यदेव को संतुष्ट करते और बिना अहंकार के पूजा करते।
धीरे-धीरे सूर्यदेवता के मन में यह बात आने लगी कि , यही राजपुरुष मेरी पुत्री ‘तपती’ के योग्य पति हैं। सूर्य की अटल आराधना तथा अपने गुरु की शक्ति के प्रभाव से , राजा संवरण ने , तपती जैसी नारी रत्न को प्राप्त किया।
Amrita Tanmay की बेहद संवेदनशील रचना, जो हमें कुछ सोचने पर विवश करती है।
स्वपोषण के लिए
मानवता का ऐसा दोहन....
आज हर तरफ दिख रहा है
भ्रष्ट मानव का
प्राकृतिक क्लोनिंग
सौ फीसदी शुद्धता वाला......
परिणाम
बुरी तरह से घिरे हैं हम
व्यभिचार और भ्रष्टाचार के बीच
जो खुले बाज़ार में नंगा हो
दिखा रहा है अपना
विध्वंसक तांडव.
इधर कह रहें हैं
"भैंस हमारी बहुत निराली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") हम कुछ नहीं कहेंगे। आप स्वयं जाकर देख लीजिए। कुछ तो तस्वीरों का कमाल कुछ लेखनी का धमाल। अद्भुत और सरस बाल गीत।
सीधी-सादी, भोली-भाली।
लगती सुन्दर हमको काली।।
भैंस हमारी बहुत निराली।
खाकर करती रोज जुगाली।।
इसका बच्चा बहुत सलोना।
प्यारा सा है एक खिलौना।।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ कह रहे हैं
मेरे कुछ हाइकु (10 मार्च 1986 से 12 दिसम्बर 2009) तुतली बोली
आरती में किसी ने
मिसरी घोली ।
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इस धरा का
सर्वोच्च सिंहासन
है बचपन
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Anita का प्रश्न
कौन है वह।
रचे किसने अनंत ब्रह्मांड
आकाशगंगाएँ, अनगिनत नक्षत्र, सौर मंडल
ग्रह, उपग्रह प्रकटे कहाँ से
इस असीम को कर ससीम
धारे जो भीतर
कौन है वह?
तीन सामूहिक बलाग्स में एक के बाद एक तीन महिलाओं को
रेखा श्रीवास्तव जी को LBA का,
रश्मि प्रभा जी को HBFI का और
वंदना गुप्ता जी को AIBA का अध्यक्ष बनाया गया हैं
इन तीन नारियों से आग्रह हैं कि वो इस बात का अवश्य ध्यान रखे कि वो जिस संस्थान मे अध्यक्ष हैं उस संस्थान के बाकी सदस्य कहीं भी किसी भी पोस्ट अथवा कमेन्ट मे किसी भी महिला ब्लोगर का अपमान ना करे ।
आज बस इतना ही। अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।