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मंगलवार, जून 07, 2011

रुंधे हुए गले का जवाब , शब्द सारे नि:शब्द हैं साप्ताहिक काव्य मंच –49 --- चर्चा मंच -- 538

नमस्कार , एक बार फिर  ले आई हूँ मंगलवार की साप्ताहिक काव्य चर्चा …सोचा था कि इस बार छोटी चर्चा करुँगी …जिससे सब लोंग सारे लिंक्स तक पहुँच सकें ..लेकिन ज्यों ज्यों कविताएँ पढ़ती गयी मेरी चर्चा विस्तृत आकार लेती गयी ..खैर फिर भी एक विश्वास है कि सुधि-पाठक नए लोगों का निरंतर उत्साह वर्धन करेंगे ..और लीजिए चर्चा का प्रारम्भ भी करते हैं विश्वास की ही बात लेकर ..
मेरा परिचय  डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी जहाँ अनमयस्क हैं देश की राजनीति पर और पूछ रहे हैं --करें विश्वास अब कैसे ? तो दूसरी ओर मन के हाथों विवश हो लिखते हैं ..छल रहा रूप .…. दोनों ग़ज़लों की बानगी देखिये ..
करें विश्वास अब कैसे, सियासत के फकीरों पर
उड़ाते मौज़ जी भरकर, हमारे ही जखीरों पर
रँगे गीदड़ अमानत में ख़यानत कर रहे हैं अब
लगे हों खून के धब्बे, जहाँ के कुछ वज़ीरों पर
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है



कल तलक की थी वफा-प्यार की बातें कितनी
आज बन करके सितमगर सा कहर ढाया है
मेरा फोटो  वंदना गुप्ता जी लगता है कृष्ण रंग में रंगी हुई हैं … तभी कह रही हैं की कालों को नज़र नहीं लगती --आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?
मेरा फोटो मनोज कुमार जी अपने ब्लॉग विचार पर एक नए बिम्ब के साथ गहन रचना ले कर आए हैं ..ओ  कैटरपिलर
कैटरपिलर!  /  तुम प्रतीक हो  /  बेबस बेचारों के,  /  मोहताज़ मज़दूरों,  /  लाचारों के।
हे श्रमजीवी!  /  करके तैयार,  /  रंग-विरंगे वस्त्रों का,  / रेशमी संसार।  / तुम मिटते हो,
पटते हो,  /  जैसे नींव में पत्थर।
images  मनोज ब्लॉग पर डा० श्याम नारायण मिश्र का बहुत प्यारा नव गीत -
धूप-किरणों के पखेरू
गांव के पीछे पहाड़ी पर
धूप किरणों के पखेरू
चुग रहे होंगे विजन के बीज।
लौटते होंगे तराई से
आदिवासी औरतों के भीड़-मेले
टोकरों में लिये कोई चीज़।
 My Photo अरुण कुमार निगम जी लाये हैं एक निष्कर्ष ..

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष - "बसंत"

कविता में ,गीत में,  बसंत नजर आता है.
अब तो बसंत का बस ,अंत नजर आता है.
जंगल का नाश हुआ ,    गायब पलाश हुआ
सेमल ने दम तोडा ,   आम भी निराश हुआ.
चोट लगी वृक्षों को,     घायल आकाश हुआ.
बदल भी रो न सका     ,  इतना हताश हुआ
आधुनिक शहर दिक्-दिगंत नजर आता है.
अब तो बसंत का बस  , अंत नजर आता है.
  बाबा रामदेव पर अचानक रात में हुए सरकार द्वारा अत्यचार पर एक सशक्त रचना पढ़िए अरविन्द पांडे जी की --

हर लाठी जो सत्याग्रह पर चलती,गांधी को लगती है.

इतिहास साक्षी है इसका ,
सत्ता की लाठी से अक्सर,
जागा करता है शेष-नाग,
होकर, पहले से और प्रखर .
पर, हर भ्रष्टाचारी खुद को,
बस अपराजेय समझता है.
लाठी-बंदूकों के बल पर
उठ कर, मिट्टी में मिलता है.
  विवेक मिश्र जी कर्नल गौतम राजरिशी की खूबसूरत रचना पढवा रहे हैं अपने ब्लॉग पर ..चीड़  के जंगल
चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से
गोलियाँ चलती रहीं इस पार से उस पार से
मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते
चीख तक उट्ठी नहीं इक भी किसी अखबार से
My Photo सत्यम शिवम जी  प्रेरणा देते हुए कह रहे हैं कि -फिर नया आगाज़ कर ले
जिंदगी के इस सफर में,
फिर नया आगाज कर ले।
दब गयी जो साँस मन में,
एक नयी आवाज भर ले।
मेरा फोटो विजय रंजन -- क्षणिकाओं के माध्यम से गहन अनुभूति प्रेषित कर रहे हैं --पढ़िए क्षणिकाएँ


बर्फ से जब भाप -
उठती देखा तो ये सोचा मैंने,
उसके सीने में भी-
कोई आग धधकती तो है।
दीवार पे सर पटक कर,
कह रहा है खुद से वो -
अपने भीतर के सर्प(दर्प) का,
यूँ फन कुचल रहा हूँ मैं।

मेरा फोटो  दिलबाग विर्क जी पसरे हुए सन्नाटे को नाम दे रहे हैंआतंक ..
दोपहर की
चिलचिलाती धूप में
चारों तरफ
पसरा हुआ है
सन्नाटा .
मेरा फोटो अंजू जी ने रचना से रचित तक का सफर .. एक नारी के हृदय को पूर्ण रूप से चित्रित कर दिया है अपनी रचना में --औरत
रचना से
रचित का
  सफ़र
तय करती है
बड़ी ही
तन्मयता से , …
My Photo एम० वर्मा जी किसी के बारे में कह रहे हैं कि -उसे खुद की तलाश है ..यह अंतहीन तलाश क्या कभी पूरी होगी .
वह गुम है,
मगर उसे
स्वयं की गुमशुदगी का
एहसास ही नहीं है.
वह अक्सर
घर से निकलता है
खुद की बजाय
किसी और की तलाश में.
My Photo  जब ईश्वर ने दुनिया बनायीं ..पेड़ पौधे बनाये और सबसे श्रेष्ठ रचना बनायीं इंसान … अब इंसान की क्या दशा है ? इसको बहुत सशक्त शब्दों में लिखा है विवेक शर्मा जी ने ..
जब उसने कायनात बनायीं
बनायीं ये धरती, पेड़ पौधे , पशु पक्षी
और बनाया आसमान
लाखों करोड़ों जीव बनाये
और सबका सिरमौर बनाया ये इंसान ,
मेरा फोटो साधना वैद जी बता रही हैं कि मन जो चाहता है कहाँ पूरा हो पता है ? बहुत भाव प्रधान रचना ..कब होता है ?
मेरा सोचा तुम सुन लो कब होता है ,
मेरा चाहा तुम चुन लो कब होता है ,
हम दो अलग-अलग राहों पर चलते हैं ,
हमराही बन साथ चलें कब होता है !
My Photo वंदना महतो  जी की  खूबसूरत नज़्म लायी हूँ --अतिरिक्त किराया
एक करवट बदलती हूँ,
जैसे पन्ने कोई पलटती हूँ
जाने कितने पन्ने बाकी है अब भी?
तेरे नाम वाली किताब कौन सिरहाने रख जाता है.
My Photo  अखिल जी की खूबसूरत गज़ल --कुछ शब्द सजाये हैं मैंने एक एक कर
अपने ये दोनों हाथ दुआ में समेट कर,
माँगा है उसे टूटते तारे को देख कर,
कुछ शब्द सजाये हैं मैंने एक एक कर,
नाखून से खुद अपने जिगर को कुरेद कर.
My Photo राजीव शर्मा जी प्रेरित कर रहे हैं कि जीवन तू सागर न बन
जीवन तू सागर न बन
सागर हर वस्तु से खेलता
जिधर का रुख उधर धकेलता
पर मेरी नौका के आगे
सागर बेबस हो जाता है
My Photo सुरेन्द्र सिंह “ झंझट “ एक समसामयिक रचना लाये हैं ..लोकराज में जो हो जाये थोड़ा है
जनता के सर  पड़ता  रोज  हथौड़ा है |  
                  लोकराज में   जो  हो  जाये   थोड़ा है |
कहीं  का पत्थर  और कहीं का रोड़ा है |
भानमती ने  अच्छा   कुनबा  जोड़ा  है |
मनमोहन तो ताक धिना धिन  नाचे हैं ,
दिल्ली - महारानी  का  सीना चौड़ा है |
                  यू पी ने  हर राज्य को पीछे  छोड़ा है |
                 लोकराज  में जो हो  जाये    थोड़ा  है |
मेरा फोटो  शिखा शुक्ला का कहना है कि प्यार बार बार होता है ..
कौन कहता है कि प्यार,
सिर्फ एक बार होता है।
ये तो इक एहसास है जो,
बार-बार होता है।
इसके लिए कोई सरहद कैसी,
ये तो बेख्तियार होता है,
My Photo संजय दानी जी की खूबसूरत गज़ल --
तेरी जुदाई का ऐसा मातम रहा,
ता-ज़िन्दगी दूर मुझसे हर गम रहा।
मंज़िल मेरी तेरी ज़ुल्फ़ों के गांव में,
दिल के सफ़र में बहुत पेचो-ख़म रहा।
My Photo  शरदिंदु शेखर बता रहे हैं कि आज कल भेड़ियों की जाति लुप्त हो रही है पर फिर भी पाए जाते हैं यह हर जगह ..भेड़िया
भेड़िया आया, भेड़िया आया
पहले आता था
कभी-कभी
जंगलों से
रिहायशी इलाके में
लेकिन
बना लिया आशियाना
कंक्रीट के जंगलों में
My Photo नेहा माहेश्वरी  जी कह रही हैं कि ज़िंदगी कैसे जी जाये यहहमें आता है
हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना
चला हूँ मैं तो बस इक बूँद लेकिर मापने सागर
तू अब सारे किनारों को ही मेरी अलविदा कहना
My Photo  आदित्य जी अपनी खूबसूरत गज़ल से न जाने क्या क्या दिखाना कहते हैं --
इन्तहां  दिखाऊं तुझे
आ अपने शौक़ की मैं इन्तहां दिखाऊं तुझे,
तुझसे बावस्ता नज़र में जहां दिखाऊं तुझे.
चल मेरे साथ चमन में, गुलों से मिलवाऊं,
खुदाई मरती है तुझ पे, समां दिखाऊं तुझे.
मेरा फोटो निवेदिता श्रीवास्तव आज लोकतंत्र पर एक गहन अभिव्यक्ति लायी हैं
शब्द सारे नि:शब्द हैं ,
स्वर सभी खामोश हैं ,
भावनाएं अवाक हैं ,
आत्मा भी स्तब्ध है ,
ये कैसी आज़ादी ,
ये कैसा देशप्रेम है !
प्रशासन के विकृत ,
आतंक के सामने ,
निर्जीव हर तंत्र है ,
मुहम्मद शाहिद मंसूरी “ अजनबी “ जी यादों में खो कर लाये हैं -
रुंधे हुए गले का जवाब
तंगहाली की वो आइसक्रीम
चन्द रुपयों के वो तरबूज
किसी गली के नुक्कड़ की वो चाट
सुबह- सुबह
पूड़ी और जलेबी की तेरी फरमाइश
मुझे आज भी याद है
कैसे भूल जाऊं
My Photo रचना रविन्द्र जी  एक गहन अभिव्यक्ति दे रही हैं अपनी कविता में ..आज की व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष है .."गिद्ध"
पेड़ पर
गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
पर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है
वातायन पर सुभाष नीरव के पढ़िए  --हाईकू
खूब उलीचा
दुख न हुआ कम
समन्दर –सा।
0
चंचल मन
उड़ने को व्याकुल
इक पंछी-सा।
My Photo डा० दिव्या श्रीवास्तव की  कोमल भावों  को समेटे सकारात्मक रचना पढ़िए -आज की कविता सिर्फ तुम्हें समर्पित है
मौसमों की मार किस पर नहीं पड़ती है
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
My Photo देवेन्द्र पांडे खासियत बता रहे हैं नेताओं की --राजनेता
बड़े भले लगते हैं
जब करते हैं
हमारे लिए
संघर्ष
दे रहे होते हैं
आश्वासन
My Photo डा० जय प्रकाश तिवारी जी  गौतम बुद्ध के पत्र यशोधरा के नाम  ले कर आए हैं ..
तू मेरे प्रथम -ज्ञान की प्रतिमा
तेरे स्फुलिंग मेरी ज्योति जली.
देखा जगत को अग्नि में जलते
क्या 'यश' मेरी भी जल जाएगी?
My Photo रावेंद्र कुमार रवि जी आगाह कर रहे हैं या गुज़ारिश ..आप ही पढ़िए उनकी भावमयी रचना ..मत दिखाओ
मैं नहीं हूँ
प्यास का मारा
हुआ मृग,
हर रचनाकार ने ज़िंदगी को अपने नज़रिए से देखा है ..दिगंबर नासवा जी की गज़ल पढ़िए ज़िंदगी के बारे में ---ज़िंदगी वो राग जिसका सम नहीं है ..
किसके जीवन में कभी ऐसा हुवा है
साथ खुशियों के रुलाता गम नही है
बन गया मोती जो तेरा हाथ लग के
अश्क होगा वो कोई शबनम नही है
मेरा फोटो और आज की चर्चा का समापन  करना चाहूंगी समीर लाल जी की दो नज्मों से ..तन्हाई में बेवक्त का संगीत भी कैसा लगता है इसे बता रहे हैं , ..निर्लज्ज संगीत... और ....
उस रात
गहरी तनहाई
में
शहनाईयों के शोर से
टूट
ऐसे
बेसुध पड़ा रहा
बिस्तर पर मैं...
आज बस इतना सारा ही …आशा है आपको रचनाएँ पसंद आएँगी …आभार पाठकों का जो  दिए हुए लिंक्स पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं ..जिससे हमें भी चर्चा करने की प्रेरणा मिलती है …आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव हमेशा उत्साहित करते हैं … फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी चर्चा के साथ …बताइयेगा कि आज की बगिया के कौनसे फ़ूल  ज्यादा सुन्दर लगे :):) …नमस्कार
संगीता स्वरुप

36 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरती से .. बेहद संजीदगी से सजाया गया साप्ताहिक काव्य मंच.

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  2. संगीताजी..... बहुत सुंदर साप्ताहिक काव्य चर्चा ...... आभार

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  3. वर्तमान परिपेक्ष्य में की गई शानदार चर्चा!
    आभार!

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  4. संगीता जी, सदाबहार चर्चा के लिये आपका धन्यवाद ! आज का काव्य मंच बेहद आकर्षक लग रहा है ! इतने अच्छे लिंक्स पाठकों तक पहुंचाने के लिये आपका आभार ! मुझे भी आपने इसमें स्थान दिया शुक्रगुजार हूँ !

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  5. आज के संदर्भ में कई लिंक्स लिए चर्चा बहुत अच्छी और सार्थक |बधाई
    आशा

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  6. माला में गुंथे इन पुष्पों की खुशबू विभोर करती है ..
    हमेशा की तरह लाजवाब ...

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  7. सुन्दरता , रोचकता , गंभीरता और नयेपन से सजी चर्चा .....आपका आभार

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  8. सुँदर पुष्पों से गुंथी हुई काव्य माला . आभार .

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  9. आपके माध्यम से कई सुन्दर रचनायें पढ़ने को मिलीं।

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  10. संगीता दी ,
    मुझे भी शामिल किया आभार !
    सब को पढ़ कर शाम तक फ़िर आती हूँ....सादर !

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  11. कला मंच की सफलता "मंच-संचालक" पर, रंग मंच की सफलता "सूत्रधार" के कौशल पर निर्भर करती है.चर्चा-मंच में आपके संयोजन पर प्रस्तुत हैं नीरज जी की पंक्तियाँ :-
    शब्द तो एक शोर है , तमाशा है
    भावना के सिन्धु में बताशा है
    मर्म की बात अधरों से न कहो
    मौन ही तो भावना की भाषा है.

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  12. श्रद्धेय,
    शामिल करने के लिए आभार

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  13. सुन्दर लिंक्स ,अच्छी चर्चा। मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिये आपका आभार।

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  14. संगीता स्वरूप जी
    चर्चा मंच की अकेली ऐसी चर्चाकार हैं,
    जिनकी ऊर्जा कभी क्षीण नहीं होती
    और नए से लेकर पुराने तक,
    सभी रचनाकार उनसे प्रेरणा पाते हैं!
    --
    उनका श्रम चर्चा देखते ही झलक-झलक पड़ता है!

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  15. अलग-अलग तरह के मोतियों को एक माला में जोडऩे के लिए आभार संगीता जी, नए रचनाकारों को इससे उत्साह मिलता है, मेरी छोट सी कविता को शामिल करने के लिए धन्यवाद.........

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  16. बहुत उम्दा चर्चा...सभी लिंक्स पर यहीं से गये. आभार.

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  17. आदरणीया संगीता जी ,

    प्रणाम स्वीकारें

    बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने आज का काव्य मंच - चर्चा मंच सजाया है | प्रस्तुति आकर्षक और लिंक्स बहुत अच्छे हैं | मेरी कविता को आपने स्थान दिया , आभार व्यक्त करता हूँ |

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  18. बहुत सुन्दर और सुगठित लिंक्स से सुसज्जित चर्चा……………आभार्।

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  19. आपकी चर्चा का तो जवाब ही नहीं..बहुत विस्तृत और बेहतरीन लिंक्सों से सजी सुंदर चर्चा..आभार।

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  20. संगीताजी..... .बहुत ही खूबसूरती से और प्यार से सजाया है ये मंच आप ने ……

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  21. संगीता जी-बहुत सुंदर साप्ताहिक काव्य चर्चा -सुन्दर लिंक्स.....आभार

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  22. संगीता जी! आपके द्वारा पिरोई गयी आज की भी मोतियों की माला अनमोल ही है।...बधाई

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  23. श्रम से सजी खूबसूरत रूप मे अच्छी रचनाओ से परिचय करवाती चर्चा हेतु आभार

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  24. सुंदर चर्चा
    अच्छे लिंक
    मेरी कविता चुनने के लिए आभार

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  25. सुंदर चर्चा .. सभी लिंक पर जेया आया आज ... शुक्रिया मुझे भी शामिल करने का ...

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  26. संगीता जी ,
    बहुत ही अच्छी रचनाओं को पढने का मौका मिला आपके माध्यम से। आपकी मेहनत को नमन एवं आभार।

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  27. सुघड,सुन्दर, सधी हुई श्रम साध्य चर्चा.बहुत से लिंक मिले अभी जाते हैं एक एक करके.

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  28. बड़े सुन्दर लिंक दिए आपने...

    बड़ा ही अच्छा लगा उनपर जाकर...

    इस श्रम साध्य प्रयास के लिए आपका बहुत बहुत आभार...

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  29. संगीता जी, बेहद जतन से पूरे सप्ताह के बिखरे हुए मोती समेट कर एक ही माला में पिरोये हैं. अपनी से उनमे सुगंध भरी है.मेरी रचना का मान बढ़ाने के लिय आभार

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  30. धन्यवाद और नमस्कार इस चर्चा में मेरी कविता सम्मिलित कर के लिए.
    अन्य सभी कवियों की कविताएँ रमणीय लगीं .

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  31. काफ़ी उत्कृष्ट लिंक्स से सुसज्जित आजके मंच से कविताओं की बारिश हो रही है। मेरे लिए तो देहरादून के इस गेस्ट हाउस में टाइम पास के लिए काफ़ी सारा पोस्ट मिल गया है। आभार आपका।

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  32. बहुत सुंदर चर्चा...लिंक्स बहुत अच्छे हैं....
    धन्यवाद...

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  33. बहुत सुंदर संयोजन ,एवं प्रस्तुति ,पहली बार आना हुआ ,आपके लेखन की सार्थकता को जीवंत पाया ,स्वयं से परे दूसरों के बारे में सोचना अपने आप की अति सुंदर अभिव्यक्ति है.साधुवाद इस अथक प्रयास के लिए .और हार्दिक आभार मुझे इसमें शामिल करने के लिए .सभी के उत्साहवर्धन कुशल मंच सञ्चालन के लिए एक बार फिर से शुक्रिया

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  34. आप सभी साहित्य-प्रेमी जनों को मेरा सदर नमस्कार..

    बहुत धन्यवाद इस चर्चा में मेरी भी एक छोटी सी कोशिश को शामिल करने के लिए..
    बाकी सबको पढ़के एहसास हुआ कि अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है.. :)
    बहुत सुंदर लिखा है हर एक ने.. :)

    आप सभी के सहयोग का अभिलाषी..


    --- आदित्य.

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