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मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

"दिन का प्रारम्भ" (चर्चा मंच-671)

मित्रों!
प्रस्तुत है मंगलवार की चर्चा!
"सुलझ गयीं.. गांठें कितनी..
तेरी इक मुस्कराहट से..
व्यर्थ ही.. लुटती रही..
समाज के संकीर्ण फेरों में..!!"

21 टिप्‍पणियां:

  1. कार्टून को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभार.

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  2. चर्चा मंच पर श्रेष्ठ चर्चाओं के बीच आपने एक बार फिर से मेरी रचना को स्थान दिया बहुत - बहुत आभार आदरणीय श्री शास्त्री जी ।
    वन्दे मातरम्

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  3. सुन्दर चर्चा में प्रेम पखरोलवी जी की रचना को स्थान देने के लिए आभार.

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  4. शरद ऋतु में सुबह-सुबह ,लगी गुनगुनी धूप
    हमको वैसा ही लगा, चर्चा मंच का रूप.

    गोरे - गोरे मुखड़े पर, काला-काला तिल
    अहो-भाग्य मेरा रंग भी, इसमे है शामिल.

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  5. मुख्तसर और सारगर्भित पेशकश के लिए शुक्रिया !

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  6. चर्चा मंच पर सजी इन सुन्दर - सुन्दर लिंक्स के बीच मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत - बहुत आभार...

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  7. आपकी इस मेहनत से, सबने कुछ-न-कुछ पाया,
    आपका यह संकलन, प्रस्तुतिकरण सबको भाया,

    जवाब देंहटाएं
  8. अरे वाह!! नये अन्दाज़ में शानदार चर्चा. लिंक शामिल करने के लिये आभारी हूं.

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  9. चर्चा मंच पर एक बार फिर से मेरी रचना को स्थान दिया बहुत - बहुत आभार

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  10. बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये है……………शानदार चर्चा।

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  11. ये पोस्ट बनारस के शानदार लोगों को समर्पित है ............चर्चा मंच में shaamil karne के लिए dhanyawaad

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  12. ek naye kavyamay andaaj mein sundar links se saji charchamanch prastuti ke liye bahut bahut aabhar!!

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  13. आप का ध्यानाकर्षण न होता तो छूट ही जाते कुछ पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  14. चर्चा मंच के माध्यम से अच्छे रचनाकारों को एक साथ जोड़ने का सराहनीय प्रयास,लाजबाब प्रसुतित...

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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