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सोमवार, अक्टूबर 03, 2011

भैया है गाफिल निरा, चर्चा-मंच : 656



भैया  है  गाफिल   निरा,  जैसे   नदी   बहाव |
चंचल  बूंदों  सी  गिरा, डुबकी  तनिक  लगाव ||
                                             गिरा = वाणी , टिप्पणी   
व्यस्त हुए गाफिल जरा, पा  उनका संकेत |
सोमवार को आ डटा,  सुन्दर  सूत्र  समेत ||
                                     --रविकर

(1)

हमारी प्यारी बेटियां


 बहुत दिनों से मेरे मन में एक बात आ रही थी ,
ये क्या हो रहा है, सोचकर मन को दुखा रही थी |
ये देश है प्यारा अपना,  भारत देश हमारा है ,
जहाँ पर बेटियों से, करना हमने किनारा है |
आने वाली औलाद  में, अपना वंस खोजते हैं ,
जो आएगा वो सिर्फ बेटा हो, सब ये ही सोचते हैं |
जब कन्यायों को देवी मानकर, हम उनकी पूजा करते हैं,
तो फिर क्यों  हम उनको , गर्भ में ही ख़तम करते हैं | 
देवी माँ को खुश करने के लिए जिनको हम पूजते हैं ,
आस-पास नहीं मिलती,तो झौपड -पटियों में धुंडते है |
इन बेटियों को बचाओ, आप ही कुछ न कुछ करोगे,
अगर नहीं बचा सके तो, देवी माँ को कैसे खुश करोगे |  
*********** जय माता दी ****************

(2)

मैंने पढ़ी है 

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मेरा नाम रेखा झा है . मैं काफी साधारण हूँ. मेरा बचपन का अधिकांश हिस्सा गाँव में बीता है. इसलिए मैं भावनात्मक रूप से हमेशा गाँव से जुडी रहती हूँ . मेरी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई . कला में स्नातक कोलकाता विश्वविद्यालय से किया है. इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से आपदा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी प्राप्त है .विचार तो हमेशा से ही आते रहे है पर अब जाकर उनको ब्लॉग के माध्यम से कलमबद्ध कर रही हूँ. मैं उन लोगों को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिनके चित्रों और विडियो के माध्यम से मै अपनी बात को आप लोगों तक सही ढंग से पहुँचाने में बहुत हद तक कामयाब होती हूँ .

जय बोलो बईमान की

मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।  झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की !
प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की, जय बोल बेईमान की !
मेरी एक अलग जाति है छुआ छूत है मुझसे अधिकतर लोग किनारा किये रहते हैं ३६ का आंकड़ा है मेरा उनका नाम के लिए मै एक पदाधिकारी हूँ एक कार्यालय का लेकिन चपरासी बाबू सब प्यारे है दिल के करीब हैं कंधे से कन्धा मिलाये...

(4)

DHAROHAR

गांधीजी के विचारों की कालजयिता



कभी स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि अगर कभी वेदांत लौट कर आया तो वह अमेरिका में आएगा. ऐसा इसलिए कि भौतिक समृद्धि सहित सभ्यता के हर चरण के चरम पर पहुँच जाने के बाद ही उसके ह्रदय में परम लक्ष्य और शांति की लालसा जागेगी और वह इसे स्वीकृत कर सकेगा. मगर निःसंदेह आज अमेरिका ही नहीं समस्त विश्व एक आतंरिक बेचैनी, अधूरेपन से गुजर रहा है और शांति की एक शीतल छाँव का आकांक्षी है. मगर आध्यात्म के सिद्धांतों को आत्मसात करने के लिए शायद अभी पूर्णतः परिपक्व नहीं हुआ है, और तभी ऐसे में उभरता है एक ऐसा नाम जो इन सिद्धांतों की एक व्यावहारिक अभिव्यक्ति है - ' महात्मा गांधी '.


[DSC05205.JPG]
 
रचना हूँ मैं रचनाकार हूँ मैं , सपना हूँ मैं या साकार हूँ मैं, रिश्तों में खो के रह गया संसार हूँ मैं, शून्य में लेता नव आकार हूँ मैं, अपने आप को ही खोजता इक विचार हूँ मैं, लेखनी में भाव का संचार हूँ मैं, स्वयं से ही पूंछती की कौन हूँ मैं, इसी से रहती अक्सर मौन हूँ मैं,
इस शहर में हर शख्स
बारूद ले के चलता है,
मुंह खोलते बारूद झरता है
उड़ती हैं धज्जियाँ 
अरमानों की यहाँ हर दिन,  
चिथड़े कोई
यहाँ गिनता नहीं, 
रखता नहीं.
गिरह खुल जाए रिश्तों की, 
दिल की कभी, 
सीवन उधड़ जाये 
दिल के दरों दीवार की, घर की 
फेंक दो, दफन कर दो, 
मेरे शहर में अब रफूगर मिलता नहीं.

Particulate matter three times higher in Delhi air 

वायु प्रदूषण हमारे दिल को आहिस्ता आहिस्ता मार रहा है .हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (माइक्रोपार्तिकिल्स ) आर्टरीज द्वारा लिपिड्स के अवशोषण को पंख लगा देतें हैं .लिपिड्स के तेज़ी से ज़मते जाने से धमनियां संकरी हो जातीं है रक्त प्रवाह कम होजाता है .हृदय को पूरा रक्त नहीं पहुंचता .कालान्तर में यही स्थिति हार्ट अटेक की वजह बन जाती है .
दिल्ली की हवा में ,यहाँ के आवासीय इलाकों में Respirable suspended particulate matter (RSPM or PM10) की मात्रा औसतन २०९ माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर है .हवा में तैरते सांस के साथ फेफड़ो में दाखिल होते इन ठोस कणों की यह मात्रा सुरक्षित स्तर से तीन गुना ज्यादा है ।
[New+Picture.bmp]
साहित्य और संगीत मेरी ज्ञानेन्द्रियां हैं, 
इन्हीं के द्वारा मैं दुनिया को देखता और महसूस करता हूं।
(7) देहि सिवा बर मोहि इहै, सुभ करमन ते कबहूँ न टरौं।   न डरौं अरि सों जब जाई लरौं, निसचै करि आपनि जीत करौं।।   अरु सिखहों आपने ही मन को, इह लालच हउ गुन तउ उचरौं।   जब आव की अउध निदान बनै, अति ही रन में तब जूझ मरौं।।
[n100000726942151_6217.jpg]
ऐ मेरे वतन, नहीं कर सके, कभी काल भी, ये जुदा हमें। मैं मरा तो क्या, मैं जला तो क्या, मेरे अणु रहेंगे यहीं कहीं॥

 (8)

ग़ज़ल : एक ऐसा भी करीबी यार होना चाहिए

एक ऐसा भी करीबी यार होना चाहिए
आइना लेकर खड़ा हर बार होना चाहिए

घी अकेला क्या करेगा आग के बिन होम में
है ग़ज़ल तो भाव का शृंगार होना चाहिए
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(9)
दो बहनें:- धर्मनीति और राजनीति

नीति कब जन्मी,
यह अज्ञात है  
अंडे से मुर्गी और मुर्गी से अंडे की ;
उत्पत्ति की तरह ही
समय के साथ नीति की ;
तमाम बेटियों में से एक  
राजाओं के दिल में उतर गयी
उम्र से पहले ख्यातिलब्ध हो
नृपों के गले का हार बनकर  
आसमान पर चढ़ गयी
कभी उसकी  अपनी  बहन
धर्म-नीति से बनी, कभी ठनी
राजा बदलते रहे
धर्मनीति, राजनीती;


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(10)
''लिख सकूँ तो - प्यार लिखना चाहती हूँ 
ठीक आदमजात - सी बेखौफ दिखना चाहती हूँ"

पान

रूंधना पड़ता है  चारो तरफ से  बनाना पड़ता है  आकाश के नीचे  एक नया आकाश,  बचाना पड़ता है  लू और धूप से  सींचना पड़ता है  नियम से,  बहुत नाज़ुक होते हैं रिश्ते  पान की तरह,

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उदय  वीर  सिंह 

(11)

प्रियोदित

हम  तुम्हारे  नहीं , तुम   हमारे   नहीं ,
आग ,पतझड़   में  खिलती, बहारें नहीं ,--
*
तेरा सूरज सा  बनने की  शुभकामना ,
ऋतू   ऐसी   नहीं   की ,  अन्हारे  नहीं --


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(12) 
मेरे दिल में सबके लिए सिर्फ प्यार है। कोलकाता में लालन पालन हुआ है इसलिए हिन्दी भाषा को पढ़ और लिख सकती हूँ। मैं बहुत ही भावुक प्रकृति की हूँ। किसी के भी दिल को ठेस पहुँचाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं आप सबसे भी यही आशा रखती हूँ। सरल हृदय वाले और सीधे-सच्चे इन्सान मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। मैं बहुत ही साधारण जीवन यापन करती हूँ। बनावट से मुझे बहुत नफरत है। आप सब एक चेन्नई की महिला के ब्लॉग को पढ़ते हैं, यह देख कर मुझे बहुत खुशी होती है। मुझे अपनी मातृभाषा से बहुत लगाव है। इसलिए हिन्दी में ब्लॉगिंग करती हूँ

नवरात्रि की शुभकामनायें.


  ZEAL 
अथ श्री महाभारत कथा ... कथा है पुरुषार्थ की ,ये स्वार्थ की , परमार्थ की सारथि जिसके बने श्रीकृष्ण भारत पार्थ की शब्द दिग्घोषित हुआ... जब सत्य सार्थक सर्वथा यदा-यदा हिधर्मस्य ग्लानिर्भवति भारता अभ्युत्थानं अ...

आचार्य परशुराम राय
gandhi (10)वर्षों की फाइल से
निकला फिर आज
बापू का जन्म-दिन।
 
सद्ग्रंथों से
प्रार्थना की बूँद ले
राजनीति के
हाथों आचमन कर
दुकान से लाए गए-
मातहत के हाथ,
बुके चढ़ाकर
बापू की समाधि पर
सन्तुष्ट मैं।
[222.jpg]

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल

(15)

'बच्चन' जी की 'मधुशाला' पर दो शब्द अपने भी 

ये पंक्तियां आदरणीय बच्चन जी की कालजयी रचना "मधुशाला" पढ़ने के बाद उसकी मशहूर रूबाईयों पर प्रतिक्रिया स्वरूप लिखी थीं कभी उन्हीं की रवानी में, लगभग उन्हीं के शब्दों को प्रयुक्त करते हुए, जिससे पता चले कि किस रूबाई पर प्रतिक्रिया है। यदि आप मधुशाला कायदे से पढ़े होंगे तो अवश्य सम्यक् रूप से समझ जाएंगे। इसे अब पोस्ट कर रहा हूँ। जिन महानुभाव को इन पंक्तियों से इत्तिफ़ाक न हो उनसे मुआफ़ी चाहूँगा। कृपया इसे अन्यथा न लेंगे। -ग़ाफ़िल


1-
हर्ष विकम्पित कर में लेकर, मद्यप झूम रहा प्याला,
क्षीण वसन, उन्नत उरोज, कृश लंक, मचलती मधुबाला।
जलतरंग को मात दे रही, मधु-प्याले की मधुर खनक;
मधु सौरभ से महक रही, मदमस्त नशीली मधुशाला॥


2-
किन्तु जाम देने को जब भी, झुकती है साकी बाला,
नयन-अक्श-खंजर से सज्जित, दिखता है मधु का प्याला।
अहो क्रूर दुर्भाग्य! समर्पित मदिरा भी है साकी भी;
पर हाला की धार लपट सी, रोज जलाती मधुशाला॥


(16)

हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!


30092011(002)IMG_1481एक दिन पहले दिल्ली में था। बापू का जन्म दिन तो वातावरण में था ही, सोचा “गांधी स्मृतिति केन्द्र” हो आऊं। अशोक जी वहां के व्यवस्थापक हैं। कहने लगे यहां आने से ही एक अलग तरह की प्रेरणा मिलती है। ऐसा हो भी क्यों नहीं ... सत्य की खोज करने वाला यह संत हमारा सच्चा पत-प्रदर्शक रहा है। तभी तो बापू के प्रति अपने उद्गार प्रकट करते हुए कविवर सुमित्रानंदन पंत ने लिखा है :-
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल हे चिर पुराण, हे चिर नवीन।
सुख भोग खोजने आते सब, आये तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन, तुम आत्मा के, मन के मनोज

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बकौल मेरे, अपने जज्बातों को जुबान देने की बजाय कलम देना ज्यादा आसान है. अपने कमरे की दीवारों पे चाँद-तारे चिपका रखे हैं और जब रात को बत्तियां बुझ जाती हैं तो अपनी टिमटिमाहट से ये मुझे खुले आसमाँ के नीचे होने का अहसास दिलाते हैं.. मेरा मानना है, छोटी-छोटी चीज़ों में खुशियाँ बटोरना और दूसरों को खुश रखना ही ज़िन्दगी है.

(17)

ग़ज़ल-११

तिनका तिनका टूटा है- दर्द किसी छप्पर सा है- आँसू है इक बादल जो सारी रात बरसता है-

मेरी टिप्पणियां और लिंक-2

आज अपने गिरेबान में झांक कर देखें- अज़ीज़ बर्नी

खरी-खरी बातें कहीं, जज्बे को आदाब |
स्वार्थी तत्वों को सदा, देते रहो जवाब ||

बड़ी कठिन यह राह है,  संभल के चलिए राह |
अपने  ही  दुश्मन  बने,  पचती  नहीं  सलाह ||

भले नागरिक वतन को, करते हैं खुशहाल |
बुरे   हमेशा   चाहते,  दंगे   क़त्ल    बवाल ||



जीवनसंगिनी..........

खूबसूरत ||
हो तुम ||
मेरी नजरों ने कहा |
जरूरत हो तुम-
जिगर के टुकड़ों ने कहा |
सम्पूरक हो तुम ||
अधरों ने कहा ||
बेहतर हो तुम |
मंदिर की मूरत ने कहा ||


  चंदन कुमार मिश्र  
हमेशा की तरह आज दो अक्तूबर को गाँधी जी अधिक, लाल बहादुर शास्त्री कम ही याद किए जाएंगे। हम भी गँधियाते थे पहले। कई बार गाँधी जी कविताई का विषय बनते रहे थे। लेकिन अब यह सब 2004-05 के बाद बन्द है। विवेकानन्द..

नीरज द्विवेदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGx1jUv6h7J4xE-mq5v1zvZwvqev6I33U78TYGNs7RNNXT5oTT4WW951EjWxChdXHh4pZQs4Uhp7AZs2pp5fGg2446d7dE8ows8M5CSGXe9sjjMRUr0WKr2IWmXj5HV03xS2FGOBOg1uw/s1600/CIMG0463+%25282%2529.jpg
 (19)
दीपावली पर कविता- टूट गया सूरज दीपों में


सहस्र दीपों को देख लगे,
तारे अम्बर से उतरे हैं,
बहुत दिन रहे दूर हमसे,
यूँ धरा पे आके बिखरे हैं॥

तम को हटाने की कोशिश,
इन जग मग रोशनियों में,
हर्ष, उमंग, आह्लाद लगे इन,
फुलझड़ियों की सरपट ध्वनि में॥

(20)

"श्यामल तन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


SHIYAMPAT
तीन टाँग के ब्लैकबोर्ड की,
मूरत कितनी प्यारी है।
कोयल जैसे काले रंग की,
महिमा जग से न्यारी है।1।


[45.jpg]

(21)

बापू! न आना इस देश में...

हर कदम पर धोखे यहाँ, बापू! न आना इस देश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...

तुमने जीवन वार दिया, आज़ादी का उपहार दिया
अमूल्य नींव को जाने, हमने क्या व्यवहार दिया
देश तुम्हारा अब खडा है, कठिनतम, कलुषित परिवेश में.
किस पर विश्वास करोगे, रावन है विभीषण वेश में...

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सटीक लिंको का चयन किया है आपनेआज की चर्चा मे!
    आदरणीय रविकर जी आपका आभार!

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  2. बहुत सुन्दर और बेहतरीन चर्चा आभार

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  3. आज की चर्चा बिलकुल नए अंदाज़ में दिखी और यह रूप चर्चा का अत्यंत प्रसंशनीय है. अच्छे लिंक्स भी संजोये हैं. रविकर जी बहुत बधाई सुंदर चर्चा के लिए और मेरी पोस्ट को चर्चा में स्थान देने के लिए.

    धन्यबाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. आज की चर्चा बिलकुल नए अंदाज़ में दिखी और यह रूप चर्चा का अत्यंत प्रसंशनीय है. अच्छे लिंक्स भी संजोये हैं. रविकर जी बहुत बधाई सुंदर चर्चा के लिए और मेरी पोस्ट को चर्चा में स्थान देने के लिए.

    धन्यबाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर प्रस्तुतियां मिलीं, कविताएं आलेख,
    मन प्रमुदित भी हो गया, रचनाओं को देख।

    जवाब देंहटाएं
  6. तम को हटाने की कोशिश,
    इन जग मग रोशनियों में,
    हर्ष, उमंग, आह्लाद लगे इन,
    फुलझड़ियों की सरपट ध्वनि में॥

    ...आभार ||

    जवाब देंहटाएं
  7. गाफिल जी की मधुशाला शानदार रही....

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  8. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स दिये हैं आपने ..एक और बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  9. अच्छे लिंक्स ...
    बेहतरीन चर्चा!

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  10. अच्छे उदगार समाहित किए है यह पोस्ट .आभार .बेहतरीन लिंकेजिज़ .

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  11. बहुत धन्यवाद जी। हमें शामिल करने के लिए। कोई सूचना भी नहीं मिली थी।

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  12. बहुत ही सुन्दर मंच सजाया है आपने ....निराले अंदाज में
    ,मेरी पोस्ट को भी शामिल किया ...बहुत -बहुत धन्यवाद

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  13. चर्चा की साज-सज्जा बेहद काबिले तारीफ़ है। चुनचुनकर कड़ियाँ प्रकाशित की गई हैं। वाकई बहुत मेहनत की है आपने। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

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  14. "अच्छी चर्चा हुइ यहाँ, अच्छे सारे लिंक
    पता वक़्त का चला नइ, गया यहाँ मैं सिंक"
    सादर आभार...

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  15. बहुत ही सुन्दर लिंक्स के साथ समसामयिक चर्चा प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी..
    चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार!

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  16. agaj hi itna dilchasp tha ...kya kahne,,, behtarin links hamesh ki tarah,,,khas baat yah ki rachna ka kuch ansh padh lene se sahaj prabititi jag jaati hai use pura padhne ki,,yah prayog accha hai..badhayee aaur sadar pranam ke sath

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  17. प्रिय और आदरणीय रविकर जी ..बहुत सुन्दर लिंक्स ..आप की ये कड़ी मेहनत दिन प्रति दिन निखार ला रही है एक से बढ़ कर एक रचनाओ का संकलन किया आप ने ..देवी की कृपा से आनंद आ गया कुछ ही पढ़ सका अभी बाकी भी शीघ्र .....
    बधाई आप को लाजबाब ... हमारी भी एक रचना बहुत से मित्रों और आप के मन को छू पायी मन खुश हुआ
    धन्यवाद और आभार ..अपना स्नेह और समर्थन दीजियेगा
    भ्रमर ५

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  18. धन्यवाद रविकर जी! मेरी रचना और ब्लॉग को चर्चामंच में स्थान देने के लिए आभारी हूँ. पहली बार आया हूँ. चर्चामंच, ब्लॉगजगत के लिए 'गागर में सागर' की भांति है.

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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