नासिर तेरे टीम में, कुछ पप्पी अंग्रेज |
गेंद पकड़नी भूल कर, पिच पर उलझें तेज |
पिच पर उलझें तेज, भले थे तेरे डंकी |
घर के ही तुम शेर, चले ना इत नौटंकी|
अपना प्रोफाइल भी, देवनागरी लिपि में अद्यतन करने की कृपा करें |
----रविकर
----रविकर
R-1"पर्व है प्रकाश का, दीप जगमगाइए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
दीन के कुटीर में भी इक दिया जलाइए।
पर्व है प्रकाश का, दीप जगमगाइए।। "एक समीक्षा" ....इसकी क्रम में सन् 2003 से 2011 तक रिकार्ड पोस्ट लगाने वाले किसी भी ब्लॉग की ओर विद्वान लेखक का ध्यान हीं गया है। इसके बाद यदि बात करें ब्लॉगर मीट या ब्लॉगर सम्मेलन की तो इस पर भी कोई विशेष प्रकाश इस पुस्तक में नहीं डाला गया है।... ....सभी बिन्दुओं पर चर्चा करना सम्भव नहीं हो पाता है। वर्तमान कल का इतिहास होता है और इसको जिस प्रकार से “हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास” में प्रस्तुत किया गया है वह एक सराहनीय प्रयास है। मैं समझता हूँ की “हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास” हिन्दी ब्लॉगरों के लिए एक धरोहर से कम नहीं है। जिसको सभी ब्लॉगरों पास होना चाहिए। (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") |
R-2
सुन सुन सुन अरे बाबा सुन, इन बातों में बड़े बड़े गुणअजित गुप्ता का कोना
R-3जब मति मारी जाए
R-4गुम हो गया लय में ‘ककहरा’ गाने का रिवाजशिक्षामित्र
आमने-सामने दो पंक्तियों में खड़े होकर ‘एकम-एका…..दोकम-दुआ…..नौ की नवाही…..दस की दहाई और अंत में नब्बे नौ निन्यानवे …..टेकड़ा पे बिन्दी दो, गिने गिनाए पूरे सौ…’ की गूंज स्कूलों से नदारद है। इसी पद्धति में ”दो दूनी चार… उन्नीस पांच पिचानवे” गाकर पहाड़े और क, ख, ग, घ, ड., खाती खिड़की ना घड़ै’ गाकर ‘ककहरा’ सीखने का तरीका पुराने जमाने की बात हो गई है।
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जब मेरे विचार उनसे मेल नहीं खाते उहापोह की स्थिति मन बोझिल उन्होंने तो कसम खा रखी है समझौता ना करने की जिद है एक तानाशाह सी उनके अन्दर न बदलने की अहम् ब्रह्मास्मि की आदत बात बात पर रूठ जाने की--
R-6तीन
निज से निजता
एक से एकता
लघु से लघुता
प्रभु से प्रभुता
मानव से मानवता
दानव से दानवता
R-7ऐ ज़िन्दगी...
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शुक्रवार, अक्टूबर 14, 2011
तटस्थ रहना पाप नहीं - चर्चा-मंच : ६६७
में शामिल बिभूतियाँ
महेंद्र श्रीवास्तव | चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ | शालिनी कौशिक | डॉ. अनवर जमाल | संगीता स्वरुप गीत | वंदना महेंद्र वर्मा |
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बेचैन आत्मा
करे आत्मा फिर हमें, अन्दर से बेचैन |(1) ढूंढ़ दूसरी लाइए, निकसे अटपट बैन | निकसे अटपट बैन, कुकर की सीटी बाजी | समझे झटपट सैन, वहीँ से बकता हाँजी | गर रबिकर इक बार, कुकर का होय खात्मा | परमात्मा - विलीन, करे - बेचैन - आत्मा ||
भ्रष्टाचारी का सदा, धक्-धक् करे करेज
जबतक मिले हराम की, करता नहीं गुरेज
करता नहीं गुरेज, सात पुश्तों की खातिर |
चाहे धन संचयन, होय निर्मम दिल शातिर
लेकिन लोकायुक्त, कराता छापामारी |
होवे दिल में दर्द, मरे वो भ्रष्टाचारी ||
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noreply@blogger.com (Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
नश्वर है यह देह पर, भाव सदा चैतन्य | शाश्वत हूँ साकार पर, चिरकांक्षित ना अन्य | चिरकांक्षित ना अन्य, भटकती है अभिलाषा | भटक रहा चहुँ ओर, पपीहा स्वाती प्यासा | कह कृष्णा अकुलाय, भेंट कर राधे अवसर | सुन राधा हम श्याम, नहीं हम - दोनों नश्वर || MERI SOCH निकले अगर भडास तो, बढती जीवन साँस || आँसू बह जाएँ अगर, कमे दर्द-एहसास || |
R-9
भूल गये सब लोग दिगंबर आए हैं ...
बन कर मेरे दोस्त ही अक्सर आए हैं
तेरे दो आँसू से तन मन भीग गया
रस्ते में तो सात समुंदर आए हैं
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ये भी मेरा वो भी मेरा सब मेरा भूल गये सब लोग दिगंबर आए हैं||
R-10
अजय कुमार
भारत-नेपाल सीमा पर स्थित , भगवान गौतम बुद्ध की पावन भूमि सिद्धार्थनगर (उ.प्र.) का निवासी.
वर्तमान समय में एक मनोरंजन चैनल में कार्यरत. मैं क्या हूँ ? इसकी तलाश जारी है----
वर्तमान समय में एक मनोरंजन चैनल में कार्यरत. मैं क्या हूँ ? इसकी तलाश जारी है----
R-11
महाकाश में एक अकेला
डॉ0 विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’
महाकाश में एक अकेला,विचर रहा हो पाँखी जैसे।
घने तिमिर में रश्मि खोजता,
भटक रहा हूँ मैं भी वैसे।।
R-12
छरहरी काया के लिए प्रोटीन बहुल खुराक लीजिए .
एक नए अध्ययन के मुताबिक़ तन्वंगी बने रहने के लिए केवल केलोरी कम करना ही कॉफ़ी नहीं है खुराक में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीनों को शामिल करना चाहिए .सिडनी विश्व विद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है कम प्रोटीन युक्त खुराक कुल एनर्जी इंटेक को बढा देती है .ऐसे लोग ज्यादा से ज्यादा स्नेक्स का सेवन करने लगतें हैं जिनकी खुराक में प्रोटीन कमतर रहतें हैं .नतीज़न वह ज़रुरत भर से कहीं ज्यादा खाते हैं .इस अध्ययन के नतीजे PLoS ONE जर्नल में प्रकाशित हुए हैं .पता यह भी चला है प्रोटीन का पर्याप्त सेवन ज्यादा संतुष्टि देता है भूख को ज्यादा देर तक शांत रखता है
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P-3
सच है सदियों से दिल और दिमाग के बीच फासला ही इंसान को इंसान बनाता है.जब जब रूह मैं कसक उठती है तो दिल रो उठता है,और दिमाग दिल से फूटते हुए इस आंसुओ के सोते को अपने तर्कों से, सुखाना चाहता है बस यही अंतर्द्वंद मुझे लिखने की प्रेरणा देता है
लिखने का शौक है मुझे और इसी शौक ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया.जब जब मन करता है अपने मन के कोने से कुछ भावनाओं को यहाँ उकेर देती हू.शब्दों की चित्रकारी से प्यार है मुझे पर अभी मेरे शब्द चित्रकारी जेसे दिल को लगने वाले नहीं बन पड़ते...बस इसी अनंत प्रयास में हू की कुछ अच्छा पढने लायक लिख सकू.....
बहते हुए सागर की लहर ही तरह हूँ
मस्ताने से मौसम मैं सहर की तरह हूँ।
जितना दर्द दोगे उतना जयादा मह्कुंगी
फूलों के बिखरे हुए परिमल की तरह हूँ।
जिंदगी मैं नए नए दौर से गुजरकर,
हर मोड़ पर जेसे किसी पत्थर की तरह हू।
अपनी खूबियों और खामियों के हिसाब से ही पाओगे मुझसे
सागर मंथन मैं निकले हुए अमृत और गरल की तरह हूँ ।
ख़ुद का चेहरा मुझमे देखना चाहो तो देख लो
हर अक्स को ख़ुद मैं समां लू उस दर्पण की तरह हूँ।
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P-4
ममता की रंगदारी से हारा हुआ एक पत्रकार
आलेख -अशोक कुमार शुक्ला
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अंत में मैने हारकर त्दसमय उत्तरकाशी के महाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे सर्वश्री गोपाल रावत जी को थाने पर बुलवाया और उनके हस्तक्षेप के बाद ही मुझे अपना क्लिक थर्ड कैमरा वापिस मिल सका वह भी बिना रील के । मैं अपने द्वारा खीचे गये दृश्यों को समाचार के साथ न प्रेषित कर सकूं शायद इसलिये उस रील को थानेदार द्वारा नष्ट कर दिया गया था। इस घटना से निवृत होने के बाद जब मैं घर लौटा तो पाया कि मां की ममता मेरे लिये रास्ते में कांटे लेकर खडी थी। उसे इस बात का गहरा सदमा था कि पुलिस के लोग उसके लाडले केा लेकर थाने तक गये थे। मां की नजर में पुलिस के साथ थाने तक जाने का मतलब सामाजिक सम्मान को खोने जैसा था। मैने मां को बहुत समझाया कि किसी पत्रकार के जीवन में यह एक सामान्य सी घटना थी परन्तु मां कुछ सुनने को तैयार ही न थी उसकी आंखों में आंसू थे, उसने शायद शराब माफिया के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारो पर गुजरने वाली कठिनायियों को सुन रखा था सेा वह तो मुझसे इस बात का पक्का वायदा चाहती थी कि मै अब पत्रकारिता नहीं करूगां । उस पर स्थानीय पडोसियों का मां को सलाह देना सोने में सुहागा साबित हुआ जिसमें पढाई में अव्वल रहने वाले किसी छात्र को पढाई से इतर पत्रकारिता के नाम पर अनावश्यक विवादित क्षेत्रो में घुसने का मतलब पढाई और कैरियर चौपट करना था। मां के अनेक आग्रहों के बावजूद मैं भी अपनी जिद पर अडा रहा जिसके कारण मां के आंसू और उसका मातृत्व अपना स्वरूप बदलकर अब गंभीर गुस्से का रूप घारण कर बैठे और इसके बाद प्रेस को भेजने की लिये तैयार की अपनी कई रिपोर्टों को मां के हाथों शहीद होते देखना पडा। फर्श पर पडे रिपोर्टों के टुकडे जैसे मां और मेरे बीच चल रहे युद्व में मारे गये लहूलुहान योद्वा सरीखे थे। उन अप्रकाशित रिपोर्टों का इस तरह नष्ठ होना मुझे ऐसा जान पडा जैसे किसी आतातायी ने ( श्रद्वेया मां से क्षमा याचना सहित )किसी नववधू के गर्भ में पल रहे भ्रूण की हत्या कर दी हो और खून मे लिपटे उस क्षत विक्षत भ्रूण की असहाय मां सरीखा मै समझ ही नहीं पा रहा था कि उन कागज की चिंदियों को बटोरूं या इस हत्या पर विलाप करूं। मैने जैसे तैसे उन फटे कागज के टुकडों को बटोर कर रखा। मेरी मां तो ( पुनः क्षमा याचना सहित ) जैसे रंगदारी वसूल करने वाले किसी माफिया में बदल चुकी थी। उसे हर कीमत पर मुझसे पत्रकारिता और लेखन को फिलहाल छोड देने का वचन चाहिये था। वात्सल्स की आंच पाकर मातृत्व रूपी माफिया रंगदारी वसूल करने से पहले अपनी पकड को किसी भी हालत में नहीं छोडना चाहता था। इस हालत में कई दिन बीते होगें । मां ने मुझसे रूष्ठ होकर बात करना भी बंद कर दिया था। चौतरफा दबावों के चलते मेरा मन भी अब यह मानने को विवश हो चला था कि ( श्रद्वेय प्रोफेसर प्रभात उप्रेती जी से क्षमा याचना सहित ) किसी विद्यमान व्यवस्था में स्वयं को स्थापित करने का सीधा अर्थ पढाई पूरी कर एक ऐसी सरकारी नौकरी हासिल करना है जिससे जीवन यापन के लिये एक निश्चित रकम जीवन पर्यन्त प्राप्त हो सके। | मां की जिद से आहत और विवश होकर मै हार गया और किसी माफिया की दहशत में आकर उसे रंगदारी देने पर मजबूर हुये निरीह पकड की तरह उन्हें यह बचन देने पर विवश हो गया कि तन्मयतापूर्वक अपनी पढायी पूरी करने तक इस तरह के किसी मिशन में हाथ नहीं डालूंगा। हांलांकि इस तरह का बचन देते हुये मेरा अंतरमन रो रहा था ।. . . .और इस तरह जुझारू पत्रकार बनने चाहत एक मां की ममता और सामाजिक अर्थों में स्थापित होने की खोखली परिभाषा के आगे हार गयी और एक नवोदित पत्रकार की बच रही उर्जा नेमहाविद्यालय की भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला की ओर रूख कर लिया जो हिन्दुस्तान एरोनाटिकल लिमिटेड के अमेठी स्थित विद्यालय की शिक्षण शाला में प्रवक्ता की हैसियत से गुजरती हुयी विभागाध्यक्ष ,भौतिकी विभाग , काल्विन तालुकेदार्स कालेज , लखनऊ(उ0प्र0) तक आयी परन्तु यहाँ भी स्थिर न रह सकी और अंततः लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश की अधीनस्थ (पी0 सी0 एस0) परीक्षा 1991 के माध्यम से राजस्व विभाग उत्तर प्रदेश की गति को प्राप्त हो गयी । अंतरमन में व्याप्त लेखन के प्रति मौजूद मोह छूटा नहीं सो अनेक रचनाये (कवितायें, संस्मरण, कहानियां तथा विज्ञान विषयक लेख) ‘नवभारत टाइम्स, साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ धर्मयुग’,‘दैनिक अमर उजाला’,‘साप्ताहिक पर्वतीय टाइम्स’,‘साप्ताहिक जन लहर’,‘मधु-मुस्कान’,‘दैनिक स्वतंत्र भारत’,‘विज्ञान प्रगति’,‘हिन्दुस्तान फीचर समाचार सेवा’,पौडी टाइम्स’,‘संवाद-भारती फीचर सेवा’, ‘अहा जिंन्दगी’, ‘युगवाणी’,‘उत्तरांचल पत्रिका’,‘तहलका’,‘दिगन्त’, ‘गृहनंदिनी’,‘बालवाणी’, सहित विभिन्न समाचार पत्रोंपत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित। आकाशवाणी लखनऊ से विज्ञान विषयक वार्ताओं का प्रसारण। विभिन्न समाचार पत्रों में स्फुट प्रकाशित कविताओं का एक संग्रह ’प्रतिनिधि कविताएं’ 1993 में संग्रहीत, एक कविता संग्रह ’कविता का अनकहा अंश’ 2009 में अभिव्यक्ति प्रकाशन हरदोई से प्रकाशित, दो कहानी संग्रह ‘पुनरावतरण’ तथा ‘एक संस्कार ऋण’ क्रमशः 2008 तथा 2010 में साकार प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित, दैनिक स्वतंत्र भारत में ‘विज्ञान के खेल’ शीर्षक से लिखे स्तंम्भ में सम्मिलित विज्ञान विषयक प्रयोगों का संकलन ‘विज्ञान के खेल’ शीर्षक से उत्तरायण प्रकाशन के अधीन प्रकाशकाधीन, संस्मरणों का संग्रह ‘फिर जी उठा वह देहरादून से प्रकाशनाधीन, संर्पक सूत्रः- ‘तपस्या’, 2-614,सेक्टर‘एच’ ,जानकीपुरम् , लखनऊ(उ0प्र0) पिन-226021 मेरे ब्लाग http://fresh-cartoons. http://yogdankarta.blogspot. http://u-p-revenue-officers. सचल दूरभाष:- 09450786977 अशोक कुमार शुक्ला, |
३६ वर्ष से खुद के चिकित्सा संस्थान का संचालन कर रहा हूँ.
कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर का संस्थापक एवं भूतपूर्व,अध्यक्ष
राजस्थान टेबल टेनिस असोसीऐशन का चेयरमैन,राजस्थान राज्य डेंटल काऊंसिल का सदस्य एवम कई अन्य संस्थाओं से जुडा हुआ हूँ समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से कचोटा है अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज़ पर उकेरने का प्रयास कर रहा हूँ,फलस्वरूप १ अगस्त २०१० से लिखना प्रारंभ किया।मित्र के लेखन से प्रोत्साहित हो, अभिव्यक्ति और भावनाओं की यात्रा पर निकल पडा . निरंतर की कलम से .....NIRANTAR AJMER
हास्य कविता निरंतर की कलम से........
निरंतर कह रहा .......http://nirantarkahraha.Nirantar's........(English Poems)http://nirantarajmer.blogspot.अपनी अपनी बातें..........http://apniapnibaatein.
हास्य कवितायें
:http://
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" "गुलमोहर" H-1,सागर विहार वैशाली नगर ,अजमेर -305004 Mobile:09352007181 |
P-5
जन्म तिथि - 23 -10 -1976
पेशा - अध्यापन , प्रवक्ता हिंदी
प्रकाशित पुस्तकें - चंद आंसू, चंद अल्फाज़ ( अगज़ल संग्रह ) ; निर्णय के क्षण ( हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला के सौजन्य से प्रकाशित कविता संग्रह ) , दर्जन भर सांझे संग्रहों में हिस्सेदार, कहानी कीमत
पंजाब केसरी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, अजीत समाचार, रांची एक्सप्रेस, हरिगंधा, शोध दिशा,शब्द बूँद आदि सौ के लगभग पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन.
एकल हिंदी ब्लॉग - साहित्य सुरभि
सांझे ब्लॉग-
पंजाबी ब्लॉग -
पता -
गाँव- मसीतां, डबवाली, सिरसा, हरियाणा.
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P-7
शिक्षा एम.एस सी.(गणित),
भारतीय जीवन बीमा निगम से वर्ष 2010 में मंडल प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त,
प्रकाशन/प्रसारण/सम्मान/पुरस्का र आदि:-
1 -अँधेरे भी उजाले भी,ग़ज़ल संग्रह वर्ष 1998 में प्रकाशित.
2 -पर्यावरणीय दोहे,दोहा संग्रह,वर्ष 2000 में प्रकाशित.
3 -कुछ न हासिल हुआ,ग़ज़ल संग्रह,वर्ष 2010 में प्रकशित.
4 -सौ से अधिक संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित.
5 -आकाशवाणी लखनऊ से रचनाएँ प्रसारित.
6 -वर्ष 1996 में कादम्बिनी द्वारा समस्यापूर्ती के अंतर्गत पुरस्कृत.
7 - खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती,हाजी मलंग वाडी,पो.कल्याण.जिला-ठाणे,महारा ष्ट्र द्वारा
'शहंशाहे क़लम' मानद उपाधि से अलंकृत.
8 - विक्रम शिला हिंदी विद्यापीठ,भागलपुर द्वारा 'विद्यावाचस्पति' उपाधि से अलंकृत.
9 - रोटरी क्लब /नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति तथा अनेकानेक अन्य संस्थाओं से सम्मानित.
MOB:09415518546
MOB:09415518546
P-8
संजय मिश्र 'हबीब'
ज़मीरे खुद में देखा, फ़क़त तारीको खलाश है |
खुद को न पा सका, मुझे अपनी ही तलाश है ||
जन्म - १४ जुलाई १९६५
जन्मस्थान - रायपुर छत्तीसगढ़ पिताजी - स्व. गोपाल चन्द्र मिश्रा शिक्षा - स्नातक (फोटोग्राफी/शूटिंग/प्रोडक्सन/ए कार्यक्षेत्र - (शासकीय) नेत्र सहायक अधिकारी रायपुर छत्तीसगढ़
- कलरव (काव्य संग्रह-२०११)
- उठो जवानों (काव्य संग्रह-२०११) (विभिन्न किताबों में आवरण निर्माण और रेखाचित्र) पुरस्कार - "साहित्य प्रहरी पुरस्कार - 2010" (चेतना साहित्य एवं कला परिषद् छ. ग.) - "कवि श्री" सम्मान -२०११ (रायपुर छ. ग.) - डा. रमेश कुमार बुधौलिया प्रतिभा सम्मान -२०११ (नरसिंह पुर मध्य प्रदेश)
स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में कवितायें, कहानी, व्यंग्य प्रकाशित.
http://smhabib1408.blogspot. एहसासात... अनकहे लफ्ज़
आजाद चौक रायपुर
छत्तीसगढ़. पिन - ४९२००१.
दूरभाष : ०७७१-४०१०८०८
०९४०६३८०८०३
०९३२९५८०८०३
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R-13
हरीश प्रकाश गुप्त
जयकृष्ण तुषार की यह कविता “चुप्पी ओढ़ परिन्दे सोए सारा जंगल राख हुआ” अभी पिछले दिनों 12 अक्टूबर को उनके ब्लाग “छान्दसिक अनुगायन” पर प्रकाशित हुई थी। सरल शब्दों में रची गई उनकी यह कविता वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में सामान्य सी बन गई असंगतियों और उसकी विद्रूपताओं पर करारी चोट करती है। अभी पिछले कुछ माह से राजनैतिक हलकों में अतिशय सरगर्मी देखी जा रही है। जनता में एक बड़े मुद्दे पर प्रतिरोध का स्वर मुखर हो चला है। |
धन्यवाद रविकर जी!
जवाब देंहटाएंआज तो पढ़ने के लिए बहुत सारा मैटर दे दिया!
जाते हैं धीरे-धीरे सबके यहाँ!
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
आभार इस सुन्दर चर्चा के लिए!
विस्तृत चर्चा ...
जवाब देंहटाएंपढ़ते हैं सभी बारी-बारी !
आपके अनथक सहयोग
जवाब देंहटाएंएवं
परामर्श के लिए आभार ||
त्योहारों की नई श्रृंखला |
जवाब देंहटाएंमस्ती हो खुब दीप जला |
धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
दीप जलाने चला चला ||
कृपया अपना / अपने मित्रों का विस्तृत परिचय बुधवार की संध्या तक प्रेषित करने का कष्ट करें | ब्लॉग लिंक भी कर दें |
परिचय लिखने में संकोच कैसा ?
अन्यथा मेरी ओर से लिख लें ||
बहुत बहुत आभार ||
आकर्षक,अनोखी तथा रंगबिरंगी चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
मुझे स्थान देने के लिए आभार.
रविकर जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर,सार्थक और समग्र चर्चा हेतु सर्वप्रथम आपका आभार !
शास्त्री जी ने हिंदी ब्लोगिंग का इतिहास पुस्तक के बारे में सत्य कहा है की सभी ब्लोगर मीट की और सभी बच्चों के ब्लॉग की चर्चा इस पुस्तक में नहीं है . किन्तु वर्ष -२०१० तक के सभी महत्वपूर्ण ब्लोगर मीट को स्थान दिया गया है,यह भी सत्य है. संभव है उनका इशारा खटीमा ब्लोगर मीट की ओर हो, मैं स्वयं इस ब्लोगर मीट का साक्षी था. भला कैसे भूल सकता हूँ .मगर यह महत्वपूर्ण मीट वर्ष-२०११ के जनवरी माह में आयोजित हुआ था .अत: इसे इस किताब से दूर रखा गया है. जिन्हें भी लग रहा हो की ईस पुस्तक में कुछ बातें छूटी है तो मुझे वेझिझक मेल पर बताएं ताकि मैं उसे दुसरे संस्करण में समाहित कर सकूं !
आप सभी का पुन: आभार !
आभार आपका.....
जवाब देंहटाएंरविकर जी आपने तो गागर में सागर भर दिया आज.जानती हू हस रहे होंगे सब ये पढ़कर साहित्यकार लोगो के बीच एसे आम लोगो के मुहावरे का प्रयोग कर रही हू.पर क्या करू सबसे पहले यही दिमाग में आया.सबका परिचय दिया उसके लिए धन्यवाद्,सबसे एक एक कर मिलना होगा.मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिएआभार
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा है आज तो ... अनोखा अंदाज़ ... मुझे भी शामिल करने का शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा ... धन्यवाद रविकर जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत को सलाम
ब्लोगर्स के जीवन परिचय शामिल करने की आपकी पहल सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित मम्मी की रचना को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया।
सादर
आभार हुजूर आभार।
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंravikar ji.
Aapki pahal sachmuch sarahneey hai.
Badhai.
रविकर जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को यहाँ स्थान देकर सम्मान देने के लिए दिल से आभार. बहुत अच्छे अच्छे लिनक्स दिए हैं. धन्यवाद.
अच्छे लिंक्स , रोचक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंख्यातिलब्ध ब्लागरों के साथ स्वयं को पाकर अच्छा लगा , आभार ।