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शुक्रवार, अक्टूबर 21, 2011

मोहाली भी फतह : चर्चा-मंच 674

Praveen Kumar struck in his first over

नासिर तेरे टीम में, कुछ पप्पी अंग्रेज |

गेंद पकड़नी भूल कर, पिच पर उलझें तेज |

पिच पर उलझें तेज, भले थे तेरे डंकी |

घर के ही तुम शेर, चले ना इत नौटंकी|

चोटिल थे तब शेर, शेर अब घायल मेरे |

फाड़ेंगे इस बार, जानवर नासिर तेरे -

निवेदन:- देवनागरी लिपि में अपने ब्लॉग-मित्रों का जीवन-परिचय प्रेषित करने का कष्ट करें |
अपना प्रोफाइल भी, देवनागरी लिपि में अद्यतन करने की कृपा करें |
----रविकर

R-1

"पर्व है प्रकाश का, दीप जगमगाइए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

दीन के कुटीर में भी इक दिया जलाइए।
पर्व है प्रकाश का, दीप जगमगाइए।।
"एक समीक्षा"
समीक्षा की दृष्टि से यदि देखा जाए तो इसमें कुछ लोगों की गतिविधियों को तो अनावश्यकरूप से बहुत बढ़ा-चढ़ा कर भी प्रस्तुत किया है और इसमें कोई हानि भी नहीं है। लेकिन बच्चों के ब्लॉगों को प्रस्तुत करने में इस पुस्तक में बहुत कृपणता बरती गई है। उल्लेखनीय है कि नियमितरूप से सक्रिय बच्चों के बहुत से ब्लॉगों....
....इसकी क्रम में सन् 2003 से 2011 तक रिकार्ड पोस्ट लगाने वाले किसी भी ब्लॉग की ओर विद्वान लेखक का ध्यान हीं गया है। इसके बाद यदि बात करें ब्लॉगर मीट या ब्लॉगर सम्मेलन की तो इस पर भी कोई विशेष प्रकाश इस पुस्तक में नहीं डाला गया है।...
....सभी बिन्दुओं पर चर्चा करना सम्भव नहीं हो पाता है। वर्तमान कल का इतिहास होता है और इसको जिस प्रकार से हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास में प्रस्तुत किया गया है वह एक सराहनीय प्रयास है। मैं समझता हूँ की हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास हिन्दी ब्लॉगरों के लिए एक धरोहर से कम नहीं है। जिसको सभी ब्लॉगरों पास होना चाहिए।
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
R-2

सुन सुन सुन अरे बाबा सुन, इन बातों में बड़े बड़े गुण

अजित गुप्‍ता का कोना

बाते करना किसे नहीं भाता? कैसा भी चुप्‍पा टाइप का इंसान हो, उसे भी एक दिन बातों के लिए तड़पना ही पड़ता है। बचपन तो खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने में बीत जाता है, उस समय घर-परिवार में, स्‍कूल में, मौहल्‍ले में बाते करने वाले ढेर सारे लोग होते हैं। लेकिन युवावस्‍था आपकी परीक्षा लेकर आती है। अभी प्रेम के कीड़े ने दंश मारा ही था कि चहचहाते पक्षी की बोलती बन्‍द हो जाती है। अपने अन्‍दर ही बातों के गुंताले बुनता दिखायी दे जाएगा।

R-3

जब मति मारी जाए

मेरा फोटो
मैं एक घरेलु महिला हूं , हंसो और हंसाओ में विश्वास रखती हूं। “अब हर बात में मेरा ही दोष मत बताइए। सुबह के चार बज गये हैं जाग जाइए।”

R-4

गुम हो गया लय में ‘ककहरा’ गाने का रिवाज


आमने-सामने दो पंक्तियों में खड़े होकर ‘एकम-एका…..दोकम-दुआ…..नौ की नवाही…..दस की दहाई और अंत में नब्बे नौ निन्यानवे …..टेकड़ा पे बिन्दी दो, गिने गिनाए पूरे सौ…’ की गूंज स्कूलों से नदारद है। इसी पद्धति में ”दो दूनी चार… उन्नीस पांच पिचानवे” गाकर पहाड़े और क, ख, ग, घ, ड., खाती खिड़की ना घड़ै’ गाकर ‘ककहरा’ सीखने का तरीका पुराने जमाने की बात हो गई है।

जब मेरे विचार उनसे मेल नहीं खाते उहापोह की स्थिति मन बोझिल उन्होंने तो कसम खा रखी है समझौता ना करने की जिद है एक तानाशाह सी उनके अन्दर न बदलने की अहम् ब्रह्मास्मि की आदत बात बात पर रूठ जाने की--

R-6

तीन


निज से निजता
एक से एकता
लघु से लघुता
प्रभु से प्रभुता
मानव से मानवता
दानव से दानवता

R-7

ऐ ज़िन्दगी...

My Photo
'ये मन की अभिव्यक्ति का सफ़र है, जो प्रति-पल मन में उपजता है...'
ज़िन्दगी तेरी सोहबत में जीने को मन करता है ! चलते हैं कहीं दूर कि दुनिया से डर लगता है !

शुक्रवार, अक्टूबर 14, 2011

तटस्थ रहना पाप नहीं - चर्चा-मंच : ६६७

में शामिल बिभूतियाँ

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण

नवीन सी. चतुर्वेदी

जाट देवता (संदीप पवाँर)

महेश्वरी कनेरी

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

सुरेन्द्र शुक्ल " भ्रमर "५

मनोज कुमार


अनीता

कैलाश सी शर्मा

राजेन्द्र स्वर्णकार

अजित गुप्ता

नीरज गोस्वामी

(यशवन्त माथुर )

महेंद्र श्रीवास्तव

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

शालिनी कौशिक


डॉ. अनवर जमाल

संगीता स्वरुप गीत

वंदना

महेंद्र वर्मा




हिंदी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक के रूप में चर्चित श्री रवींद्र प्रभात विगत ढाई दशक से निरंतर साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखनरत हैं। इनकी रचनाएं भारत तथा विदेश से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इनकी कविताएं लगभग डेढ़ दर्जन चर्चित काव्य संकलनों में संकलित की गई हैं। इन्होंने सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है---
परंतु व्यंग्य, कविता ओर ग़ज़ल लेखन में इनकी प्रमुख उपलब्धियां हैं।
लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक जनसंदेश टाइम्सके ये नियमित स्तंभकार भी हैं। व्यंग्य पर आधारित इनका साप्ताहिक स्तंभ चौबे जी की चौपालआजकल काफी लोकप्रिय है। इनके दो ग़ज़ल संग्रह क्रमशः हमसफ़रऔर मत रोना रमजानी चाचा तथा एक कविता संग्रह स्मृति शेष प्रकाशित हैं। ये समकालीन नेपाली साहित्यका संपादन तथा हिंदी मासिक संवादऔर साहित्यांजलिका विशेष संपादन कर चुके हैं। ये डवाकराकी टैली डॉक्यूमेंटरी फिल्म नया विहानके पटकथा लेखन से भी जुड़े रहे हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग की पहली मूल्यांकनपरक पुस्तक हिंदी ब्लॉगिंग: अभिव्यक्ति की नई क्रांति के संपादन के साथ-साथ इस वर्ष इनका एक उपन्यास ताकि बचा रहे लोकतंत्र और हिंदी बलॅगिंग का इतिहास भी प्रकाशित हुआ है। इनका ब्लॉग परिकल्पना तथा परिकल्पना ब्लॉगोत्सव हिंदी ब्लॉगजगत में काफी मशहूर है। हिंदी ब्लॉगिंग का इतिहास पुस्तक के माध्यम से श्री रवींद्र प्रभात ने हिंदी ब्लॉगिंग पर शोधार्थियों के लिए पहली बार प्रवेश का द्वार खोल दिया है क्योंकि हिंदी ब्लॉगिंग पर अब तक प्रकाशित दोनों पुस्तकों के भी लेखक ये स्वयं हैं।
वर्ष-२००६ में जियोसिटीज डोट कॉम के माध्यम से ये हिंदी ब्लॉग जगत से जुड़े , किन्तु ब्लागस्पाट के माध्यम से इनका हिंदी ब्लॉगजगत से जुड़ाव हुआ जून-२००७ में । इनका पहला ब्लॉग है http://parikalpnaa.blogspot.com/ जो ठहाका वाले बसंत आर्य के सहयोग से इन्हेने बनाया, बाद में इन्होने इसे डोमेन पर यानी (www.parikalpnaa.com/)डोट कॉम पर शिफ्ट कर दिया ।
जनसंदेश टाईम्स (०१ मार्च २०११ ) के अनुसार -“रवीन्‍द्र प्रभात ब्‍लॉग जगत में सिर्फ एक कुशल रचनाकार के ही रूप में नहीं जाने जाते हैं, उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग के क्षेत्र में कुछ विशिष्‍ट कार्य भी किये हैं। वर्ष 2007 में उन्‍होंने ब्‍लॉगिंग में एक नया प्रयोग प्रारम्‍भ किया और ‘ब्‍लॉग विश्‍लेषण’ के द्वारा ब्‍लॉग जगत में बिखरे अनमोल मोतियों से पाठकों को परिचित करने का बीड़ा उठाया। 2007 में पद्यात्‍मक रूप में प्रारम्‍भ हुई यह कड़ी 2008 में गद्यात्‍मक हो चली और 11 खण्‍डों के रूप में सामने आई। वर्ष 2009 में उन्‍होंने इस विश्‍लेषण को और ज्‍यादा व्‍यापक रूप प्रदान किया और विभिन्‍न प्रकार के वर्गीकरणों के द्वारा 25 खण्‍डों में एक वर्ष के दौरान लिखे जाने वाले प्रमुख ब्‍लागों का लेखा-जोखा प्रस्‍तुत किया। इसी प्रकार वर्ष 2010 में भी यह अनुष्‍ठान उन्‍होंने पूरी निष्‍ठा के साथ सम्‍पन्‍न किया और 21 कडियों में ब्‍लॉग जगत की वार्षिक रिपोर्ट को प्रस्‍तुत करके एक तरह से ब्‍लॉग इतिहास लेखन का सूत्रपात किया।ब्‍लॉग जगत की सकारात्‍मक प्रवृत्तियों को रेखांकित करने के उद्देश्‍य से अभी तक जितने भी प्रयास किये गये हैं, उनमें ‘ब्‍लॉगोत्‍सव’ एक अहम प्रयोग है। अपनी मौलिक सोच के द्वारा रवीन्‍द्र प्रभात ने इस आयोजन के माध्‍यम से पहली बार ब्‍लॉग जगत के लगभग सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच पर प्रस्‍तुत किया और गैर ब्‍लॉगर रचनाकारों को भी इससे जोड़कर समाज में एक सकारात्‍मक संदेश का प्रसार किया।”
नका जन्म साठ के दशक के उत्तरार्द्ध में 05 अप्रैल को महींदवारा गाँव, सीतामढ़ी जनपद बिहार के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ । इनका मूल नाम रवीन्द्र कुमार चौबे है । इनके पिता उस दशक के सबसे बड़े आन्दोलन जे.पी. मूवमेंट से प्रभावित थे, फलत: उन्होंने अपने पुत्र के नाम के साथ जाति सूचक उपनाम रखना मुनासिब नहीं समझा . इनकी आरंभिक शिक्षा सीतामढ़ी में हुई। बाद में इन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से भूगोल विषय के साथ विश्वविद्यालयी शिक्षा ग्रहण की।
बचपन में दोस्तों के बीच शेरो-शायरी के साथ-साथ तुकबंदी करने का शौक था .इंटर की परीक्षा के दौरान हिन्दी विषय की पूरी तैयारी नहीं थी, उत्तीर्ण होना अनिवार्य था . इसलिए मरता क्या नहीं करता .सोचा क्यों न अपनी तुकवंदी के हुनर को आजमा लिया जाए . फिर क्या था आँखें बंद कर ईश्वर को याद किया और राष्ट्रकवि दिनकर, पन्त आदि कवियों की याद आधी-अधूरी कविताओं में अपनी तुकवंदी मिलाते हुए सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए . जब परिणाम आया तो अन्य सारे विषयों से ज्यादा अंक हिन्दी में प्राप्त हुए थे . फिर क्या था, हिन्दी के प्रति अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया ....
जीवन और जीविका के बीच तारतम्य स्थापित करने के क्रम में इन्होने अध्यापन का कार्य भी किया, पत्रकारिता भी की, वर्त्तमान में ये एक बड़े व्यावसायिक समूह में प्रशासनिक पद पर कार्यरत हैं। आजकल लखनऊ में हैं। लखनऊ जो नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून का जीवंत शहर है, अच्छा लगता है इन्हें इस शहर के आगोश में शाम गुज़ारते हुए ग़ज़ल कहना, कविताएँ लिखना, नज़्म गुनगुनाना या फिर किसी उदास चेहरे को हँसाना ......
इनके प्रमुख ब्लॉग है :
http://www.parikalpnaa.com/ परिकल्पना
www.parikalpna.com/ परिकल्पना ब्लॉगोत्सव
http://geet.parikalpnaa.com/ ाहित्यांजलि
http://sahitya.parikalpnaa.com/ शब्द सभागार
http://rp.parikalpnaa.com/ ब्लॉग परिक्रमा
http://urvija.parikalpnaa.com/ वटवृक्ष
http://utsav.parikalpnaa.com/ ब्लॉगोत्सव-2010
देवेन्द्र पाण्डेय
करे आत्मा फिर हमें, अन्दर से बेचैन |
ढूंढ़ दूसरी लाइए, निकसे अटपट बैन |
निकसे अटपट बैन, कुकर की सीटी बाजी |
समझे झटपट सैन, वहीँ से बकता हाँजी |
गर रबिकर इक बार, कुकर का होय खात्मा |
परमात्मा - विलीन, करे - बेचैन - आत्मा ||

एक नए शोध की आवश्यकता है . शिखा कौशिक


भ्रष्टाचारी का सदा, धक्-धक् करे करेज
जबतक मिले हराम की, करता नहीं गुरेज
करता नहीं गुरेज, सात पुश्तों की खातिर |
चाहे धन संचयन,  होय निर्मम दिल शातिर
लेकिन  लोकायुक्त,  कराता  छापामारी |
होवे  दिल  में  दर्द,  मरे  वो  भ्रष्टाचारी  ||
noreply@blogger.com (Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...

नश्वर है यह देह पर, भाव सदा चैतन्य |
शाश्वत हूँ साकार पर, चिरकांक्षित ना अन्य |
चिरकांक्षित ना अन्य, भटकती है अभिलाषा |
भटक रहा चहुँ ओर, पपीहा स्वाती प्यासा |
कह कृष्णा अकुलाय, भेंट कर राधे अवसर |
सुन राधा हम श्याम, नहीं हम - दोनों नश्वर ||

MERI SOCH


 
निकले अगर भडास तो, बढती जीवन साँस || आँसू बह जाएँ अगर, कमे दर्द-एहसास ||

R-9

भूल गये सब लोग दिगंबर आए हैं ...

दुश्मन जब जब घर के अंदर आए हैं
बन कर मेरे दोस्त ही अक्सर आए हैं

तेरे दो आँसू से तन मन भीग गया
रस्ते में तो सात समुंदर आए हैं
----------
ये भी मेरा वो भी मेरा सब मेरा
भूल गये सब लोग दिगंबर आए हैं||



R-10

[scan0063.jpg]

अजय कुमार

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित , भगवान गौतम बुद्ध की पावन भूमि सिद्धार्थनगर (उ.प्र.) का निवासी.


वर्तमान समय में एक मनोरंजन चैनल में कार्यरत. मैं क्या हूँ ? इसकी तलाश जारी है----

R-11

महाकाश में एक अकेला

My Photo

डॉ0 विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’

महाकाश में एक अकेला,
विचर रहा हो पाँखी जैसे।
घने तिमिर में रश्मि खोजता,
भटक रहा हूँ मैं भी वैसे।।
R-12

छरहरी काया के लिए प्रोटीन बहुल खुराक लीजिए .

राम -राम भाई

एक नए अध्ययन के मुताबिक़ तन्वंगी बने रहने के लिए केवल केलोरी कम करना ही कॉफ़ी नहीं है खुराक में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीनों को शामिल करना चाहिए .सिडनी विश्व विद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है कम प्रोटीन युक्त खुराक कुल एनर्जी इंटेक को बढा देती है .ऐसे लोग ज्यादा से ज्यादा स्नेक्स का सेवन करने लगतें हैं जिनकी खुराक में प्रोटीन कमतर रहतें हैं .नतीज़न वह ज़रुरत भर से कहीं ज्यादा खाते हैं .इस अध्ययन के नतीजे PLoS ONE जर्नल में प्रकाशित हुए हैं .पता यह भी चला है प्रोटीन का पर्याप्त सेवन ज्यादा संतुष्टि देता है भूख को ज्यादा देर तक शांत रखता है
P-2

दोस्‍त बनाना इतना आसान है
जितना मिटटी में मिटटी लिखना|
लेकिन निभाना उतना ही कठिन है
जितना पानी में पानी लिखना ||
अंदाज ए मेरा
मेरा पता है - राजनांदगांव छत्‍तीसगढ
कार्य - पत्रकारिता

सम्‍पर्क - 94252 40408

P-3
सच है सदियों से दिल और दिमाग के बीच फासला ही इंसान को इंसान बनाता है.जब जब रूह मैं कसक उठती है तो दिल रो उठता है,और दिमाग दिल से फूटते हुए इस आंसुओ के सोते को अपने तर्कों से, सुखाना चाहता है बस यही अंतर्द्वंद मुझे लिखने की प्रेरणा देता है

क्या लिखु अपने विषय में,शब्द केसे में चुनु ?
मै कनु....
लिखने का शौक है मुझे और इसी शौक ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया.जब जब मन करता है अपने मन के कोने से कुछ भावनाओं को यहाँ उकेर देती हू.शब्दों की चित्रकारी से प्यार है मुझे पर अभी मेरे शब्द चित्रकारी जेसे दिल को लगने वाले नहीं बन पड़ते...बस इसी अनंत प्रयास में हू की कुछ अच्छा पढने लायक लिख सकू.....

बहते हुए सागर की लहर ही तरह हूँ
मस्ताने से मौसम मैं सहर की तरह हूँ।

जितना दर्द दोगे उतना जयादा मह्कुंगी
फूलों के बिखरे हुए परिमल की तरह हूँ।

जिंदगी मैं नए नए दौर से गुजरकर,
हर मोड़ पर जेसे किसी पत्थर की तरह हू।

अपनी खूबियों और खामियों के हिसाब से ही पाओगे मुझसे
सागर मंथन मैं निकले हुए अमृत और गरल की तरह हूँ ।

ख़ुद का चेहरा मुझमे देखना चाहो तो देख लो
हर अक्स को ख़ुद मैं समां लू उस दर्पण की तरह हूँ।
P-4

ममता की रंगदारी से हारा हुआ एक पत्रकार

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आलेख -अशोक कुमार शुक्ला

घटना का काल खंड इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या के समकालीन है। मैं
तद्समय उत्तराखंड के जनपद उत्तरकाशी में महाविद्यालयीय शिक्षा ग्रहण कर
रहा था । विज्ञान की कक्षाओं में सामान्यतः कला संकाय के अघ्यापकों का
आना नही होता परन्तु एन0 एस0 एस0 का प्रभारी होने के नाते उस दिन हमारी
कक्षा में प्रोफेसर प्रभात उप्रेती का आना हुआ। उन्होते सामाजिक विषयों
के संबंध में कुछ प्रभावशाली वक्तव्य दिये और सामाजिक जीवन में सामूहिक
प्रयासों के विषय पर सहभागिता हेतु युवाओं के आगे आने की आवश्यकता पर बल
दिया। प्रोफेसर उप्रेती का उद्बोधन समाप्त होने पर क्लासरूम से बाहर
निकलते हुये मेरे मष्तिष्क में प्रोफेसर प्रभात उप्रेती के कहे हुये शब्द
बार बार गूंज रहे थे:-
‘‘ हम सबके अंदर उर्जा की कोई कमी नहीं है बस जरूरत है उसे चैनलाइज करते
हुये किसी एक मिशन की तरफ लगाने की। कठोर पहाडों को काटकर बनी सडक या बडे
बडे बांध हमारी इसी उर्जा के जीते जागते उदाहरण है।’’
मैं लेखन में रूचि रखता था और मेरी पहली रचना कविता
’संकल्प’((उद्बोधन)1978 में साप्ताहिक (गढवाल मंडल) में प्रकाशित हुयी थी
साथ ही छात्र-जीवन में प्रतिष्ष्ठित पत्रिका ‘धर्मयुग’ और ‘साप्ताहिक
हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित होने का गौरव पा चुका था
सो कारीडोर पार करते
हुये जब मैं कालेज के मुख्य द्वार बाहर निकला तो सहसा मुझे अपने हास्टल
केा जाने वाले मार्ग के पास नदी के धाट के नजदीक बनी कुछ ढाबे नुमा
आकृतियां याद आने लगी जिसमें लगभग हर शाम को शराब के जुगाडियों का जमावडा
लगता था और फिर पुलिस केा चकमा देकर अथवा सांठ गांठ करते हुये कोई न कोई
शातिर आता और उनके गले में जहर की पुडिया उंडेलने की एवज में अपनी जेब
गरम कर चला जाता था। मुझे प्रोफेसर उप्रेती के उद्बोधन में बताया गया
मिशन इन्ही नशेडियों में दिखलायी देने लगा। बस मैने इन नशेडियों की
लिर्ये इंधन पहुंचाने वाले हाथों को बेनकाब करने के लिये अपनी उर्जा
इस्तेमाल करने का विचार बनाया । संयोग से पहाडों के लिये श्रद्वेय
दयानन्द अनन्त जी के द्वारा नयी दिल्ली से प्रकाशित होने वाला ‘पर्वतीय
टाइम्स’ तथा देहरादून से प्रकाशित होने वाले ‘जनलहर साप्ताहिक’ के लिये
रिपोर्टिंग करने का अवसर भी इसी दौरान मिल गया ।

बस फिर क्या था इन पंक्तियों के लेखक का किशोर मन कुछ एक्सक्लूसिव और
विशेष किस्म की रिपोर्टिंग करने की बात मन में बैठा कर जनपद में अंगेंजी
शराब के अवैध व्यापार में लिप्त सीमा सुरक्षा बल के वाहनो के संबंध में
कुछ रिपोर्टे लिखकर भेजी जो ‘साप्ताहिक पर्वतीय टाइम्स’ और ‘जनलहर
साप्ताहिक’ में स्थान पाने में सफल रहीं। अपने लिखे शब्दों को छपा हुआ
देखकर जो प्रसन्नता मिलती उससे कहीं ज्यादा प्रसन्नता इस बात की होती कि
मेरे लिखे शब्दों का प्रभाव जमीन पर दिखलायी देने लगा था। अब हर शाम के
धुंधलके में शराब की पेटियां लेकर आने वाले सीमा सुरक्षा के वाहनो की
आवाजाही सीमित हो गयी थी। यह बात और थी कि इन रिपोर्टेां के प्रकाशन के
साथ ही मुझे अजीब नजरों से देखने वालों की संख्या अब बढ गयी थी। कुछ ऐक
रिपोर्टो के प्रकाशन के बाद ‘पर्वतीय टाइम्स’ की ओर से श्रद्वेय दयानन्द
अनन्त जी के प्रोत्साहन के साथ यह सलाह भी प्राप्त हुयी कि रिपोर्टों के
साथ छायाचित्र भी भेजे जाने की दशा में समाचार की गुणवत्ता तथा उसके
प्रभाव में कई गुना वृद्वि हो जाती है। श्रद्वेय दयानन्द अनन्त जी की ओर
से प्राप्त यह सुझाव मेरे अंतरमन में बस गया और मैंने रिर्पोटिंग के साथ
उससे संबंधित छायाचित्र भेजने के लिये अपनी क्षमतानुकूल क्लिक थर्ड कैमरा
ले लिया।
उत्तरकाशी के रामलीला ग्राउन्ड मे अतिक्रमण कर बनाये जाने वाले सरकारी
भवन हों या राजकीय जिला चिकित्सालय में मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार इन
सबकी रिपोर्टिंग के साथ क्लिक थर्ड कैमरे से खिंची हुयी तस्वीरें भेजने
लगा । ऐसे में एक दिन मेरे एक मित्र छात्र ने यह खबर दी कि पालीटेक्निक
के छात्रों ने जोशीयाडा में हंगामा कर दिया है और अभद्रता की सभी सीमायें
लांधकर प्रधानाचार्य से हाथा पायी तक कर डाली है। उस समय किसी संस्था के
प्रधान के साथ हाथापायी की घटना बडी दुःसाहसिक वारदात के रूप में जानी
जाती थी नकि आज की तरह एक सामान्य सी घटना की तरह। मैं अपने उसी मित्र
के साथ भागते हुये जोशीयाडा पहुंचा और देखा कि प्रधानाचार्य के कक्ष के
बाहर छात्रों की भारी भीड जमा थी जो प्रधानाचार्य मुर्दाबाद के नारे लगा
रहे थे साथ ही कुछ छात्र प्राचार्य को उनके कक्ष से घसीट कर बाहर भीड
में ला रहंे थे। कुछ छात्रों के हाथेंा में जूते और चप्पल थे। शिक्षकगण
तथा पुलिस के जवान पास ही खडे थे।
मुझे इस द्वष्य में अपने समाचार के साथ भेजी जाने वाली एक अच्छी तस्वीर
दिखायी दी और मैं लपकर सामने के दोमंजिले भवन पर अपना क्लिक थर्ड कैमरा
लेकर चढ गया और प्राचार्य महोदय को घसीटते और जूते और चप्पलो से पीटते
छात्रों की फोटो लेने लगा। मै मुश्किल से दो या तीन शॉट ले पाया था कि
पालीटेक्निक के एक अध्यापक ने मेरी ओर उंगली उठाकर छात्रों से कुछ कहा
औार अगले ही क्षण उदंडी छात्रों का एक हुजूम मेरी ओर दौड पडा और चिल्लाने
लगा:- ‘‘पकडो पकडो इसे जरूर प्रधानाचार्य ने हमारे विरूद्व सबूत इकट्ठा
करने के लिये बुलाया है।’’
इतना सुनने की देर थी ,बस तुरंत छात्रों के एक समूह ने दौडकर मेरे हाथ से
कैमरा छीन लिया और कुछ मेरे सिर पर थप्पियां जडने लगे। मैं बडी मुश्किल
से पास खडी पुलिस की टोली के नजदीक तक जाने में सफल हो सका परन्तु इस
आपाधापी में मेरा परिचय पत्र उस भीड में कहीं खो गया या किसी ने जानबूझ
कर उडा दिया । अब पुलिस हरकत में आयी और मेरा कैमरा अपने कब्जे में लेकर
उदंडी छात्रों केा पकडकर थाने ले आयी। मैं भी थाने पहुंचा जहां मैने
‘पर्वतीय टाइम्स’ के लिये खींची गयी तस्वीरें और कैमरा बापस दिलाने का
अनुरोध किया। परन्तु पुलिसिया रौब के आगे मेरा अनुरोध बौना साबित हुआ और
मुझे कैमरा वापिस न मिल सका। वह बार बार मुझे याद दिलाते कि अंगेंजी शराब
के अवैध व्यापार में लिप्त सीमा सुरक्षा बल के वर्दी वाले और इन बिगडैल
लडकों के खिलाफ क्यों लिखता हू। साथ ही यह सलाह भी कि क्यों छात्र जीवन
में ही अपना कैरियर बरबाद करना चाहता हू।

अंत में मैने हारकर त्दसमय उत्तरकाशी के महाविद्यालय छात्र संघ के
अध्यक्ष रहे सर्वश्री गोपाल रावत जी को थाने पर बुलवाया और उनके
हस्तक्षेप के बाद ही मुझे अपना क्लिक थर्ड कैमरा वापिस मिल सका वह भी
बिना रील के । मैं अपने द्वारा खीचे गये दृश्यों को समाचार के साथ न
प्रेषित कर सकूं शायद इसलिये उस रील को थानेदार द्वारा नष्ट कर दिया गया
था।
इस घटना से निवृत होने के बाद जब मैं घर लौटा तो पाया कि मां की ममता
मेरे लिये रास्ते में कांटे लेकर खडी थी। उसे इस बात का गहरा सदमा था कि
पुलिस के लोग उसके लाडले केा लेकर थाने तक गये थे। मां की नजर में पुलिस
के साथ थाने तक जाने का मतलब सामाजिक सम्मान को खोने जैसा था। मैने मां
को बहुत समझाया कि किसी पत्रकार के जीवन में यह एक सामान्य सी घटना थी
परन्तु मां कुछ सुनने को तैयार ही न थी उसकी आंखों में आंसू थे, उसने
शायद शराब माफिया के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारो पर गुजरने वाली
कठिनायियों को सुन रखा था सेा वह तो मुझसे इस बात का पक्का वायदा चाहती
थी कि मै अब पत्रकारिता नहीं करूगां ।
उस पर स्थानीय पडोसियों का मां को सलाह देना सोने में सुहागा साबित हुआ
जिसमें पढाई में अव्वल रहने वाले किसी छात्र को पढाई से इतर पत्रकारिता
के नाम पर अनावश्यक विवादित क्षेत्रो में घुसने का मतलब पढाई और कैरियर
चौपट करना था। मां के अनेक आग्रहों के बावजूद मैं भी अपनी जिद पर अडा रहा
जिसके कारण मां के आंसू और उसका मातृत्व अपना स्वरूप बदलकर अब गंभीर
गुस्से का रूप घारण कर बैठे और इसके बाद प्रेस को भेजने की लिये तैयार
की अपनी कई रिपोर्टों को मां के हाथों शहीद होते देखना पडा।
फर्श पर पडे रिपोर्टों के टुकडे जैसे मां और मेरे बीच चल रहे युद्व में
मारे गये लहूलुहान योद्वा सरीखे थे। उन अप्रकाशित रिपोर्टों का इस तरह
नष्ठ होना मुझे ऐसा जान पडा जैसे किसी आतातायी ने ( श्रद्वेया मां से क्षमा याचना सहित )किसी नववधू के गर्भ में पल रहे भ्रूण की हत्या कर दी
हो और खून मे लिपटे उस क्षत विक्षत भ्रूण की असहाय मां सरीखा मै समझ ही
नहीं पा रहा था कि उन कागज की चिंदियों को बटोरूं या इस हत्या पर विलाप
करूं। मैने जैसे तैसे उन फटे कागज के टुकडों को बटोर कर रखा। मेरी मां तो
( पुनः क्षमा याचना सहित ) जैसे रंगदारी वसूल करने वाले किसी माफिया में
बदल चुकी थी। उसे हर कीमत पर मुझसे पत्रकारिता और लेखन को फिलहाल छोड
देने का वचन चाहिये था। वात्सल्स की आंच पाकर मातृत्व रूपी माफिया
रंगदारी वसूल करने से पहले अपनी पकड को किसी भी हालत में नहीं छोडना
चाहता था।
इस हालत में कई दिन बीते होगें । मां ने मुझसे रूष्ठ होकर बात करना भी
बंद कर दिया था। चौतरफा दबावों के चलते मेरा मन भी अब यह मानने को विवश
हो चला था कि ( श्रद्वेय प्रोफेसर प्रभात उप्रेती जी से क्षमा याचना सहित ) किसी विद्यमान व्यवस्था में स्वयं को स्थापित करने का सीधा अर्थ
पढाई पूरी कर एक ऐसी सरकारी नौकरी हासिल करना है जिससे जीवन यापन के लिये
एक निश्चित रकम जीवन पर्यन्त प्राप्त हो सके।
मां की जिद से आहत और विवश
होकर मै हार गया और किसी माफिया की दहशत में आकर उसे रंगदारी देने पर
मजबूर हुये निरीह पकड की तरह उन्हें यह बचन देने पर विवश हो गया कि
तन्मयतापूर्वक अपनी पढायी पूरी करने तक इस तरह के किसी मिशन में हाथ नहीं
डालूंगा। हांलांकि इस तरह का बचन देते हुये मेरा अंतरमन रो रहा था ।. . .
.और इस तरह जुझारू पत्रकार बनने चाहत एक मां की ममता और सामाजिक अर्थों
में स्थापित होने की खोखली परिभाषा के आगे हार गयी और एक नवोदित पत्रकार
की बच रही उर्जा ने
महाविद्यालय की भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला की ओर रूख
कर लिया जो हिन्दुस्तान एरोनाटिकल लिमिटेड के अमेठी स्थित विद्यालय की
शिक्षण शाला में प्रवक्ता की हैसियत से गुजरती हुयी विभागाध्यक्ष ,भौतिकी
विभाग , काल्विन तालुकेदार्स कालेज , लखनऊ(उ0प्र0) तक आयी परन्तु यहाँ भी
स्थिर न रह सकी और अंततः लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश की अधीनस्थ (पी0 सी0
एस0) परीक्षा 1991 के माध्यम से राजस्व विभाग उत्तर प्रदेश
की गति को
प्राप्त हो गयी ।

अंतरमन में व्याप्त लेखन के प्रति मौजूद मोह छूटा नहीं सो अनेक रचनाये
(कवितायें, संस्मरण, कहानियां तथा विज्ञान विषयक लेख) ‘नवभारत टाइम्स,
साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ धर्मयुग’,‘दैनिक अमर उजाला’,‘साप्ताहिक पर्वतीय
टाइम्स’,‘साप्ताहिक जन लहर’,‘मधु-मुस्कान’,‘दैनिक स्वतंत्र
भारत’,‘विज्ञान प्रगति’,‘हिन्दुस्तान फीचर समाचार सेवा’,पौडी
टाइम्स’,‘संवाद-भारती फीचर सेवा’, ‘अहा जिंन्दगी’, ‘युगवाणी’,‘उत्तरांचल
पत्रिका’,‘तहलका’,‘दिगन्त’, ‘गृहनंदिनी’,‘बालवाणी’, सहित विभिन्न समाचार
पत्रोंपत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित।
आकाशवाणी लखनऊ से विज्ञान विषयक वार्ताओं का प्रसारण।
विभिन्न समाचार पत्रों में स्फुट प्रकाशित कविताओं का एक संग्रह
’प्रतिनिधि कविताएं’ 1993 में संग्रहीत,
एक कविता संग्रह ’कविता का अनकहा अंश’ 2009 में अभिव्यक्ति प्रकाशन हरदोई
से प्रकाशित,
दो कहानी संग्रह ‘पुनरावतरण’ तथा ‘एक संस्कार ऋण’ क्रमशः 2008 तथा 2010
में साकार प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित,
दैनिक स्वतंत्र भारत में ‘विज्ञान के खेल’ शीर्षक से लिखे स्तंम्भ में
सम्मिलित विज्ञान विषयक प्रयोगों का संकलन ‘विज्ञान के खेल’ शीर्षक से
उत्तरायण प्रकाशन के अधीन प्रकाशकाधीन,
संस्मरणों का संग्रह ‘फिर जी उठा वह देहरादून से प्रकाशनाधीन,

संर्पक सूत्रः- ‘तपस्या’, 2-614,सेक्टर‘एच’ ,जानकीपुरम् , लखनऊ(उ0प्र0) पिन-226021
मेरे ब्लाग http://fresh-cartoons.blogspot.com
http://yogdankarta.blogspot.com
http://u-p-revenue-officers.blogspot.com
सचल दूरभाष:- 09450786977


अशोक कुमार शुक्ला,

३६ वर्ष से खुद के चिकित्सा संस्थान का संचालन कर रहा हूँ.
कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर का संस्थापक एवं भूतपूर्व,अध्यक्ष
राजस्थान टेबल टेनिस असोसीऐशन का चेयरमैन,राजस्थान राज्य डेंटल काऊंसिल का सदस्य एवम कई अन्य संस्थाओं से जुडा हुआ हूँ
समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से कचोटा है
अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज़ पर उकेरने का प्रयास कर रहा हूँ,फलस्वरूप १ अगस्त २०१० से लिखना प्रारंभ किया।मित्र के लेखन से प्रोत्साहित हो, अभिव्यक्ति और भावनाओं की यात्रा पर निकल पडा .


अब तक लगभग २४०० रचनाएँ हिंदी, हिंदी मिश्रित उर्दू , एवं अंग्रेज़ी भाषा में लिख चुका हू




निरंतर की कलम से .....NIRANTAR AJMER
हास्य कविता निरंतर की कलम से........

निरंतर कह रहा .......

http://nirantarkahraha.blogspot.com

Nirantar's........(English Poems)

http://nirantarajmer.blogspot.com

अपनी अपनी बातें..........

http://apniapnibaatein.blogspot.com/
हास्य कवितायें
:http://laughnirantarlaugh.blogspot.com

डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"गुलमोहर"
H-1,सागर विहार
वैशाली नगर ,अजमेर -305004
Mobile:09352007181

P-5
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बुल्लाह मैं की जानां मैं कौन
जन्म तिथि - 23 -10 -1976
पेशा - अध्यापन , प्रवक्ता हिंदी
प्रकाशित पुस्तकें - चंद आंसू, चंद अल्फाज़ ( अगज़ल संग्रह ) ; निर्णय के क्षण ( हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला के सौजन्य से प्रकाशित कविता संग्रह ) , दर्जन भर सांझे संग्रहों में हिस्सेदार, कहानी कीमत
पंजाब केसरी, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, अजीत समाचार, रांची एक्सप्रेस, हरिगंधा, शोध दिशा,शब्द बूँद आदि सौ के लगभग पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन.
एकल हिंदी ब्लॉग - साहित्य सुरभि
सांझे ब्लॉग-
पंजाबी ब्लॉग -
पता -
गाँव- मसीतां, डबवाली, सिरसा, हरियाणा.

P-7


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शिक्षा एम.एस सी.(गणित),
भारतीय जीवन बीमा निगम से वर्ष 2010 में मंडल प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त,
प्रकाशन/प्रसारण/सम्मान/पुरस्कार आदि:-
1 -अँधेरे भी उजाले भी,ग़ज़ल संग्रह वर्ष 1998 में प्रकाशित.
2 -पर्यावरणीय दोहे,दोहा संग्रह,वर्ष 2000 में प्रकाशित.
3 -कुछ न हासिल हुआ,ग़ज़ल संग्रह,वर्ष 2010 में प्रकशित.
4 -सौ से अधिक संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित.
5 -आकाशवाणी लखनऊ से रचनाएँ प्रसारित.
6 -वर्ष 1996 में कादम्बिनी द्वारा समस्यापूर्ती के अंतर्गत पुरस्कृत.
7 - खानकाह सूफी दीदार शाह चिश्ती,हाजी मलंग वाडी,पो.कल्याण.जिला-ठाणे,महाराष्ट्र द्वारा
'शहंशाहे क़लम' मानद उपाधि से अलंकृत.
8 - विक्रम शिला हिंदी विद्यापीठ,भागलपुर द्वारा 'विद्यावाचस्पति' उपाधि से अलंकृत.
9 - रोटरी क्लब /नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति तथा अनेकानेक अन्य संस्थाओं से सम्मानित.
MOB:09415518546

P-8
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संजय मिश्र 'हबीब'

ज़मीरे खुद में देखा, फ़क़त तारीको खलाश है |
खुद को न पा सका, मुझे अपनी ही तलाश है ||
जन्म - १४ जुलाई १९६५
जन्मस्थान - रायपुर छत्तीसगढ़
पिताजी - स्व. गोपाल चन्द्र मिश्रा
शिक्षा - स्नातक (फोटोग्राफी/शूटिंग/प्रोडक्सन/
डिटिंग कोर्स - जारी)
कार्यक्षेत्र - (शासकीय) नेत्र सहायक अधिकारी रायपुर छत्तीसगढ़
सम्पादन - 'ब्रह्मास्त्र - १०' (सामाजिक पत्रिका)
- कलरव (काव्य संग्रह-२०११)
- उठो जवानों (काव्य संग्रह-२०११)
 

(विभिन्न किताबों में आवरण निर्माण और रेखाचित्र)
पुरस्कार - "साहित्य प्रहरी पुरस्कार - 2010" (चेतना साहित्य एवं कला परिषद् छ. ग.)
- "कवि श्री" सम्मान -२०११ (रायपुर छ. ग.)
- डा. रमेश कुमार बुधौलिया प्रतिभा सम्मान -२०११ (नरसिंह पुर मध्य प्रदेश)

स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में कवितायें, कहानी, व्यंग्य प्रकाशित.
My web page
http://smhabib1408.blogspot.com/
एहसासात... अनकहे लफ्ज़
पता - ३०/५१८, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रतिमा के पीछे,
आजाद चौक रायपुर
छत्तीसगढ़. पिन - ४९२००१.
दूरभाष : ०७७१-४०१०८०८
०९४०६३८०८०३
०९३२९५८०८०३

R-13
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हरीश प्रकाश गुप्त
जयकृष्णclip_image004 तुषार की यह कविता “चुप्पी ओढ़ परिन्दे सोए सारा जंगल राख हुआ” अभी पिछले दिनों 12 अक्टूबर को उनके ब्लाग छान्दसिक अनुगायन पर प्रकाशित हुई थी। सरल शब्दों में रची गई उनकी यह कविता वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में सामान्य सी बन गई असंगतियों और उसकी विद्रूपताओं पर करारी चोट करती है। अभी पिछले कुछ माह से राजनैतिक हलकों में अतिशय सरगर्मी देखी जा रही है। जनता में एक बड़े मुद्दे पर प्रतिरोध का स्वर मुखर हो चला है।

17 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद रविकर जी!
    आज तो पढ़ने के लिए बहुत सारा मैटर दे दिया!
    जाते हैं धीरे-धीरे सबके यहाँ!
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
    आभार इस सुन्दर चर्चा के लिए!

    जवाब देंहटाएं
  2. विस्तृत चर्चा ...
    पढ़ते हैं सभी बारी-बारी !

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके अनथक सहयोग
    एवं
    परामर्श के लिए आभार ||

    जवाब देंहटाएं
  4. त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो खुब दीप जला |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    दीप जलाने चला चला ||

    कृपया अपना / अपने मित्रों का विस्तृत परिचय बुधवार की संध्या तक प्रेषित करने का कष्ट करें | ब्लॉग लिंक भी कर दें |
    परिचय लिखने में संकोच कैसा ?

    अन्यथा मेरी ओर से लिख लें ||
    बहुत बहुत आभार ||

    जवाब देंहटाएं
  5. आकर्षक,अनोखी तथा रंगबिरंगी चर्चा.
    बहुत खूब.
    मुझे स्थान देने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. रविकर जी,
    सुन्दर,सार्थक और समग्र चर्चा हेतु सर्वप्रथम आपका आभार !
    शास्त्री जी ने हिंदी ब्लोगिंग का इतिहास पुस्तक के बारे में सत्य कहा है की सभी ब्लोगर मीट की और सभी बच्चों के ब्लॉग की चर्चा इस पुस्तक में नहीं है . किन्तु वर्ष -२०१० तक के सभी महत्वपूर्ण ब्लोगर मीट को स्थान दिया गया है,यह भी सत्य है. संभव है उनका इशारा खटीमा ब्लोगर मीट की ओर हो, मैं स्वयं इस ब्लोगर मीट का साक्षी था. भला कैसे भूल सकता हूँ .मगर यह महत्वपूर्ण मीट वर्ष-२०११ के जनवरी माह में आयोजित हुआ था .अत: इसे इस किताब से दूर रखा गया है. जिन्हें भी लग रहा हो की ईस पुस्तक में कुछ बातें छूटी है तो मुझे वेझिझक मेल पर बताएं ताकि मैं उसे दुसरे संस्करण में समाहित कर सकूं !
    आप सभी का पुन: आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. रविकर जी आपने तो गागर में सागर भर दिया आज.जानती हू हस रहे होंगे सब ये पढ़कर साहित्यकार लोगो के बीच एसे आम लोगो के मुहावरे का प्रयोग कर रही हू.पर क्या करू सबसे पहले यही दिमाग में आया.सबका परिचय दिया उसके लिए धन्यवाद्,सबसे एक एक कर मिलना होगा.मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिएआभार

    जवाब देंहटाएं
  8. मस्त चर्चा है आज तो ... अनोखा अंदाज़ ... मुझे भी शामिल करने का शुक्रिया ...

    जवाब देंहटाएं
  9. विस्तृत चर्चा ... धन्यवाद रविकर जी!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  11. ब्लोगर्स के जीवन परिचय शामिल करने की आपकी पहल सराहनीय है।
    आज के चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित मम्मी की रचना को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. रविकर जी,
    मेरे ब्लॉग को यहाँ स्थान देकर सम्मान देने के लिए दिल से आभार. बहुत अच्छे अच्छे लिनक्स दिए हैं. धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  13. अच्छे लिंक्स , रोचक प्रस्तुति ।
    ख्यातिलब्ध ब्लागरों के साथ स्वयं को पाकर अच्छा लगा , आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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