मित्रों! मैं और विद्या जी मंगलवार की चर्चा में कुछ लिंक |
ईद मुबारक पूड़ी, पुलाव, दाल मखनी, मटर पनीर , खीर और सिवयीं खाएं, निरीह चौपायों की लाश न खाएं। त्योहारों में खुशियों भरी किलकारियां गूंजनी चाहिए, कार्टून कुछ बोलता है- बकरीद मुबारक हो ! |
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इंतजार की घडी बहुत निकट आ गयी है , 11-11-11 के जादुई आंकडें के दिन में मात्र चार दिन बच गए हैं। ग्रहीय स्थिति के हिसाब से 11-11-11 जादुई आंकडें का दिन नहीं !! |
क्रोध पाप का मूल है ... काम क्रोध मद लोभ की, जब लौ मन में खान। तब लौ पण्डित मूर्खौ, तुलसी एक समान॥ |
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Author: अनुपमा त्रिपाठी... | प्रभु तुम .. हो दयाल ..रहो कृपाल .. यूँ बसो सदा ही .. मन में मेरे ... |
Author: OM | Source: ANUBHAV -ओंम प्रकाश नौटियाल -१- कहा चाँद ने चाँदनी से, "यह जो तुम रात में, छोड़ मुझे आकाश में, निकल मेरे बहुपाश से पृथ्वी पर पहुंच जाती हो, प्रेमी युगलों की गोद में निसंकोच बैठ जाती हो,, खिडकी खुली देख किसी भी कक्ष में घुस जाती हो, वृक्षों पर इठलाती हो, पानी पर लहराती हो, विरह में जलने वालों को और जलाती हो, तुम इससे क्या पाती हो ? |
Dineshrai Dwivedi | Source: तीसरा खंबा मधु सूदन सिंह ने पूछा है |
डॉ॰ मोनिका शर्मा | Source: परवाज़....शब्दों के पंख धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं कई व्यवहारिक कारण भी हैं जिनके चलते हिन्दू संस्कृति में चार महीने( आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक ) कोई मांगलिक कार्य नहीं होते | माना जाता है की चतुर्मास का समय सभी देवगण भगवान विष्णु का अनुसरण करते हुए सोते हुये बिताते हैं | कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि कि देवोत्थान एकादशी से फिर मांगलिक कार्य .. |
प्रवीण शाह | Source: सुनिये मेरी भी.... |
जीवन की नियति और परिणति क्या है, इस बात से सभी भली भांति अवगत हैं . लेकिन फिर भी हम सब कुछ जानते हुए अनजान बने रहते हैं . सब कुछ हमारे सामने घटित होता है ... |
सूरज का एकाकीपनएकाकी मानव का अस्तित्व प्रदर्शित,ये सूरज का एकाकीपन है,अभी मद्धिम है आभा इसकी,या प्रखर तेज का सीधापन है? |
पलकों पे जो ये अश्क चले आते हैं, ये कितने बेदर्द हो कर चले आते हैं, जब छोड़ देता है साथ ज़माना मेरा तो ये भी मेरा साथ छोड़ कर चले आते हैं। |
निर्णय के क्षण ( कविता ) भाग-1 - नियति, नियति, नियति कितनी जालिम है यह नियति जो बाँट देती है हर इंसान के दिल को दो टुकड़ों में और बना द... |
पेट्रोल की कीमतें बढ़ाना वाकई जरूरी था.Cartoon by Kirtish Bhatt (www.bamulahija.com) |
सुन्दर लिंक, मज़ेदार कार्टून। आभार!
जवाब देंहटाएंढेर सारे सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित शानदार चर्चा रहा! कार्टून मुझे बेहद पसंद आया! मेरी शायरी शामिल करने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा...कार्टून और भी मज़ेदार
जवाब देंहटाएंनमस्कार ...बढ़िया लिंक्स दिए हैं आज की चर्चा में .......मेरी रचनाओं को स्थान दिया ....बहुत आभार शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंBahut hi lajbab kartoons lagaye hai aap dono ne. Bahut sundar rachnayon ke links hain. Abhar.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर मेरे नवगीत को स्थान को स्थान देकर सम्मानित करने के लिए आपका आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंSundar prastuti ke liye aabhar shashtriji !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.. अच्छे लिंक्स..सैम के
जवाब देंहटाएंकार्टून को शामिल करने के लिए..आभार !
सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा .....
जवाब देंहटाएंbeautiful charcha.
जवाब देंहटाएंविज्ञान के युग में क़ुरबानी पर ऐतराज़ क्यों ?
जवाब देंहटाएंब्लॉगर्स मीट वीकली 16 में यह शीर्षक देखकर लिंक पर गया तो उन सारे सवालों के जवाब मिल गए जो कि क़ुरबानी और मांसाहार पर अक्सर हिंदू भाई बहनों की तरफ़ से उठाए जाते हैं।
पता यह चला कि अज्ञानतावश कुछ लोगों ने यह समझ रखा है कि फल, सब्ज़ी खाना जीव को मारना नहीं है। जबकि ये सभी जीवित होते हैं और इनकी फ़सल को पैदा करने के लिए जो हल खेत में चलाया जाता है उससे भी चूहे, केंचुए और बहुत से जीव मारे जाते हैं और बहुत से कीटनाशक भी फ़सल की रक्षा के लिए छिड़के जाते हैं।
ये लोग दूध, दही और शहद भी बेहिचक खाते हैं और मक्खी मच्छर भी मारते रहते हैं और ये सब कुकर्म करने के बाद भी दयालुपने का ढोंग रचाए घूमते रहते हैं।
यह बात समझ में नहीं आती कि जब ये पाखंडी लोग ये नहीं चाहते कि कोई इनके धर्म की आलोचना करे तो फिर ये हर साल क़ुरबानी पर फ़िज़ूल के ऐतराज़ क्यों जताते रहते हैं ?
अपने दिल में ये लोग जानते हैं कि हमारी इस बकवास से खुद हमारे ही धर्म के सभी लोग सहमत नहीं हैं।
http://hbfint.blogspot.com/2011/11/blog-post_05.html
मजेदार लिंक ... मज़ा आ गया ...
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए मंच के व्यवस्थापकों का हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंशाकाहार और सह अस्तित्व की प्ररेणादायक चर्चाओं का सुन्दर संकलन ।
ॐ लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः ।
badiya charcha prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंक़ुरबानी और मांसाहार के बारे में आपने अपने मनोभाव को व्यक्त किया , यह ठीक है लेकिन आपको प्रतिपक्ष की बात पर भी ध्यान देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!
‘चर्चा
गोश्तखोरी-सब्जीखोरी debate स्वामी नित्यानंद और डाक्टर बशीर
1910–1911 ई.
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ..ये लेख आप के मन को छू सका और आप ने मानव धर्म को सम्मान दे इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ,,बड़ी ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
मंगलवार, ८ नवम्बर २०११ ८:०८:०० अपराह्न I
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ..ये लेख आप के मन को छू सका और आप ने मानव धर्म को सम्मान दे इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ,,बड़ी ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
मंगलवार, ८ नवम्बर २०११ ८:०८:०० अपराह्न I
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ..ये लेख आप के मन को छू सका और आप ने मानव धर्म को सम्मान दे इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ,,बड़ी ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
मंगलवार, ८ नवम्बर २०११ ८:०८:०० अपराह्न I
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत बहुत आभार आप का प्रोत्साहन हेतु ..ये लेख आप के मन को छू सका और आप ने मानव धर्म को सम्मान दे इसे चर्चा मंच पर स्थान दिया ,,बड़ी ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
मंगलवार, ८ नवम्बर २०११ ८:०८:०० अपराह्न I
आदरणीय शास्त्री जी बहुत सुन्दर लिंक्स आप ने और विद्या जी ने संजोया कड़ी मेहनत .....सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
भ्रमर का दर्द और दर्पण
सुन्दर लिंक्स...
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
शानदार चर्चा है शास्त्री जी. किस्सा-कहानी को जगह देने के लिये आभारी हूं.
जवाब देंहटाएंसार्थक और सौदेश्य प्रस्तुति सुन्दर संयोजन बेहतरीन लिंक्स लिए अच्छी चर्चा .
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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चर्चामंच में मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आभार...
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