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रविवार, नवंबर 27, 2011

"हाय रब्बा! जीवन के नव-रंग" (चर्चा मंच-711)

मित्रों!
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी का आशीर्वाद मिला और मैं कमल सिंह (नारद) चर्चाकार के रूप में आज अपनी पहली रविवासरीय चर्चा आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ!  "मैं भी ब्लॉगिंग...मौनीबाबा....हरियाणा सरकार पर गांधी परिवार मेहरबान क्यों?
लिए कटोरा हाथ में! लो जी फिर चले हम तो लोगों को हंसाने..... गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है......! मनुष्य अपने चरित्र को उज्जवल न रख सका तो वह एक आदरपूर्ण बिंदु के लिए तरसेगा ....! महाकवि स्वर्गीय द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी, जिनकी आगामी १ दिसंबर को पुण्य-तिथि है, ने किन परिस्थितियों के मद्देनजर अपनी बाल मन को ओत-प्रोत करने वाली रचना "यदि होता मैं किन्नर नरेश मैं !" का सृजन किया। तृतीय पुरस्कार!! पार्श्वभूमी बनी है , घर में पड़े चंद रेशम के टुकड़ों से..किसी का लहंगा,तो किसी का कुर्ता..यहाँ बने है जीवन साथी..हाथ से काता गया सूत..चंद, धागे, कुछ डोरियाँ... नज़रे इनायत नही... ! ''कला में अश्लीलता, फूहड़पन और सांस्कृतिक स्तरहीनता के आगे कब तक मौन रहोगे''....२६/११ की तीसरी बरसी - बस इतना याद रहे ... एक साथी और भी था ... ! सारा दिन घर में आराम से रहती हो ! तुम क्या जानो दुनिया के धंधे ? मैं बाहर जाता हूँ कितना थक जाता हूँ ! तुम तो...ऊंचे आसन पर बैठ कर धर्म गुरु प्रवचन देते हैं सब से बराबरी का व्यवहार करो ! अरे भई साधो......: जनजीवन को जटिल बनाते अपराधी! लो फिर आ गयी छब्बीस बटा ग्यारह एक दिन का शोर शराबा फिर वो ही मंजर पुराना सब कुछ भुला देना चादर तान के सो जाना क्या फर्क पड़ता है? ये तसन्नो में डूबा हुवा प्यार है क्या कोई चीज़ फिर मुफ़्त दरकार है. फैली रूहानियत की वबा क़ौम में, जिस्म मफ़्लूज है, रूह बीमार है. *फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले ज़िन्दादिली तो हिन्दी में भी छलकती है ये वो भाषा है जो ...सौगात से कम नहीं है। चांटा लगाऽऽऽऽऽऽऽ~~~~~~~~ हाय रब्बा! जीवन के नव-रंग - लोग यही अक्सर कहे जीवन है संघर्ष। देता पर संघर्ष ही जीवन को उत्कर्ष।। घृणा, ईर्ष्या, क्रोध संग त्यागे जो उन्माद। जीवन तब अनमोल है नित्य घटे अवसाद।। फ़ुरसत में ... आराम कुर्सी चिंतन! आज कहीं पढ़ी एक बात याद आ रही है ...फ़लों को लेकर उदाहरण था, तुलना की गई थी परिवार की फ़लों की बनावट के साथ...फ़ल और परिवार ...... शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ घूम आइए ना! तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, हर युग में तुमको अपना मानूँ...लेकिन हनुमान लीला - भाग १ को मनसा वाचा कर्मणा पढ़कर तो देखिए!! जीवन में कई बसंत सी खिली मैं कई पतझड़ सी झरी मैं कई बार गिरी गिर कर उठी मन में हौसला लिए जीवन पथ पर बढ़ी मैं बढ़ती रही, चलती रही! मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति-जलेबी बाई-जलेबी बाई!
आप सभी का आशीष चाहिए! प्रणाम!!

20 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चर्चा ....आपका स्वागत है ....!

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  2. चचा मंच पर पहली बार आने के लिए हार्दिक स्वागत |
    आशा

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  3. शानदार चर्चा - महत्वपूर्ण चिट्ठों के संकलन की श्रमसाध्य कोशिश
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  4. बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत चर्चा।

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  5. चर्चा मंच पर पहली चर्चा बहुत सधी हुई है ...बहुत बढ़िया लिंक्स संयोजन है ...
    बधाई एवं शुभकामनायें....

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  6. पहली पहली परिचर्चा, पल्ले पड़ी पचीस |
    पढ़ पढ़कर पाठक कहें, चर्चा-कर्ता बीस ||

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  7. बहुत सुंदर चर्चा की.
    कहीं से नहीं लगी कि आपकी पहली चर्चा है।
    बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  8. पहली शानदार चर्चा के लिये बधाई स्वीकारें………सुन्दर लिंक्स संजोये हैं।

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  9. कमल सिंह जी! आपका चर्चामंच पर चर्चाकार के रूप में स्वागत है। आपने अपनी प्रथम चर्चा ही बहुत सलीके से सजाई है। आभार और बधाई

    जवाब देंहटाएं
  10. कमल सिंह जी! आपका चर्चामंच पर चर्चाकार के रूप में स्वागत है। आपने अपनी प्रथम चर्चा ही बहुत सलीके से सजाई है। आभार और बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन चर्चा ..सादर बधाईयां

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर चर्चा!
    चर्चाकार के रूप में आपकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं!

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  13. अपनी पहली ही चर्चा में आपने रंग जमा दिया है और जिस नए और रोचक अंदाज़ में आपने चर्चा को अंजाम दिया है वह हमें यह आस जगाता है कि आने वाले दिनों में आप इस मंच को नया आयाम देने में कामयाब होंगे।

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  14. उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का आभार . :), आशा है भविष्य में भी आप सभी के कृपा का पात्र बना रहूँगा.


    सादर ,

    कमल कुमार सिंह (नारद )

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  15. पहली सुंदर चर्चा के लिये बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रथम बेहतरीन चर्चा के लिए बधाई और शुभकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं

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