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बुधवार, नवंबर 23, 2011

"वृद्धि के वावजूद निर्यातको को सरकारी छूट" (चर्चा मंच-707)

नमस्कार मित्रों!
      बुधवासरीय चर्चा में एक बार फ़िर आप सभी का स्वागत है। गुजरे हफ़्ते में देश की डावाडोल आर्थिक स्थिती और रूपये की  गिरती कीमत ने कारोबारियों की चिंता बढ़ा दी है। वैश्विक बाजारों मे छाये संकट ने आने वाले दिनो आभास तो दे ही दिया है।  दीवालिया होते व्यक्तियों, संस्थाओं के बाद यदि देश ही दीवालिया होने लगे तो समझ लीजिये कर्जा लेकर ऐश करने और संपत्ती खरीदने वालो के बुरे दिन आने वाले हैं। इसी कड़ी मे सुमन जी का निर्यात में वृद्धि के वावजूद निर्यातको को सरकारी छूट  आर्थिक नीतियों के खोखले पन की ओर ध्यान खींचता है। बुरी परिस्थितियों से आगाह करने का काम जिस चौथे स्तंभ के पास था वह तो खुद ही इस   बाजारवाद में कब का  बिक चुका है इसके सामने खड़े बाजार बड़ा या आत्म-नियमन? का मुद्दा आनंद प्रधान जी समझाया है।
ऐसे माहौल मे ब्लाग जगत में लेखो की तलाश में नजर दौड़ाई,  तो सन्नाटा सा नजर आया। अभी भी टूटा दिल से लेकर संघ ब्रिगेड का अन्ना को कोसो अभियान कृत लेखों की ही फ़िजा है। बधाई हो ! जन लोकपाल बिल बनने वाला है मे सज्जन पूछ रहे हैं कि क्या इस बिल से भूखे को रोटी मिलेगी या बेरोजगार को काम मिलेगा। फ़िर खुद ही कहते है,  इसको भूल जाओ बाबा रामदेव के साथ आ जाओ। सपने ऐसे ऐसे कि सुनना हो तो बाबा रामू का प्रवचन  पढ़ लें। खैर इन बाबा कम संघ वादियो का गम है कि अन्ना की कमीज बाबा की कमीज से सफ़ेद कैसे?
        अपने डैशबोर्ड से बाहर निकल मैने तलाश की तो महेन्द्र श्रीवास्तव जी का खूबसूरत लेख चार जेपी और दो अन्ना पैग... मिला सरल भाषा में चुटिले अंदाज से यह अमीर युवाओं की देश की हालत के बारे सोच से अवगत कराता है।  शास्त्री जी ने बालसखा को खोने के अहसास को "हाँ यही मौत का लक्षण है" मे बड़े मार्मिक तरीके से व्यक्त किया है , श्रेष्ठ रचनाये पीड़ा से ही उपजती हैं। इसी कड़ी में केवल राम जी की मृत्यु से पहले...  भी उत्तम  रचना है,  एक के बाद एक पढ़ा जाये तो बात ही क्या। इसके बाद स्वराज्य करूण जी की बिलखती तस्वीर : छलकते आँसू !  में उन किन्नरो की मौत का दुख जो हमारी खुशियों मे शरीक होते हैं।  अंत मे राहुल सिंग जी रचना साहित्यगम्य इतिहास जिनका जन्म दिवस कल था, हम सभी  केक काटने की तैय्यारी में थे हि कि पता चला वे शहर से बाहर हैं।
आज  की चर्चा में चिंता, दुख और परेशानी कुछ ज्यादा ही प्रभावी हो गयी है,  सो ऐसे में आयुर्वेदिक व्हिस्की पीना लाजिमी है। पर करें क्या ससुर जी को मिला  कुदरत का उपहार याने उनकी पुत्री    घर पहुंचते ही हम पर  करेंगी प्रहार, सो दुखी मन से ही सूखा-सूखा घर प्रस्थान करने के लिये आप से विदा लेता हूँ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना "आयुर्वेदिक व्हिस्की " शामिल करने के लिए आभार , बाकी लिंक भी बहुत सुन्दर .


    कमल

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  2. चर्चा मंच को आपने बहुत बढ़िया लिंकों से सजाया है!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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