बुधवार का चर्चा मंच भी मुझे ही सजाना है "कुछ कहना है" आदरणीय रविकर जी को! छितराए-पन्ने! भगवती शांता परम सर्ग पढ़ लीजिए ना! --क्योंकि "दल उभरता नहीं, संगठन के बिना"*स्वर सँवरता नहीं, आचमन के बिना। पग ठहरता नहीं, आगमन के बिना! ये जग झूठा नाता झूठा खुद का भी आपा है झूठा फिर सत्य माने किसको मन बंजारा भटका फिरता कोई ना यहाँ अपना दिखता फिर अपना बनाए किसको कैसी मची है आपाधापी...जहाँ बाड खेत को खुद है खाती ! इसी लिए तो कहता हूँ कि ‘‘तीखी-मिर्च सदा कम खाओ’’ साझीदार बने हो तो, सौतेला मत व्यवहार दिखाओ! पढ़िए नव्या में प्रकाशित कविता औकात! निर्णय के क्षण कर्ण की कशमकश से सम्बन्धी कविता छः किश्तों में ब्लॉग साहित्य सुरभि पर प्रस्तुत की गई थी. यह कविता ! सूनी सूनी हैं अब ब्रज गलियाँ, उपवन में न खिलती कलियाँ. वृंदा सूख गयी अब वन में, खड़ी उदास डगर पर सखियाँ. जब से कृष्ण गये तुम बृज से, अब मन बृज में लागत नाहीं! इसीलिए तो कहता हूँ कि आखिर कहां जा रहे हैं हम? किताबें पढ़ी , मन का मंथन किया खूब सोचा-समझा और जांचा ऐ-दोस्त तुझे .... राहे-जिन्दगी में ख़ुशी मिले ना मिले सुकून जरुर मिले| दोस्ती...... हो तो किताबो से ही हो! परिवास योग्य एक ग्रह पृथ्वी जैसा! "निरंतर" की कलम से.....निकली हैं क्षणिकाएं *बड़े अरमानों से* बड़े अरमानों से हमने उन्हें फूल भेंट किये भोलेपन से वो पूछने लगे कहाँ से खरीदे ? हमें भी किसी ख़ास को देने हैं बहुत शिद्दत से बताने लगे! मंजिल तलाशते रहे .... परछाइयों के साथ / उगते रहे बबूल भी , अमराइयों के साथ / सीने पे ज़ख्म खा के भी , खामोश है कोई , अब गम मना रहे हैं वो , शहनाइयों के साथ...! ग़ाफ़िल की अमानत में हैं-कुछ ख़ास अलहदा शे’र - जिसमें से कुछ तो किसी ग़ज़ल की ज़ीनत बने और कुछ अब तक अलहदा ही हैं! कुछ उलझे हुए विचार आज बस मन हुआ कि कुछ लिखा जाये, मगर क्या? तो ऐसे ही मन में कुछ खयाल आने लगे कुछ ऐसे विचार जिनका न कोई सर था न कोई पैर! सिर्फ एक पंक्ति फेसबुक की दिवार पर - "मैंने अपनी महिला मित्र को छोड़ दिया. अब मैं आजाद हूँ." और नतीजा... उस लडकी ने शर्मिंदगी और दुःख में आत्महत्या कर ली...जीना यहाँ.. मरना यहाँ ..! इसके सिवा जाना कहाँ?? -मेरा दिल ये कहे ; हम रहें न रहें शान से ये तिरंगा लहरता रहे ! साँस चलती रहे ; साँस थमती रहें ये वतन का गुलिस्ता महकता रहे! स्वीकार सको तो स्वीकार लेना क्योंकि ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र ही तो है! मटर दिलों में प्रेम बढ़ाता...... मटर, भाव की हद को चूमें मटरगश्ती कर मद में झूमे. मटक-मटक कर है मदमाता जेब को मेरी रोज चिढ़ाता. छत्तीसगढ़ में पेड-पत्तियों और वनस्पतियों के साथ भी रिश्ते बांधने (बदने)की परम्परा है। और ऐसे बदे गए रिश्तों में पीढ़ियों का निर्वाह होता है... अहिरन के साथ रिश्ते बाँध कर गयी हैं., इंदिरा गोस्वामी तभी तो कर रही हैं..."प्यारी-प्यारी बातें"! छा रहा इस देश पर कोहरा घना है -! ऐसे मेंचतुर्वर्ग फल प्राप्ति और वर्तमान मानव जीवन का क्या होगा? तुमसे है दुनियाँ - खुशियों की बौछार तुम्हीं हो उदासी की तलवार तुम्हीं हो तुम्हीं हो मेरी गंगा -यमुना हर मौसम का प्यार तुम्ही हो ! चलते-चलते थक जाती पाती न पंथ की सीमा अवरोधों से डिगता धैर्य फिर भी न होता धीमा प्यासी आँखे बहती है बूंद-बूंद में हुआ जीना... आहों में .. आइए देखें चलते-चलते!
सुंदर लिनक्स उम्दा परस्तुति !
जवाब देंहटाएंबस एक लिंक ओपन नहीं हुआ !
मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"
वाकई ..पग ठहरता नहीं आगमन के बिना..सुन्दर चर्चा ... शुभदिवस
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स से सजी बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंThanks .
चर्चा में आप का परिश्रम स्पष्ट दिख रहा है
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंक्स दिए हैं
सुंदर लिंक्स , बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंbadhiyaa links ke liye badhaayee
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सधी चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ||
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा………आभार्।
जवाब देंहटाएंएक ही चर्चा मे मेरी दो रचनाओ को लेने के लिये हार्दिक आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर पठनीय चर्चा ।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब अंदाज़ चर्चा प्रस्तुति का...बहुत सुंदर लिंक्स..आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा |बहुत सारे लिंक्स दिए हैं |आभार् |
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढि़या लिंक्स का संयोजन किया है आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच के लिंक्स का ज़वाब नहीं !
जवाब देंहटाएंआभार !
एक प्रस्तुति जिसमे लिंक्स तो हैं ही गत्यात्मकता लय ताल भी है एक स्वतन्त्र रचना की बयार भी चहल कदमी भी .बधाई .इस अप्रतिम चर्चा मंच के लिए .
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार
सार्थक चर्चा. बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिंक्स से सजाया है आपने आज का चर्चा मंच सार्थक चर्चा....बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स से सजी सार्थक चर्चा हर तरह के रंग समेटे हुए है. आभार.
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