राजा रानी अवध के, हैं दोनों गोतीय | अल्पबुद्धि-विकलांगता, सम दुष्फल नरकीय || गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज | गोत्रज में कैसे मिलें, रहे व्यर्थ क्यूँ खीज || गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग | दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग || -----रविकर |
गुरु तेग बहादुर
आज गुरु तेगबहादुर का जन्मदिवस है इस पुनीत अवसर परआनंद उठाइये माँ की इस विशिष्ट श्रद्धांजलि का !
तेरे ऐसे रत्न हुए माँ जिनकी शोभा अनियारी ,
तेरे ऐसे दीप जले माँ जिनकी शाश्वत उजियारी !
तव बगिया के वृक्ष निराले अमिट सुखद जिनकी छाया ,
ऐसे राग बनाये तूने जिन्हें विश्व भर ने गाया !
तेरे ताल, सरोवर, निर्झर शीतल, निर्मल नीर भरे ,
तेरे लाल लाड़ले ऐसे जिन पर दुनिया गर्व करे !
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1,
निष्काम कर्मयोग की प्रासंगिकता –गीता - मयंक अवस्थी
ठाले बैठेगीता मनोविज्ञान की पहली (और अंतिम भी) पुस्तक है।
यह मनुष्य के रुग्ण जीवन के लिये वरदान स्वरूप
दी गयी विचार-चिकित्सा प्रणाली है । इसका उदगम महाकाव्य महाभारत है ।
यहाँ हमें यह शोध नहीं करना कि घोर आँगिरस ने
कृष्ण को साँख्ययोग सिखाया कि नहीं ,
न यह कि उपनिषदों की सार “गीता” वास्तव में व्यास परम्परा ने
युगपुरुष कृष्ण के माध्यम से एक घटना का आलम्बन ले कर
महाभारत में आरोपित कर दी और न ये कि आज के जटिल जीवन में
धर्म की औचित्यपरता अप्रासंगिक हो चली है ।
वस्तुत: कर्मयोग के माध्यम से दिया गया जीवन का समाधान
देश, काल और परिस्थिति के बन्धनों से
सर्वथा मुक्त है और सबसे कीमती है ।
2.अर्थशास्त्र जाये भाड़ में !! |
3. वैदिक युग में दाम्पत्य बंधन .. डा श्याम गुप्तविशद रूप में दाम्पत्य-भाव का अर्थ है, दो विभिन्न भाव के तत्वों द्वारा अपनी अपनी अपूर्णता सहित आपस में मिलकर पूर्णता व एकात्मकता प्राप्त करके विकास की ओर कदम बढाना। यह सृष्टि का विकास-भाव है । प्रथम सृष्टि का आविर्भाव ही प्रथम दाम्पत्य-भाव होने पर हुआ । शक्ति-उपनिषद का श्लोक है—“ स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत। सहैता वाना स। यथा स्त्रीन्पुन्मासो संपरिस्वक्तौ स। इयमेवात्मानं द्वेधा पातपत्तनः पतिश्च पत्नी चा भवताम।“ |
ताजमहल की असलियत... भाग 5
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प्रस्तुति मनोज पटेल की पढ़ते-पढ़ते -पर *प्राइमो लेवी (1919 -- 1987) ने दो उपन्यास, कई कहानी संग्रह, निबंध और कविताएँ लिखी हैं. वे अपनी संस्मरणात्मक किताब 'इफ दिस इज ए मैन' के लिए जाने जाते हैं जिसमें आश्विट्ज यातना शिविर में बिताए गए दिनों का ब... |
6.
तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे ...
तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे
बचपन बच्चों के बच्चों में देखूँगा
कहते थे जो उनके सपने चूर हुवे
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काश मैं वसीयत कर पाती कभी सोचा ही नहीं इस तरफ आज सोचती हूँ
तो लगता है किस किस चीज की वसीयत करूँ कौन सा सामान मेरा है
और बैठ गयी जमा घटा का हिसाब रखने सबसे पहले तो बात की जाती है
धन दौलत की और मैं सोच रही थी...
तो लगता है किस किस चीज की वसीयत करूँ कौन सा सामान मेरा है
और बैठ गयी जमा घटा का हिसाब रखने सबसे पहले तो बात की जाती है
धन दौलत की और मैं सोच रही थी...
9.बॉस की खपच्चियों पर....अनुभूतियों का आकाश -कभी कभी सोचता हूँ मक्के के खेत में बॉस की खपच्चियों पर फटा पुराना कुरता पहने सर पर फूटा घड़ा धरे मै खड़ा हूँ पक्षियों से दाने बचाने क्या बचा पाता हूँ ? मुझे तो नहीं लगता उस बूढ़े की मेहनत के दाने उसे संपूर्ण मिल पाते होंगे खाद, बीज और पानी का कर्ज चुकाते कुछ बच गए जो दाने |
कविता लिखना जैसे चाय बनाना कभी चायपत्ती ज्यादा हो जाती है कभी चीनी, कभी पानी, कभी दूध कभी तुलसी की पत्तियाँ डालना भूल जाता हूँ कभी इलायची, कभी अदरक मगर अच्छी बात ये है कि ज्यादातर लोग भूल चुके हैं कि चाय में तुलसी की पत्तियाँ अदरक और इलायची भी पड़ते हैं कुछ को ज्यादा चायपत्ती अच्छी लगती है तो कुछ को कम दूध और मेरा काम चल जाता है चाय बेकार नहीं जाती कोई न कोई पी ही लेता है |
12.रंग बिरंगी दुनिया के बेरंग सफहे!!तब मैं उसे आप पुकारता और वो मुझे आप. नया नया परिचय था. पन्ने पन्ने चढ़ता है प्यार का नशा...आँख पढ़ पायें वो स्तर अभी नहीं पहुँचा था. वो कहती मुझे कि आप पियानो पर कोई धुन सुनायेंगे. कहती तो क्या एक आदेश सा करती. जानती थी कि मैं मना नहीं कर पाऊँगा. काली सफेद पियानो की बीट- मैं महसूसता कि मैं उसे और खुद को झंकार दे रहा हूँ. डूब कर बजाता - जाने क्या किन्तु वो मुग्ध हो मुझे ताकती. |
13.
मौनी बाबा
"बाबा" बड़ा विचित्र शब्द है ये, सुनते तमाम किस्म के चहरे मष्तिस्क पटल पे आतें है. बाबाओं के कई प्रकार हमारे सभ्य समाज ने निर्धारित कियें हैं कुछ उदहारण इस प्रकार से हैं :-राहुल बाबा, रामदेव बाबा, नित्यानंद बाबा, और हम लोग अपने दादा जी को भी बाबा ही कहते थे, आजकल जिसकी मानसिकता जैसी होती है वो उस वाले बाबा को मार्केट से चुन लेता है .
हमारे खुनी रिश्ते ( ब्लड रिलेशन ) वाले बाबा का चेहरा आज के अन्ना जी से काफी मिलता था, आज हम अन्ना को देख के वशीभूत हो जाते है, लेकिन अन्ना से विचारधारा इनकी अलग थी, शायद चलने फिरने में तकलीफ के कारण उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया था, दिन में दस बार लाठी फेंक के मारते थे यदि एक मिनट भी देर हो जाए तो, वो बात अलग है हमेशा हुक हो जाती थी. फिर वही लाठी उनको दूर से दे के भागना पडता था.
हमारे खुनी रिश्ते ( ब्लड रिलेशन ) वाले बाबा का चेहरा आज के अन्ना जी से काफी मिलता था, आज हम अन्ना को देख के वशीभूत हो जाते है, लेकिन अन्ना से विचारधारा इनकी अलग थी, शायद चलने फिरने में तकलीफ के कारण उन्होंने हिंसा का रास्ता अपना लिया था, दिन में दस बार लाठी फेंक के मारते थे यदि एक मिनट भी देर हो जाए तो, वो बात अलग है हमेशा हुक हो जाती थी. फिर वही लाठी उनको दूर से दे के भागना पडता था.
14.एहसासमैंने- पहले भी तो बांटी थी तुम्हारे अकेलेपन की शाम जेठ की तपती धुप और गर्म सांसें तुम्हारे सुख के लिए .. मगर- तुम्हारी नर्म उंगलियाँ नहीं खोल पायी थी मेरे मन की कोई गाँठ एक बार भी . एक बार भी- सर्पीली सडकों पर सफ़र करते हुए तुम्हारे पाँव नहीं डगमगाए थे और मैं- पहाड़ों की तरह पिघलता रहा सारा दिन/सारी रात तुम्हारे साथ-साथ ...! रवीन्द्र प्रभात |
15.
मार्क्स कहाँ गलत है? - राजेन्द्र यादव
अंग्रेजी में एक मुहावरा है ‘प्रॉफ़ेट ऑफ द डूम’ यानी ‘क़यामत का मसीहा’।कुछ लोग क़यामत की भविष्यवाणियाँ करते हैं, परम-निष्ठा और विश्वास से
उसकी प्रतीक्षा करते हैं और जब वह ‘आने लगती है’
तो उत्कट आह्लाद से नाचने-गाने लगते हैं; ‘देखा, मैंने कहा था—
आयेगी और आ गयी!’ अब इस आने में भले ही अपना घर-बार ही क्यों न शामिल हो।
क़यामत के परिणामों से अधिक प्रसन्नता उन्हें अपनी बात के सच हो जाने पर होती है।
पूर्वी-यूरोप में कम्युनिस्ट सरकारें ‘धड़ाधड़’ गिर या उलट रही हैं,
प्रदर्शन और परिवर्तन हो रहे हैं; लोग जिंदगी को अपने ढंग से
ढालने और बनाने में लगे हैं— और हम खुश हैं कि— ‘
हम जानते थे, यही होगा। क्योंकि कम्युनिज्म असंभव है। मार्क्स ग़लत है।’
मैं गंभीरता से सोचना चाहता हूँ कि इस ‘चरम-सत्य’ की खोज
क्यों उन्हें इतना प्रसन्न करती है? मार्क्स क्यों ग़लत है?
16.खरी-खरीकुछ लोग हमारे देश को नौंचे और हम लोग मौन रहें, क्या यह पाप नहीं हैं ? राहुल गाँधी के घर पर देशभक्तों ने माँगी भीखहम युपी के भिखमंगे हैं ! राहुल गाँधी भीख दो !! |
द्वारकाधीश श्रीकृष्ण का कहना है कि कर्म करो, कर्म से विमुख मत हो ,
जीवन एक संघर्ष है , सतत युद्ध करो, कभी अपने मन के बढ़ते मोह से ,
कभी स्वजनों के मोह से, कभी देश-द्रोहियों से तो कभी धर्म (कर्तव्य) से विमु...
जीवन एक संघर्ष है , सतत युद्ध करो, कभी अपने मन के बढ़ते मोह से ,
कभी स्वजनों के मोह से, कभी देश-द्रोहियों से तो कभी धर्म (कर्तव्य) से विमु...
18.
प्रदूषण का कहर-हाइगा में
धरती से लेकर अंतरिक्ष तक कोई भी स्थान ऐसा नहीं जो प्रदूषण से त्रस्त न हो| इस प्रदूषण को देखते हैं हाइगा की नजर से-११ स्लाइड्स19.
मुकेश कुमार तिवारी कवितायन पर
तुम, यदि बचना चाहते हो और बचे रहना भी सदियों तक तो सीख लो
आदमी को काटना ड़र पैदा करों उसकी आँखों में अपने लिए कोई ऐसे ही नही जी पाता
उसके साथ कभी देखा है? भीमबेटका* की दीवारों पर भित्तियों में दर्ज ...
आदमी को काटना ड़र पैदा करों उसकी आँखों में अपने लिए कोई ऐसे ही नही जी पाता
उसके साथ कभी देखा है? भीमबेटका* की दीवारों पर भित्तियों में दर्ज ...
20.
"हमारे नेता महान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बेटी है,
बँगला है,
खेती है,
घपलों में
घपले हैं,
दिल काले हैं
घपले हैं,
दिल काले हैं
कपड़े उजले हैं,
उनके भइया हैं,
इनके साले हैं,
जाल में फँस रहे,
कबूतर भोले-भाले हैं,
गुण से विहीन हैं
अवगुण की खान हैं
जेबों में रहते
इनके भगवान हैं
इनकी दुनिया का
नया विज्ञान है
दिन में इन्सान हैं
रात को शैतान हैं
परदा डालते हैं
भाषण से घोटालों पर
तमाचे भी पड़ते हैं
कभी-कभी गालों पर
अच्छी और नई जानकारी देती लिंक्स |
जवाब देंहटाएंआशा
उपयोगी लिंकों के साथ सार्थक चर्चा करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंक्स की सुन्दर प्रस्तुति...मैरी रचना,प्रदूषण का कहर-हाइगा में,को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद एवं आभार रविकर जी आपने 'उन्मना' से मेरी माँ की रचना का इस मंच के लिये चयन किया ! सभी लिंक्स पठनीय हैं ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत कुछ समेटते हैं आप, इस परिश्रम के लिए नमन
जवाब देंहटाएंठाले-बैठे को शामिल करने के लिए आभार
सर्वथा नये रंग सजी आपकी चर्चा।
जवाब देंहटाएंगोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
जवाब देंहटाएंगोत्र देख पहले पाछे प्रेम रोग ???
#$# नये रंग सजी आपकी चर्चा।
प्रासंगिक चर्चा ...!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंbadhiya charcha.sundar links.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद…
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स संयोजित किये हैं आपने ... आभार ।
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा, आभार...
जवाब देंहटाएंkya baat hai...........
जवाब देंहटाएंbahut khoob !
लाजवाब चर्चा है दिनेश जी ...अच्छे लिंक ... मुझे शामिल करने का शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंकाफी अलग से लिंक मिले आज ..अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा... सार्थक सूत्र...
जवाब देंहटाएंसादर आभार...
बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये है………शानदार चर्चा।
जवाब देंहटाएंरविकर जी,
जवाब देंहटाएंएक अच्छी चर्चा जो अपने साथ बहुत से लिंक दिये जाती है।
कवितायन को शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी