१.
हनुमान लीला - भाग १
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम
सकलगुणनिधानं वानरणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि
अतुलित बल के धाम , सोने के पर्वत के समांन कान्तियुक्त शरीर वाले ,दैत्यरूपी वन को आग
लगा देने वाले (अधम वासनाओं का भस्म करने वाले), ज्ञानियों में सर्वप्रथम,सम्पूर्ण गुणों के भण्डार
वानरों के स्वामी ,श्री रघुनाथ जी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ.
कोशिश की है. इस प्रकार के चिंतन से हमें यह लाभ है कि हम पौराणिक या ऐतिहासिक वाद विवादों
से परे हटकर अपना ध्यान केवल 'सार तत्व' पर केंद्रित करने में समर्थ होने लगते हैं. ज्यूँ ज्यूँ उचित
साधना का अवलंबन कर सार्थक चिंतन मनन से 'सार तत्व' हमारे अंत;करण में घटित होने लगता है
तो हम अखण्ड आनंद की स्थिति की और अग्रसर होते जाते हैं.
२.कविता कलम से - नहीं बन्दूक से निकलती हैसभी कहते हैं - मैं कविता लिखता हूँ - पर क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो - कविता बन जाती है - या भाव निर्लज होकर सरेराह बिखर जाएँ - तो कविता होती है - ये तमाशा है जनाब - मनोभावों का दिखावा - इसे सच मे कविता नहीं कहते . कविता कलम से - नहीं बन्दूक से निकलती है . दिलों की आग दीये सी नहीं मशाल सी जलती है - हवा साथ दे तो फिर देख - कैसे क्रांति की पुरवाई - तूफानी जोर शोर से चलती है . |
क़ौमी एकता - लघुकथा
"अस्सलाम अलैकुम पण्डित जी! कहाँ चल दिये?"अरे मियाँ आप? सलाम! मैं ज़रा दुकान बढा रहा था। मुहर्रम है न आज!"
"तो? इतनी जल्दी क्यों? तुम तो रात-रात भर यहाँ बैठते हो। आज दिन में ही?"
"क्या करें, बड़ा खराब समय आ गया है।
आपको पता नहीं पिछली बार कितना फ़जीता हुआ था?
और फिर आज तो तारीख भी ऐसी है।"
"अरे पुरानी बातें छोड़ो पण्डित जी। आज तो आप बिल्कुल बेखौफ़ बैठो। मैं यहीं हूँ।"
"मियाँ, पिछली बार आपके मुहल्ले का ही जुलूस था जिसने आग लगाई थी।"
"अरे पुरानी बातें छोड़ो पण्डित जी। आज तो आप बिल्कुल बेखौफ़ बैठो। मैं यहीं हूँ।"
"मियाँ, पिछली बार आपके मुहल्ले का ही जुलूस था जिसने आग लगाई थी।"
३.नाश्ते के लिए अब वक्त कहाँ ?अब लोगों के पास उतना भी वक्त नहीं है कि अपने परिवार के साथ सुकून से नाश्ता भी कर सकें.एक अध्ययन के अनुसार ब्रितानी लोग किसी भी वीक डे पर लेदेके तीन मिनिट पंद्रह सेकिंड ही निकाल पातें हैं नाश्ते के लिए .सच बात तो यह है बा -मुश्किल आधे ब्रितानी ही नाश्ता कर पातें हैं .वक्त की तंगी कुछ इस तरह रहती है इनमे से भी कितने ही खड़े खड़े ही नाश्ता करतें हैं .कुछ सोते रह जाते हैं ,इनके लिए नाश्ते से बड़ी चीज़ है मुंह ढक के सोइए ,नाश्ता हो न हो सुबह की नींद पूरी हो .जबकि कुछ के लिए सुबह जल्दी काम पर पहुँचने का दवाब बना रहता है जो नाश्ते का वक्त भी ले उड़ता है . |
(जन्म-19 अगस्त,1911 निधन- नवम्बर,1996)
(प्रेम सागर सिंह)
हिंदी के महाकवि आरसी प्रसाद सिंह रूप, यौवन और प्रेम के कवि के रूप में विख्यात थे । बिहार के चार नक्षत्रों में बियोगी के साथ प्रभात और दिनकर के साथ आरसी सदैव याद किये जायेंगे । आरसी बाबू का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एरौत गाँव में 19 अगस्त 1911 में हुआ था छायावाद के तृतीय उत्थान के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह को जीवन और यौवन का कवि कहा जाता है। प्रस्तुत है, उनकी दो कविताएँ-
निर्वचन
चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा।
अब न झंझावात है वह अब न वह विद्रोह मेरा।
अब न झंझावात है वह अब न वह विद्रोह मेरा।
४. आँच-99 कविता की संरचना में सही और उचित शब्दों का बड़ा योगदान है. जैसे ‘दिन’ का विलोम शब्द ‘रात्रि’ नहीं हो सकता, ‘रात’ होता है; ‘भोर’ का ‘शाम’ नहीं, ‘सांझ’ होता है; ‘प्रातः’ का ‘सांझ’ नहीं, ‘संध्या’ होता है, वैसे ही समानार्थक शब्दों में हर शब्द का अपना महत्व है और कई बार कोई भी शब्द पिरोकर कविता नहीं रची जा सकती. पिछले दिनों कुछ कवितायें ऐसी भी पढ़ने को मिलीं जिनमें शब्दों को ‘पिरोया’ नहीं, ‘ठूँसा’ गया था और उन कवियों की कविताओं में ऐसा लगातार दिख रहा था, अतः इसे कवि का दोष कहा जाएगा, एक दुर्घटना नहीं. उदाहरण के तौर पर उस कविता के प्रयोग को बताने की चेष्टा करता हूँ - रात्रि की नीरवता में सम्पूर्ण जगत निद्रा-निमग्न था मेरी निद्रा भंग हुई एक भयानक ख्वाब से! |
“भूखे बच्चों से स्वाबलम्बी बच्चे ज़्यादा बेहतर ऑप्शन है”
आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का ।ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे
जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं ,
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं ,
जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते ,
जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर
आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।
आदरणीय पाठक वृन्द को अनामिका का सादर प्रणाम ! महादेवीजी के जीवन वृत्तांत के समाप्त होने के बाद आज मैं एक बार फिर से हाज़िर हूँ आपके सामने एक नए विषय और नई सामग्री के साथ. आप सब ने कथासरित्सागर के बारे में तो सुना होगा. वास्तव में कथासरित्सागर विश्व कथा साहित्य को भारत की अनूठी देन है. कथासरित्सागर को गुणाढय की बृहत्कथा भी कहा जाता है. यह सबसे पहले प्राकृत भाषा में लिखी गयी थी. बृहत्कथा संस्कृत साहित्य की परंपरा को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला ग्रन्थ है. गुणाढय को वाल्मीकि और व्यास के समान ही आदरणीय भी माना है. |
प्रस्तुति : ZEAL
छत्री , शिवपुरी , मध्य प्रदेश. सूफी संगीत सुनते हुए श्रोताओं की एक पंक्ति गिटार पर
अपने साथियों के साथ सूफी संगीत सुनाते हुए
श्री मोहिते २६ जून १९५४ को जन्मे श्री अशोक मोहिते जी पर माँ सरस्वती की ...
६.हाइकु मुक्तकसरस्वती सुमन का अक्तुबर -दिसम्बर अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ के रूप में प्रकाशित किसी भी पत्रिका का सबसे बड़ा विशेषांक है । इसमें भारत और देशान्त के लगभग 300 रचनाकर सम्मिलित किए गए हैं।इस अंक में 6 साहित्यकारों के हाइकु मुक्तक भी दिए गए हैं; जिनमें भावना कुँअर ,डॉ हरदीप सन्धु आस्ट्रेलिया से, रचना श्रीवास्तव , संयुक्त राज्य अमेरिका से और तीन भारत से हैं। डॉ हरदीप कौर सन्धु के मुक्तक हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं ।- प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ |
प्रस्तुति: रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" Blog News पर तीसरा खम्बा ब्लॉग पर मिलती है पत्नी से परेशान पतियों को सलाह एक नमूना आप भी देखें अगर आप भी किसी क़ानूनी समस्या से परेशान है. तब आप भी सलाह (यहाँ पर क्लिक करके) ले सकते है ऐसा कहना है. वकील श्री दिनेश राय द... |
सुख-दुख एक हीं सिक्के के दो पहलू हैं।
मैं घोर भाग्यवादी हूं। मेरा मानना है इनसान के जो भाग्य में होगा वह मिलेगा हीं,चाहे वह हाथ-पर हाथ धरा क्यों न रहे। कहा भी गया है कि जब ईष्वर देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।
मैं छप्पर फटने का इंतजार कर रहा हूं। लेकिन मेरे इंतजार को ,मेरी पत्नी मेरा आलसीपन मानती है।
आखिर क्यों न माने, तुलसी बाबा पहले हीं लिख गये हैं,
जाकी रही भावना जैसी, हरी मूरत देखी वह तैसी।
मैं भाग्यवादी होने के साथ गहरे अर्थों में अध्यात्मिक भी हूं।
मै ज्ञानीजनों के इस बात से सहमत हैं कि सुख- दुख मिश्रित है,
अर्थात सुख के बाद दुख, दुख के बाद सुख। पर मेरी पत्नी मुझे ज्ञानी नहीं मानती।
पड़ोसियों की नजर में भी मैं गंवार हूं। मानेगी भी कैसे, कहा भी गया है, घर की मुर्गी दाल बराबर।
जब लोग तुलसीदास की तरह मुझे घर- घर पूजने लगेंगे, तब सबको मेरी महानता मालूम होगी।
तब न पत्नी मुझे भाव देगी। तब न पड़ोसी मेरे यहां दरबार लगाएंगे।
फिलहाल पत्नी की नजर में मैं आरातलबी हूं, आलसी हूं, निकम्मा हूं,
तभी तो मैं ज्यादा कमाना नहीं चाहता ।
प्रस्तुति: माधवी शर्मा गुलेरी उसने कहा था... पर *(दिल्ली का एक मोहल्ला, लोग जहां दिन-रात कारोबार में उलझे रहते, 9 को 99 बनाने की धुन में खोए रहते, वहां कोई था, जो अलग सपने बुन रहा था। सोते-जागते एक ही ख़्वाब उसे दिखाई देता, वो था फ़िल्म बनाना। सिनेमा ... |
९.जानलेवा ना बन जाए मोटापामोटापा आ जाए तो कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इस मोटापे के कारण डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट फेलियर, अस्थमा जैसी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है। वर्ल्ड ओबेसिटी डे के अवसर पर सुमन बाजपेयी बता रही हैं मोटापे से बचाव के उपायः रितिका जिसकी हाइट 5 फुट 4 इंच और वजन 57 किलो था, यह सोच कर खुश रहती थी कि उसकी फिगर परफेक्ट है। उसका बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) 21.45 किग्रा/एम2 था। रितिका को लगा कि वह पूर्णतया हेल्दी है और किसी किस्म के खतरे से परे भी। पर उसे तब धक्का लगा, जब उसके डॉक्टर ने बताया कि वह मोटी है। उसकी कमर फैली हुई थी और पेट के हिस्से में फैट जमा था। यह परेशान करने वाली बात थी, क्योंकि पेट के पास जमा फैट कई बीमारियां होने का कारण बन सकता है। |
तुम्हारे बिना .....कविता ......डा श्याम गुप्त
हर नारी व्यक्तित्व महत्वपूर्ण है और प्रभावित करती है,
जब तक घर की नारी प्रभावित नहीं करती क्या लाभ....
charity begins from home........
प्रिये !
सूरज की महत्ता, भादों में-
धूप का अकाल पड़ने पर
सामने आती है |
इसी तरह-
तुम्हारे बिना, आज-
मन का कोना कोना गीला है ;
जैसे बरसात में,
सूरज के बिना,
कपडे गीले रह जाते हैं |
प्रस्तुति शाहजाहां खान “लुत्फ़ी कैमूरी” तमन्ना... पर *कौन कहता है कि होगा तेरा विनाश यहाँ, तू तो अविनाश है,कण-कण में तू रहेगा यहाँ. तेरी आहट से चला करती है खुशियों की लहर, फूल खिल पड़ते हैं,रक्खे है तू क़दम को जहाँ. सादगी तेरी बिखेरे है हवा में खुशबू, तेरे ... |
११. देखि उनकर असल रंग , भक हमार टूट गेल | पोखरि में सब नंग-धडंग भक हमार टूट गेल || प्रस्तुति-ओम प्रकाश अप्पन गाम अप्पन देस पर |
१२."आभासी संसार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")देखो कितना भिन्न है, आभासी संसार। शब्दों से लड़ते रहो, लेकर क़लम-कटार।। ज़ालजगत पर हो रही, चिट्ठों की भरमार। गीत, कहानी-हास्य की, महिमा अपरम्पार।। |
*मेरी सौवीं पोस्ट.......* रुला के तुमको खुद रो दिया मै, गुनाह ये कैसा किया मै। बेवजह अश्रु के मोती, तेरे नैनों में भर दिया मै। दर्द देकर दर्द की ही, इक नदी... |
१४. ईमान क्यों है गड़बड़ाया -कविता ईमान क्यों है गड़बड़ाया तेरी सूरत देखकर किताब में रक्खे फूल भी ताजगी दे गयी महककर दिल-ए-दास्ताँ जो कभी बंद थी किताब में शोखियाँ और बांकपन सब छुप गया थ... |
१५.वरिष्ठ कवि कुमार रवींद्र जी से अवनीश सिंह चौहान की बातचीतहिन्दी कविता में जब भी नवगीत के विकास क्रम की बात होती है, एक महत्वपूर्ण नाम अपने आप भावकों के मन में उभरने लगता है, वह है- श्री कुमार रवींद्र। १० जून १९४०, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मना श्रद्धेय कुमार रवींद्र जी ने एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य) की उपाधि प्राप्त करने के बाद दयानंद कालेज, हिसार (हरियाणा) के स्नातकोत्तर अँग्रेज़ी विभाग में शिक्षण कार्य किया और वहीं से अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने हिन्दी में तो अनूठा कवि-कर्म किया ही, अंग्रेज़ी विषय के अध्येता होने के कारण अंग्रेज़ी भाषा में भी कविताएँ लिखीं। आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं- 'आहत है वन', 'चेहरों के अंतरीप', 'पंख बिखरे रेत पर', 'सुनो तथागत', 'हमने संधियाँ कीं' |
१६. मैंने चाहा भी तो यही था ... मुझे याद हैं वो दिन जब सिर्फ दो दिनों की मुझसे जुदाई तुम्हे लगती थी सदियों की जुदाई और बेचैन तुम पूंछते फिरते थे मेरे इस्ट-मित्रों , नातेदारों रिश्तेदारों से मेरी खैरियत की खबर |
१७.कोशिश कई बार की आपको बुलाने की |नाराजी है क्या, आप जो आते नहीं ||श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता-रविकरउत्साह बढाने, एक बार तो आयें || |
१८.
सूरत के पालनपुर जकात नाका इलाके के शिखालेख कॉम्पलेक्स में
चौथी मंज़िल के अपार्टमेंट में रहने वाली 32 साल की वंदना ने
पहले अपने तीन मासूमों ( मुस्कान 7, अनु्ष्का 4 और शिवांग ढाई साल) की
तकियों से मुंह दबा कर जान ली और फिर खुद भी दुपट्टे से फंदा डालकर फांसी लगा ली...
वंदना का पति जय प्रकाश शर्मा एक निजी शिपिंग कंपनी में टग मास्टर के पद पर तैनात है
और करीब ७५ हज़ार रुपये महीना कमाता है...
मूल रूप से बिहार से नाता रखने वाला जयशंकर रत्नागिरी में तैनात
और करीब डेढ महीने से घर नहीं आया था...
इस परिवार का आस-पास में बिल्कुल आना-जाना नहीं था...
इलाके में खारे पानी की सप्लाई होने की वजह से
वॉचमैन रोज़ इस घर में मिनरल वाटर की बड़ी बोतल देने जाता था..
.उसी ने बुधवार सुबह घर की बेल बजाई...काफी देर तक दरवाज़ा नही खुला...
घर के अंदर से बदबू आने की वजह से वॉचमैन का माथ ठनका तो
उसने पड़ोसियों को ये जानकारी दी...
पुलिस को बुला कर दरवाज़ा खोल कर देखा गया तो
अंदर का मंज़र देखकर हर कोई सन्न रह गया...
पुलिस को मौके से वंदना का एक सुसाइड नोट भी मिला है,
जिसमें ज़िंदगी से तंग आकर जान देने की बात कही गई है...
वंदना ने ये भी लिखा है कि इस घटना के लिए कोई और नहीं, वो खुद ही ज़िम्मेदार है....
पुलिस ने बड़ी मुश्किल से वंदना के पति का फोन नंबर हासिल कर उसे घटना के बारे में बताया...
पति और वंदना के घरवालों के पहुंचने के बाद ही पुलिस को पता चलेगा कि उसने ये कदम उठाया...
१९.
आज का सद़विचार '' प्रेम -शक्ति - साहस ''
दूसरा अत्यधिक प्रेम करे तो आपको शक्ति मिलती है,
आप दूसरे को अत्यधिक प्रेम करें तो आपको साहस मिलता है ... !!!
- डब्ल्यू सोमरेट मोघम
लोगों के विवेक की आंखे फूट गई हैं वे संत-असंत नहीं परख पाते,
जिनके साथ में दस - बीस साधु वेषधारी या मनुष्य हो गये,
उन्हीं का नाम महन्त हो गया .... ।
- कबीरदास जी
उपयोगी लिंकों के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवाकई नाश्ते के लिए समय नहीं मिलता है!
बहुत अच्छी लिंक्स |मोटापे का आर्टिकल बहुत अच्छा है |सार्थक चर्चा के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya pathaniy charcha ...achchhe link mile...
जवाब देंहटाएंNice post .
जवाब देंहटाएंRam in muslim poetry, second beam चराग़ ए हिदायत और इमाम ए हिन्द हैं राम - Anwer Jamal
राम
लबरेज़ है शराबे हक़ीक़त से जामे हिन्द
सब फ़लसफ़ी हैं खि़त्ता ए मग़रिब के राम ए हिन्द
यह हिन्दियों के फ़िक्र ए फ़लक रस का है असर
रिफ़अ़त में आसमां से भी ऊंचा है बामे हिन्द
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम ए हिन्द
है राम के वुजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द
ऐजाज़ उस चराग़ ए हिदायत का है यही
रौशनतर अज़ सहर है ज़माने में शाम ए हिन्द
तलवार का धनी था शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश ए मुहब्बत में फ़र्द था
-बांगे दिरा मय शरह उर्दू से हिन्दी, पृष्ठ 467, एतक़ाद पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली 2
शब्दार्थ- लबरेज़-लबालब भरा हुआ, शराबे हक़ीक़त-तत्वज्ञान, ईश्वरीय चेतना, आध्यात्मिक ज्ञान, खि़त्ता ए मग़रिब-पश्चिमी देश, राम ए हिन्द-हिन्दुस्तान के अधीन (‘राम‘ यहां फ़ारसी शब्द के तौर पर आया है जिसका अर्थ है आधिपत्य), फ़िक्र ए फ़लक रस-आसमान तक पहुंच रखने वाला चिंतन, रिफ़अत-ऊंचाई, बामे हिन्द-हिन्दुस्तान का मक़ाम, मलक सरिश्त-फ़रिश्तों जैसा निष्पाप, अहले नज़र-तत्वदृष्टि प्राप्त ज्ञानी, इमाम ए हिन्द-हिन्दुस्तान का रूहानी पेशवा, ऐजाज़-चमत्कार, चराग़ ए हिदायत-धर्म मार्ग दिखाने वाला दीपक, रौशनतर अज़ सहर-सुबह से भी ज़्यादा रौशन, शुजाअत-वीरता, पाकीज़गी-पवित्रता, फ़र्द-यकता, अपनी मिसाल आप
गागर में सागर
अल्लामा इक़बाल की यह नज़्म ‘गागर में सागर‘ का एक बेहतरीन नमूना है। इस एक नज़्म की व्याख्या के लिए एक पूरी किताब चाहिए, यह एक हक़ीक़त है। मस्लन इसमें ‘शराबे हक़ीक़त‘ से हिन्दुस्तानी दिलो-दिमाग़ को भरा हुआ बताया गया है। इसे नज़्म पढने वाला पढ़ेगा और गुज़र जाएगा लेकिन इस एक वाक्य का सही अर्थ वह तब तक नहीं समझ सकता जब तक कि वह यह न जान ले कि ‘शराबे हक़ीक़त‘ होती क्या चीज़ है ?
विश्व गुरू है भारत
अल्लामा इक़बाल ने कहा है कि पश्चिमी दार्शनिक सब के सब भारत के अधीन हैं। इस वाक्य की गहराई जानने के लिए आदमी की नज़र पश्चिमी दर्शन पर होना ज़रूरी है और साथ ही उसे भारतीय दर्शन की भी गहरी जानकारी होना ज़रूरी है। तब ही वह अल्लामा के कथन की सच्चाई को जान पाएगा। उनका यह वाक्य केवल भारत का महिमागान नहीं है बल्कि एक तथ्य जिसे वे बयान कर रहे हैं। प्रोफ़ेसर आरनॉल्ड ने कहा है कि अल्लामा इक़बाल पूर्व और पश्चिम के सभी दार्शनिक मतों पर गहरी नज़र रखते थे। बांगे दिरा की शरह में प्रोफ़ेसर यूसुफ़ सलीम चिश्ती साहब ने लिखा है कि यूरोप के दार्शनिकों ने हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े के विभिन्न मतों से जिन्हें इस्तलाह में ‘दर्शन‘ कहते हैं, बहुत कुछ इस्तफ़ादह किया है। (पृष्ठ 468)
राम शब्द की व्यापकता
‘राम ए हिन्द‘ वाक्य में उन्होंने एक अजीब लुत्फ़ पैदा कर दिया है क्योंकि यहां उन्होंने ‘राम‘ शब्द को एक फ़ारसी शब्द के तौर पर इस्तेमाल किया है। फ़ारसी में ‘राम‘ कहते हैं किसी को अपने अधीन करने को। इस तरह वे ‘राम‘ शब्द की व्यापकता को भी बता रहे हैं और यह भी दिखा रहे हैं कि ‘राम‘ केवल हिन्दी-संस्कृत भाषा और हिन्दुस्तान की भौगोलिक सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है।
Please see entire article :
http://vedquran.blogspot.com/2010/10/ram-in-muslim-poetry-second-beam-anwer.html
आभार स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तृत और बहुत मेहनत से बनायी पोस्ट .. काफी सुन्दर लिंक मिले... आभार रविकर जी का..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा लाए रविकरजी .पढ़कर हम हर्षाए रविकरजी .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंbahut hee umda tareeke se sajaya hai aapne..aaptrticle ke baare me paryapt jaankari mil jaati hai...sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंapki mehnat ko pranaam. bahut acchhe links lagaye.
जवाब देंहटाएंrajbhasha se meri post lene ke liye aabhar.
सुन्दर संकलन, आभार!
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