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Tuesday, February 28, 2012

सात वचनों का क्‍या आधार रहा ? - चर्चामंच-803

नमस्‍कार। 
पिछले दो तीन दिनों से काम की अधिकता के चलते ठीक से नींद  नहीं ले पा रहा हूं। रोज रात को ढाई तीन बज रहे हैं काम करते और सुबह छह सात बजे तक उठकर फिर काम में जुटना पड रहा है। लग रहा  है कि यह क्रम कम  से कम हफ्ते भर और चलेगा। काम के बीच कुछ समय निकालकर चर्चा मंच सजाने बैठा तो नजर  पडी उडनतश्‍तरी  पर। सुप्रीम कोर्ट का कहना है, नींद मौलिक अधिकार है पर क्‍या करें........  समीर लाल जी अपने ही अंदाज में कहते हैं, जागा हूँ फक्त चैन से सोने के लिए  
 अब अपनी पसंद के कुछ पोस्‍ट सीधे आप तक........ 
रहे अक्षय मन .....! -अनुपमा त्रिपाठी  
हे नाथ ..!हे द्वारकाधीश ...
करो कृपा ..इतना ही दो आशीष ..!!
कई बार व्यथित हो जाता मन ..
नहीं सोच कहीं कुछ पता मन ..
दुःख में ही क्यूँ घबराता मन ...?
है सांस नहीं पल पता मन ...!!
 


कुछ बेतुकी बातें ...................... - अमित चंद्रा  
अक्षरों से मिलकर
शब्द बनते हैं
शब्दों से मिलकर वाक्य।
वाक्यों से मिलकर
अहसास पुरे होते हैं और
अहसासों से मिलकर जज्बात।
जज्बातों से मिलकर
ख़्याल बनता है
और ख़्यालों से मिलकर
बनती है रचना।


सब अपने लिए.... - परमजीत सिंह बाली  
आंख देखती है 
दिल को कोई अहसास नहीं होता 
इसी‍ लिए अब 
कोई प्‍यार का घर आबाद नहीं होता। 
 



अशेष लक्ष्यभेद - डॉ नूतन गैरोला 
प्रत्यंचा जब खींची थी तुमने
भेदने को लक्ष्य
खिंच गयी थी डोर दीर्घकाल तक कुछ ज्यादा ही कस

  






सर्द हवा में जियरा कांपे ..इ फ़ागुन में जोगी कैसे गाएगा जोगीरा रे - अजय कुमार झा  
छुट्टी का दिन , सुहाना मौसम , सो आन पडी इक दुविधा ,
कंप्यूटर तोडें खट खटाखट , या धूप में पढें कहानी कविता ..

अलसाई , अल्हड और चमकीली सी उग आई है भोर ,
फ़ागुन मास होवे मदमस्त ,किंतु इहां तो चले है चिल्ड हवा घनघोर 


मुझे यकीन है - विद्या  
मुझे यकीन है हाथों की लकीरों पर 
बरगद तले बैठे बूढे फकीरों पर....
-जो कहते हैं कि सब ठीक होगा एक दिन 



 


चुनाव पर्व - अना
ये जो आंधी है चली ,सड़क -सड़क गली गली
चुनाव पर्व है जो ये ,चेहरे  लगे भली भली 

कर्म उनके जांच लो, मंसूबे क्या है जान लो 

सोचे हित जो जन की उसको वोट देना ठान लो




माईग्रेन, ट्राईका और एक निहायत ही दो कौडी की बात - बाबुषा 
मैं कहती हूं किसी इश्‍तेहार का क्‍या अर्थ बाकी है 
कि जब हर कोई चेसबोर्ड पर ही रेंग रहा है 
आडी टेढी या ढाई घर चालें तो वक्‍त तय कर चुका है 
काले सफेद खाने मौसम के हिसाब से 
आपस में जगह बदलते हैं 

मेरी पसंद का मौसम.... - रश्मि  
मुझे तो सारे मौसम पसंद आते हैं
क्‍योंकि‍
हर मौसम का अपना अहसास
अपना अंदाज
और अपनी खासि‍यत होती है
जैसे हर इंसान की अपनी
रवायत होती है  





माफ़ नहीं करना मुझे.... संध्या शर्मा  
आई थी तू
मेरे आँचल में
अभागिन मैं
तुझे देख भी न सकी
आज भी गूंजती है
तेरी मासूम सी आवाज़
मेरे कानो में
वह माँ- माँ की पुकार
बस सुना है तुझे
कुछ भी न कर सकी
 

 ऑस जब बन बूँद बहती,पात का कम्पन.......- विक्रम
ऑस जब  बन  बूँद  बहती,पात का  कम्पन ह्रदय  में   छा  रहा है
नीर का देखा रुदन किसने यहां पे,पीर वो भी संग ले के जा रहा
है
लोग जो हैं अब तलक मुझसे मिले ,शब्द से रिश्तो में अंतर आ रहा है

अर्थ अपनी जिन्दगी  का ढूँढ़ने  में, व्यर्थ ही जीवन यहाँ  पे  जा रहा है

फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां - नीरज गोस्‍वामी  
मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में
 
 
 
हार किसे कहते हैं ? 
 
गिरने को ? -
 
परीक्षा में कम अंक आने को ? -
 
शेयर गिर जाने को ?
 
अधकचरे प्रेम की बाजी हारने को ?
 
 
 
 
साथ जो मिलता उन्हें - संध्‍या आर्य  
चलते रहे बहुत मगर
मंजिल का साथ ना मिला
सुखनसाज़  बहुत बजते रहे

पर करारे-सुकून ना मिला
तख्तों ताज़ पर बैठे रहे वो

पर वादों पर फूलों सा चमन ना मिला




सात वचनों का क्‍या आधार रहा ? - कनुप्रिया 
 जबसे तुमने मुंह मोडा है 
सूना सा हर त्‍यौहार रहा 
जब प्रेम की कसमें टूट गईं तो 
सात वचनों का क्‍या आधार रहा ? 


"मुझको दर्पण दिखलाया क्यों?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") 
मेरे वैरागी उपवन में,
सुन्दर सा सुमन सजाया क्यों?
सूने-सूने से मधुबन में,
गुल को इतना महकाया क्यों?
मधुमास बन गया था पतझड़,
संसार बन गया था बीहड़,
दण्डक-वन से, इस जीवन में,
शीतल सा पवन बहाया क्यों?
 
काश मैं पंछी होती 
मेरी हर ख्‍वाहिश पूरी होती 
उन्‍मुक्‍त गगन को छूने की 
चाह मेरी पूरी होती 
काश मैं पंछी होती 
 
 
 
 
लिखा तो था हम दोनों ने
अपना नाम

साहिल की रेत पर,

बहा कर ले गयी

वक़्त की लहरें.

 

 
देखे विहग व्योम में -आशा
देखे विहग व्योम में उड़ते
लहराती रेखा से
थे अनुशासित इतने
ज़रा न इधर उधर होते
प्रथम दिवस का  दृश्य
 
 
ये दुनिया ही ऐसी है
संवेदनशील हों अगर आप
तो कभी
सुखी नहीं रह सकते...
एक दर्द रिसता रहता है भीतर
एक ज्वाला में जलता रहता है मन
 
 
नगर में मेला लगा हुआ था,
डगर पे दीये जले हुए थे,

कामिनी मचल रही थी,

हम स्वयं में सिमट रहे थे

 
 
... अब कुछ और पोस्‍ट। 
 
सबकी प्‍यारी रूनझुन बता रही है भाई ने खाना खाया  
 विभा रानी श्रीवास्‍तव जी को हक है पगलाने का 
 अवंती सिंह जी तस्‍वीरों के जरिए बता रही हैं पैन टच थेरेपी 
 किरण श्रीवास्‍तव जी को है इन पर आस्‍था 
 शिखा जी के सवाल का जवाब दीजिए आखिर औरत होने में बुरा क्या है????
 शामिल होईए खुशदीप जी के इस चिंतन में कि सेक्सी कहने पर हंगामा क्यूं है बरपता ... 
 
और बोलते शब्‍द में सीखिए बोलना  और लिखना कुछ शब्‍द
 
अब दीजिए अतुल श्रीवास्‍तव को इजाजत। मुलाकात होगी अगले मंगलवार... पर चर्चा जारी रहेगी पूरे सातों दिन।

47 comments:

  1. तमाम व्यस्तताओं के बीच चर्चामंच सजाने के आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन!
    सुन्दर चर्चा!
    आभार!

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  2. आज की चित्रमयी चर्चा बहुत बढ़िया रही!
    अतुल जी आपका आभार!

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  3. अच्छी लिंक्स के साथ अच्छी चर्चा की है |सचित्र चर्चा पढ़ने के लिए आकर्षित करती है |
    आपकी महनत सराहनीय है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
    आशा

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  4. अतुल भाई, सचमुच आपने बड़े श्रम से चर्चा सजाई। इसीलिए तो बनती है बधाई।
    ------
    ..की-बोर्ड वाली औरतें।

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  5. links....bookmark...........kuchh padhe ..par baki hai padna ...badhiya charcha.

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  6. अतुलजी , अच्छी प्रस्तुति . बधाई स्वीकार करे.
    मेरी कविता को चर्चा मंच मै रखने के लिए आभार .

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  7. बहूत हि सुंदर एवं बेहतरीन लिंक्स है
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !

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  8. रोचक लिंक्स ...
    पूरे पढ़ पायें तो पाठकों के लिए पूर्ण खुराक है !

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  9. आकर्षक और प्रभावी प्रस्तुति ||

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  10. सारे के सारे स्तरीय सूत्र..

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  11. सुन्दर लिंक्स के साथ आकर्षक चर्चा... मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

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  12. अतुल जी ... बहुत ही अच्छी चर्चा और अच्छे लिंक्स... खुशकिस्मती मेरी कि इस क्रम में मैं भी हूँ

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  13. बहुत बहुत शुक्रिया अतुल जी ....बेहद खुबसूरत और रोचक लिंक्स के बीच मुझे भी स्थान मिला इसके लिये आभारी हूँ !!

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  14. बहुत ही उम्दा रही आज की चर्चा ,आज काफी सारे ब्लॉग पर जाना हुआ आप की बदोलत ,आप सब अपना कीमती वक्त देकर चर्चा को सजाते सवारते है उस के लिए हार्दिक धन्यवाद

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  15. sabhi links bahut achchhe hain .badhai .

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  16. बहुत ही बेहतरीन चर्चा... रोचक लिंक्स से सजी हुई उम्दा प्रस्तुति..... इस चर्चा में रुनझुन को भी शामिल करने का बहुत-बहुत शुक्रिया !!!

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  17. पठनीय लिंक संयोजन्।

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  18. main jhoot bolna nahi chahti bol hi nahi sakti mujhe sacchi me bhot khushi hoti hai apni kisi rachna ko charcha manch par dekhkar.....aj ki charcha bhi badi pyari hai...ek ek kar sab padhne ki koshish kar rahi hu kuch padh li hai kuch baki hai

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  19. abhar is umda charcha me mujhe sthan diya ...Atul ji ...

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  20. अतुल जी,..
    चित्रमई सुंदर प्रस्तुती के लिए बधाई...आभार

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  21. बहुत सुंदर लिंक्स...शानदार चर्चा...

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  22. wah..bahut sundar prastuti..meri rachna ko shamil karne ke liye bahut aabhar :)

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  23. sundar links, mazedaar charchaa.
    Atul ji , badhai.

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  24. अच्छा सुव्यवस्थित संकलन..सुन्दर चर्चा. आभार.

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  25. यहाँ वह समस्त रचनाये संगिठत है, जो हम सभी पढना चाहते हैं!
    बहुत सुन्दर मंच है...बहुत सुन्दर संकलन...
    धन्यवाद !

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  26. बहुत ही बेहतरीन सजाया आपने । इतने सारे खूबसूरत पोस्ट झलकियों ने पन्ने को संग्रहणीय बना दिया है । मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार आपका

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  27. धन्यवाद अतुल जी,मेरी रचना को चर्चा मंच में सामिल करनें के लिये. सुन्दर संकलन, बधाई .

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  28. बहुत खूबसूरत सजाया है मंच। वाकई मेहनत का काम है....कई ब्‍लाग से चर्चा के लि‍ए चयन करना। इसलि‍ए हम आपके आभारी हैं कि‍ हमें स्‍थान दि‍या आपने।

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  29. व्‍यस्‍तता के बावजूद आप की चर्चा जरा भी अस्‍त व्‍यस्‍त नहीं लगी'''''बेहतरीन लिंक्‍स'''''शुक्रिया

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