टिप्पणी; बुधवार की शाम से ही 'जबलपुर/छिंदवाड़ा' प्रवास पर हूँ -
छलछंदी छितिपाल, छकाते छोरी-छोरा-
छोरा होरा भूनता, खूब बजावे गाल ।
हाथी के आगे नहीं, गले हाथ की दाल ।
गले हाथ की दाल, गले तक हाथी डूबा ।
कमल-नाल लिपटाय, बना वो आज अजूबा ।
चले साइकिल छीप, हुलकता यू पी मोरा ।
छलछंदी छितिपाल, छकाते छोरी-छोरा ।।
-----रविकर
"सबके मन को भाई रेल"
![]() धक्का-मुक्की रेलम-पेल। आयी रेल-आयी रेल।।... |
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(प्रवीण पाण्डेय) सागर से साक्षात्कार उसकी लहरों के माध्यम से ही होता है। किनारे पर खड़े हो विस्तृत जलसिन्धु में लुप्त हो जाती आपकी दृष्टि, कुछ कुछ कल्पनालोक में विचरने जैसा भाव उत्पन्न करती है, पर इस प्रक्रिया में आप सागर...
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बढिया चर्चा।
ReplyDeleteरूपचन्द्र जी, अपनी चर्चा में जगह दे कर प्रतिष्ठा देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
अच्छी चर्चा...
ReplyDeleteविस्तृत लिंक्स....
मेरी रचना "इश्क" को स्थान देने के लिया आपका बहुत आभार सर.
शुक्रिया.
आपका यह प्रयास सराहनीय है ...आभार ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे लिनक्स...'कलमदान ' को स्थान देने के लिए धन्यवाद..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
अच्छे लिंक्स के साथ सुंदर प्रस्तुति|
ReplyDeleteहिन्दी हाइगा को शामिल करने के लिए आभार|
Thanks Shastri ji.
ReplyDelete'हमारी वाणी' नामक एग्रीगेटर अब निष्पक्ष नहीं रहा। मेरी पोस्टों को हटा देता है! पोस्ट लगाने के थोड़ी देर बाद उसे वहाँ से हटा दिया जाता है। कसूर मेरा है अथवा उनके मन में डर पैदा हो गया है ?----जो भी हो , हमने इन्हें माफ़ किया, क्योंकि जो डर गया वो खुद-बखुद ही मर गया।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर मुझे शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteसादर
badiya charcha prastuti..
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा। उपयोगी लिंक।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा
ReplyDeleteवार्ता बहुत अच्छी रही |कई अच्छी लिंक्स |
ReplyDeleteआशा
Badhiya charcha umda links .:-)
ReplyDeletecharcha mein meri rachna ko shaamil karne ke liye aabhar.
ReplyDeleteधन्यवाद!
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