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बुधवार, फ़रवरी 08, 2012

"अक्षरों में हलन्त् देखे हैं" (चर्चामंच : ७८३)

हमने सोचा भी नहीं था कि
कमल सिंह जी को
आवश्यक कार्य पड़ जाएगा
और हमें बुधवार की भी
चर्चा फटाफट लगानी पड़ जाएगी।
लेकिन चर्चा मंच बनाया है तो
खुशी-खुशी चलाना भी पड़ेगा।
श्रम करने से नहीं डरेंगे।
चर्चा में कुछ लिंक धरेंगे।।
मुस्कुराती आँखों से कोई ख्वाब छीन लेता है !
कसमसाती रातों से कोई नींद भी चुन लेता है !!
पीछे नहीं देखते निर्वासन महमूद दरवेश
पीछे नहीं देखते निर्वासन,
निर्वासन की एक जगह छोड़ते हुए -
क्योंकि आगे आने को हैं और निर्वासन, वे परिचित हो चुके हैं
* *पा लिया है जबसे तुम्हे,*
* लगता ये जहान मेरा है ।* * *
*पलकों तले नजरों में,*
*छिपाया तेरा चेहरा है ..........
कचेहरी परिसर में आए हुए अबरार अहमद ने कहा कि
"सुभाष चन्द्र कुशवाहा ए.आर.टी.ओ काहे का साहित्यकार है
अपने भ्रष्टाचार का छिपावे के लिये बहुरुपिया साहित्यकार बनता फिरता है...
शनिवार की अलसाई सुबह.
सोचा था आज सुबह उठकर कुछ लिखूँगा.
ऐसा लिखूँगा, वैसा लिखूँगा.
जाने क्या क्या विचार आते रहे थे
रात सोने से पूर्व.....
किसी ख़ुशबू की तरह आ के बिखर जाती है /
इक उदासी मेरे आँगन में बिखर जाती है /
चंद बेबूझ तमन्नाओं की होती है निशस्त / ...
*मु*झे लगता है कि
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी बुरे फंस गए,
बेचारे अभी तो राजनीति की एबीसीडी सीख रहे हैं,....
अनीता कुमार संघर्ष के अलग अलग स्वरूपों को हम देख रहे हें
औरों की आँखों और अनुभवों से ,
कभी तो लगाने लगता है कि
कहीं ये हमारी कहानी ही तो नहीं है क्योंकि...
*तस्वीर में मैं हूं और मेरे बचपन का साथी मेरा बैट....*
*आ**ज भी उस मकान में रखा मिला, *
*जहां बचपन का बड़ा हिस्सा गुज़रा. * .....
पंखुरी तुम्हारा हंसना ऐं ऐं ऐं...
तुम्हारा रोना- उं उं..हउं....
फिर सो जाना
फिर दोनों हाथों से मुझे छू लेना
तुम्हारे स्पर्श में
नरम गरमी का अहसास हर बार...
जिसने देखे नहीं, सूखे चूल्हे गरीबों के !
न जाने क्यूँ - वो खुद को, बदकिस्मत कहता है !!
जिसने देखे नहीं, अध-नंगे तन गरीबों के !......
कभी कभी पंख लगा के उड़ता
समय आभास नहीं होने देता
किसी विशेष दिन का
खास कर जब दिन ऐसे बीत रहे हों
की इससे अच्छे दिन हो ही नहीं सकते
ऐसे में अचानक ही ....
दलितों के घर भोजन करने में राउल का कोई बड़प्पन नहीं है।
बड़प्पन तो उनका है जो इसे इतना आतिथ्य सत्कार देते हैं।
राउल महाराज में यदि इतना बड़प्पन होता तो .....
*हमने कितने बसन्त देखें हैं*
*खिलते गुंचों के अन्त देखे हैं***
*जो तरसते हैं शब्द बनने को***
*अक्षरों में हलन्त देखे हैं**........
इस गुजरते हुए वक्त को देख
और अपने कीमती जीवन को जाया होते हुए देख !
कोई निम्नतम-सी कसौटी को ही तू चुन,
और इस कसौटी पर खुद को ईमानदारी से परख !....
हमारे देश में आम तौर पर हर गाँव की सरहद पर
किसी मौन तपस्वी की तरह बरगद का
एक उम्र दराज़ पेड़ ज़रूर मिलता है.
वह अपनी घनी छाया से राहगीरों को सुख-शान्ति...
चौराहे पर जरुरी नहीं चार रास्ते ही हों
और जो रास्ते दिख रहे हैं
वे रास्ते ही हों ये भी
जरुरी नहीं रास्ता वो नहीं
जो दिखता है रास्ता वो है ......
घोर तमस में यामिनी के,
मौन क्यों रह गया अकेला,
लोचनों से पिघल
स्वप्न क्यों अश्रु बन बहे जा रहे हैं?....
मध्ययुगीन साधकों में संत रैदास का विशिष्ट स्थान है।
निम्नवर्ग में समुत्पन्न होकर भी उत्तम जीवन शैली,
उत्कृष्ट साधना-पद्धति और उल्लेखनीय आचरण के कारण वे...
नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तप:|
नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं स...
भीड़ में होते हैं अनगिनत पाँव
पर नहीं होता है भीड़ का अपना पाँव.
भीड़ देखती है अनगिन आँखों से
पर नहीं होती हैं भीड़ की अपनी आँखे...
जीवन शैली रोग कैंसर से बचा जा सकता है .
कैंसर एक रोग समूह है
जिसकी नव्ज़ हमारे खान- पान, रहनी- सहनी ,
कुलमिलाकर आधुनिक भ्रष्ट जीवन शैली से जुडी है ...
कहा जाता है इंसान का जीवन तो अनमोल है
जिसका कोई मोल नहीं होता !
किन्तु आज किसी की भी जान लेना
कुछ लोगों के लिए मानो जैसे कोई खेल हो !
हम यह तो जानते ही हैं कि बदलते मौसम में अपना ख्याल रखना चाहिए,
फिर भी कई बार हम लापरवाही कर बैठते हैं और बीमार पड़ जाते हैं।
अब तो सर्दियों के जाने का समय...
मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार था
तुमने उसे व्यापार समझा
मैंने तुम्हारी प्रशंसा की तुमने उपहास समझा
सोचा था-
खुशियों को साझा करने से अपनेपन का एहसास बढ जाएगा...
ZEAL पर टिप्पणी राउल बड़ा ड्रामेबाज है या राखी सावंत ?
रोटी खाकर यह मुआ, खटिया पर पड़ जाय |
ज्यों ईंदुर रोटी कुतर, बिल में जाय छुपाए | ...
आप कल्पना कीजिये कि वह वक्त कैंसा रहा होगा
जब कोई अंग्रेज किसी गरीब और मजबूर भारतीय के घर के
किसी सदस्य को नीलामी में खरीदकर,
गुलाम बनाकर अपने किसी औपनिवेश...
कभी जब ह्रदय आलोक तज ...
घिर घिर घिरता मन तिमिर से और बहते रहते अश्रु जल ....
. किन्तु ..सांझ ढले ...तम से घिरा ...
टप-टप गिरते आंसुओं का ये पल ... .
सुना है आज गुलाब दिवस है
क्या गुलाब दिवस होने से सब गुलाबी हो जाता है
क्या सच मे मोहब्बत के रंग पर फिर सुरूर चढने लगता है
किसी को गुलाब कहना बेहद आसान है...
है मृत्यु कितनी दुखदाई
अहसास उसका इससे भी गहरा
उर में छिपे ग़मों को बाहर आने नहीं देता |
पहचान हुई जब से साथ नहीं छोड़ा ...
*जीवन गाड़ी /*
*हाँकता जाता इसे /*
*ऊपर वाला |
ये सच है कि,
राष्ट्र कल्याण में जो लगे हैं,
हम उन्हें बदनाम करते हैं|
अपेक्षा करने वाले ही
उपेक्षा के भाव सहते हैं|
अब सेना के ऊपर पत्थर पड़ते हैं|...
अन्त में देखिए-
ये कार्टून!

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुरंगी चर्चा और बहुत सी लिंक्स |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर चर्चा ...बढ़िया लिंक्स ...आभार ...मेरी रचना को स्थान दिया ...!!

    जवाब देंहटाएं
  3. पढ़ने की पर्याप्त सामग्री आज की चर्चा में।

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहनीय सार-संकलन. हमेशा की तरह आज भी कई अच्छे और ज्ञानवर्धक लिंक्स मिले . आभारी हूँ कि मेरे आलेख को भी आपने जगह दी.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुरंगी चर्चा और बहुत सी लिंक्स |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत अच्छा ।धन्यवाद और आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. कम समय में भी अच्छे लिंक लगा गए शाष्त्री जी .बुद्धवार चर्चा तो आपातकालीन थी फिर भी चार चाँद लगा गए ...बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर चर्चा,बहुत सारे लिंक्स का संयोजन|
    हिन्दी हाइगा को स्थान देने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  9. कौन मानेगा कि आपने इतना कुछ जल्दबाज़ी में सजाया है!

    जवाब देंहटाएं
  10. कम समय में विस्‍तृत चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह आज तो सभी लिंक मजेदार हैं ... मुझे भी शामिल करने का शुक्रिया ..

    जवाब देंहटाएं
  12. namaskaar
    aapne jaldee mai bhi kitne sundar links khoj liye
    thankx for giving us such a beautiful link for reading . and also thanx for selecting and giving place to my link at manch.

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत हि उम्दा रचनाओं से रुबरु करवाने के लिए
    साधुवाद!
    साथ हि हमारी रचना को च्र्चामंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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