रही अनवरत फर्ज , भाग बेचैन आत्मा। |
(1) पिट्सबर्ग में एक भारतीय * परगन्धहीन - कहानीशरद ऋतु की अपनी ही सुन्दरता है।रेस्त्राँ में ठीक सामने बैठी रूपसी ने कितने दिल तोड़े हों, किसे पता। देख भी लें तो पहचानेंगे कैसे? कभी उस दृष्टि से देखने की ज़रूरत ही नहीं समझते हम। तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो, जहाँ उम्मीद हो उसकी वहाँ नहीं मिलता।
सो तय हुआ कि ऐसे पौधे लगाये जायें जो रंगीन हों, सुन्दर भी हों, परंतु हों गन्धहीन। |
(2) ![]() |
(3) ![]() कैसा उन्माद कण-कण पर छाया हुलक-हुलक.....पुलक-पुलक हुलक-पुलक.....पुलक-हुलक लहराती गीत गाती है धरा |
(5) पर हाँ ....बुरी औरत हूँ मैं मानती हूँ...... क्यूँकि जान गयी हूँ अपनी तरह अपनी शर्तों पर जीना नहीं करती अब तुम्हारी बेगारी दे देती हूँ तुम्हारी हर गलत बात का जवाब नहीं मानती आँख मूँद कर तुम्हारी हर बात सिर्फ तुम... |
और
40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ... पर
02/02/1972
"सच्चा-सच्चा प्यार कीजिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
प्रेम-प्रीत के चक्कर में पड़,
सीमाएँ मत पार कीजिए।
वैलेन्टाइन के अवसर पर---
पे =सोने पे सुहागा ;
ताके=सिंहावलोकन
रही =पथ का राही
फर्ज =मनसा वाचा कर्मणा
भाग =जीवन की आपाधापी
करे=मिसफिट
धीरज =कासे कहूँ
खात्मा=कर्मनाशा
रविकर जी!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुत की है आपने!
आभार!
सुन्दर चर्चा !
ReplyDeleteआभार
nice links..... thanks........:)
ReplyDeletebahut badhiya .
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा....
ReplyDeleteवाह कविराज! सुंदर कुण्डली।
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा रविकर जी!
ReplyDeleteravikar ji
ReplyDeletecharchamanch par meri post laane ke liye bahut bahut dhnyvad,
sabhi links bahut achchhe hain
Nice links.
ReplyDeleteशुक्रिया।
ReplyDeleteअलग ही अंदाज में चर्चा।
ReplyDeleteबहुत बढिया।
बहुत अच्छी चर्चा संवारी है आपने.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'
को 'फर्ज' में लिपटा देख अच्छा
लगा.
जो भी 'फर्ज' दबाए
वह मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-३'
पर पहुँच जाए.
बहुत बहुत आभार रविकर जी.
अच्छी चर्चा ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
बहुत बढ़िया चर्चा !
ReplyDeleteमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत२ आभार,
ReplyDeleteबेहतरीन ,लाजबाब प्रस्तुती
MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
बहुत सुंदर और रोचक चर्चा...
ReplyDeleteravikar ji
ReplyDeleteaapka yah charch manch sada hirochakta se paripurn raha hai.sabki prastutiyan bhi bahut bahut hi achchi lagin.
hardik dhanyvaad
poonam
पथ का राही
ReplyDeleteको लोगों तक पहुचने के लिए सहृदय आभार.
रोचक चर्चा मंच्।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बढ़िया चर्चा के लिए आभार.
ReplyDeleteरविकर चर्चा का अन्दाज़ ही अलग है, कहानी "गन्धहीन" शामिल करने के लिये धन्यवाद!
ReplyDeleteगागर में सागर के रुप में संक्षेप में प्रस्तुत चर्चा के साथ नजरिया ब्लाग की मेरी पोस्ट को भी शामिल करने हेतु आभार सहित...
ReplyDeleteआभार!! पोस्ट को चर्चामन्च का हिस्सा बनाने के लिए..
ReplyDeleteMere blog par n aayen, varna harze kharche ke zimmedar aap honge.
ReplyDeleteravikar ji aabhar....aap sada hi rajbhasha blog ka dhyan rakhte hue meri post ko yahan samman dete hain. bahut aabhari hun.
ReplyDeletesunder prayas.
सांकेतिक चर्चा का अंदाज़ नया लगा :)
ReplyDeletebahut sundar prastuti,Ravikar ji, badhaai
ReplyDeleteअत्यन्त ही रोचक प्रस्तुति..
ReplyDeletesundar charcha...abhar..
ReplyDeleteबहुत सुंदर चर्चा। आभार मुझे शामिल करने हेतु
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